शिमला सम्मेलन 1914

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शिमला सम्मेलन वर्ष 1914 में हुआ था। साल 1913-1914 में जब ब्रिटेन और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारण के लिए 'शिमला सम्मेलन' हुआ तो इस बातचीत के मुख्य वार्ताकार थे सर हेनरी मैकमोहन। इसी वजह से इस रेखा को 'मैकमोहन रेखा' के नाम से जाना जाता है। शिमला समझौते के दौरान ब्रिटेन, चीन और तिब्बत, अलग-अलग पार्टी के तौर पर शामिल हुए थे।

क्या है सीमा विवाद

भारत और चीन 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। ये तीन सेक्टरों में बंटी हुई है- पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश। चीन पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते हुए अपना दावा करता है। चीन, तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को ये कहते हुए मानने से इनकार करता है कि 1914 में जब ब्रिटिश भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने समझौता किया था, तब वो वहां मौजूद नहीं था। जबकि ब्रिटिशकालीन भारत के ब्रिटिश शासकों ने तवांग और दक्षिणी हिस्से को भारत का हिस्सा माना और जिसे तिब्बतियों ने भी सहमति दी। चीनी प्रतिनिधियों ने इसे मानने से इनकार कर दिया।[1]

चीन के मुताबिक़ तिब्बत पर उनका हिस्सा है, इसलिए वो बिना उनकी सहमति के कोई फैसला नहीं ले सकते। दरअसल 1914 में जब मैकमोहन रेखा तय हुई थी तो तिब्बत कमजोर था, हालांकि वो स्वतंत्र भी था। लेकिन चीन ने तिब्बत को कभी स्वतंत्र मुल्क माना ही नहीं, इसलिए इस फैसले को भी नहीं मानता। चीन ने 1950 में तिब्बत पर पूरी तरह से अपने क़ब्ज़ा जमा लिया। इन विवादों के बीच दोनों देशों ने सीमा पर मौजूदा नियंत्रण को एलएसी मान लिया। हालांकि चीन और भारत के बीच वर्तमान नियंत्रण को लेकर भी अलग-अलग दावे हैं। इसी वजह से अक्सर दोनों देशों के बीच इस रेखा के आसपास तनाव की खबरें आती रहती हैं।

मैकमोहन नाम क्यों

साल 1913-1914 में जब ब्रिटेन और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारण के लिए 'शिमला सम्मेलन' हुआ तो इस बातचीत के मुख्य वार्ताकार थे सर हेनरी मैकमोहन। इसी वजह से इस रेखा को मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है। शिमला समझौते के दौरान ब्रिटेन, चीन और तिब्बत, अलग-अलग पार्टी के तौर पर शामिल हुए थे। भारतीय साम्राज्य में तत्कालीन विदेश सचिव सर हेनरी मैकमहोन ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा खींची। इसमें तवांग (अरुणाचल प्रदेश) को ब्रिटिश भारत का हिस्सा माना गया था।[1]

मैकमहोन लाइन के पश्चिम में भूटान और पूरब में ब्रह्मपुत्र नदी का ‘ग्रेट बेंड’ है। यारलुंग जांगबो के चीन से बहकर अरुणाचल में घुसने और ब्रह्मपुत्र बनने से पहले नदी दक्षिण की तरफ बहुत घुमावदार तरीके से बेंड होती है। इसी को ग्रेट बेंड कहते हैं।

अंतरराष्ट्रीय मान्यता

शिमला समझौता प्रथम विश्व युद्ध से पहले हुआ था। लेकिन विश्व युद्ध के दौरान स्थितियां बदल गईं। काफी समय बाद 1937 में अंग्रेज़ों की- अ कलेक्शन ऑफ ट्रीटीज़, ऐंगेज़मेंट्स ऐंड सनद्स रिलेटिंग टू इंडिया ऐंड नेबरिंग कंट्रीज़ नाम से एक किताब आई। विदेश विभाग में भारत सरकार (ब्रिटिश) के अंडर सेक्रटरी सी. यू. एचिसन ने इसे तैयार किया था। ये भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच हुई संधियां और समझौते का आधिकारिक संग्रह था। इसमें नई जानकारियां भी अपडेट हुई और मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।

चीन करता है इनकार

वहीं चीन इसे मानने से ये कहते हुए इनकार करता है कि मैकमहोन लाइन के बारे में उसको बताया ही नहीं गया था। उससे बस इनर और आउटर तिब्बत बनाने के प्रस्ताव पर बात की गई थी। उसे अंधेरे में रखकर तिब्बत के प्रतिनिधि लोनचेन शातरा और हेनरी मैकमहोन के बीच हुई गुप्त बातचीत की अंडरस्टैंडिंग पर मैकमहोन रेखा खींच दी गई।[1]

चीन का रवैया

हालाँकि चीन ने किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे देशों को क्षेत्रीय रियायतें दी हैं, लेकिन वे किसी भी रूप में चीनी वर्चस्व के अधीन थे। इसके अलावा चीन लगभग हर उस संधि को नकारता है, जिसे उसने कम्युनिस्ट क्रांति होने से पहले मंज़ूरी दी थी। चीन का यह अड़ियल रवैया चर्चा का विषय है, क्योंकि कई विशेषज्ञ ऐतिहासिक संदर्भ में उस तिथि को निश्चित करने की बात करते हैं, जब देशों ने अपनी आधुनिक सीमाओं को परिभाषित किया, उदाहरण के लिये, मौर्य और मुग़ल साम्राज्यों ने भारत की वर्तमान उत्तरी सीमाओं से काफी आगे जाकर सीमा विस्तार किया था, जबकि चोल साम्राज्य का विस्तार वियतनाम तक हुआ था। अब यदि भारत भी चीन के जैसे तर्क देते हुए इन क्षेत्रों पर अपना ऐतिहासिक दावा जताने लगे तो यह कितना व्यावहारिक होगा?

वर्तमान भारत-चीन विवाद का कारण

सिक्किम की सीमा पर एक इलाका है डोका-ला, जहाँ चीन, भारत और भूटान की सीमा मिलती है और इसी इलाके में चीन को भारत ने सड़क बनाने से रोका। इसके बाद चीनी सेना ने भारत के दो बंकर नष्ट कर दिये और घटना के बाद से तनाव बढ़ता गया। भूटान ने भारत की मदद से चीन के सामने अपनी चिंता जाहिर की, क्योंकि चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं। इस बीच चीन ने भारत से उसकी सेना की गतिविधियों को लेकर आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई। चीनी सैनिकों के जमावड़े के बाद भारत ने भी अपने सैनिक डोका-ला में भेजे, जिन्हें नॉन-काम्बैटिव मोड में तैनात किया गया है। इस मोड में सैनिक अपनी बंदूक की नाल को ज़मीन की ओर रखते हैं।[2]

  • भारत और चीन चुंबी घाटी के इलाके में आमने-सामने हैं, जहाँ भारत-भूटान और चीन तीन देशों की सीमाएँ मिलती हैं। डोका-ला पठार चुंबी घाटी का ही हिस्सा है, जहाँ भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तनाव हुआ है।
  • डोका-ला पठार के केवल 10-12 कि.मी. पर ही चीन का शहर याडोंग है, जो हर मौसम में चालू रहने वाली सड़क से जुड़ा है। डोका-ला पठार से नाथू-ला केवल 15 कि.मी. दूर है।
  • जून की शुरुआत में चीनी कामगारों ने याडोंग से इस इलाके में सड़क को आगे बढ़ाने की कोशिश की, जिसकी वजह से ठीक इसी इलाके में भारतीय जवानों ने उन्हें ऐसा करने से रोका।
  • भूटान सरकार भी डोका-ला इलाके में चीन की मौजूदगी पर विरोध जता चुकी है, जो कि जोम्पलरी रिज में मौजूद भूटान सेना के बेस से निकट है।
  • इस पूरे विवाद से भारत की चिंता इस बात को लेकर है कि इस इलाके से चीन की तोपें चिकेन्स नेक (सिलीगुड़ी कॉरीडोर) नामक इस सँकरी पट्टी से काफी निकट तक आ सकती हैं, जो उत्तर-पूर्व को पूरे भारत से जोड़ती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 क्या है मैकमोहन लाइन? 1914 में तय हुई थी चीन और भारत की सीमा, क्यों नहीं मानता चीन? (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 09 जुलाई, 2020।
  2. चीन नहीं मानता मैकमोहन (McMahon) रेखा (हिंदी) drishtiias.com। अभिगमन तिथि: 09 जुलाई, 2020।

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