"भारत की नदियाँ": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(4 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 18 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{ॠग्वैदिककालीन नदियाँ सूची1}} | {{ॠग्वैदिककालीन नदियाँ सूची1}} | ||
'''भारत की नदियों''' का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। [[सिन्धु नदी|सिन्धु]] तथा [[गंगा]] नदियों की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं - [[सिन्धु घाटी]] तथा आर्य सभ्यता का आर्विभाव हुआ। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं [[कृषि]] का जमाव नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से सम्बद्ध है। | |||
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :- | भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :- | ||
* | *[[हिमालय]] से निकलने वाली नदियाँ | ||
*दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ | *दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ | ||
*तटवर्ती नदियाँ | *तटवर्ती नदियाँ | ||
*अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ | *अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ | ||
== | ==हिमालय से निकलने वाली नदियाँ== | ||
[[हिमालय]] से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ् नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्थायी प्रकृति की हैं। | {{Main|हिमालय से निकलने वाली नदियाँ}} | ||
हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्य प्रणाली सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी की प्रणाली की तरह है। | [[हिमालय]] से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ् नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्थायी प्रकृति की हैं। हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्य प्रणाली [[सिंधु नदी|सिंधु]], [[गंगा]], [[ब्रह्मपुत्र]] और मेघना नदी की प्रणाली की तरह है। | ||
==== | ====सिंधु नदी==== | ||
{{Main|सिंधु नदी}} | {{Main|सिंधु नदी}} | ||
[[चित्र:Sindhu-River-1.jpg|thumb| | [[चित्र:Sindhu-River-1.jpg|thumb|150px|[[सिन्धु नदी]]]] | ||
विश्व की महान, नदियों में एक है, [[तिब्बत]] में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्पश्चात् [[पाकिस्तान]] से हो कर और अंतत: कराची के निकट [[अरब सागर]] में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में [[सतलुज नदी|सतलुज]] (तिब्बत से निकलती है), [[व्यास नदी|व्यास]], [[रावी नदी|रावी]], [[चिनाब नदी|चिनाब]], और [[झेलम नदी|झेलम]] है। | विश्व की महान, नदियों में एक है, [[तिब्बत]] में मानसरोवर के निकट से निकलती है और [[भारत]] से होकर बहती है और तत्पश्चात् [[पाकिस्तान]] से हो कर और अंतत: [[कराची]] के निकट [[अरब सागर]] में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में [[सतलुज नदी|सतलुज]] (तिब्बत से निकलती है), [[व्यास नदी|व्यास]], [[रावी नदी|रावी]], [[चिनाब नदी|चिनाब]], और [[झेलम नदी|झेलम]] है। | ||
==== | ====गंगा==== | ||
{{Main|गंगा नदी}} | {{Main|गंगा नदी}} | ||
[[चित्र:Ganga-River-Varanasi.jpg|thumb| | [[चित्र:Ganga-River-Varanasi.jpg|thumb|150px|[[गंगा नदी]], [[वाराणसी]]]] | ||
ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्य महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] और [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर [[गंगा]] बन जाती है। यह [[उत्तरांचल]], [[उत्तर प्रदेश]], [[बिहार]] और [[पश्चिम बंगाल|प.बंगाल]] से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और [[बांग्लादेश]] में प्रवेश करती है। | ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्य महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] और [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] में हैं, जो [[देवप्रयाग]] में मिलकर [[गंगा]] बन जाती है। यह [[उत्तरांचल]], [[उत्तर प्रदेश]], [[बिहार]] और [[पश्चिम बंगाल|प.बंगाल]] से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और [[बांग्लादेश]] में प्रवेश करती है। | ||
==== | ====ब्रह्मपुत्र==== | ||
{{Main|ब्रह्मपुत्र नदी}} | {{Main|ब्रह्मपुत्र नदी}} | ||
[[चित्र:Brahmaputra-river-Assam.jpg|thumb|[[ब्रह्मपुत्र नदी]], [[असम]]]] | [[चित्र:Brahmaputra-river-Assam.jpg|thumb|150px|[[ब्रह्मपुत्र नदी]], [[असम]]]] | ||
ब्रह्मपुत्र [[तिब्बत]] से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में [[अरुणाचल प्रदेश]] तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित [[ब्रह्मपुत्र नदी]] से मिल जाती है और यह संयुक्त नदी पूरे [[असम]] से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में [[बांग्लादेश]] में प्रवेश करती है। | ब्रह्मपुत्र [[तिब्बत]] से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में [[अरुणाचल प्रदेश]] तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित [[ब्रह्मपुत्र नदी]] से मिल जाती है और यह संयुक्त नदी पूरे [[असम]] से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में [[बांग्लादेश]] में प्रवेश करती है। | ||
==== | ====सहायक नदियाँ==== | ||
[[चित्र:Yamuna-Mathura-2.jpg|thumb| | [[चित्र:Yamuna-Mathura-2.jpg|thumb|150px|[[यमुना नदी]], [[मथुरा]]]] | ||
[[यमुना नदी|यमुना]], [[रामगंगा नदी|रामगंगा]], [[घाघरा नदी|घाघरा]], [[गंडक नदी|गंडक]], [[कोसी नदी|कोसी]], [[महानदी]], और [[सोन नदी|सोन]]; गंगा की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। [[चंबल नदी|चंबल]] और [[बेतवा नदी|बेतवा]] महत्वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। [[पद्मा नदी|पद्मा]] और [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] बांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के | [[यमुना नदी|यमुना]], [[रामगंगा नदी|रामगंगा]], [[घाघरा नदी|घाघरा]], [[गंडक नदी|गंडक]], [[कोसी नदी|कोसी]], [[महानदी]], और [[सोन नदी|सोन]]; गंगा की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। [[चंबल नदी|चंबल]] और [[बेतवा नदी|बेतवा]] महत्वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। [[पद्मा नदी|पद्मा]] और [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] [[बांग्लादेश]] में मिलती है और [[पद्मा नदी|पद्मा]] अथवा गंगा के रूप में बहती रहती है। भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। [[बांग्लादेश]] में ब्रह्मपुत्र तिस्त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्लादेश में भैरव बाज़ार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है। | ||
==हिमालय से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप== | |||
भौतिक दृष्टि से देश में प्रायद्धीपेत्तर तथा प्रायद्धीपीय नदी प्रणालियों का विकास हुआ है, जिन्हे क्रमशः हिमालय की नदियाँ एवं दक्षिण के पठार की नदियाँ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। हिमालय अथवा [[उत्तर भारत]] की नदियों द्वारा निम्नलिखित प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं। | |||
====पूर्वीवर्ती अपवाह==== | |||
इस प्रकार का अपवाह तब विकसित होता है, जब कोई नदी अपने मार्ग में आने वाली भौतिक बाधाओं को काटते हुए अपनी पुरानी घाटी में ही प्रवाहित होती है। इस अपवाह प्रतिरूप की नदियों द्वारा सरित अपहरण का भी उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है। हिमालय से निकलने वाली सिन्धु, [[सतलुज नदी|सतलुज]], [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]], [[भागीरथी नदी|भागीरथी]], [[तिस्ता नदी|तिस्ता]] आदि नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करती हैं। | |||
====क्रमहीन अपवाह==== | |||
जब कोई नदी अपनी प्रमुख शाखा से विपरीत दिशा से आकर मिलती है तब क्रमहीन या अक्रमवर्ती अपवाह प्रतिरूप का विकास हो जाता है। ब्रह्मपुत्र में मिलने वाली सहायक नदियाँ - दिहांग, दिवांग तथा लोहित इसी प्रकार का अपवाह बनाती है। | |||
====खण्डित अपवाह==== | |||
[[उत्तर भारत]] के विशाल मैदान में पहुंचने के पूर्व भाबर क्षेत्र में विलीन हो जाने वाली नदियाँ खण्डित या विलुप्त अपवाह का निर्माण करती हैं। | |||
====मालाकार अपवाह==== | |||
देश की अधिकांश नदियाँ [[समुद्र]] में मिलने के पूर्व अनेक शाखाओं में विभाजित होकर डेल्टा बनाती हैं, जिससे गुम्फित या मालाकार अपवाह का निर्माण होता है । | |||
====अन्तस्थलीय अपवाह==== | |||
[[राजस्थान]] के मरुस्थलीय क्षेत्र [[अरावली पर्वतमाला]] से निकलकर विलीन हो जाने वाली नदियाँ अन्तः स्थलीय अपवाह बनाती हैं। | |||
====समानान्तर अपवाह==== | |||
उत्तर के विशाल मैदान में पहुंचने वाली पर्वतीय नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है। | |||
====आयताकार अपवाह==== | |||
उत्तर भारत के [[कोसी नदी|कोसी]] तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा आयताकार अपवाह प्रतिरूप का विकास किया गया है। | |||
==दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ== | |||
दक्कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्यत पूर्व दिशा में बहती हैं और [[बंगाल की खाड़ी]] में मिल जाती हैं। | दक्कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्यत पूर्व दिशा में बहती हैं और [[बंगाल की खाड़ी]] में मिल जाती हैं। | ||
[[चित्र:Kaveri-River.jpg|thumb|150px|[[कावेरी नदी]]]] | |||
[[गोदावरी नदी|गोदावरी]], [[कृष्णा नदी|कृष्णा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]], [[महानदी]], आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और [[नर्मदा नदी|नर्मदा]], ताप्ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्थान है जबकि महानदी का तीसरा स्थान है। डेक्कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह [[अरब सागर]] की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है। | [[गोदावरी नदी|गोदावरी]], [[कृष्णा नदी|कृष्णा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]], [[महानदी]], आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और [[नर्मदा नदी|नर्मदा]], ताप्ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी [[प्रायद्वीप]] में गोदावरी दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्थान है जबकि महानदी का तीसरा स्थान है। डेक्कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह [[अरब सागर]] की ओर बहती है, [[बंगाल की खाड़ी]] में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है। | ||
==दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप== | |||
कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है। | [[दक्षिण भारत]] अथवा प्रायद्वीपीय पठारी भाग पर प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा भी विभिन्न प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं। जिनका विवरण निम्नलिखित हैं। | ||
====अनुगामी अपवाह==== | |||
[[राजस्थान]] में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्त कुछ मरुस्थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्थल में लुप्त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्छ, स्पेन, [[सरस्वती नदी|सरस्वती]], बानस और घग्गर जैसी अन्य नदियाँ हैं। | जब कोई नदी धरातलीय ढाल की दिशा में प्रवाहित होती है तब अनुगामी अपवाह का निर्माण होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों का उद्भाव पश्चिमी घाट पर्वत माला में हैं तथा वे ढाल के अनुसार प्रवाहित होकर [[बंगाल की खाड़ी]] अथवा [[अरब सागर]] में गिरती हैं और अनुगामी अपवाह का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। | ||
====परवर्ती अपवाह==== | |||
[[चित्र:Krishna-River.jpg|thumb|150px|[[कृष्णा नदी]]]] | |||
जब नदियाँ अपनी मुख्य नदी में ढाल का अनुसरण करते हुए समकोण पर आकर मिलती हैं, तब परवर्ती अपवाह निर्मित होता है। दक्षिण प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से निकलकर [[गंगा]] तथा [[यमुना]] नदियों में मिलने वाली नदियाँ - [[चम्बल नदी|चम्बल]], [[केन नदी|केन]], [[काली नदी|काली]], [[सिन्धु नदी|सिन्ध]], [[बेतवा नदी|बेतवा]] आदि द्वारा परवर्ती अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है। | |||
====आयताकार अपवाह==== | |||
विन्ध्य चट्टानों वाले प्रायद्वीपीय क्षेत्र में नदियों ने आयताकार अपवाह प्रतिरूप का निर्माण किया है, क्योंकि ये मुख्य नदी में मिलते समय चट्टानी संधियों से होकर प्रवाहित होती हैं तथा समकोण पर आकर मिलती है। | |||
====जालीनुमा अपवाह==== | |||
जब नदियाँ पूर्णतः ढाल का अनुसरण करते हुए प्रवाहित होती है तथा ढाल में परिवर्तन के अनुसार उनके मार्ग में भी परिवर्तन हो जाता है, जब जालीनुमा अथवा ‘स्वभावोद्भूत’ अपवाह प्रणाली का विकास होता है। पूर्वी सिंहभूमि के प्राचीन वलित पर्वतीय क्षेत्र में इस प्रणाली का विकास हुआ है। | |||
====अरीय अपवाह==== | |||
इसे अपकेन्द्रीय अपवाह भी कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थान से निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थानसे निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित होती हैं। दक्षिण भारत में [[अमरकण्टक शिखर|अमरकण्टक पर्वत]] से निकलने वाली [[नर्मदा नदी|नर्मदा]], [[सोन नदी|सोन]] तथा [[महानदी]] आदि ने अरीय अपवाह का निर्माण किया गया है। | |||
====पादपाकार अथवा वृक्षाकांर अपवाह==== | |||
जब नदियाँ सपाट तथा चौरस धरातल पर प्रवाहित होते हुए एक मुख्य नदी की धारा में मिलती हैं, तब इस प्रणाली का विकास होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों द्वारा पादपाकार अपवाह का निर्माण किया गया है। | |||
====समानान्तर अपवाह==== | |||
पश्चिमी घाट पहाड़ से निकलकर पश्चिम दिशा में तीव्र गति से बढ़कर अरब सागर में गिरने वली नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह का निर्माण किया गया है। | |||
==तटवर्ती नदियाँ== | |||
भारत में कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है। [[राजस्थान]] में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्त कुछ मरुस्थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्थल में लुप्त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्छ, स्पेन, [[सरस्वती नदी|सरस्वती]], बानस और घग्गर जैसी अन्य नदियाँ हैं। | |||
====भारत की प्रमुख नदियों की सूची==== | ====भारत की प्रमुख नदियों की सूची==== | ||
{{भारत की प्रमुख नदियाँ सूची1}} | {{भारत की प्रमुख नदियाँ सूची1}} | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1|पूर्णता=|शोध=}} | ||
|आधार= | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
|प्रारम्भिक= | *[http://knowindia.gov.in/hindi/knowindia/profile.php?id=5 भारत की नदियां] | ||
|माध्यमिक= | ==संबंधित लेख== | ||
|पूर्णता= | {{भारत की नदियाँ}}[[Category:भारत का भूगोल]] | ||
|शोध= | |||
}} | |||
== | |||
[[Category:भारत की नदियाँ]][[Category:भूगोल कोश]] | [[Category:भारत की नदियाँ]][[Category:भूगोल कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
09:25, 26 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
---|
भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। सिन्धु तथा गंगा नदियों की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं - सिन्धु घाटी तथा आर्य सभ्यता का आर्विभाव हुआ। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का जमाव नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से सम्बद्ध है। भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
- हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
- दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
- तटवर्ती नदियाँ
- अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ् नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्थायी प्रकृति की हैं। हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्य प्रणाली सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।
सिंधु नदी

विश्व की महान, नदियों में एक है, तिब्बत में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्पश्चात् पाकिस्तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में सतलुज (तिब्बत से निकलती है), व्यास, रावी, चिनाब, और झेलम है।
गंगा

ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्य महत्वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और प.बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
ब्रह्मपुत्र

ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में अरुणाचल प्रदेश तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है और यह संयुक्त नदी पूरे असम से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
सहायक नदियाँ

यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी, और सोन; गंगा की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रूप में बहती रहती है। भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्लादेश में भैरव बाज़ार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप
भौतिक दृष्टि से देश में प्रायद्धीपेत्तर तथा प्रायद्धीपीय नदी प्रणालियों का विकास हुआ है, जिन्हे क्रमशः हिमालय की नदियाँ एवं दक्षिण के पठार की नदियाँ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। हिमालय अथवा उत्तर भारत की नदियों द्वारा निम्नलिखित प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं।
पूर्वीवर्ती अपवाह
इस प्रकार का अपवाह तब विकसित होता है, जब कोई नदी अपने मार्ग में आने वाली भौतिक बाधाओं को काटते हुए अपनी पुरानी घाटी में ही प्रवाहित होती है। इस अपवाह प्रतिरूप की नदियों द्वारा सरित अपहरण का भी उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है। हिमालय से निकलने वाली सिन्धु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, भागीरथी, तिस्ता आदि नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करती हैं।
क्रमहीन अपवाह
जब कोई नदी अपनी प्रमुख शाखा से विपरीत दिशा से आकर मिलती है तब क्रमहीन या अक्रमवर्ती अपवाह प्रतिरूप का विकास हो जाता है। ब्रह्मपुत्र में मिलने वाली सहायक नदियाँ - दिहांग, दिवांग तथा लोहित इसी प्रकार का अपवाह बनाती है।
खण्डित अपवाह
उत्तर भारत के विशाल मैदान में पहुंचने के पूर्व भाबर क्षेत्र में विलीन हो जाने वाली नदियाँ खण्डित या विलुप्त अपवाह का निर्माण करती हैं।
मालाकार अपवाह
देश की अधिकांश नदियाँ समुद्र में मिलने के पूर्व अनेक शाखाओं में विभाजित होकर डेल्टा बनाती हैं, जिससे गुम्फित या मालाकार अपवाह का निर्माण होता है ।
अन्तस्थलीय अपवाह
राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र अरावली पर्वतमाला से निकलकर विलीन हो जाने वाली नदियाँ अन्तः स्थलीय अपवाह बनाती हैं।
समानान्तर अपवाह
उत्तर के विशाल मैदान में पहुंचने वाली पर्वतीय नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है।
आयताकार अपवाह
उत्तर भारत के कोसी तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा आयताकार अपवाह प्रतिरूप का विकास किया गया है।
दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ
दक्कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।

गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्थान है जबकि महानदी का तीसरा स्थान है। डेक्कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।
दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप
दक्षिण भारत अथवा प्रायद्वीपीय पठारी भाग पर प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा भी विभिन्न प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं। जिनका विवरण निम्नलिखित हैं।
अनुगामी अपवाह
जब कोई नदी धरातलीय ढाल की दिशा में प्रवाहित होती है तब अनुगामी अपवाह का निर्माण होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों का उद्भाव पश्चिमी घाट पर्वत माला में हैं तथा वे ढाल के अनुसार प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी अथवा अरब सागर में गिरती हैं और अनुगामी अपवाह का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
परवर्ती अपवाह

जब नदियाँ अपनी मुख्य नदी में ढाल का अनुसरण करते हुए समकोण पर आकर मिलती हैं, तब परवर्ती अपवाह निर्मित होता है। दक्षिण प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से निकलकर गंगा तथा यमुना नदियों में मिलने वाली नदियाँ - चम्बल, केन, काली, सिन्ध, बेतवा आदि द्वारा परवर्ती अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है।
आयताकार अपवाह
विन्ध्य चट्टानों वाले प्रायद्वीपीय क्षेत्र में नदियों ने आयताकार अपवाह प्रतिरूप का निर्माण किया है, क्योंकि ये मुख्य नदी में मिलते समय चट्टानी संधियों से होकर प्रवाहित होती हैं तथा समकोण पर आकर मिलती है।
जालीनुमा अपवाह
जब नदियाँ पूर्णतः ढाल का अनुसरण करते हुए प्रवाहित होती है तथा ढाल में परिवर्तन के अनुसार उनके मार्ग में भी परिवर्तन हो जाता है, जब जालीनुमा अथवा ‘स्वभावोद्भूत’ अपवाह प्रणाली का विकास होता है। पूर्वी सिंहभूमि के प्राचीन वलित पर्वतीय क्षेत्र में इस प्रणाली का विकास हुआ है।
अरीय अपवाह
इसे अपकेन्द्रीय अपवाह भी कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थान से निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थानसे निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित होती हैं। दक्षिण भारत में अमरकण्टक पर्वत से निकलने वाली नर्मदा, सोन तथा महानदी आदि ने अरीय अपवाह का निर्माण किया गया है।
पादपाकार अथवा वृक्षाकांर अपवाह
जब नदियाँ सपाट तथा चौरस धरातल पर प्रवाहित होते हुए एक मुख्य नदी की धारा में मिलती हैं, तब इस प्रणाली का विकास होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों द्वारा पादपाकार अपवाह का निर्माण किया गया है।
समानान्तर अपवाह
पश्चिमी घाट पहाड़ से निकलकर पश्चिम दिशा में तीव्र गति से बढ़कर अरब सागर में गिरने वली नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह का निर्माण किया गया है।
तटवर्ती नदियाँ
भारत में कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है। राजस्थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्त कुछ मरुस्थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्थल में लुप्त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्छ, स्पेन, सरस्वती, बानस और घग्गर जैसी अन्य नदियाँ हैं।
भारत की प्रमुख नदियों की सूची
क्रम | नदी | लम्बाई (कि.मी.) | उद्गम स्थान | सहायक नदियाँ | प्रवाह क्षेत्र (सम्बन्धित राज्य) |
---|
|
|
|
|
|
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख