"दिलवाड़ा जैन मंदिर": अवतरणों में अंतर
(→इतिहास) |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "आंखें" to "आँखें") |
||
(8 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 38 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा पर्यटन | |||
|चित्र=Dilwara-Jain-Temples.jpg | |||
|चित्र का नाम=दिलवाड़ा जैन मंदिर, माउंट आबू | |||
|विवरण=दिलवाड़ा जैन मंदिर [[राजस्थान]] राज्य के सिरोही ज़िले के [[माउंट आबू]] नगर में स्थित है। दिलवाड़ा मंदिर वस्तुतः पांच मंदिरों का समूह है। | |||
|राज्य=[[राजस्थान]] | |||
|केन्द्र शासित प्रदेश= | |||
|ज़िला=[[सिरोही ज़िला|सिरोही ज़िले]] | |||
|निर्माता=वास्तुपाल और तेजपाल | |||
|स्वामित्व= | |||
|प्रबंधक= | |||
|निर्माण काल=11वीं - 13वीं शताब्दी | |||
|स्थापना= | |||
|भौगोलिक स्थिति=[http://maps.google.com/maps?q=24.609306,72.723056&ll=24.609547,72.723055&spn=0.008974,0.021136&t=m&z=16&vpsrc=6 उत्तर- 24° 36' 33.50", पूर्व- 72° 43' 23.00"] | |||
|मार्ग स्थिति=आबू रोड रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है। | |||
|मौसम= | |||
|तापमान= | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|कब जाएँ= | |||
|कैसे पहुँचें=हवाई जहाज़, रेल, बस आदि | |||
|हवाई अड्डा=महाराणा प्रताप हवाई अड्डा | |||
|रेलवे स्टेशन=आबू रोड रेलवे स्टेशन | |||
|बस अड्डा=माउंट आबू बस अड्डा | |||
|यातायात=स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा | |||
|क्या देखें= | |||
|कहाँ ठहरें=होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह | |||
|क्या खायें= | |||
|क्या ख़रीदें= | |||
|एस.टी.डी. कोड=02974 | |||
|ए.टी.एम=लगभग सभी | |||
|सावधानी= | |||
|मानचित्र लिंक=[http://maps.google.com/maps?saddr=Dabok+Airport,+Rajasthan,+India&daddr=Dilwara+Jain+Temple,+Mount+Abu,+Rajasthan,+India&hl=en&ll=24.679466,73.487549&spn=1.148008,2.705383&sll=24.606952,72.72372&sspn=0.008974,0.021136&geocode=FRyidwEdLIpnBCHNSgsvrHWwDA%3BFUaDdwEdH6hVBCFoEgb17qtXBA&vpsrc=6&mra=ls&t=m&z=9 गूगल मानचित्र] | |||
|संबंधित लेख=[[नक्की झील]], [[गोमुख मंदिर]], [[अर्बुदा देवी मन्दिर]], [[अचलगढ़ क़िला]], [[माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य]], [[गुरु शिखर]] | |||
|शीर्षक 1=[[भाषा]] | |||
|पाठ 1=[[हिंदी भाषा|हिंदी]], [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]], [[अंग्रेजी भाषा|अंग्रेजी]] | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। पाँच मंदिरों के इस समूह में विमल वासाही मन्दिर सबसे पुराना है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन={{अद्यतन|11:10, 21 दिसम्बर 2011 (IST)}} | |||
}} | |||
दिलवाड़ा जैन मंदिर [[राजस्थान]] राज्य के [[सिरोही ज़िला|सिरोही ज़िले]] के [[माउंट आबू]] नगर में स्थित है। दिलवाड़ा मंदिर वस्तुतः पांच मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच में हुआ था। यह विशाल एवं दिव्य मंदिर [[जैन धर्म]] के [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] को समर्पित है।<ref name="mm">{{cite web |url=http://ns4.hanscybertechnologies.net/jain-dilwada.php |title=दिलवाड़ा जैन मंदिर |accessmonthday=[[16 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=मेमोरी म्यूज़ियम |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | |||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
दिलवाड़ा जैन मंदिर 11वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान [[चालुक्य]] राजाओं वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा 1231 ई. में बनवाया गया था। जैन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप दो प्रसिद्ध संगमरमर के बने मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाते हैं इस पर्वतीय नगर के जगत् प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह ने पहले कुंभेरिया में पार्श्वनाथ के 360 मंदिर बनवाए थे किंतु उनकी इष्टदेवी अंबा जी ने किसी बात पर रुष्ट होकर पाँच मंदिरों को छोड़ अवशिष्ट सारे मंदिर नष्ट कर दिए और स्वप्न में उन्हें दिलवाड़ा में आदिनाथ का मंदिर बनाने का आदेश दिया। किंतु आबूपर्वत के परमार नरेश ने विमलसाह को मंदिर के लिए भूमि देना तभी स्वीकार किया जब उन्होंने संपूर्ण भूमि को रजतखंडों से ढक दिया। इस प्रकार 56 लाख रुपय में यह ज़मीन ख़रीदी गई थी। दिलवाड़ा जैन मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं।<ref name="वेब वार्ता" /> | |||
==प्रवेश द्वार== | |||
दिलवाड़ा जैन मंदिर का प्रवेशद्वार गुंबद वाले मंडप से हो कर है जिसके सामने एक वर्गाकृति भवन है। इसमें छ: स्तंभ और दस [[हाथी|हाथियों]] की प्रतिमाएं हैं। इसके पीछे मध्य में मुख्य पूजागृह है जिसमें एक प्रकोष्ठ में ध्यानमुद्रा में अवस्थित जिन की मूर्ति हैं। | |||
[[चित्र:Dilwara-Jain-Temple.jpg|thumb|left|दिलवाड़ा जैन मंदिर, [[माउंट आबू]]]] | |||
इस प्रकोष्ठ की छत शिखर रूप में बनी है यद्यपि यह अधिक ऊंची नहीं है। इसके साथ एक दूसरा प्रकोष्ठ बना है जिसके आगे एक मंडप स्थित है। इस मंडप के गुंबद के आठ स्तंभ हैं। संपूर्ण मंदिर एक प्रांगण के अंदर घिरा हुआ है जिसकी लंबाई 128 फुट और चौड़ाई 75 फुट है। इसके चतुर्दिक छोटे स्तंभों की दुहरी पंक्तियां हैं जिनसे प्रांगण की लगभग 52 कोठरियों के आगे बरामदा-सा बन जाता है।<ref name="वेब वार्ता">{{cite web |url=http://webvarta.com/script_detail.php?script_id=2906&catid=11 |title=राजस्थान का ख़ूबसूरत और एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू |accessmonthday=[[13 जून]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब वार्ता |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | |||
==स्थापत्य कला== | |||
जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। पाँच मंदिरों के इस समूह में विमल वासाही मन्दिर सबसे पुराना है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। अपने ऐतिहासिक महत्त्व और संगमरमर पत्थर पर बारीक नक़्क़ाशी की जादूगरी के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के सिरोही ज़िले के इन विश्वविख्यात मंदिरों में शिल्प-सौंदर्य का ऐसा बेजोड़ ख़ज़ाना है, जिसे दुनिया में अन्यत्र और कहीं नहीं देखा जा सकता। इस मंदिर में आदिनाथ की मूर्ति की आँखें असली हीरक की बनी हुई हैं। और उसके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है। यहाँ पाँच मंदिरों का एक समूह है, जो बाहर से देखने में साधारण से प्रतीत होते हैं। फूल-पत्तियों व अन्य मोहक डिजाइनों से अलंकृत, नक़्क़ाशीदार छतें, पशु-पक्षियों की शानदार संगमरमरीय आकृतियां, सफ़ेद स्तंभों पर बारीकी से उकेर कर बनाई सुंदर बेलें, जालीदार नक़्क़ाशी से सजे तोरण और इन सबसे बढ़कर जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं। विमल वसही मंदिर के अष्टकोणीय कक्ष में स्थित है। | |||
बाहर से मंदिर नितांत सामान्य दिखाई देता है और इससे भीतर के अद्भुत कलावैभव का तनिक भी आभास नहीं होता। किंतु श्वेत संगमरमर के गुंबद का भीतरी भाग, दीवारें, छतें तथा स्तंभ अपनी महीन नक़्क़ाशी और अभूतपूर्व मूर्तिकारी के लिए संसार-प्रसिद्ध हैं। इस मूर्तिकारी में तरह-तरह के फूल-पत्ते, पशु-पक्षी तथा मानवों की आकृतियां इतनी बारीकी से चित्रित हैं मानो यहाँ के शिल्पियों की छेनी के सामने कठोर संगमरमर मोम बन गया हो। पत्थर की शिल्पकला का इतना महान् वैभव [[भारत]] में अन्यत्र नहीं है। दूसरा मंदिर जो तेजपाल का कहलाता है, निकट ही है और पहले की अपेक्षा प्रत्येक बात में अधिक भव्य और शानदार दिखाई देता है। इसी शैली में बने तीन अन्य जैन-मन्दिर भी यहाँ आसपास ही हैं। किंवदंती है कि वशिष्ठ का आश्रम देवलवाड़ा के निकट ही स्थित था।<ref name="वेब वार्ता" /> | |||
==अन्य मंदिर== | |||
यहाँ के पांच मंदिरों में दो विशाल मंदिर है तथा तीन मंदिर उसके अनुपूरक है। यहाँ पर विमल वासाही मंदिर प्रथम [[तीर्थंकर]] को समर्पित सबसे प्राचीन है, बाइसवें तीर्थंकर नेमीनाथ को समर्पित लुन वासाही मंदिर भी बहुत दर्शनीय है। यहाँ पर भगवान [[कुंथुनाथ]] का दिगम्बर जैन मंदिर भी स्थापित है। यहाँ पर एक अदभुत देवरानी जेठानी का मंदिर भी है जिसमें परमपूजनीय भगवान आदिनाथ एवं शान्तिनाथ जी की मूर्तियां स्थापित है। यहाँ के मंदिर परिसर में खरतरसाही, पीतलहर और भगवान [[महावीर]] का मंदिर भी स्थित है इनमें भगवान महावीर स्वामी का मंदिर सबसे छोटा बना हुआ है।<ref name="mm"/> | |||
== | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |||
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 | |||
|माध्यमिक= | |||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | |||
}} | |||
==वीथिका== | |||
<gallery> | |||
चित्र:Dilwara-Jain-Temples-1.jpg|दिलवाड़ा जैन मंदिर, [[माउंट आबू]] | |||
चित्र:Dilwara-Temple-Mount-Abu.jpg|दिलवाड़ा जैन मंदिर, [[माउंट आबू]] | |||
</gallery> | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
*[http://pathikworld.blogspot.com/2010/12/blog-post_11.html देलवाडा मंदिर-शिल्प सौंदर्य का बेजोड ख़ज़ाना] | |||
*[http://visitmountabu.blog.co.in/2009/01/21/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A4-%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A5%82%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%AE-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%A6%E0%A4%BF/ सात अजूबों से कम नहीं है दिलवाड़ा जैन मंदिर] | |||
*[http://jagranyatra.jagranjunction.com/2010/08/27/dilwara-jain-temple-mount-abu/ दिलवाड़ा जैन मंदिर : जैन धर्म की अदभुत कला] | |||
*[http://mkldh70.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html दिलवाडा टेम्पल , माउन्ट आबू , राजस्थान] | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{राजस्थान के पर्यटन स्थल}}{{जैन धर्म2}} | |||
[[Category:राजस्थान]] | [[Category:राजस्थान]] | ||
[[Category:राजस्थान_के_पर्यटन_स्थल]] | [[Category:राजस्थान_के_पर्यटन_स्थल]] | ||
[[Category:पर्यटन_कोश]] | [[Category:पर्यटन_कोश]] | ||
[[Category:माउंट आबू]] | [[Category:माउंट आबू]] | ||
[[Category:जैन मन्दिर]] | |||
[[Category:राजस्थान के धार्मिक स्थल]] | |||
[[Category:धार्मिक स्थल कोश]] | |||
[[Category:जैन धार्मिक स्थल]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
05:17, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
दिलवाड़ा जैन मंदिर
| |||
विवरण | दिलवाड़ा जैन मंदिर राजस्थान राज्य के सिरोही ज़िले के माउंट आबू नगर में स्थित है। दिलवाड़ा मंदिर वस्तुतः पांच मंदिरों का समूह है। | ||
राज्य | राजस्थान | ||
ज़िला | सिरोही ज़िले | ||
निर्माता | वास्तुपाल और तेजपाल | ||
निर्माण काल | 11वीं - 13वीं शताब्दी | ||
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 24° 36' 33.50", पूर्व- 72° 43' 23.00" | ||
मार्ग स्थिति | आबू रोड रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है। | ||
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज़, रेल, बस आदि | ||
![]() |
महाराणा प्रताप हवाई अड्डा | ||
![]() |
आबू रोड रेलवे स्टेशन | ||
![]() |
माउंट आबू बस अड्डा | ||
![]() |
स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा | ||
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह | ||
एस.टी.डी. कोड | 02974 | ||
ए.टी.एम | लगभग सभी | ||
![]() |
गूगल मानचित्र | ||
संबंधित लेख | नक्की झील, गोमुख मंदिर, अर्बुदा देवी मन्दिर, अचलगढ़ क़िला, माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य, गुरु शिखर | भाषा | हिंदी, राजस्थानी, अंग्रेजी |
अन्य जानकारी | जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। पाँच मंदिरों के इस समूह में विमल वासाही मन्दिर सबसे पुराना है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। | ||
अद्यतन | 11:10, 21 दिसम्बर 2011 (IST)
|
दिलवाड़ा जैन मंदिर राजस्थान राज्य के सिरोही ज़िले के माउंट आबू नगर में स्थित है। दिलवाड़ा मंदिर वस्तुतः पांच मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच में हुआ था। यह विशाल एवं दिव्य मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित है।[1]
इतिहास
दिलवाड़ा जैन मंदिर 11वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य राजाओं वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा 1231 ई. में बनवाया गया था। जैन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप दो प्रसिद्ध संगमरमर के बने मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाते हैं इस पर्वतीय नगर के जगत् प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह ने पहले कुंभेरिया में पार्श्वनाथ के 360 मंदिर बनवाए थे किंतु उनकी इष्टदेवी अंबा जी ने किसी बात पर रुष्ट होकर पाँच मंदिरों को छोड़ अवशिष्ट सारे मंदिर नष्ट कर दिए और स्वप्न में उन्हें दिलवाड़ा में आदिनाथ का मंदिर बनाने का आदेश दिया। किंतु आबूपर्वत के परमार नरेश ने विमलसाह को मंदिर के लिए भूमि देना तभी स्वीकार किया जब उन्होंने संपूर्ण भूमि को रजतखंडों से ढक दिया। इस प्रकार 56 लाख रुपय में यह ज़मीन ख़रीदी गई थी। दिलवाड़ा जैन मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं।[2]
प्रवेश द्वार
दिलवाड़ा जैन मंदिर का प्रवेशद्वार गुंबद वाले मंडप से हो कर है जिसके सामने एक वर्गाकृति भवन है। इसमें छ: स्तंभ और दस हाथियों की प्रतिमाएं हैं। इसके पीछे मध्य में मुख्य पूजागृह है जिसमें एक प्रकोष्ठ में ध्यानमुद्रा में अवस्थित जिन की मूर्ति हैं।

इस प्रकोष्ठ की छत शिखर रूप में बनी है यद्यपि यह अधिक ऊंची नहीं है। इसके साथ एक दूसरा प्रकोष्ठ बना है जिसके आगे एक मंडप स्थित है। इस मंडप के गुंबद के आठ स्तंभ हैं। संपूर्ण मंदिर एक प्रांगण के अंदर घिरा हुआ है जिसकी लंबाई 128 फुट और चौड़ाई 75 फुट है। इसके चतुर्दिक छोटे स्तंभों की दुहरी पंक्तियां हैं जिनसे प्रांगण की लगभग 52 कोठरियों के आगे बरामदा-सा बन जाता है।[2]
स्थापत्य कला
जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। पाँच मंदिरों के इस समूह में विमल वासाही मन्दिर सबसे पुराना है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। अपने ऐतिहासिक महत्त्व और संगमरमर पत्थर पर बारीक नक़्क़ाशी की जादूगरी के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के सिरोही ज़िले के इन विश्वविख्यात मंदिरों में शिल्प-सौंदर्य का ऐसा बेजोड़ ख़ज़ाना है, जिसे दुनिया में अन्यत्र और कहीं नहीं देखा जा सकता। इस मंदिर में आदिनाथ की मूर्ति की आँखें असली हीरक की बनी हुई हैं। और उसके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है। यहाँ पाँच मंदिरों का एक समूह है, जो बाहर से देखने में साधारण से प्रतीत होते हैं। फूल-पत्तियों व अन्य मोहक डिजाइनों से अलंकृत, नक़्क़ाशीदार छतें, पशु-पक्षियों की शानदार संगमरमरीय आकृतियां, सफ़ेद स्तंभों पर बारीकी से उकेर कर बनाई सुंदर बेलें, जालीदार नक़्क़ाशी से सजे तोरण और इन सबसे बढ़कर जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं। विमल वसही मंदिर के अष्टकोणीय कक्ष में स्थित है।
बाहर से मंदिर नितांत सामान्य दिखाई देता है और इससे भीतर के अद्भुत कलावैभव का तनिक भी आभास नहीं होता। किंतु श्वेत संगमरमर के गुंबद का भीतरी भाग, दीवारें, छतें तथा स्तंभ अपनी महीन नक़्क़ाशी और अभूतपूर्व मूर्तिकारी के लिए संसार-प्रसिद्ध हैं। इस मूर्तिकारी में तरह-तरह के फूल-पत्ते, पशु-पक्षी तथा मानवों की आकृतियां इतनी बारीकी से चित्रित हैं मानो यहाँ के शिल्पियों की छेनी के सामने कठोर संगमरमर मोम बन गया हो। पत्थर की शिल्पकला का इतना महान् वैभव भारत में अन्यत्र नहीं है। दूसरा मंदिर जो तेजपाल का कहलाता है, निकट ही है और पहले की अपेक्षा प्रत्येक बात में अधिक भव्य और शानदार दिखाई देता है। इसी शैली में बने तीन अन्य जैन-मन्दिर भी यहाँ आसपास ही हैं। किंवदंती है कि वशिष्ठ का आश्रम देवलवाड़ा के निकट ही स्थित था।[2]
अन्य मंदिर
यहाँ के पांच मंदिरों में दो विशाल मंदिर है तथा तीन मंदिर उसके अनुपूरक है। यहाँ पर विमल वासाही मंदिर प्रथम तीर्थंकर को समर्पित सबसे प्राचीन है, बाइसवें तीर्थंकर नेमीनाथ को समर्पित लुन वासाही मंदिर भी बहुत दर्शनीय है। यहाँ पर भगवान कुंथुनाथ का दिगम्बर जैन मंदिर भी स्थापित है। यहाँ पर एक अदभुत देवरानी जेठानी का मंदिर भी है जिसमें परमपूजनीय भगवान आदिनाथ एवं शान्तिनाथ जी की मूर्तियां स्थापित है। यहाँ के मंदिर परिसर में खरतरसाही, पीतलहर और भगवान महावीर का मंदिर भी स्थित है इनमें भगवान महावीर स्वामी का मंदिर सबसे छोटा बना हुआ है।[1]
|
|
|
|
|
वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- देलवाडा मंदिर-शिल्प सौंदर्य का बेजोड ख़ज़ाना
- सात अजूबों से कम नहीं है दिलवाड़ा जैन मंदिर
- दिलवाड़ा जैन मंदिर : जैन धर्म की अदभुत कला
- दिलवाडा टेम्पल , माउन्ट आबू , राजस्थान
संबंधित लेख