शंकर लाल बैंकर

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शंकर लाल बैंकर (जन्म- 27 दिसंबर, 1889, मुंबई) गांधीजी के प्रमुख अनुयाई, समाजसेवी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। वे श्रमिक, पिछड़े और दलित वर्ग के उत्थान के लिये प्रयत्नशील रहे।

परिचय

गांधीजी के प्रमुख अनुयाई, समाजसेवी और रचनात्मक कार्यकर्ता शंकर लाल बैंकर का जन्म 27 दिसंबर, 1889 ई. को मुंबई में हुआ था। उनके पूर्वज आनंद (गुजरात) से आकर यहां बस गए थे। शंकर लाल ने एम.ए. की परीक्षा ज़ेवियर कॉलेज, मुंबई से पास की और उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए, किंतु प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ हो जाने के कारण पढ़ाई छोड़कर उन्हें स्वदेश लौटकर आना पड़ा।[1]

राष्ट्रीयता

शंकरलाल बैंकर के विचार राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत थे। राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने होम रूल लीग आंदोलन में भाग लिया वे मुख्यत: महर्षि दयानंद, 'सत्य प्रकाश' और रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, केशवचंद्र सेन आदि महापुरुषों के विचारों से प्रभावित रहे हैं। उन्होंने अविवाहित रहते हुए, लगभग 60 वर्षों तक देश और समाज की सेवा की।

कार्यक्षेत्र

उन्होंने अपने लिए मुख्यतः कार्यक्षेत्र निर्धारित कर लिए थे। श्रमिक आंदोलन का संचालन उन्होंने गांधीजी की दृष्टि से किया। उद्योग मालिकों तथा श्रमिकों के बीच वे संघर्ष के स्थान पर वार्तालाप का माहोल तैयार कराते रहे। श्रमिक आंदोलन का संचालन उन्होंने गांधीजी की तरह से किया। समाज के पिछड़े वर्ग, श्रमिक और दलित वर्ग के उत्थान के कार्य में वे प्रयासरत रहे। शंकरलाल उनका सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से उत्थान करना चाहते थे। खादी और ग्रामोद्योग के क्षेत्र में उनकी समान रूचि और गहरी पैठ थी। इस क्षेत्र में उन्होंने बहुत विशेषज्ञता प्राप्त कर ली थी।

गांधीजी से निकटता

शंकर लाल बैंकर गांधीजी के अत्यंत निकट थे। 1920 में वे महात्मा गांधी के सम्पर्क में आए और सदा के लिए उनके अनुयाई बन गए। उन्होंने गांधीजी द्वारा आरंभ किए हर राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लिया और जेल की यातनाएं भोगीं। ग्रामोद्योग और खादी के क्षेत्र में उन्होंने इतनी विशेषज्ञता प्राप्त कर ली थी कि गांधीजी उनसे परामर्श किया करते थे। उनकी गणना गांधीजी के विचारों को भली-भांति समझने और और उनके अनुसार काम करने वाले राष्ट्र सेवकों में होती थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 822 |

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