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'''अनवरूद्दीन''' [[हैदराबाद]] के नवाब द्वारा नियुक्त [[कर्नाटक]] का नवाब, जिसकी राजधानी थी। उस समय पांडिचेरी और मद्रास में स्थित फ्रांसीसी और अंग्रेज व्यापारी अपना-अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के लिए आपस में लड़ रहे को दोनों अपना संरक्षक समझते थे। जब अंग्रेजों ने फ्रांसिसी जहाजों को आरंभ किया तो फ्रांसिसी गवर्नर ने नवाब से सहायता मांगी। नवाब के पास जहाजी बेड़ा न होने से वह फ्रांसीसियों की सहायता न कर सका और अंग्रेजों का का अभियान जारी रहा। 1746 में जब फ्रांसीसियों ने मद्रास को घेर लिया तो अंग्रेजों के अनुरोध पर नवाब ने उनसे उठा लेने को कहा। उसकी बात नहीं सुनी गई तो उसने अपनी बड़ी सेना भेजी, लेकिन उसकी सेना को दो बार फ्रांसीसियों से पराजित होना इसका राजनीतिक प्रभाव पड़ा। दोनों को विश्वास हो गया कि पश्चिमी देशों की छोटी सेना भी बड़ी भारतीय सेना को पराजित कर सकती है। इसके बाद ही अंग्रेजों और फ्रांसीसियों का युद्ध समाप्त हो गया और अपनी नवाबी बचाने के में अनवरूद्दीन 1749 में मारा गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश |लेखक= लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या= 24|url=|ISBN=}}</ref>
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*सन [[1746]] में जब फ्रांसीसियों ने मद्रास को घेर लिया तो अंग्रेजों के अनुरोध पर नवाब अनवरूद्दीन ने उनसे घेरा उठा लेने को कहा। उसकी बात नहीं सुनी गई तो उसने अपनी बड़ी सेना भेजी, लेकिन उसकी सेना को दो बार फ्रांसीसियों से पराजित होना पड़ा।
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*अनवरूद्दीन की हार का बहुत राजनीतिक प्रभाव पड़ा। फ्रासीसियों और अंग्रेज़ों को यह विश्वास हो गया कि पश्चिमी देशों की छोटी सेना भी बड़ी भारतीय सेना को पराजित कर सकती है।
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*इसके बाद ही अंग्रेजों और फ्रांसीसियों का युद्ध समाप्त हो गया और अपनी नवाबी बचाने के चक्कर में अनवरूद्दीन [[1749]] ई. में मारा गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश |लेखक= लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या= 24|url=|ISBN=}}</ref>
  
 
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11:56, 19 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

अनवरूद्दीन हैदराबाद के नवाब द्वारा नियुक्त कर्नाटक का नवाब था। उस समय पांडिचेरी और मद्रास स्थित फ्रांसीसी और अंग्रेज़ व्यापारी अपना-अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के लिए आपस में लड़ रहे थे। अनवरूद्दीन को दोनों अपना संरक्षक समझते थे।

  • जब अंग्रेजों ने फ्रांसीसी जहाजों को रोकना आरंभ किया तो फ्रांसीसी गवर्नर ने नवाब से सहायता मांगी।
  • नवाब के पास जहाजी बेड़ा न होने से वह फ्रांसीसियों की सहायता न कर सका और अंग्रेजों का का अभियान जारी रहा।
  • सन 1746 में जब फ्रांसीसियों ने मद्रास को घेर लिया तो अंग्रेजों के अनुरोध पर नवाब अनवरूद्दीन ने उनसे घेरा उठा लेने को कहा। उसकी बात नहीं सुनी गई तो उसने अपनी बड़ी सेना भेजी, लेकिन उसकी सेना को दो बार फ्रांसीसियों से पराजित होना पड़ा।
  • अनवरूद्दीन की हार का बहुत राजनीतिक प्रभाव पड़ा। फ्रासीसियों और अंग्रेज़ों को यह विश्वास हो गया कि पश्चिमी देशों की छोटी सेना भी बड़ी भारतीय सेना को पराजित कर सकती है।
  • इसके बाद ही अंग्रेजों और फ्रांसीसियों का युद्ध समाप्त हो गया और अपनी नवाबी बचाने के चक्कर में अनवरूद्दीन 1749 ई. में मारा गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 24 |

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