गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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| class="bgdarshan2" style="border:1px solid #fae8b7;padding:10px;" valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#fff0cd; border:thin solid #fceabe">'''चयनित लेख'''</div> | | class="bgdarshan2" style="border:1px solid #fae8b7;padding:10px;" valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#fff0cd; border:thin solid #fceabe">'''चयनित लेख'''</div> | ||
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[ | <div align="center" style="color:#34341B;">'''[[सांख्य दर्शन]]'''</div> | ||
<div id="rollnone"> [[चित्र: | <div id="rollnone"> [[चित्र:Sankhya-Darshan.jpg|right|150px|सांख्य दर्शन|link=सांख्य दर्शन]] </div> | ||
* | *सांख्य शब्द की निष्पत्ति संख्या शब्द से हुई है। संख्या शब्द 'ख्या' धातु में सम् उपसर्ग लगाकर व्युत्पन्न किया गया है जिसका अर्थ है 'सम्यक् ख्याति'। | ||
*'सांख्य' शब्द की निष्पत्ति गणनार्थक 'संख्या' से भी मानी जाती है। ऐसा मानने में कोई विसंगति भी नहीं है। | |||
* | *[[महाभारत]] में शान्तिपर्व के अन्तर्गत सृष्टि, उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय और मोक्ष विषयक अधिकांश मत '''सांख्य ज्ञान''' व शास्त्र के ही हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि उस काल तक वह एक सुप्रतिष्ठित, सुव्यवस्थित और लोकप्रिय एकमात्र दर्शन के रूप में स्थापित हो चुका था। | ||
* | *एक सुस्थापित दर्शन की ही अधिकाधिक विवेचनाएँ होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप व्याख्या-निरूपण-भेद से उसके अलग-अलग भेद दिखाई पड़ने लगते हैं। | ||
*'''डॉ. आद्याप्रसाद मिश्र''' लिखते हैं- ऐसा प्रतीत होता है कि जब तत्त्वों की संख्या निश्चित नहीं हो पाई थी तब सांख्य ने सर्वप्रथम इस दृश्यमान भौतिक जगत की सूक्ष्म मीमांसा का प्रयास किया था। '''[[सांख्य दर्शन|.... और पढ़ें]]''' | |||
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06:30, 12 दिसम्बर 2010 का अवतरण
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