गीता 5:18

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गीता अध्याय-5 श्लोक-18 / Gita Chapter-5 Verse-18

प्रसंग-


इस प्रकार तत्वज्ञानी के समभाव का वर्णन करके अब समभाव को ब्रह्म का स्वरूप बतलाते हुए उसमें स्थित महापुरुषों की महिमा का वर्णन करते हैं-


विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्राणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन: ।।18।।



वे ज्ञानीजन विद्या और विनययुक्त ब्राह्राण में तथा गौ, हाथी, कुत्ते और चाण्डाल में भी समदर्शी ही होते हैं ।।18।।

The wise look with the same eye on a Brahma endowed with learning and culture, a cow, an elephant, a dog, and a pariah too. (18)


पण्डिता: = ज्ञानीजन; विद्याविनय संपन्ने = विद्या और विनययुक्त; ब्राह्मणे =ब्राह्मण में, गंवि = गौ; हस्तिनि = हाथी; शुनि = कुत्ते (और); श्वाके=चाण्डाल में; समदर्शिन: = समभाव से देखने वाले; एवं =ही (होते हैं)



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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