"राजगुरु": अवतरणों में अंतर
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'''राजगुरु''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rajguru'') का पूरा नाम 'शिवराम हरि राजगुरु' था। राजगुरु का जन्म [[24 अगस्त]], [[1908]] को [[पुणे]] ज़िले के [[खेड़ा]] गाँव में हुआ था, जिसका नाम अब 'राजगुरु नगर' हो गया है। उनके पिता का नाम 'श्री हरि नारायण' और माता का नाम 'पार्वती बाई' था। [[भगत सिंह]] और [[सुखदेव]] के साथ ही राजगुरु को भी [[23 मार्च]] [[1931]] को फांसी दी गई थी। | |||
==जीवन परिचय== | |||
== | राजगुरु `स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूंगा' का उद्घोष करने वाले [[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक]] के विचारों से बहुत प्रभावित थे। [[1919]] में [[जलियांवाला बाग़]] में [[जनरल डायर]] के नेतृत्व में किये गये भीषण नरसंहार ने राजगुरु को ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ बाग़ी और निर्भीक बना दिया तथा उन्होंने उसी समय [[भारत]] को विदेशियों के हाथों आज़ाद कराने की प्रतिज्ञा ली और प्रण किया कि चाहे इस कार्य में उनकी जान ही क्यों न चली जाये वह पीछे नहीं हटेंगे। | ||
राजगुरु `स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूंगा' का उद्घोष करने वाले [[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक]] के विचारों से बहुत प्रभावित थे। 1919 में [[जलियांवाला बाग़]] में जनरल डायर के नेतृत्व में किये गये भीषण नरसंहार ने राजगुरु को ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ बाग़ी और निर्भीक बना दिया तथा उन्होंने उसी समय [[भारत]] को विदेशियों के हाथों आज़ाद कराने की प्रतिज्ञा ली और प्रण किया कि चाहे इस कार्य में उनकी जान ही क्यों न चली जाये वह पीछे नहीं हटेंगे। | ====सुनियोजित गिरफ़्तारी==== | ||
==सुनियोजित गिरफ़्तारी== | जीवन के प्रारम्भिक दिनों से ही राजगुरु का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ होने लगा था। राजगुरु ने [[19 दिसंबर]], [[1928]] को [[भगतसिंह|शहीद-ए-आजम भगत सिंह]] के साथ मिलकर [[लाहौर]] में सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर नियुक्त अंग्रेज़ अधिकारी 'जे. पी. सांडर्स' को गोली मार दी थी और ख़ुद को अंग्रेज़ी सिपाहियों से गिरफ़्तार कराया था। यह सब पूर्व नियोजित था। | ||
जीवन के प्रारम्भिक दिनों से ही राजगुरु का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ होने लगा था। राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को [[भगतसिंह|शहीद-ए-आजम भगत सिंह]] के साथ मिलकर [[लाहौर]] में सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर नियुक्त अंग्रेज़ अधिकारी 'जे. पी. सांडर्स' को गोली मार दी थी और ख़ुद को अंग्रेज़ी सिपाहियों से गिरफ़्तार कराया था। यह सब पूर्व नियोजित था। | ====अदालत में बयान==== | ||
==अदालत में बयान== | |||
अदालत में इन क्रांतिकारियों ने स्वीकार किया था कि वे [[पंजाब]] में आज़ादी की लड़ाई के एक बड़े नायक [[लाला लाजपत राय]] की मौत का बदला लेना चाहते थे। अंग्रेज़ों के विरुद्ध एक प्रदर्शन में पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी। | अदालत में इन क्रांतिकारियों ने स्वीकार किया था कि वे [[पंजाब]] में आज़ादी की लड़ाई के एक बड़े नायक [[लाला लाजपत राय]] की मौत का बदला लेना चाहते थे। अंग्रेज़ों के विरुद्ध एक प्रदर्शन में पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी। | ||
==प्रसिद्ध तिकड़ी== | ==प्रसिद्ध तिकड़ी== | ||
([[भगतसिंह]], [[सुखदेव]], राजगुरु ) | *[[भारत]] के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों की प्रसिद्ध तिकड़ी ([[भगतसिंह]], [[सुखदेव]], राजगुरु) में से एक थे। | ||
*राजगुरु ने भगत सिंह के साथ मिलकर सांडर्स को गोली मारी | *राजगुरु ने भगत सिंह के साथ मिलकर सांडर्स को गोली मारी थी। | ||
*राजगुरु ने 28 सितंबर, 1929 को एक गवर्नर को मारने की कोशिश की थी जिसके अगले दिन उन्हें पुणे से गिरफ़्तार कर लिया गया था। | *राजगुरु ने [[28 सितंबर]], [[1929]] को एक गवर्नर को मारने की कोशिश की थी जिसके अगले दिन उन्हें [[पुणे]] से गिरफ़्तार कर लिया गया था। | ||
*राजगुरु पर 'लाहौर षड़यंत्र' मामले में शामिल होने का मुक़दमा भी चलाया गया। | *राजगुरु पर 'लाहौर षड़यंत्र' मामले में शामिल होने का मुक़दमा भी चलाया गया। | ||
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राजगुरु को भी [[23 मार्च]], [[1931]] की शाम सात बजे [[लाहौर]] के केंद्रीय कारागार में उनके दोस्तों भगत सिंह और सुखदेव के साथ फ़ाँसी पर लटका दिया गया। इतिहासकार बताते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था। | |||
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उनकी जन्म शती के अवसर पर [[भारत]] सरकार का प्रकाशन विभाग उन पर संभवत पहली बार कोई पुस्तक प्रकाशित कर रहा है। इस सराहनीय प्रयास के लिए न केवल प्रकाशन विभाग धन्यवाद का पात्र है बल्कि उस लेखक को भी कोटि कोटि बधाई है जिसने इस क्रन्तिकारी की जीवन लीला से हमें परिचय कराया है।<ref>{{cite web|url=http://naipirhi.blogspot.com/2008/08/blog-post.html|title=राजगुरु की याद में........|accessmonthday=30जुलाई|accessyear=2010|authorlink=naipirhi.blogspot.com|format=एच.टी.एम.एल |publisher=naipirhi.blogspot.com|language=[[हिन्दी]]}}</ref> | |||
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10:45, 14 अगस्त 2013 का अवतरण
राजगुरु
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पूरा नाम | शिवराम हरि राजगुरु |
अन्य नाम | राजगुरु |
जन्म | 24 अगस्त, 1908 |
जन्म भूमि | पुणे |
मृत्यु | 23 मार्च, 1931 |
मृत्यु स्थान | लाहौर |
मृत्यु कारण | शहीद |
आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
जेल यात्रा | 28 सितंबर, 1929 |
संबंधित लेख | भगतसिंह, सुखदेव |
अन्य जानकारी | राजगुरु `स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूंगा' का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। |
राजगुरु (अंग्रेज़ी: Rajguru) का पूरा नाम 'शिवराम हरि राजगुरु' था। राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे ज़िले के खेड़ा गाँव में हुआ था, जिसका नाम अब 'राजगुरु नगर' हो गया है। उनके पिता का नाम 'श्री हरि नारायण' और माता का नाम 'पार्वती बाई' था। भगत सिंह और सुखदेव के साथ ही राजगुरु को भी 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी।
जीवन परिचय
राजगुरु `स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूंगा' का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। 1919 में जलियांवाला बाग़ में जनरल डायर के नेतृत्व में किये गये भीषण नरसंहार ने राजगुरु को ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ बाग़ी और निर्भीक बना दिया तथा उन्होंने उसी समय भारत को विदेशियों के हाथों आज़ाद कराने की प्रतिज्ञा ली और प्रण किया कि चाहे इस कार्य में उनकी जान ही क्यों न चली जाये वह पीछे नहीं हटेंगे।
सुनियोजित गिरफ़्तारी
जीवन के प्रारम्भिक दिनों से ही राजगुरु का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ होने लगा था। राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर नियुक्त अंग्रेज़ अधिकारी 'जे. पी. सांडर्स' को गोली मार दी थी और ख़ुद को अंग्रेज़ी सिपाहियों से गिरफ़्तार कराया था। यह सब पूर्व नियोजित था।
अदालत में बयान
अदालत में इन क्रांतिकारियों ने स्वीकार किया था कि वे पंजाब में आज़ादी की लड़ाई के एक बड़े नायक लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना चाहते थे। अंग्रेज़ों के विरुद्ध एक प्रदर्शन में पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी।
प्रसिद्ध तिकड़ी
- भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों की प्रसिद्ध तिकड़ी (भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु) में से एक थे।
- राजगुरु ने भगत सिंह के साथ मिलकर सांडर्स को गोली मारी थी।
- राजगुरु ने 28 सितंबर, 1929 को एक गवर्नर को मारने की कोशिश की थी जिसके अगले दिन उन्हें पुणे से गिरफ़्तार कर लिया गया था।
- राजगुरु पर 'लाहौर षड़यंत्र' मामले में शामिल होने का मुक़दमा भी चलाया गया।
शहीद

Sukhdev, Bhagat Singh and Rajguru
राजगुरु को भी 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे लाहौर के केंद्रीय कारागार में उनके दोस्तों भगत सिंह और सुखदेव के साथ फ़ाँसी पर लटका दिया गया। इतिहासकार बताते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया था।
सम्मान
उनकी जन्म शती के अवसर पर भारत सरकार का प्रकाशन विभाग उन पर संभवत पहली बार कोई पुस्तक प्रकाशित कर रहा है। इस सराहनीय प्रयास के लिए न केवल प्रकाशन विभाग धन्यवाद का पात्र है बल्कि उस लेखक को भी कोटि कोटि बधाई है जिसने इस क्रन्तिकारी की जीवन लीला से हमें परिचय कराया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राजगुरु की याद में........ (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) naipirhi.blogspot.com। अभिगमन तिथि: 30जुलाई, 2010।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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