"कौरव" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''कौरव''' [[महाभारत]] में [[हस्तिनापुर]] नरेश [[धृतराष्ट्र]] और [[गान्धारी]] के सौ पुत्र थे। ये [[कुरु]] के वंशज थे। सभी कौरवों में [[दुर्योधन]] सबसे बड़ा था, जो बहुत ही हठी स्वभाव का था। [[महाभारत]] युग में कौरवों का पूरे [[भारत]] में प्रभाव था। लेकिन इन पर परिवार द्रोही, षड़यंत्रकारी, छली-कपटी होने का दोष लगा, जो कुरुओं के राजमहल की एक विशेषता रही। अपने हठी और क्रोधी स्वभाव के कारण ही [[दुर्योधन]] ने कौरवों की ग्यारह अक्षौहिणी सेना को मरवा डाला।
+
'''कौरव''' [[महाभारत]] में [[हस्तिनापुर]] नरेश [[धृतराष्ट्र]] और [[गान्धारी]] के पुत्र थे। ये संख्या में सौ थे तथा [[कुरु]] के वंशज थे। सभी कौरवों में [[दुर्योधन]] सबसे बड़ा था, जो बहुत ही हठी स्वभाव का था। [[महाभारत]] युग में कौरवों का पूरे [[भारत]] में प्रभाव था। लेकिन इन पर परिवार द्रोही, षड़यंत्रकारी और छली-कपटी होने का दोष लगा, जो कुरुओं के राजमहल की एक विशेषता रही। अपने हठी और क्रोधी स्वभाव के कारण ही [[दुर्योधन]] ने कौरवों की ग्यारह '[[अक्षौहिणी|अक्षौहिणी सेना]]' को मरवा डाला।
 +
==कथा==
 +
कौरवों के जन्म से सम्बन्धित निम्न कथा धर्मग्रंथों में मिलती है, जिसके अनुसार-
 +
 
 +
जिस समय [[युधिष्ठर]] के जन्म का समाचार धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी को मिला तो उसके [[हृदय]] में भी पुत्रवती होने की लालसा जाग उठी। गान्धारी ने [[वेदव्यास]] से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण कर लेने के पश्चात भी दो वर्ष व्यतीत हो गये, किंतु गान्धारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोध से भरी हुई गान्धारी ने क्षोभवश अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया, जिससे उसका गर्भ गिर गया। योगबल से महर्षि वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गान्धारी के पास आकर बोले- "गान्धारी! तूने बहुत ग़लत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुण्ड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।" गान्धारी ने उनकी आज्ञानुसार सौ कुण्ड बनवा दिये।
 +
====कौरवों का जन्म====
 +
वेदव्यास ने गान्धारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमन्त्रित [[जल]] छिड़का, जिससे उस पिण्ड के अँगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गये। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गान्धारी के बनवाये हुए सौ कुण्डों में रखवा दिया और उन कुण्डों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने [[आश्रम]] चले गये। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से [[दुर्योधन]] की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के दिन ही [[कुन्ती]] के पुत्र [[भीम (पांडव)|भीम]] का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने [[धृतराष्ट्र]] को बताया कि- "राजन! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसे त्याग देना ही उचित है।" किन्तु पुत्र मोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। फिर उन कुण्डों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं [[दु:शला]] नामक एक कन्या का जन्म हुआ। गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी, अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी '[[युयुत्सु]]' नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का [[विवाह]] यथा योग्य कन्याओं से कर दिया गया। दु:शला का विवाह [[सिन्धु प्रदेश|सिन्धु]] नरेश [[जयद्रथ]] के साथ हुआ।
 
==ग्रंथों में उल्लेख==
 
==ग्रंथों में उल्लेख==
[[अथर्ववेद]] में कुरुवंशा दम्पत्ति और [[परीक्षित]] के संदर्भ आए हैं।<ref>[[अथर्ववेद]], अध्याय 20-127-8</ref> वैसे तो [[हस्तिनापुर]] का समस्त राजपरिवार, जिसमें [[पाण्डु]] के पुत्र भी सम्मिलित थे, कौरव कहलाता था, परन्तु यह संज्ञा [[धृतराष्ट्र]] के पुत्रों के लिए ही प्रयुक्त होने लगी। कुरुओं का उल्लेख [[वेद|वेदों]] में भी हुआ है। [[पंचजन (पाँच व्यक्ति)|पंचजनों]] में इनकी भी गणना होती थी। उत्तर और दक्षिण कुरु नाम की इनकी दो शाखाएं थीं। भले ही यह महाकाव्य की कथा हो, कौरवों को ऐसा श्राप लगा कि वे हज़ारों साल तक किसी की भी सहानुभूति के पात्र नहीं रहे और [[क्षत्रिय]] जाति के होते हुए भी असुर कोटि में गणना के योग्य बन गए।
+
[[अथर्ववेद]] में कुरुवंश दम्पत्ति और [[परीक्षित]] के संदर्भ आए हैं।<ref>[[अथर्ववेद]], अध्याय 20-127-8</ref> वैसे तो [[हस्तिनापुर]] का समस्त राजपरिवार, जिसमें [[पाण्डु]] के पुत्र भी सम्मिलित थे, कौरव कहलाता था, परन्तु यह संज्ञा [[धृतराष्ट्र]] के पुत्रों के लिए ही प्रयुक्त होने लगी। कुरुओं का उल्लेख [[वेद|वेदों]] में भी हुआ है। [[पंचजन (पाँच व्यक्ति)|पंचजनों]] में इनकी भी गणना होती थी। 'उत्तर कुरु' और 'दक्षिण कुरु' नाम की इनकी दो शाखाएँ थीं। भले ही यह [[महाकाव्य]] की कथा हो, कौरवों को ऐसा श्राप लगा कि वे हज़ारों साल तक किसी की भी सहानुभूति के पात्र नहीं रहे और [[क्षत्रिय]] जाति के होते हुए भी असुर कोटि में गणना के योग्य बन गए।
==जन्म-कथा==
 
[[युधिष्ठर]] के जन्म होने पर धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी के [[हृदय]] में भी पुत्रवती होने की लालसा जाग उठी थी। गान्धारी ने [[वेदव्यास]] जी से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण के पश्चात दो वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी जब पुत्र का जन्म नहीं हुआ तो क्षोभवश गान्धारी ने अपने पेट में मुक्का मार कर अपना गर्भ गिरा दिया। योगबल से वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल जान लिया। वे गान्धारी के पास आकर बोले, "गान्धारी तूने बहुत ग़लत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र सौ कुण्ड तैयार कर के उनमें घृत (घी) भरवा दो।" गान्धारी ने उनकी आज्ञानुसार सौ कुण्ड बनवा दिये।
 
====कौरवों का जन्म====
 
वेदव्यास ने गान्धारी के गर्भ से निकले मांसपिण्ड पर अभिमन्त्रित [[जल]] छिड़का, जिसे उस पिण्ड के अँगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गये। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गान्धारी के बनवाये सौ कुण्डों में रखवा दिया और उन कुण्डों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश दे अपने आश्रम चले गये। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से [[दुर्योधन]] की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के दिन ही [[कुन्ती]] के पुत्र [[भीम (पांडव)|भीम]] का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने [[धृतराष्ट्र]] को बताया, "राजन! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसे त्याग देना ही उचित है, किन्तु पुत्र मोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। फिर उन कुण्डों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं [[दु:शला]] नामक एक कन्या का जन्म हुआ।
 
  
गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी [[युयुत्स]] नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का [[विवाह]] यथा योग्य कन्याओं से कर दिया गया। दु:शला का विवाह [[जयद्रथ]] के साथ हुआ।
 
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
 
<references/>
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}
+
{{महाभारत}}{{महाभारत2}}
{{महाभारत2}}
+
[[Category:महाभारत]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
 
[[Category:महाभारत]]
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

10:23, 19 जुलाई 2013 का अवतरण

कौरव महाभारत में हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र और गान्धारी के पुत्र थे। ये संख्या में सौ थे तथा कुरु के वंशज थे। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था, जो बहुत ही हठी स्वभाव का था। महाभारत युग में कौरवों का पूरे भारत में प्रभाव था। लेकिन इन पर परिवार द्रोही, षड़यंत्रकारी और छली-कपटी होने का दोष लगा, जो कुरुओं के राजमहल की एक विशेषता रही। अपने हठी और क्रोधी स्वभाव के कारण ही दुर्योधन ने कौरवों की ग्यारह 'अक्षौहिणी सेना' को मरवा डाला।

कथा

कौरवों के जन्म से सम्बन्धित निम्न कथा धर्मग्रंथों में मिलती है, जिसके अनुसार-

जिस समय युधिष्ठर के जन्म का समाचार धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी को मिला तो उसके हृदय में भी पुत्रवती होने की लालसा जाग उठी। गान्धारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण कर लेने के पश्चात भी दो वर्ष व्यतीत हो गये, किंतु गान्धारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोध से भरी हुई गान्धारी ने क्षोभवश अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया, जिससे उसका गर्भ गिर गया। योगबल से महर्षि वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गान्धारी के पास आकर बोले- "गान्धारी! तूने बहुत ग़लत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुण्ड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।" गान्धारी ने उनकी आज्ञानुसार सौ कुण्ड बनवा दिये।

कौरवों का जन्म

वेदव्यास ने गान्धारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमन्त्रित जल छिड़का, जिससे उस पिण्ड के अँगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गये। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गान्धारी के बनवाये हुए सौ कुण्डों में रखवा दिया और उन कुण्डों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गये। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के दिन ही कुन्ती के पुत्र भीम का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने धृतराष्ट्र को बताया कि- "राजन! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसे त्याग देना ही उचित है।" किन्तु पुत्र मोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। फिर उन कुण्डों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ। गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी, अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी 'युयुत्सु' नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का विवाह यथा योग्य कन्याओं से कर दिया गया। दु:शला का विवाह सिन्धु नरेश जयद्रथ के साथ हुआ।

ग्रंथों में उल्लेख

अथर्ववेद में कुरुवंश दम्पत्ति और परीक्षित के संदर्भ आए हैं।[1] वैसे तो हस्तिनापुर का समस्त राजपरिवार, जिसमें पाण्डु के पुत्र भी सम्मिलित थे, कौरव कहलाता था, परन्तु यह संज्ञा धृतराष्ट्र के पुत्रों के लिए ही प्रयुक्त होने लगी। कुरुओं का उल्लेख वेदों में भी हुआ है। पंचजनों में इनकी भी गणना होती थी। 'उत्तर कुरु' और 'दक्षिण कुरु' नाम की इनकी दो शाखाएँ थीं। भले ही यह महाकाव्य की कथा हो, कौरवों को ऐसा श्राप लगा कि वे हज़ारों साल तक किसी की भी सहानुभूति के पात्र नहीं रहे और क्षत्रिय जाति के होते हुए भी असुर कोटि में गणना के योग्य बन गए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अथर्ववेद, अध्याय 20-127-8

संबंधित लेख