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तेलुगु भाषा द्रविड़ परिवार की भाषा और [[भारत]] के [[आन्ध्र प्रदेश]] राज्य की सरकारी भाषा है। तेलुगु की सात भिन्न क्षेत्रीय बोलियाँ तथा तीन सामाजिक  बोलियाँ: ब्राह्मण, अब्राह्मण और हरिजन हैं। औपचारिक या साहित्यिक भाषा बोलियों से भिन्न है। इस स्थिति को जनद्विभाषिता कहा जाता है। अन्य द्रविड़ भाषाओं की भांति तेलुगु में भी कई मूर्धन्य व्यंजन हैं। उदाहरण के लिए त, द, और न; तालू पर मुड़ी हुई [[जिह्वा]] के शीर्ष के स्पर्श से उच्चरित है और इसमें प्रत्ययों के माध्यम से कारक, वचन, पुरुष तथा काल जैसे व्याकरण के वर्गीकरणों को दिखाया जाता है।
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'''तेलुगु भाषा''' द्रविड़ परिवार की भाषा और [[भारत]] के [[आन्ध्र प्रदेश]] राज्य की सरकारी भाषा है। तेलुगु की सात भिन्न क्षेत्रीय बोलियाँ तथा तीन सामाजिक  बोलियाँ: ब्राह्मण, अब्राह्मण और हरिजन हैं। औपचारिक या साहित्यिक भाषा बोलियों से भिन्न है। इस स्थिति को जनद्विभाषिता कहा जाता है। अन्य द्रविड़ भाषाओं की भांति तेलुगु में भी कई मूर्धन्य व्यंजन हैं। उदाहरण के लिए त, द, और न; तालू पर मुड़ी हुई [[जिह्वा]] के शीर्ष के स्पर्श से उच्चरित है और इसमें प्रत्ययों के माध्यम से कारक, वचन, पुरुष तथा काल जैसे व्याकरण के वर्गीकरणों को दिखाया जाता है।
 
==भाषा==
 
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इसकी मधुरता का मूल कारण संस्कृत तथा तेलुगु का (मणिस्वर्ण) संयोग ही है। अधिकांश संस्कृत शब्दों से संकलित भाषा आंध्र' भाषा के नाम से व्यवहृत होती है। तेलुगुदेशीय शब्दों का प्राचुर्य जिस भाषा में है वह तेलुगु भाषा के नाम से प्रख्यात है। तेलुगु भाषा के विकास के संबंध में विद्वानों के दो मत हैं। डा चिलुकूरि नारायण राव के मतानुसार तेलुगु भाषा द्राविड़ परिवार की नहीं है किंतु प्राकृतजन्य है और उसका संबंध विशेषत: पैशाची भाषा से है। इसके विपरीत बिशप कार्डवेल और कोराड रामकृष्णय्य आदि विद्वानों के मत से तेलुगु भाषा का संबंध द्राविड़ परिवार से ही है। तेलुगु भाषा का विकास दोनों प्रकार की भाषाओं के सम्मेलन से हुआ है। आजकल उपर्युक्त तीन नामों से प्रचलित इस भाषा में लगभग 75 प्रतिशत संस्कृत शब्दों का सम्मिश्रण है। पश्चिम के विद्वानों ने भी तेलुगु को "पूर्व की इतालीय भाषा" कहकर इसके माधुर्य की सराहना की है।
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इसकी मधुरता का मूल कारण संस्कृत तथा तेलुगु का (मणिस्वर्ण) संयोग ही है। अधिकांश संस्कृत शब्दों से संकलित भाषा आंध्र' भाषा के नाम से व्यवहृत होती है। तेलुगुदेशीय शब्दों का प्राचुर्य जिस भाषा में है वह तेलुगु भाषा के नाम से प्रख्यात है। तेलुगु भाषा के विकास के संबंध में विद्वानों के दो मत हैं। डा चिलुकूरि नारायण राव के मतानुसार तेलुगु भाषा द्राविड़ परिवार की नहीं है किंतु प्राकृतजन्य है और उसका संबंध विशेषत: [[पैशाची भाषा]] से है। इसके विपरीत बिशप कार्डवेल और कोराड रामकृष्णय्य आदि विद्वानों के मत से तेलुगु भाषा का संबंध द्राविड़ परिवार से ही है। तेलुगु भाषा का विकास दोनों प्रकार की भाषाओं के सम्मेलन से हुआ है। आजकल उपर्युक्त तीन नामों से प्रचलित इस भाषा में लगभग 75 प्रतिशत संस्कृत शब्दों का सम्मिश्रण है। पश्चिम के विद्वानों ने भी तेलुगु को "पूर्व की इतालीय भाषा" कहकर इसके माधुर्य की सराहना की है।
 
==लिपि==
 
==लिपि==
तेलुगु और कन्नड़ भाषाओं की लिपियों के विकास में सातवीं तथा 13वीं शताब्दी के आसपास विकास का एक सामान्य चरण था और तेलुगु भाषा में लिखित सामग्री 633 ई. से उपलब्ध है। इसका साहित्य हिंदू महाकाव्य [[महाभारत]] का तेलुगु लेखक नन्नय द्वारा रूपांतरण से शुरू हुआ, जो 10वीं से 11वीं शताब्दी का है।
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तेलुगु और कन्नड़ भाषाओं की लिपियों के विकास में सातवीं तथा 13वीं शताब्दी के आसपास विकास का एक सामान्य चरण था और तेलुगु भाषा में लिखित सामग्री 633 ई. से उपलब्ध है। इसका साहित्य हिन्दू महाकाव्य [[महाभारत]] का तेलुगु लेखक नन्नय द्वारा रूपांतरण से शुरू हुआ, जो 10वीं से 11वीं शताब्दी का है।
  
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09:59, 4 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

तेलुगु भाषा द्रविड़ परिवार की भाषा और भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य की सरकारी भाषा है। तेलुगु की सात भिन्न क्षेत्रीय बोलियाँ तथा तीन सामाजिक बोलियाँ: ब्राह्मण, अब्राह्मण और हरिजन हैं। औपचारिक या साहित्यिक भाषा बोलियों से भिन्न है। इस स्थिति को जनद्विभाषिता कहा जाता है। अन्य द्रविड़ भाषाओं की भांति तेलुगु में भी कई मूर्धन्य व्यंजन हैं। उदाहरण के लिए त, द, और न; तालू पर मुड़ी हुई जिह्वा के शीर्ष के स्पर्श से उच्चरित है और इसमें प्रत्ययों के माध्यम से कारक, वचन, पुरुष तथा काल जैसे व्याकरण के वर्गीकरणों को दिखाया जाता है।

भाषा

इसकी मधुरता का मूल कारण संस्कृत तथा तेलुगु का (मणिस्वर्ण) संयोग ही है। अधिकांश संस्कृत शब्दों से संकलित भाषा आंध्र' भाषा के नाम से व्यवहृत होती है। तेलुगुदेशीय शब्दों का प्राचुर्य जिस भाषा में है वह तेलुगु भाषा के नाम से प्रख्यात है। तेलुगु भाषा के विकास के संबंध में विद्वानों के दो मत हैं। डा चिलुकूरि नारायण राव के मतानुसार तेलुगु भाषा द्राविड़ परिवार की नहीं है किंतु प्राकृतजन्य है और उसका संबंध विशेषत: पैशाची भाषा से है। इसके विपरीत बिशप कार्डवेल और कोराड रामकृष्णय्य आदि विद्वानों के मत से तेलुगु भाषा का संबंध द्राविड़ परिवार से ही है। तेलुगु भाषा का विकास दोनों प्रकार की भाषाओं के सम्मेलन से हुआ है। आजकल उपर्युक्त तीन नामों से प्रचलित इस भाषा में लगभग 75 प्रतिशत संस्कृत शब्दों का सम्मिश्रण है। पश्चिम के विद्वानों ने भी तेलुगु को "पूर्व की इतालीय भाषा" कहकर इसके माधुर्य की सराहना की है।

लिपि

तेलुगु और कन्नड़ भाषाओं की लिपियों के विकास में सातवीं तथा 13वीं शताब्दी के आसपास विकास का एक सामान्य चरण था और तेलुगु भाषा में लिखित सामग्री 633 ई. से उपलब्ध है। इसका साहित्य हिन्दू महाकाव्य महाभारत का तेलुगु लेखक नन्नय द्वारा रूपांतरण से शुरू हुआ, जो 10वीं से 11वीं शताब्दी का है।


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