छोटूराम

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सर छोटूराम (अंग्रेज़ी: Sir Chhoturam, जन्म- 24 नवम्बर, 1881, रोहतक; मृत्यु- 9 जनवरी, 1945, लाहौर) भारत के स्वाधीनता सेनानी थे। गरीबों के बंधु के रूप में वह 'रहबर ए आज़म' कहे जाते थे। सर चौधरी छोटूराम शारीरिक रूप से छोटे कद के व्यक्ति थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व का कद बहुत बड़ा था। वे दीन दु:खियों और गरीबों के बंधु, अंग्रेज़ हुकूमत के लिये सर तो किसानों के लिये मसीहा थे। चौधरी छोटूराम का वास्तविक नाम राय रिछपाल था, लेकिन परिवार में सभी प्यार से उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे, फिर स्कूल के रजिस्टर में भी जाने-अंजाने इनका नाम छोटूराम ही दर्ज कर लिया गया और यहीं से बालक राय रिछपाल का वास्तविक नाम छोटूराम हो गया।

परिचय

सर छोटूराम का जन्म 24 नवम्बर, 1881 में झज्जर, हरियाणा के एक छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था। झज्जर उस समय रोहतक ज़िला, पंजाब का ही अंग था। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था। अपने भाइयों में वे सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार के लोग उन्हें 'छोटू' कहकर पुकारते थे। स्कूल के रजिस्टर में भी उनका नाम छोटूराम ही लिखा दिया गया और ये महापुरुष छोटूराम के नाम से ही विख्यात हुए। उनके दादा जी रामरत्नद के पास 10 एकड़ बंजर ज़मीन थी। छोटूराम जी के पिता सुखीराम कर्जे और मुकदमों में बुरी तरह से फंसे हुए थे।

शिक्षा

जनवरी सन 1891 में छोटूराम ने अपने गांव से 12 मील की दूरी पर स्थित मिडिल स्कूल, झज्जर में प्राइमरी शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद झज्जर छोड़कर उन्होंने क्रिश्चियन मिशन स्कूल, दिल्ली में प्रवेश लिया। लेकिन फीस और शिक्षा का खर्चा वहन करना बहुत बड़ी चुनौती थी। छोटूराम के अपने ही शब्दों में- "सांपला के साहूकार से जब पिता-पुत्र कर्जा लेने गए तो अपमान की चोट जो साहूकार ने मारी वह छोटूराम को एक महामानव बनाने की दिशा में एक शंखनाद था। छोटूराम के अंदर का क्रान्तिकारी युवा जाग चुका था। अब तो छोटूराम हर अन्याय के विरोध में खड़े होने का नाम हो गया था। क्रिश्चियन मिशन स्कूल के छात्रावास के प्रभारी के विरुद्ध छोटूराम के जीवन की पहली विरोधात्मक हड़ताल थी। इस हड़ताल के संचालन को देखकर छोटूराम जी को स्कूल में 'जनरल रॉबर्ट' के नाम से पुकारा जाने लगा। सन 1903 में इंटरमीडियेट परीक्षा पास करने के बाद छोटूराम ने दिल्ली के अत्यन्त प्रतिष्ठिेत सैंट स्टीफन कॉलेज से 1905 में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। छोटूराम ने अपने जीवन के आरंभिक समय में ही सर्वोत्तम आदर्शों और युवा चरित्रवान छात्र के रूप में वैदिक धर्म और आर्य समाज में अपनी आस्था बना ली थी।

सामाजिक कार्य

सन 1905 में छोटूराम जी ने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं सन 1907 तक अंग्रेज़ी के 'हिन्दुस्तान' समाचार पत्र का संपादन किया। यहां से छोटूराम आगरा में वकालत की डिग्री करने आ गए। झज्जर ज़िले में जन्मा यह जुझारू युवा छात्र सन 1911 में आगरा के जाट छात्रावास का अधीक्षक बना। 1911 में उन्होंने लॉ की डिग्री प्राप्ते की। यहां रहकर छोटूराम ने मेरठ और आगरा डिवीजन की सामाजिक दशा का गहन अध्ययन किया। 1912 में आपने चौधरी लालचंद के साथ वकालत आरंभ कर दी और उसी साल जाट सभा का गठन किया। प्रथम विश्वयुद्ध के समय में सर छोटूराम ने रोहतक से 22,144 जाट सैनिक भर्ती करवाये, जो सारे अन्य सैनिकों का आधा भाग था। अब तो सर छोटूराम एक महान क्रांतिकारी समाज सुधारक के रूप में अपना स्थान बना चुके थे। उन्होंने अनेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की, जिसमें जाट आर्य-वैदिक संस्कृत हाई स्कूल, रोहतक प्रमुख है। 1 जनवरी, 1913 को जाट आर्य-समाज ने रोहतक में एक विशाल सभा की, जिसमें जाट स्कूल की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया, जिसके फलस्वरूप 7 सितम्बर, 1913 में जाट स्कूल की स्थापना हुई।

जाट गजट

वकालत जैसे व्यवसाय में भी चौधरी साहब ने नए ऐतिहासिक आयाम जोड़े। उन्होंने झूठे मुकदमे न लेना, छल-कपट से दूर रहना, गरीबों को निःशुल्क कानूनी सलाह देना, मुव्वकिलों के साथ सद व्यवहार करना, अपने वकालती जीवन का आदर्श बनाया। इन्हीं सिद्धान्तों का पालन करके केवल पेशे में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में चौधरी साहब बहुत ऊंचे उठ गये थे। इन्हीं दिनों 1915 में चौधरी छोटूराम ने 'जाट गजट' नाम का क्रांतिकारी समाचार पत्र शुरू किया, जो हरियाणा का सबसे पुराना अखबार है। इसके माध्यम से छोटूराम जी ने ग्रामीण जनजीवन का उत्थान और साहूकारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण पर एक सारगर्भित दर्शन दिया था, जिस पर शोध की जा सकती है।

किसानों के मसीहा

चौधरी साहब ने किसानों को सही जीवन जीने का मूलमंत्र दिया। जाटों का सोनीपत की जुडिशियल बैंच में कोई प्रतिनिधि न होना, बहियों का विरोध, जिनके जरिये गरीब किसानों की जमीनों को गिरवी रखा जाता था, राज के साथ जुड़ी हुई साहूकार कोमों का विरोध जो किसानों की दुर्दशा के जिम्मेवार थे, के संदर्भ में किसान के शोषण के विरुद्ध उन्होंने डटकर प्रचार किया। उनके स्वयं के शब्दों में- "किसान कुंभकर्ण की नींद सो रहा है, मैं जगाने की कौशिश कर रहा हूं। कभी तलवे में गुदगुदी करता हूं, कभी मुंह पर ठंडे पानी के छींटे मारता हूं। वह आंखें खोलता है, करवट लेता है, अंगड़ाई लेता है और फिर जम्हाई लेकर सो जाता है। बात यह है कि किसान से फायदा उठाने वाली जमात एक ऐसी गैस अपने पास रखती है, जिससे तुरंत बेहोशी पैदा हो जाती है और किसान फिर सो जाता है।" चौधरी साहब आगे लिखते हैं- "किसान को लोग अन्नदाता तो कहते हैं, लेकिन यह कोई नहीं देखता कि वह अन्न खाता भी है या नहीं। जो कमाता है, वह भूखा रहे यह दुनिया का सबसे बड़ा आश्चवर्य है। मैं राजा-नवाबों और हिन्दुस्तान की सभी प्रकार की सरकारों को कहता हूं कि वह किसान को इस कद्र तंग न करें कि वह उठ खड़ा हो। इस भोलानाथ को इतना तंग न करो कि वह तांडव नृत्य कर बैठे। दूसरे लोग जब सरकार से नाराज होते हैं तो कानून तोड़ते हैं, किसान जब नाराज होगा तो कानून ही नहीं तोड़ेगा, सरकार की पीठ भी तोड़ेगा।"

स्वाधीनता संग्राम में सक्रियता

चौधरी छोटूराम ने राष्ट्र के स्वाधीनता संग्राम में डटकर भाग लिया। 1916 में पहली बार रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया और छोटूराम रोहतक कांग्रेस कमेटी के प्रथम प्रधान बने। सारे ज़िले में चौधरी छोटूराम का आह्वान अंग्रेज़ हुकूमत को कंपकपा देता था। चौधरी साहब के लेखों और कार्य को अंग्रेज़ों ने बहुत भयानक करार दिया। फलस्वरूप रोहतक के डिप्टी कमिश्नर ने तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार से चौधरी छोटूराम को देश-निकाले की सिफारिश कर दी। पंजाब सरकार ने अंग्रेज़ हुकमरानों को बताया कि चौधरी छोटूराम अपने आप में एक क्रांति हैं, उनका देश निकाला गदर मचा देगा, रक्त की नदियां बह जायेंगी। किसानों का एक-एक बच्चा चौधरी छोटूराम हो जायेगा। अंग्रेज़ों के हाथ कांप गए और कमिश्नर की सिफारिश को रद्द कर दिया गया।

चौधरी छोटूराम, लाला श्याम लाल और उनके तीन वकील साथियों, नवल सिंह, लाला लालचंद जैन और ख़ान मुश्ताक हुसैन ने रोहतक में एक ऐतिहासिक जलसे में मार्शल के दिनों में साम्राज्यशाही द्वारा किए गए अत्याचारों की घोर निंदा की। सारे इलाके में एक भूचाल सा आ गया। अंग्रेज़ी हुकमरानों की नींद उड़ गई। चौधरी छोटूराम व उनके साथियों को नौकरशाही ने अपने रोष का निशाना बना दिया और कारण बताओ नोटिस जारी किए गए कि क्यों न उनके वकालत के लाइसेंस रद्द कर दिये जायें। मुकदमा बहुत दिनों तक सैशन की अदालत में चलता रहा और आखिर चौधरी छोटूराम की जीत हुई। यह जीत नागरिक अधिकारों की जीत थी।

अगस्त, 1920 में छोटूराम ने कांग्रेस छोड़ दी, क्योंकि चौधरी साहब गांधी जी के असहयोग आंदोलन से सहमत नहीं थे। उनका विचार था कि इस आंदोलन से किसानों का हित नहीं होगा। उनका मत था कि आजादी की लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ी जाए। कुछ बातों पर वैचारिक मतभेद होते हुए भी चौधरी साहब महात्मा गांधी की महानता के प्रशंसक रहे और कांग्रेस को अच्छी जमात कहते थे। छोटूराम ने अपना कार्य क्षेत्र उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब तक फैला लिया और जाटों का सशक्त संगठन तैयार किया। आर्य समाज और जाटों को एक मंच पर लाने के लिए उन्होंने स्वामी श्रद्धानन्द और भटिंडा गुरुकुल के मैनेजर चौधरी पीरूराम से संपर्क साध लिया और उसके कानूनी सलाहकार बन गए।

राजनीतिक गतिविधियाँ

सन 1925 में राजस्थान में पुष्कर के पवित्र स्थान पर चौधरी छोटूराम ने एक ऐतिहासिक जलसे का आयोजन किया। सन 1934 में राजस्थान के सीकर शहर में किराया कानून के विरोध में एक अभूतपूर्व रैली का आयोजन किया गया, जिसमें 10,000 जाट किसान शामिल हुए। यहां पर जनेऊ और देसी घी दान किया गया, महर्षि दयानन्द के सत्यार्थ प्रकाश के श्लोकों का उच्चारण किया गया। इस रैली से चौधरी छोटूराम भारत की राजनीति के स्तम्भ बन गए। पंजाब में रौलट एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप देश की राजनीति में एक अजीबोगरीब मोड़ आ गया। एक तरफ महात्मा गाँधी का असहयोग आंदोलन था तो दूसरी ओर प्रांतीय स्तर पर चौधरी छोटूराम और चौधरी लालचंद आदि जाट नेताओं ने अंग्रेज़ी हुकूमत के साथ सहयोग की नीति अपना ली थी। पंजाब में मांटेग्यू चैम्सफोर्ड सुधार लागू हो गए थे, सर फ़जले हुसैन ने खेतिहर किसानों की एक पार्टी 'जमींदारा पार्टी' खड़ी कर दी। छोटूराम व उनके साथियों ने सर फ़जले हुसैन के साथ गठबंधन कर लिया और सर सिकंदर हयात ख़ान के साथ मिलकर 'यूनियनिस्ट पार्टी' का गठन किया। तब से हरियाणा में दो परस्पर विरोधी आंदोलन चलते रहे। चौधरी छोटूराम का टकराव एक ओर कांग्रेस से था तथा दूसरी ओर शहरी हिन्दू नेताओं व साहूकारों से होता था।

चौधरी छोटूराम की 'जमींदारा पार्टी' किसान, मजदूर, मुस्लिम, सिक्ख और शोषित लोगों की पार्टी थी। लेकिन यह पार्टी अंग्रेज़ों से टक्कर लेने को तैयार नहीं थी। हिंदू सभा व दूसरे शहरी हिन्दुओं की पार्टियों से चौधरी छोटूराम का मतभेद था। भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत 1920 में आम चुनाव कराए गए। इसका कांग्रेस ने बहिष्कार किया और छोटूराम व लालसिंह जमींदारा पार्टी से विजयी हुए। उधर 1930 में कांग्रेस ने एक और जाट नेता चौधरी देवीलाल को चौधरी छोटूराम की पार्टी के विरोध में स्थापित किया। भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत सीमित लोकतंत्र के चुनाव 1937 में हुए। इसमें 175 सीटों में से यूनियनिस्ट पार्टी को 99, कांग्रेस को केवल 18, खालसा नेशनलिस्ट को 13 और हिन्दू महासभा को केवल 12 सीटें मिली थीं। हरियाणा देहाती सीट से केवल एक प्रत्याशी चौधरी दुनीचंद ही कांग्रेस से जीत पाये थे। चौधरी छोटूराम के कद का अंदाजा इस चुनाव से अंग्रेज़ों, कांग्रेसियों और सभी विरोधियों को हो गया था।

लेखन कार्य

चौधरी छोटूराम की लेखनी जब लिखती थी तो आग उगलती थी। 'ठग बाजार की सैर' और 'बेचारा किसान' के लेखों में से 17 लेख जाट गजट में छपे। 1937 में सिकन्दर हयात ख़ान पंजाब के राजनेता बने और झज्जर के ये जुझारू नेता चौधरी छोटूराम विकास व राजस्व मंत्री बने और गरीब किसान के मसीहा बन गए। चौधरी छोटूराम ने अनेक समाज सुधारक कानूनों के जरिए किसानों को शोषण से निज़ात दिलवाई।

साहूकार पंजीकरण एक्ट, 1938

यह कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था। इसके अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज़ नहीं दे पाएगा और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर पायेगा। इस अधिनियम के कारण साहूकारों की एक फौज पर अंकुश लग गया।

गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट, 1938

यह कानून 9 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थी तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं। इस कानून के तहत केवल एक सादे कागज पर जिलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था। इस कानून में अगर मूलराशि का दोगुणा धन साहूकार प्राप्तल कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।

कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम, 1938

यह अधिनियम 5 मई, 1939 से प्रभावी माना गया। इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्किट कमेटियों का गठन किया गया। एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपये में से 60 पैसे ही मिल पाता था। अनेक कटौतियों का सामना किसानों को करना पड़ता था। आढ़त, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी और कितनी ही कटौतियां होती थीं। इस अधिनियम के तहत किसानों को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना। आढ़तियों के शोषण से किसानों को निजात इसी अधिनियम ने दिलवाई।

व्यवसाय श्रमिक अधिनियम, 1940

यह अधिनियम 11 जून 1940 को लागू हुआ। बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाए जाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई। सप्ता9ह में 61 घंटे, एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा। वर्ष भर में 14 छुट्टियां दी जाएंगी। 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाएगी। दुकान व व्यवसायिक संस्थान रविवार को बंद रहेंगे। छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटा जाएगा। जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग हो पाएगी। इन सबकी जांच एक श्रम निरीक्षक द्वारा समय-समय पर की जाया करेगी।

कर्जा माफी अधिनियम, 1934

यह क्रान्तिकारी ऐतिहासिक अधिनियम दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1935 में किसान व मजदूर को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया। इस कानून के तहत अगर कर्जे का दुगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण-मुक्त समझा जाएगा। इस अधिनियम के तहत कर्जा माफी (रीकैन्सिलेशन) बोर्ड बनाए गए जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे। दाम दुप्पटा का नियम लागू किया गया। इसके अनुसार दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों की नीलामी नहीं की जाएगी।इस कानून के तहत अपीलकर्ता के संदर्भ में एक दंतकथा बहुत प्रचलित हुई थी कि लाहौर हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश सर शादीलाल से एक अपीलकर्ता ने कहा कि मैं बहुत गरीब आदमी हूं, मेरा घर और बैल कुर्की से माफ किया जाए। तब न्यायाधीश सर शादीलाल ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि एक छोटूराम नाम का आदमी है, वही ऐसे कानून बनाता है, उसके पास जाओ और कानून बनवा कर लाओ। अपीलकर्ता चौ. छोटूराम के पास आया और यह टिप्पणी सुनाई। चौ. छोटूराम ने कानून में ऐसा संशोधन करवाया कि उस अदालत की सुनवाई पर ही प्रतिबंध लगा दिया और इस तरह चौधरी साहब ने इस व्यंग्य का इस तरह जबरदस्त उत्तर दिया।

1942 में सर सिकन्दर खान का देहांत हो गया और खिज्र हयात खान तीवाना ने पंजाब की राजसत्ता संभाली। उधर मुहम्मद अली जिन्ना ने 1944 में लाहौर में सर खिज्र हयात पर दबाव डाला कि चौधरी छोटूराम का दबदबा कम किया जाए और पंजाब की यूनियनिस्ट सरकार का लेबल हटाकर इसे मुस्लिम लीग सरकार का नाम दिया जाए। क्योंकि सर छोटूराम अब्दुल कलाम आजाद की नीतियों के समर्थक थे, मुहम्मद अली जिन्ना और चौधरी छोटूराम सीधे टकराव की स्थिति में आ गए। अब तो चौधरी छोटूराम की पार्टी के सामने मुस्लिम लीग और कांग्रेस दोनों ही चुनौती बन गई थीं। लेकिन पहले और दूसरे महायुद्ध में चौधरी छोटूराम द्वारा कांग्रेस के विरोध के बावजूद सैनिकों की भर्ती से अंग्रेज बड़े खुश थे। अंग्रेजों ने हरयाणा के इलाके की वफादारियों से खुश होकर हरयाणा निवासियों को वचन दिया कि भाखड़ा पर बांध बनाकर सतलुज का पानी हरयाणा को दिया जाएगा |सर छोटूराम ने ही भाखड़ा बांध का प्रस्ताव रखा था। सतलुज के पानी का अधिकार बिलासपुर के राजा का था। झज्जर के महान सपूत ने बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। सन् 1924 से 1945 तक पंजाब की राजनीति के अकेले सूर्य चौ. छोटूराम का 9 जनवरी 1945 को देहावसान हो गया और एक क्रांतिकारी युग का यह सूर्य डूब गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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