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'''देशबंधु गुप्त''' (जन्म- [[14 जुलाई]], [[1900]], [[पानीपत]], [[हरियाणा]]; मृत्यु- [[1951]]) प्रसिद्ध राष्ट्र भक्त, स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे। अपने विद्यार्थी जीवन में ही देशबंधु गुप्त [[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन|राष्ट्रीय आन्दोलन]] में कूद पड़े थे। उनसे प्रभावित होकर ही [[लाला लाजपत राय]] ने उन्हें अपने साथ ले लिया था। गुप्त जी में संगठन करने की बड़ी क्षमता थी। वर्ष [[1942]] में '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' के दौरान इन्हें गिरफ़्तार किया गया और फिर [[1945]] में ही ये जेल से बाहर आ सके। एक पत्रकार के रूप में भी देशबंधु गुप्त जाने जाते थे। [[स्वामी श्रद्धानन्द]] ने इन्हें राष्ट्रीय पत्र 'तेज' का सम्पादक नियुक्त किया था। [[1948]] में 'अखिल भारतीय समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन' के अध्यक्ष भी आप चुने गए थे। गुप्त जी हमेशा 'जाति प्रथा' का विरोध करते रहे।
 
'''देशबंधु गुप्त''' (जन्म- [[14 जुलाई]], [[1900]], [[पानीपत]], [[हरियाणा]]; मृत्यु- [[1951]]) प्रसिद्ध राष्ट्र भक्त, स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे। अपने विद्यार्थी जीवन में ही देशबंधु गुप्त [[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन|राष्ट्रीय आन्दोलन]] में कूद पड़े थे। उनसे प्रभावित होकर ही [[लाला लाजपत राय]] ने उन्हें अपने साथ ले लिया था। गुप्त जी में संगठन करने की बड़ी क्षमता थी। वर्ष [[1942]] में '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' के दौरान इन्हें गिरफ़्तार किया गया और फिर [[1945]] में ही ये जेल से बाहर आ सके। एक पत्रकार के रूप में भी देशबंधु गुप्त जाने जाते थे। [[स्वामी श्रद्धानन्द]] ने इन्हें राष्ट्रीय पत्र 'तेज' का सम्पादक नियुक्त किया था। [[1948]] में 'अखिल भारतीय समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन' के अध्यक्ष भी आप चुने गए थे। गुप्त जी हमेशा 'जाति प्रथा' का विरोध करते रहे।
 
==जन्म==
 
==जन्म==
देशबंधु गुप्त जी का जन्म 14 जुलाई, 1900 ई. को [[पानीपत]], [[हरियाणा]] के एक व्यवसायी [[परिवार]] में हुआ था। उनके [[पिता]] लाला शादीलाल पक्के [[आर्य समाज|आर्य समाजी]] थे। इनके घर में वैदिक रीति-रिवाजों का पूरी तरह से पालन होता था। इसका पूरा प्रभाव देशबंधु गुप्त के जीवन पर पड़ा।
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देशबंधु गुप्त जी का जन्म 14 जुलाई, 1900 ई. को [[पानीपत]], [[हरियाणा]] के एक व्यवसायी [[परिवार]] में हुआ था। उनके [[पिता]] लाला शादीलाल पक्के [[आर्य समाज|आर्य समाजी]] थे। इनके घर में वैदिक रीति-रिवाजों का पूरी तरह से पालन होता था। इसका पूरा प्रभाव देशबंधु गुप्त के जीवन पर पड़ा।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=396|url=}}</ref>
 
====शिक्षा====
 
====शिक्षा====
 
देशबंधु गुप्त की आरम्भिक शिक्षा उन दिनों व्यवसायी लिखा-पढ़ी में प्रचलित महाजनी लिपि में हुई। फिर वे नगरपालिका के स्कूल और [[अंबाला]] के 'आर्य वैदिक हाईस्कूल' में भर्ती हुए। देशबंधु गुप्त ने उच्च शिक्षा के लिए [[दिल्ली]] के 'हिन्दू कॉलेज' में प्रवेश लिया। यह उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ था।
 
देशबंधु गुप्त की आरम्भिक शिक्षा उन दिनों व्यवसायी लिखा-पढ़ी में प्रचलित महाजनी लिपि में हुई। फिर वे नगरपालिका के स्कूल और [[अंबाला]] के 'आर्य वैदिक हाईस्कूल' में भर्ती हुए। देशबंधु गुप्त ने उच्च शिक्षा के लिए [[दिल्ली]] के 'हिन्दू कॉलेज' में प्रवेश लिया। यह उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ था।
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जब गुप्त जी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, तब उसी अवधि में कई [[इतिहास]] प्रसिद्ध घटनाएं घटीं। [[महात्मा गाँधी]] के नेतृत्व में [[रॉलेट एक्ट]] के विरोध में पहला व्यापक आन्दोलन चला। [[जलियाँवाला बाग़]] में भीषण हत्याकांड हुआ और [[भारत]] की प्रबुद्ध जनता ने एक स्वर से ब्रिटिश राजकुमार की भारत-यात्रा का विरोध किया। विद्यार्थी जीवन में ही देशबंधु गुप्त राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े और गिरफ़्तार कर लिये गए।
 
जब गुप्त जी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, तब उसी अवधि में कई [[इतिहास]] प्रसिद्ध घटनाएं घटीं। [[महात्मा गाँधी]] के नेतृत्व में [[रॉलेट एक्ट]] के विरोध में पहला व्यापक आन्दोलन चला। [[जलियाँवाला बाग़]] में भीषण हत्याकांड हुआ और [[भारत]] की प्रबुद्ध जनता ने एक स्वर से ब्रिटिश राजकुमार की भारत-यात्रा का विरोध किया। विद्यार्थी जीवन में ही देशबंधु गुप्त राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े और गिरफ़्तार कर लिये गए।
 
====लालाजी का साथ====
 
====लालाजी का साथ====
[[लाला लाजपत राय]] गुप्त जी की प्रतिभा से काफ़ी प्रभावित हुए। ये उनकी प्रतिभा ही थी, जिससे प्रभावित होकर लाला जी ने उन्हें अपने साथ ले लिया। देशबंधु गुप्त को [[आर्य समाज]] के प्रसिद्ध नेता तथा देशभक्त [[स्वामी श्रद्धानन्द]] के साथ जेल में रहने का भी अवसर मिला। [[महात्मा गाँधी]] के प्रेरक व्यक्तित्व से भी वे प्रभावित हुए। इस प्रकार उनके विचारों में प्राचीनता और आधुनिकता के संयुक्त दर्शन होते थे।
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[[लाला लाजपत राय]] गुप्त जी की प्रतिभा से काफ़ी प्रभावित हुए। ये उनकी प्रतिभा ही थी, जिससे प्रभावित होकर लाला जी ने उन्हें अपने साथ ले लिया। देशबंधु गुप्त को [[आर्य समाज]] के प्रसिद्ध नेता तथा देशभक्त [[स्वामी श्रद्धानन्द]] के साथ जेल में रहने का भी अवसर मिला। [[महात्मा गाँधी]] के प्रेरक व्यक्तित्व से भी वे प्रभावित हुए। इस प्रकार उनके विचारों में प्राचीनता और आधुनिकता के संयुक्त दर्शन होते थे।<ref name="aa"/>
 
==संगठन क्षमता==
 
==संगठन क्षमता==
 
देशबंधु गुप्त में संगठन की बड़ी क्षमता थी। [[ब्रिटेन]] के राजकुमार की [[भारत]] यात्रा के समय सरकारी अधिकारियों ने उनके स्वागत के लिए [[दिल्ली]] में दलितों की एक सभा का आयोजन किया था। अपनी चतुरता से देशबंधु ने मंच पर कब्ज़ा करके सभा को भंग कर दिया। तभी से उनकी गणना दिल्ली के प्रमुख [[कांग्रेस]] जनों में होने लगी। इसके बाद जितने भी [[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन|राष्ट्रीय आन्दोलन]] हुए, उन सब में उन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल की सज़ाएं भोगीं। [[1942]] के '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' के दौरान भी वे गिरफ़्तार हुए और फिर [[1945]] में ही जेल से बाहर आ सके।
 
देशबंधु गुप्त में संगठन की बड़ी क्षमता थी। [[ब्रिटेन]] के राजकुमार की [[भारत]] यात्रा के समय सरकारी अधिकारियों ने उनके स्वागत के लिए [[दिल्ली]] में दलितों की एक सभा का आयोजन किया था। अपनी चतुरता से देशबंधु ने मंच पर कब्ज़ा करके सभा को भंग कर दिया। तभी से उनकी गणना दिल्ली के प्रमुख [[कांग्रेस]] जनों में होने लगी। इसके बाद जितने भी [[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन|राष्ट्रीय आन्दोलन]] हुए, उन सब में उन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल की सज़ाएं भोगीं। [[1942]] के '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' के दौरान भी वे गिरफ़्तार हुए और फिर [[1945]] में ही जेल से बाहर आ सके।
 
==पत्रकार==
 
==पत्रकार==
एक पत्रकार के रूप में भी देशबंधु गुप्त प्रसिद्ध थे। उनकी पत्रकारिता का लाला लाजपत राय के साथ आरंभ हुआ। लालाजी 'वंदेमातरम्' नामक पत्र के लिए बोल कर देशबंधु को लेख लिखवाया करते थे। तभी से उनकी भी इस क्षेत्र में रुचि बढ़ी। वर्ष [[1923]] में स्वामी श्रद्धानन्द ने अपने राष्ट्रीय पत्र 'तेज' का उन्हें संपादक बना दिया था। आगे चलकर पत्रकार जगत में उन्होंने इतनी प्रसिद्धि पाई कि [[1948]] में 'अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादक सम्मेलन' के अध्यक्ष चुन लिए गए।
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एक पत्रकार के रूप में भी देशबंधु गुप्त प्रसिद्ध थे। उनकी पत्रकारिता का लाला लाजपत राय के साथ आरंभ हुआ। लालाजी 'वंदेमातरम्' नामक पत्र के लिए बोल कर देशबंधु को लेख लिखवाया करते थे। तभी से उनकी भी इस क्षेत्र में रुचि बढ़ी। वर्ष [[1923]] में स्वामी श्रद्धानन्द ने अपने राष्ट्रीय पत्र 'तेज' का उन्हें संपादक बना दिया था। आगे चलकर पत्रकार जगत में उन्होंने इतनी प्रसिद्धि पाई कि [[1948]] में 'अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादक सम्मेलन' के अध्यक्ष चुन लिए गए।<ref name="aa"/>
 
====जाति प्रथा के विरोधी====
 
====जाति प्रथा के विरोधी====
 
देशबंधु गुप्त जीवन-भर राष्ट्रीय और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रहे। वे [[आर्य समाज]] के अनुयायी और सांप्रदायिकता की भावना से दूर थे, परंतु [[हिन्दू|हिन्दुओं]] को दबाकर अन्य धर्मावलंबियों को आगे बढ़ाना उन्हें स्वीकार नहीं था। वे जाति-प्रथा के प्रबल विरोध थे।
 
देशबंधु गुप्त जीवन-भर राष्ट्रीय और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रहे। वे [[आर्य समाज]] के अनुयायी और सांप्रदायिकता की भावना से दूर थे, परंतु [[हिन्दू|हिन्दुओं]] को दबाकर अन्य धर्मावलंबियों को आगे बढ़ाना उन्हें स्वीकार नहीं था। वे जाति-प्रथा के प्रबल विरोध थे।

13:00, 26 जुलाई 2014 का अवतरण

देशबंधु गुप्त
देशबंधु गुप्त
पूरा नाम देशबंधु गुप्त
जन्म 14 जुलाई, 1900
जन्म भूमि पानीपत, हरियाणा
मृत्यु 1951
मृत्यु कारण विमान दुर्घटना
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतन्त्रता सेनानी तथा पत्रकार
धर्म हिन्दू
जेल यात्रा 'राष्ट्रीय आन्दोलन' के दौरान गुप्त जी कई बार गिरफ़्तार हुए और जेल की सज़ाएं भोगीं। 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान भी वे गिरफ़्तार हुए।
विद्यालय 'आर्य वैदिक हाईस्कूल', अंबाला; 'हिन्दू कॉलेज', दिल्ली
संबंधित लेख भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन, लाला लाजपत राय
अन्य जानकारी एक पत्रकार के रूप में भी देशबंधु गुप्त प्रसिद्ध थे। पत्रकार जगत में उन्होंने इतनी प्रसिद्धि पाई कि 1948 में 'अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादक सम्मेलन' के अध्यक्ष चुन लिए गए थे।

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देशबंधु गुप्त (जन्म- 14 जुलाई, 1900, पानीपत, हरियाणा; मृत्यु- 1951) प्रसिद्ध राष्ट्र भक्त, स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे। अपने विद्यार्थी जीवन में ही देशबंधु गुप्त राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े थे। उनसे प्रभावित होकर ही लाला लाजपत राय ने उन्हें अपने साथ ले लिया था। गुप्त जी में संगठन करने की बड़ी क्षमता थी। वर्ष 1942 में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान इन्हें गिरफ़्तार किया गया और फिर 1945 में ही ये जेल से बाहर आ सके। एक पत्रकार के रूप में भी देशबंधु गुप्त जाने जाते थे। स्वामी श्रद्धानन्द ने इन्हें राष्ट्रीय पत्र 'तेज' का सम्पादक नियुक्त किया था। 1948 में 'अखिल भारतीय समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन' के अध्यक्ष भी आप चुने गए थे। गुप्त जी हमेशा 'जाति प्रथा' का विरोध करते रहे।

जन्म

देशबंधु गुप्त जी का जन्म 14 जुलाई, 1900 ई. को पानीपत, हरियाणा के एक व्यवसायी परिवार में हुआ था। उनके पिता लाला शादीलाल पक्के आर्य समाजी थे। इनके घर में वैदिक रीति-रिवाजों का पूरी तरह से पालन होता था। इसका पूरा प्रभाव देशबंधु गुप्त के जीवन पर पड़ा।[1]

शिक्षा

देशबंधु गुप्त की आरम्भिक शिक्षा उन दिनों व्यवसायी लिखा-पढ़ी में प्रचलित महाजनी लिपि में हुई। फिर वे नगरपालिका के स्कूल और अंबाला के 'आर्य वैदिक हाईस्कूल' में भर्ती हुए। देशबंधु गुप्त ने उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली के 'हिन्दू कॉलेज' में प्रवेश लिया। यह उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ था।

आन्दोलन तथा गिरफ़्तारी

जब गुप्त जी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, तब उसी अवधि में कई इतिहास प्रसिद्ध घटनाएं घटीं। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में रॉलेट एक्ट के विरोध में पहला व्यापक आन्दोलन चला। जलियाँवाला बाग़ में भीषण हत्याकांड हुआ और भारत की प्रबुद्ध जनता ने एक स्वर से ब्रिटिश राजकुमार की भारत-यात्रा का विरोध किया। विद्यार्थी जीवन में ही देशबंधु गुप्त राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े और गिरफ़्तार कर लिये गए।

लालाजी का साथ

लाला लाजपत राय गुप्त जी की प्रतिभा से काफ़ी प्रभावित हुए। ये उनकी प्रतिभा ही थी, जिससे प्रभावित होकर लाला जी ने उन्हें अपने साथ ले लिया। देशबंधु गुप्त को आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता तथा देशभक्त स्वामी श्रद्धानन्द के साथ जेल में रहने का भी अवसर मिला। महात्मा गाँधी के प्रेरक व्यक्तित्व से भी वे प्रभावित हुए। इस प्रकार उनके विचारों में प्राचीनता और आधुनिकता के संयुक्त दर्शन होते थे।[1]

संगठन क्षमता

देशबंधु गुप्त में संगठन की बड़ी क्षमता थी। ब्रिटेन के राजकुमार की भारत यात्रा के समय सरकारी अधिकारियों ने उनके स्वागत के लिए दिल्ली में दलितों की एक सभा का आयोजन किया था। अपनी चतुरता से देशबंधु ने मंच पर कब्ज़ा करके सभा को भंग कर दिया। तभी से उनकी गणना दिल्ली के प्रमुख कांग्रेस जनों में होने लगी। इसके बाद जितने भी राष्ट्रीय आन्दोलन हुए, उन सब में उन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल की सज़ाएं भोगीं। 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान भी वे गिरफ़्तार हुए और फिर 1945 में ही जेल से बाहर आ सके।

पत्रकार

एक पत्रकार के रूप में भी देशबंधु गुप्त प्रसिद्ध थे। उनकी पत्रकारिता का लाला लाजपत राय के साथ आरंभ हुआ। लालाजी 'वंदेमातरम्' नामक पत्र के लिए बोल कर देशबंधु को लेख लिखवाया करते थे। तभी से उनकी भी इस क्षेत्र में रुचि बढ़ी। वर्ष 1923 में स्वामी श्रद्धानन्द ने अपने राष्ट्रीय पत्र 'तेज' का उन्हें संपादक बना दिया था। आगे चलकर पत्रकार जगत में उन्होंने इतनी प्रसिद्धि पाई कि 1948 में 'अखिल भारतीय समाचार पत्र संपादक सम्मेलन' के अध्यक्ष चुन लिए गए।[1]

जाति प्रथा के विरोधी

देशबंधु गुप्त जीवन-भर राष्ट्रीय और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रहे। वे आर्य समाज के अनुयायी और सांप्रदायिकता की भावना से दूर थे, परंतु हिन्दुओं को दबाकर अन्य धर्मावलंबियों को आगे बढ़ाना उन्हें स्वीकार नहीं था। वे जाति-प्रथा के प्रबल विरोध थे।

निधन

दुर्भाग्य से वर्ष 1951 में एक विमान दुर्घटना में देशबंधु गुप्त का देहांत हो गया। यदि यह विमान दुर्घटना न घटी होती तो वही दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री बने होते।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 396 |

संबंधित लेख

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