शिशु हत्या उन्मूलन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

शिशु हत्या उन्मूलन ब्रिटिश कालीन भारत में 1795 ई. के 'बंगाल रेग्युलेशन' द्वारा किया गया। इस आदेश के द्वारा कन्याओं को जन्मते ही मार डालना, ताकि बाद में उनके विवाह आदि का झंझट न पैदा हो, दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया।

  • वर्ष 1802 ई. के रेग्युलेशन 6 द्वारा किसी बांझ स्त्री के दीर्घ काल के वैवाहिक जीवन के बाद एक से अधिक संतानें उत्पन्न होने पर पहली संतान को गंगा मैया की भेंट चढ़ा देने की प्रथा बंद कर दी गई और इस कृत्य को दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया।
  • ये सामाजिक कुरीतियाँ, विशेष रूप से कन्याओं को जन्मते ही मार डालने की कुप्रथा देशी रियासतों में इसके बाद भी काफ़ी समय तक प्रचलित रही और उसका अंतिम रीति से उन्मूलन लॉर्ड हार्डिंग प्रथम (1844-48 ई.) के शासन काल में ही हुआ।[1]


इन्हें भी देखें: नाता प्रथा, डावरिया प्रथा, डाकन प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह एवं सती प्रथा


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 452 |

संबंधित लेख