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विष्णु शरण दुबलिश

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विष्णु शरण दुबलिश (जन्म- 2 अक्टूबर, 1899, मेरठ ज़िला) स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थे। स्वतंत्रता आंदोलनों के दौरान उन्हें कठोर कारावास की सजा हुई। वे विधानसभा और संसद के सदस्य भी रहे।

परिचय

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय कार्यकर्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी विष्णु शरण दुबलिश का जन्म 2 अक्टूबर 1899 ईसवी को मेरठ जिले के मखाना गांव में एक आर्यसमाजी परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा मेरठ में हुई। बी. ए. की पढ़ाई कर रहे थे तभी गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए और गिरफ्तार कर लिए गए। बाद में जेल से बाहर आने पर उन्होंने बी.ए.की शिक्षा पूरी की। जेल में रहते समय दुबलिश का संपर्क क्रांतिकारी साहित्य से हुआ और उनके विचारों में यह परिवर्तन आया कि स्वराज प्राप्ति के लिये गांधीजी के अहिंसा के मार्ग के स्थान पर सशस्त्र क्रांति का मार्ग अधिक कारगर है।[1]

क्रांतिकारी विचार

क्रांतिकारी साहित्य और प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल के संपर्क में आने से विष्णु शरण दुबलिश क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति बन गये। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य बन गए। इस क्रांतिकारी दल में शीघ्र ही उनका महत्वपूर्ण स्थान बन गया। बताया जाता है कि 1925 की प्रसिद्ध काकोरी कांड की योजना को इन्हीं के घर पर अंतिम रुप दिया गया था।

जेल यात्रा

काकोरी कांड के बाद 1925 में वे गिरफ्तार हुए और मुकदमे में 10 वर्ष की कठोर कारावास की सजा मिली। जेल में अधिकारियों के साथ संघर्ष हो जाने के कारण दुबलिश को आजन्म कैद की सजा देकर अंडमान भेज दिया। प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें बन जाने पर 1 नवंबर 1937 को वे रिहा हो सके। जेल में दुबलिश के विचारों में पुन: परिवर्तन हुआ और वे कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य चुना गया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण उन्हें फिर जेल में बंद कर दिया गया।

योगदान

स्वतंत्रता के बाद दुबलिशजी का प्रदेश के पश्चिमी जिलों में स्वदेशी और ग्राम उद्योगों को प्रोत्साहित करने में विशेष योगदान रहा है। वे उत्तर प्रदेश की विधानसभा और संसद के सदस्य भी रहे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 804 |

बाहरी कड़ियाँ

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