भोमर का भील आन्दोलन

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भोमर का भील आन्दोलन मेवाड़, राजस्थान में हुआ था। मेवाड़ के एक भाग में भील बहुत संख्या में रहते हैं। यह भाग 'भोमर' के नाम से प्रसिद्ध है। भील स्वभाव से साहसी एवं स्वतंत्रता प्रिय जाति है। ये जाति अपनी परम्पराओं एवं रीतिरिवाजों में क़ानूनी हस्तक्षेप पसन्द नहीं करती। 1818 ई. में भीलों के मद्यपान पर नियन्त्रण एवं अन्धविश्वास को दूर करने के लिए कुछ सुधार लागू किये गए। इसे भीलों ने अपनी परम्पराओं को उल्लंघन समझा और विद्रोह कर दिया।

  • विद्रोही भीलों ने न केवल सरकारी अधिकारियों को मौत के घाट उतारा, अपितु महाजनों की दुकानों को भी आग लगा दी। अन्त में मेवाड़ के महाराणा के हस्तक्षेप करने पर भीलों के साथ सुलह हो गयी, जिसमें उनकी समस्त माँगें स्वीकार कर ली गईं। फिर भी शान्ति स्थापित नहीं हो सकी।[1]
  • भीलों ने एक साथ विद्रोह नहीं किया था। उनके पास योग्य नेता का अभाव था। अत: सरकार ने सैनिक शक्ति से विद्रोह का पूर्णत: दमन कर दिया।
  • वर्ष 1921-1922 में मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में ईडर, डूंगरपुर, सिरोही एवं दाता आदि स्थानों में भील आन्दोलन पुन: प्रारम्भ हो गया। भीलों ने सम्पूर्ण भील क्षेत्र में एक ही पद्धति से भू-राज एकत्रित करने की माँग की।
  • मोतीलाल तेजावत ने पहली बार मेवाड़, सिरोही, डूंगरपुर एवं ईडर के भीलों को संगठित किया। इस भील आन्दोलन को ब्रिटिश सरकार ने अपनी सत्ता को चुनौती समझा।
  • ईडर के महाराणा ने मोतीलाल तेजावत के ईडर राज्य की सीमा में प्रवेश करने पर क़ानूनी प्रतिबन्ध लगा दिया। राजा ने भीलों के आन्दोलन को शक्ति से कुचलने का निश्चय किया। दो भील गाँवों को आग लगा दी गई, जिससे उन ग़रीबों का हज़ारों रुपयों का नुकसान हुआ और कई जानवर भी जलकर भस्म हो गये। इतना ही नहीं, शान्त भीलों पर गोलियों की बौछार की गयी। सरकार के इन अत्याचारों के कारण आन्दोलन पहले से और भी अधिक तेज हो गया।[1]
  • ईडर की पुलिस ने भीलों के नेता तेजावत को गिरफ़्तार कर मेवाड़ राज्य को सौंप दिया। मेवाड़ सरकार ने एक वर्ष तेजावत को जेल में बन्द रखा। मणीलाल कोठारी ने तेजावत को जेल से रिहा करवाने के प्रयास किये। जब मेवाड़ सरकार ने यह घोषणा कर दी कि तेजावत ने कोई अपराध नहीं किया है, तो तेजावत ने मेवाड़ सरकार राज्य विरोधी कार्य न करने तथा मेवाड़ राज्य के बाहर न जाने का वचन दिया।
  • वर्ष 1942 में जब 'भारत छोड़ो आन्दोलन' आरम्भ हुआ, तो तेजावत को पुन: गिरफ्तार कर लिया गया और फ़रवरी, 1947 को रिहा कर दिया गया।
  • भीलों में सर्वप्रथम मोतीलाल तेजावत ने राजनीतिक चेतना जागृत की। इसके बाद भीलों की आर्थिक स्थिति को सुधारने तथा उनके अन्ध-विश्वासों को दूर करने के लिए 'बनवासी संघ' की स्थापना की गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 तनेगारिया, राहुल। भोमर का भील आन्दोलन (हिन्दी) इग्नका। अभिगमन तिथि: 23 जनवरी, 2015।

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