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*[[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी था जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहे। इन्होंने [[विराट|राजा विराट]] के यहाँ सेवक बनकर एक [[वर्ष]] बिताया।।|
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*[[महाभारत]] में [[पांडव|पांडवों]] के वनवास में एक वर्ष का [[अज्ञातवास]] भी था जो उन्होंने [[विराट नगर]] में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहे। इन्होंने [[विराट|राजा विराट]] के यहाँ सेवक बनकर एक [[वर्ष]] बिताया।
  
*इस प्रसंग में [[अर्जुन]] ने '''षण्ढक और बृहन्नला''' कहा है। '''षण्ढक''' शब्द का अर्थ है '''नपुंसक'''। [[अर्जुन]] इस समय [[उर्वशी]] के शाप से नपुंसक हो गये थे।  
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*इस प्रसंग में [[अर्जुन]] ने '''षण्ढक और बृहन्नला''' कहा है।  
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*'''षण्ढक''' शब्द का अर्थ है '''नपुंसक'''। [[अर्जुन]] इस समय [[उर्वशी]] के शाप से नपुंसक हो गये थे।  
 
*बृहन्नला का मूल शब्द '''बृहन्नल''' है। विद्वानों ने 'र' और 'ल' को एक सा माना है; अत: बृहन्नल का अर्थ बृहन्नर अर्थात '''श्रेष्ठ या महान मानव''' है। भगवान नारायण के सखा होने के कारण अर्जुन नरश्रेष्ठ हैं ही।
 
*बृहन्नला का मूल शब्द '''बृहन्नल''' है। विद्वानों ने 'र' और 'ल' को एक सा माना है; अत: बृहन्नल का अर्थ बृहन्नर अर्थात '''श्रेष्ठ या महान मानव''' है। भगवान नारायण के सखा होने के कारण अर्जुन नरश्रेष्ठ हैं ही।
  

14:19, 30 अगस्त 2011 का अवतरण

  • इस प्रसंग में अर्जुन ने षण्ढक और बृहन्नला कहा है।
  • षण्ढक शब्द का अर्थ है नपुंसकअर्जुन इस समय उर्वशी के शाप से नपुंसक हो गये थे।
  • बृहन्नला का मूल शब्द बृहन्नल है। विद्वानों ने 'र' और 'ल' को एक सा माना है; अत: बृहन्नल का अर्थ बृहन्नर अर्थात श्रेष्ठ या महान मानव है। भगवान नारायण के सखा होने के कारण अर्जुन नरश्रेष्ठ हैं ही।
  • इन्द्रपुरी में अप्सरा उर्वशी इन पर मोहित हो गई थी। पर उसकी इच्छा पूर्ति न करने के कारण इन्हें एक वर्ष तक नपुंसक रहकर बृहन्नला के रूप में विराट की कन्या उत्तरा को नृत्य की शिक्षा देनी पड़ी थी।

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