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==बारामती के हवलदार==
 
==बारामती के हवलदार==
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इस समय शिवाजी की उम्र आठ [[वर्ष]] थी, और वे अपने [[पिता]] से [[संस्कृत]] और युद्ध कला के प्रारंभिक गुर सीख चुके थे। दादोजी कोंडदेव ने 1636 ई. से लेकर 1646 ई. तक शिवाजी की शिक्षा और उनकी युद्ध कला को तराशने का कार्य किया। इस दौरान उन्होंने व्यक्तिगत रूप से [[शिवाजी]] को युद्ध कौशल और युद्ध नीति के अनेक गुर सिखाए और इसके अलावा अन्य योग्य शिक्षकों की भी नियुक्ति की, जिनसे उन्होंने तलवारबाजी और घुड़सवारी के गुर सीखे।
 
==निधन==
 
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11:55, 2 सितम्बर 2016 का अवतरण

दादोजी कोंडदेव
दादोजी कोंडदेव
पूरा नाम दादोजी कोंडदेव
अन्य नाम दादोजी कोंडदेव
जन्म 1577 ई.
जन्म भूमि डाउंड, महाराष्ट्र
मृत्यु तिथि 1649 ई.
संबंधित लेख शिवाजी, शाहजी भोंसले, शम्भाजी पेशवा, बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बाजीराव द्वितीय, राजाराम शिवाजी, ग्वालियर, दौलतराव शिन्दे, नाना फड़नवीस, मराठा साम्राज्य
विशेष कोंडदेव की दी हुई शिक्षाओं से ही प्रेरित होकर शिवाजी ने भारत में स्वराज्य स्थापित करने का संकल्प किया। दादोजी खोंडदेव ने शिवाजी के छोटे-से राज्य का शासन सुव्यवस्थित करके उसकी भावी राजस्व प्रणाली की आधारशिला रखी थी।
अन्य जानकारी दादोजी कोंडदेव ने 1636 ई. से लेकर 1646 ई. तक शिवाजी की शिक्षा और उनकी युद्ध कला को तराशने का कार्य किया। इस दौरान उन्होंने व्यक्तिगत रूप से शिवाजी को युद्ध कौशल और युद्ध नीति के अनेक गुर सिखाए

दादोजी कोंडदेव अथवा 'खोंडदेव' (अंग्रेज़ी: Dadoji Konddeo, जन्म: 1577 ई.- मृत्यु: 1649 ई.) मराठा ब्राह्मण और प्रसिद्ध महान मराठा नेता छत्रपति शिवाजी (1627-1680 ई.) के गुरु और अभिभावक थे। प्रारम्भ से ही वीर शिवाजी पर इनका गहरा प्रभाव था। दादोजी कोंडदेव ने अपने शिष्य शिवाजी के मन में बचपन से ही साहस और पराक्रम के उदात्त भाव के साथ-साथ प्राचीन भारत के महान हिन्दू वीरों के प्रति श्रद्धा की भावना भरी थी। कोंडदेव ने गायों और ब्राह्मणों को पूज्य बताया था।

बारामती के हवलदार

दादोजी कोंडदेव का जन्म महाराष्ट्र के 'डाउंड' गाँव में हुआ था। सौभाग्यवश शिवाजी के दादा मालोजी राजे भोसले उसी गाँव के पाटिल थे। उन्होंने युवा दादोजी कोंडदेव की ईमानदारी और बुद्धिमत्ता को पहचाना और उन्हें बारामती क्षेत्र का हवलदार नियुक्त कर दिया, जो हाल ही में मालोजी के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में शामिल किया गया था।

शिवाजी के गुरु

इस समय शिवाजी की उम्र आठ वर्ष थी, और वे अपने पिता से संस्कृत और युद्ध कला के प्रारंभिक गुर सीख चुके थे। दादोजी कोंडदेव ने 1636 ई. से लेकर 1646 ई. तक शिवाजी की शिक्षा और उनकी युद्ध कला को तराशने का कार्य किया। इस दौरान उन्होंने व्यक्तिगत रूप से शिवाजी को युद्ध कौशल और युद्ध नीति के अनेक गुर सिखाए और इसके अलावा अन्य योग्य शिक्षकों की भी नियुक्ति की, जिनसे उन्होंने तलवारबाजी और घुड़सवारी के गुर सीखे।

निधन

कोंडदेव की दी हुई शिक्षाओं से ही प्रेरित होकर शिवाजी ने भारत में स्वराज्य स्थापित करने का संकल्प किया। दादोजी खोंडदेव ने शिवाजी के छोटे-से राज्य का शासन सुव्यवस्थित करके उसकी भावी राजस्व प्रणाली की आधारशिला रखी थी। 1649 ई. में दादोजी कोंडदेव की मृत्यु हो गई। उस समय उनकी उम्र 72 वर्ष थी।


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