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08:53, 14 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

  • 'कन्नौजी' संस्कृत 'कान्यकुब्ज' इस बोली का केन्द्र है, अत: इसका नाम 'कन्नौजी' पड़ा है।
  • यह इटावा, फ़र्रुख़ाबाद, शाहजहाँपुर, कानपुर, हरदोई, पीलीभीत आदि में बोली जाती है।
  • कन्नौजी शौरसेनी अपभ्रंश से निकली है।
  • यह ब्रजभाषा के इतनी अधिक समान है कि कुछ लोग इसे ब्रजभाषा की ही उपबोली मानते हैं।
  • कन्नौजी में केवल लोक-साहित्य मिलता है जिसमें से कुछ अंश प्रकाशित भी हो चुका है।
  • उकारांतता (खातु, घर, सबु), ओकारांतता (हमारो या हमाओ), स्वार्थे प्रत्यय- इया (जिमिया, छोकरिया) तथा वा (बेटवा, बचवा), औ का अउ (कउन), बहुवचन के लिए ह वार (हम ह् वार, हम लोग) आदि इसकी कुछ मुख्य विशेषताएँ हैं।


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