व्यक्तिगत सत्याग्रह
व्यक्तिगत सत्याग्रह राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा सन 1940 में प्रारम्भ किया गया था। इस सत्याग्रह कि सबसे बड़ी बात यह थी कि इसमें महात्मा गाँधी द्वारा चुना हुआ सत्याग्रही पूर्व निर्धारित स्थान पर भाषण देकर अपनी गिरफ्तारी देता था। अपने भाषण से पूर्व सत्याग्रही अपने सत्याग्रह की सूचना ज़िला मजिस्ट्रेट को भी देता था।
शुरुआत
3 सितम्बर, सन 1939 को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने यह घोषणा की कि भारत भी द्वतीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित है। वायसराय ने इस घोषणा से पूर्व किसी भी राजनीतिक दल से परामर्श नहीं किया। इससे कांग्रेस असंतुष्ट हो गई। महात्मा गाँधी ने भी ब्रिटिश सरकार की युद्धनीति का विरोध करने के लिए सन 1940 में अहिंसात्मक 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' आरम्भ किया।
प्रथम सत्याग्रही
11 अक्टूबर, 1940 को गाँधीजी द्वारा 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' के प्रथम सत्याग्रही के तौर पर विनोबा भावे को चुना गया। प्रसिद्धि की चाहत से दूर विनोबा भावे इस सत्याग्रह के कारण बेहद मशहूर हो गए। उनको गाँव-गाँव में युद्ध विरोधी तक़रीरें करते हुए आगे बढते चले जाना था। ब्रिटिश सरकार द्वारा 21 अक्टूबर को विनोबा को गिरफ्तार किया गया।
गिरफ्तारियाँ
पंडित जवाहरलाल नेहरू के अनुसार 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' 7 नवम्बर, सन 1940 को शुरू होना था, परंतु 31 अक्टूबर, सन 1940 को ही वे गिरफ्तार कर लिये गए। इसी सिलसिले में 17 नवम्बर, 1940 को सरदार पटेल भी गिरफ्तार कर लिये गए। इसके बाद कांग्रेस ने 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' को अपना कार्यक्रम बनाया और गिरफ्तारियाँ देने का एक आंदोलन चला दिया। गाँधीजी स्वयं गिरफ्तार नहीं हुए क्योंकि वे इस आंदोलन की व्यवस्था में लगे हुए थे। गाँधीजी का कहना था कि सत्याग्रह मात्र भारत को युद्ध में शामिल करने की नीति के विरोध में चलाया जा रहा था तथा उनका मकसद सरकार को परेशान करना था।
पंजाब के चीफ मिनिस्टर सर सिकन्दर हयात ख़ाँ ने इस आंदोलन के संबंध में कहा कि "जिस समय ब्रिटिश सरकार अपने जीवन-मरण के संघर्ष में फंसी थी, उस समय सत्याग्रह करना उनकी पीठ में छुरा भोंकना था"। यह सत्याग्रह पूर्ण रूप से नियंत्रित था। इसमें हिंसा को लेशमात्र स्थान नहीं मिला। ऐसा प्रतीत होता है कि 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' आंदोलन में मई, 1941 तक पूरे देश में हज़ारों लोग जेल गए। छह प्रांतों के भूतपूर्व मुख्यमंत्री, 29 मंत्री तथा 290 विधान मंडलों के सदस्य भी गिरफ्तार किये गए। इसी बीच वाइसराय ने कांग्रेस की मांगों पर ध्यान न देते हुए अपनी कार्यपालिका परिषद में पांच भारतीय सदस्य और बढ़ा दिये। अब कार्यपालिका परिषद में 8 सदस्य हो गये थे, परंतु रक्षा, गृह, वित्त आदि महत्त्वपूर्ण विभाग अंग्रेज़ों के अधीन ही थे।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख