भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (तृतीय चरण)

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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (तृतीय चरण)
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विवरण भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन, भारत की आज़ादी के लिए सबसे लम्बे समय तक चलने वाला एक प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन था।
शुरुआत 1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के साथ ही इस आंदोलन की शुरुआत हुई, जो कुछ उतार-चढ़ावों के साथ 15 अगस्त, 1947 ई. तक अनवरत रूप से जारी रहा।
प्रमुख संगठन एवं पार्टी गरम दल, नरम दल, गदर पार्टी, आज़ाद हिंद फ़ौज, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, इंडियन होमरूल लीग, मुस्लिम लीग
अन्य प्रमुख आंदोलन असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, स्वदेशी आन्दोलन, नमक सत्याग्रह
परिणाम भारत स्वतंत्र राष्ट्र घोषित हुआ।
संबंधित लेख गाँधी युग, रॉलेट एक्ट, थियोसॉफिकल सोसायटी, वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, इण्डियन कौंसिल एक्ट, हार्टोग समिति, हन्टर समिति, बटलर समिति रिपोर्ट, नेहरू समिति, गोलमेज़ सम्मेलन
अन्य जानकारी भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
  1. प्रथम चरण
  2. द्वितीय चरण
  3. तृतीय चरण

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का तृतीय चरण 1919 ई. से 1947 ई. तक रहा। यह आन्दोलन देश की आज़ादी के लिए हो रहे संघर्ष का अंतिम चरण माना जाता है। इस काल में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वरज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया। इस चरण में 'राष्ट्रपिता' और 'महात्मा' आदि की उपाधियों से सम्मानित महात्मा गाँधी अपने सत्य, अहिंसा एवं सत्याग्रह के साधनों से भारतीय राजनीतिक मंच पर छाए रहे। गाँधी जी के इस कार्यकाल को भारतीय इतिहास में 'गाँधी युग' के नाम से जाना जाता है।

गाँधी युग

'बापू' एवं 'राष्ट्रपिता' की उपाधियों से सम्मानित महात्मा गाँधी अपने सत्य, अहिंसा एवं सत्याग्रह के साधनों से भारतीय राजनीतिक मंच पर 1919 ई. से 1948 ई. तक छाए रहे। गाँधी जी के इस कार्यकाल को भारतीय इतिहास में गाँधी युग के नाम से जाना जाता है। जे. एच. होम्स ने गाँधी जी के बारे में कहा कि- "गाँधी जी की गणना विगत युगों के महान् व्यक्तियों में की जा सकती है। वे अल्फ़्रेड, वाशिंगटन तथा लैफ़्टे की तरह एक महान् राष्ट्र निर्माता थे। उन्होंने बिलबर फ़ोर्स, गैरिसन और लिंकन की भांति भारत को दासता से मुक्त कराने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। वे सेंट फ़्राँसिस एवं टॉलस्टाय की अहिंसा के उपदेशक और बुद्ध, ईसा तथा जरथ्रुस्त की तरह आध्यात्मिक नेता थे।" गाँधी जी भारत के उन कुछ चमकते हुए सितारों में से एक थे, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता एवं राष्ट्रीय एकता के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इंग्लैण्ड से बैरिस्टरी की पढ़ाई समाप्त करने के बाद गाँधी जी भारत आये थे। यहाँ से 1893 ई. में अफ़्रीका गये ओर वहाँ पर अपने 20 वर्ष के प्रवास के दौरान ब्रिटिश सरकार की रंग-भेद की निति के विरुद्ध लड़ाई लड़ते रहे। यहीं पर गाँधी जी ने सर्वप्रथम 'सत्याग्रह आंदोलन' चलाया था।

गाँधी-गोखले भेंट

जनवरी, 1915 ई. में गाँधी जी भारत आये और यहाँ पर उनका सम्पर्क गोपाल कृष्ण गोखले से हुआ, जिन्हें उन्होंने अपना राजनितिक गुरु बनाया। गोखले के प्रभाव में आकर ही गाँधी जी ने अपने को भारत की सक्रिय राजनीति से जोड़ लिया। गाँधी जी के भारतीय राजनीति में प्रवेश के समय ब्रिटिश सरकार प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918 ई.) में फंसी थी। गाँधी जी ने सरकार को पूर्ण सहयोग दिया, क्योंकि वह यह मानकर चल रहे थे कि ब्रिटिश सरकार युद्ध की समाप्ति पर भारतीयों को सहयोग के प्रतिफल के रूप में स्वराज्य दे देगी। गाँधी जी ने लोगों को सेना में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके फलस्वरूप कुछ लोग उन्हें "भर्ती करने वाला सार्जेन्ट" भी कहने लगे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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