बघेली बोली

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  • बघेले राजपूतों के आधार पर रीवों तथा आसपास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है और वहाँ की बोली को बघेलखंडी या बघेली कहते हैं।
  • बघेली का उद्भव अर्धमागधी अपभ्रंश के ही एक क्षेत्रीय रूप से हुआ है। यद्यपि जनमत इसे अलग बोली मानता है, किंतु भाषा वैज्ञानिक स्तर पर पर यह अवधी की ही उपबोली ज्ञात होती है और इसे दक्षिणी अवधी कह सकते हैं।
  • इसके अंतर्गत रीवाँ, नागोद, शहडोल, सतना, मैहर तथा आसपास का क्षेत्र आता है।
  • कुछ अपवादों को छोड़कर बघेली में केवल लोक- साहित्य है।
  • सर्वनामों में मुझे के स्थान पर म्वाँ, मोही; तुझे के स्थान पर त्वाँ, तोही; विशेषण में -हा प्रत्यय (नीकहा), घोड़ा का घ्वाड़, मोर का म्वार, पेट का प्टवा, देत का द्यात आदि इसकी कुछ विशेषताएँ हैं।
  • इसकी मुख्य बोलियाँ तिरहारी, जुड़ार, गहोरा आदि हैं।


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