कश्कोल -अबुल फ़ज़ल

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कश्कोल मुग़ल बादशाह अकबर के दरबारी विद्वान् अबुल फ़ज़ल की कृति है। इस कृति की रचना अबुल फ़ज़ल ने फ़ारसी में की थी।

  • साधुओं-फकीरों के भिक्षापात्र या दरियाई नारियल के खप्पर को 'कश्कोल' कहा जाता है। रोटी, दाल, सूखा-बासी, मीठा-नमकीन जो भी खाने की चीज भिक्षा में मिलती है, उसे वह अपने कश्कोल में डाल लेते हैं।
  • अबुल फ़ज़ल की यह कृति भी कश्कोल की तरह ही है। इसमें उन्होंने किताबों के पढ़ते वक्त जो-जो बातें पसन्द आईं, उन्हें जमा कर लिया।
  • फ़ारसी में इस तरह के कश्कोल पहले भी लिखे जा चुके थे, उन्हीं की तरह अबुल फ़ज़ल ने अपने कश्कोल को तैयार किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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