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| * यहाँ हम भारत के दर्शन संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। | | [[चित्र:Darshan-icon-2.gif|right]] |
| * दर्शन वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है।
| | * यहाँ हम [[भारत]] के [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। दर्शन वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। |
| [[चित्र:Darshan-Kosh.jpg|link=:श्रेणी:दर्शन कोश|दर्शन श्रेणी के सभी लेख]]
| | * लोकायत दर्शन या चार्वाक दर्शन हमारे देश में नास्तिक विचारधारा माना जाता रहा है। दर्शन यथार्थता की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। |
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| | {{Headnote2| [[:श्रेणी:दर्शन कोश|दर्शन श्रेणी के सभी लेख देखें:- दर्शन कोश]]}} |
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| * लोकायत दर्शन या चार्वाक दर्शन हमारे देश में नास्तिक विचारधारा माना जाता रहा है। | |
| * दर्शन यथार्थता की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है।
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| | class="bgdarshan" style="border:1px solid #f5d892;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#fdf2d7; border:thin solid #f9e6bb">'''विशेष आलेख'''</div> | | | style="border:1px solid #d2cd9f; padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px;" class="bg63" valign="top"| <div style="padding-left:8px; background:#f8f4d2; border:thin solid #d2cd9f">'''विशेष आलेख'''</div> |
| <div align="center" style="color:#34341B;">'''[[वेद]]'''</div> | | <div align="center" style="color:#34341B;">'''[[चार्वाक दर्शन]]'''</div> |
| <div id="rollnone"> [[चित्र:Ved-merge-1.gif|right|150px|वेद|link=वेद]] </div> | | <poem> |
| *'वेद' [[हिन्दू धर्म]] के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।
| | '''[[चार्वाक दर्शन]]''' के अनुसार [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]], [[जल]], [[तेज]] तथा [[वायु देव|वायु]] ये चार ही तत्त्व सृष्टि के मूल कारण हैं। जिस प्रकार [[बौद्ध]] उसी प्रकार चार्वाक का भी मत है कि आकाश नामक कोई तत्त्व नहीं है। यह शून्य मात्र है। अपनी आणविक अवस्था से स्थूल अवस्था में आने पर उपर्युक्त चार तत्त्व ही बाह्य जगत, इन्द्रिय अथवा देह के रूप में दृष्ट होते हैं। आकाश की वस्त्वात्मक सत्ता न मानने के पीछे इनकी प्रमाण व्यवस्था कारण है। जिस प्रकार हम गन्ध, रस, रूप और स्पर्श का [[प्रत्यक्ष]] अनुभव करते हुए उनके समवायियों का भी तत्तत इन्द्रियों के द्वारा प्रत्यक्ष करते हैं। आकाश तत्त्व का वैसा प्रत्यक्ष नहीं होता। अत: उनके मत में आकाश नामक तत्त्व है ही नहीं। चार महाभूतों का मूलकारण क्या है? इस प्रश्न का उत्तर चार्वाकों के पास नहीं है। यह विश्व अकस्मात भिन्न-भिन्न रूपों एवं भिन्न-भिन्न मात्राओं में मिलने वाले चार महाभूतों का संग्रह या संघट्ट मात्र है। '''[[चार्वाक दर्शन|.... और पढ़ें]]''' |
| *ऐसी मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था। इसलिए '''वेदों को श्रुति भी कहा जाता है'''।
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| *मानव जाति के लौकिक (सांसारिक) तथा पारमार्थिक अभ्युदय-हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है।
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| *ब्रह्म का स्वरूप 'सत-चित आनन्द' होने से ब्रह्म को वेद का पर्यायवाची शब्द कहा गया है। इसीलिये '''वेद लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान का साधन''' है।
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| *वेद के मन्त्र विभाग को संहिता कहते हैं। संहितापरक विवेचन को 'आरण्यक' एवं संहितापरक भाष्य को 'ब्राह्मणग्रन्थ' कहते हैं।
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| *वेदों के ब्राह्मणविभाग में 'आरण्यक' और '[[उपनिषद]]' का भी समावेश है। ब्राह्मणग्रन्थों की संख्या 13 है, जैसे [[ऋग्वेद]] के 2, [[यजुर्वेद]] के 2, [[सामवेद]] के 8 और [[अथर्ववेद]] के 1 है। '''[[वेद|.... और पढ़ें]]'''
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| | class="bgdarshan2" style="border:1px solid #fae8b7;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#fff0cd; border:thin solid #fceabe">'''चयनित लेख'''</div> | | | class="headbg20" style="border:1px solid #FBE773;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#f6f0b9; border:thin solid #FBE773">'''चयनित लेख'''</div> |
| <div align="center" style="color:#34341B;">'''[[सांख्य दर्शन]]'''</div> | | <div align="center" style="color:#34341B;">'''[[ज्ञानमीमांसा]]'''</div> |
| <div id="rollnone"> [[चित्र:Sankhya-Darshan.jpg|right|150px|सांख्य दर्शन|link=सांख्य दर्शन]] </div> | | <poem> |
| *सांख्य शब्द की निष्पत्ति संख्या शब्द से हुई है। संख्या शब्द 'ख्या' धातु में सम् उपसर्ग लगाकर व्युत्पन्न किया गया है जिसका अर्थ है 'सम्यक् ख्याति'।
| | '''[[ज्ञानमीमांसा]]''' दर्शनशास्त्र की एक शाखा है। [[दर्शनशास्त्र]] का ध्येय सत् के स्वरूप को समझना है। सदियों से विचारक यह खोज करते रहे हैं, परंतु किसी निश्चित निष्कर्ष से अब भी उतने ही दूर प्रतीत होते हैं, जितना पहले थे। सदियों से सत् के विषय में विवाद होता रहा है। [[आधुनिक काल]] में 'देकार्त' (1596-1650 ई.) को ध्यान आया कि प्रयत्न की असफलता का कारण यह है कि दार्शनिक कुछ अग्रिम कल्पनाओं को लेकर चलते रहे हैं। दर्शनशास्त्र को गणित की निश्चितता तभी प्राप्त हो सकती है, जब यह किसी धारणा को, जो स्वत: सिद्ध नहीं, प्रमाणित किए बिना न मानें। उसने व्यापक संदेह से आरंभ किया। उसकी अपनी चेतना उसे ऐसी वस्तु दिखाई दी, जिसके अस्तित्व में संदेह ही नहीं हो सकता। संदेह तो अपने आप चेतना का एक आकार या स्वरूप है '''[[ज्ञानमीमांसा|.... और पढ़ें]]''' |
| *'सांख्य' शब्द की निष्पत्ति गणनार्थक 'संख्या' से भी मानी जाती है। ऐसा मानने में कोई विसंगति भी नहीं है।
| | </poem> |
| *[[महाभारत]] में शान्तिपर्व के अन्तर्गत सृष्टि, उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय और मोक्ष विषयक अधिकांश मत '''सांख्य ज्ञान''' व शास्त्र के ही हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि उस काल तक वह एक सुप्रतिष्ठित, सुव्यवस्थित और लोकप्रिय एकमात्र दर्शन के रूप में स्थापित हो चुका था।
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| *एक सुस्थापित दर्शन की ही अधिकाधिक विवेचनाएँ होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप व्याख्या-निरूपण-भेद से उसके अलग-अलग भेद दिखाई पड़ने लगते हैं।
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| *'''डॉ. आद्याप्रसाद मिश्र''' लिखते हैं- ऐसा प्रतीत होता है कि जब तत्त्वों की संख्या निश्चित नहीं हो पाई थी तब सांख्य ने सर्वप्रथम इस दृश्यमान भौतिक जगत की सूक्ष्म मीमांसा का प्रयास किया था। '''[[सांख्य दर्शन|.... और पढ़ें]]'''
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| | class="bgdarshan3" style="border:1px solid #FBE773; padding:10px;width:50%; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" | <div style="background:#f9e0a4; border:thin solid #f7c95d"><span style="color: rgb(153, 51, 0); padding-left:8px;">'''कुछ लेख'''</span></div> | | | class="headbg20" style="border:1px solid #FBE773;padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" | <div style="padding-left:8px; background:#f6f0b9; border:thin solid #FBE773">'''कुछ लेख'''</div> |
| * [[वैशेषिक दर्शन]] | | * [[वैशेषिक दर्शन]] |
| * [[सांख्य दर्शन]] | | * [[सांख्य दर्शन]] |
| * [[गीता]] | | * [[गीता]] |
| * [[उपनिषद]] | | * [[उपनिषद]] |
| *[[न्याय दर्शन]] | | * [[न्याय दर्शन]] |
| * [[चार्वाक दर्शन]] | | * [[चार्वाक दर्शन]] |
| * [[जैन दर्शन और उसका उद्देश्य|जैन दर्शन]] | | * [[जैन दर्शन और उसका उद्देश्य|जैन दर्शन]] |
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| * [[ॠग्वेद]] | | * [[ॠग्वेद]] |
| * [[पुराण]] | | * [[पुराण]] |
| | class="bgdarshan3" style="border:1px solid #FBE773;padding:10px;width:50%; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px; " valign="top" |<div style="background:#f9e0a4; border:thin solid #f7c95d"><span style="color: rgb(153, 51, 0); padding-left:8px;">'''दर्शन श्रेणी वृक्ष'''</span></div> | | * [[धर्मशास्त्रीय ग्रंथ]] |
| | * [[वैशेषिक प्रमुख ग्रन्थ]] |
| | * [[उत्तर मीमांसा]] |
| | * [[ज्ञानमीमांसा]] |
| | * [[अज्ञेयवाद]] |
| | * [[द्वैतवाद]] |
| | * [[पूर्व मीमांसा]] |
| | * [[योग दर्शन]] |
| | * [[विशिष्टाद्वैत दर्शन]] |
| | * [[अध्यात्मवाद]] |
| | | style="border:1px solid #d2cd9f; padding:10px; -moz-border-radius: 6px;-webkit-border-radius: 6px; border-radius: 6px;" class="bg63" valign="top"| <div style="padding-left:8px; background:#f8f4d2; border:thin solid #d2cd9f">'''दर्शन श्रेणी वृक्ष'''</div> |
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| | colspan="3" | <div style="padding-left:5px; background:#f9e5b7">'''चयनित चित्र'''</div>
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| [[चित्र:Vedic-Tradition-1.jpg|300px|वेद पाठ|center]]
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| <div style="text-align:center;">[[वेद]] पाठ</div>
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