दर्शन शास्त्र

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दर्शन परिचय
अध्यात्म का मूलाधार दर्शन है। भारत में धर्म और दर्शन परस्पर ऐसे रचे-बसे हैं कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। दोनों की परंपरा समान गति से निरंतर प्रवाहमान द्रष्टव्य है। भारत चिरकाल से एक दर्शन प्रधान देश रहा है। भौतिक जगत् का मिथ्यात्व तथा निराकार ब्रह्म का सत्य एवं सर्वव्यापकता यहाँ सदैव विचार का विषय बने रहे हैं।

विभाजन

भारतीय दार्शनिक विचारधारा को समय की दृष्टि से चार कालों में विभाजित कर सकते हैं-

  1. वैदिक काल में वेद से उपनिषद तक रचा साहित्य समाहित है।
  2. महाभारत काल - चार्वाक और गीता का युग।
  3. बौद्ध काल - जैन तथा बौद्ध धर्म का युग।
  4. उत्तर बौद्ध काल - न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्व तथा उत्तर मीमांसा का युग।

वैदिक काल

वैदिक काल में आर्यों की चिंताधारा उल्लास तथा ऐश्वर्य भोगने की कामना से युक्त थी। ब्राह्मण ग्रंथों में वैदिक ऋचाओं और मन्त्रों के अर्थ के साथ-साथ तत्कालीन पुराण और इतिहास के संदर्भ भी मिलते हैं। उनके माध्यम से कर्म की महत्ता बढ़ने लगी। उनकी सबसे बड़ी विशेषता वेद और वेदोत्तर साहित्य की मध्यवर्ती कड़ी होने में है। धीरे-धीरे आर्यों की विचारधारा अंतर्मुखी होने लगी। अत: उपनिषदों की रचना हुई। औपनिषदिक साहित्य में अनेक कथाएं दार्शनिक तथ्यांकन करती हैं-

  • पिप्पलाद की कथा ब्रह्म जीव, जगत् पर प्रकाश डालती है।
  • नचिकेता भौतिक सुखों की नि:सारता पर।
  • सुकेशा के माध्यम से सोलह कलाओं से युक्त पुरुष का अंकन है तो
  • वरुण और भृगु का वार्तालाप ब्रह्म के स्वरूप को स्पष्ट करता है।
  • छांदोग्योपनिषद में अंकित बृहस्पति की कथा इन्द्रियों की नश्वरता को उजागर करती हे। ऐसी अनेक कथाएं उपलब्ध हैं।


इन्हें भी देखें: सांख्य दर्शन, योग दर्शन, न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, मीमांसा दर्शन एवं वेदांत


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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