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'''प्रीतम रानी सिवाच''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pritam Rani Siwach'', जन्म: 2 अक्टूबर, 1974) भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान हैं। [[हरियाणा]] प्रदेश के झाड़सा गाँव (गुडगाँव) में प्रीतम ठाकरान ने एक किसान परिवार के घर जन्म लेकर [[हॉकी]] की स्टिक पकड़ी और ऐसी पकड़ी कि आज सारे विश्व में उन्हें बेहतरीन खिलाडी माना जाता है।
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==जीवन परिचय==
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वर्ष 1987 में हॉकी स्टिक को हाथों में थामी उस समय वे सातवीं कक्षा की छात्रा थीं। वर्ष 1990 में उन्होंने पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता खेली, जिसमें उसे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब मिला। प्रीतम ने 1992 में जूनियर एशिया कप में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लिया था। उनके पहले प्रशिक्षक व गुरु स्कूल के पीटीआई ताराचंद थे। जिन्होंने इन्हें हॉकी की बारीकियों से अवगत कराया। उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने स्वयं भी जरूरतमंद लड़कियों को हॉकी का प्रशिक्षण देना शुरू किया। उनके पिता भरत सिंह ठाकरान व भाई अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान [[धीरज ठाकरान]] ने पूरा सहयोग दिया। वर्ष 1998 में जब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच के साथ वैवाहिक बंधन में बंधी तो उनके पति ने भी इस [[खेल]] में आगे बढ़ने की पूरी मदद की। [[चित्र:Pritam.jpg|thumb|220px|right|]]
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जहाँ हमारे देश में आज से 25 साल पहले लडकिया घर से बहार भी नहीं निकलती थी उस दौर में हरियाणा प्रदेश के झाड़सा गाँव (गुडगाँव) में प्रीतम ठाकरान ने एक किसान परिवार के घर जन्म लेकर होकी की स्टिक पकड़ी और ऐसी पकड़ी की सारे विश्व में उन्हें बेहतरीन खिलाडी माना जाता है।
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====नए खिलाड़ियों को प्रशिक्षण====
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[[ओलंपिक खेल|ओलंपिक खेलों]] के महिला वर्ग की हॉकी में देश को पदक मिले इस सपने को पूरा करने के लिए प्रीतम ने [[राष्ट्रीय खेल]] हॉकी की नई पौध तैयार करनी शुरू की। उनकी वर्षो की इस मेहनत ने [[रंग]] लाना भी शुरू कर दिया। उनसे प्रशिक्षण पाने वाले खिलाड़ी राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रही है। अपने देश के सपने को पूरा करने के लिए ये [[सोनीपत]] के औद्योगिक क्षेत्र में लड़कियों को प्रशिक्षण दे रही है। प्रशिक्षक के तौर पर उन्होंने साल 2004 से काम करना शुरू किया था। नए खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के इस काम में उनके पति पूर्व हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच भी पूरी मदद कर रहे हैं। प्रशिक्षण के काम को चुनौतीपूर्ण रूप में देखने वाली प्रीतम कहती हैं कि एक खिलाड़ी को अपने भीतर खुद जज्बा पैदा करना होता है, लेकिन एक प्रशिक्षक को इस जज्बे के साथ दूसरे खिलाड़ी में खेल भावना को जागृत करनी पड़ती है।
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==उपलब्धियाँ==
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* 1992 में पहले अंतरराष्ट्रीय मुकाबले जूनियर एशिया कप में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब।
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* 1998 में एशियाड में देश की कप्तानी करते हुए बैंकाक में 15 वर्ष बाद प्रतियोगिता का रजत पदक।
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* 2002 में मेनचेस्टर [[इंग्लैंड]] में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक।
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* 2008 के ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व।
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* 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय महिला हाकी टीम की प्रशिक्षक बनी।
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* [[चीन]] में एशियाई खेल व अर्जेटीना में हुए विश्व कप में टीम को प्रशिक्षण दिया।
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==सम्मान और पुरस्कार==
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वर्ष 1998 में इन्हें [[अर्जुन पुरस्कार]] मिलने के बाद काफी पहचान मिली। 15 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद किसी महिला खिलाड़ी को अर्जुन पुरस्कार मिला था। पुरस्कार मिलने से उन्हें और प्रेरणा मिली। अगर जज़्बा हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। शादी के बाद वर्ष 2002 में जब उन्होंने [[राष्ट्रमंडल खेल|राष्ट्रमंडल खेलों]] में देश के लिए स्वर्ण जीता उस समय वे एक बच्चे की मां बन चुकी थी। इसके बाद वे चोटिल हो गई और इसी बीच उन्होंने एक लड़की को जन्म दिया। इसके बाद फिर से स्वयं को तैयार करते हुए उन्होंने वर्ष 2008 में देश को ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कराया, लेकिन उनकी टीम वहां कोई पदक नहीं जीत सकी। वर्ष 2002 में मेनचेस्टर में देश के लिए स्वर्ण जीतना जीवन का अद्भुत क्षण था। राष्ट्रमण्डल खेलों में जब [[भारत]] का [[तिरंगा]] फहराया गया तो उनके साथ ही पूरी टीम की [[आंख|आंखों]] से अश्रुधारा बह रही थी। 
  
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वर्ष 1987 में हॉकी स्टिक को हाथों में थाम था। उस समय वे सातवीं कक्षा की छात्रा थीं। वर्ष 1990 में उन्होंने पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता खेली, जिसमें उसे बेस्ट खिलाड़ी का खिताब मिला। प्रीतम ने 1992 में जूनियर एशिया कप में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लिया था। उनके पहले प्रशिक्षक व गुरु स्कूल के पीटीआइ ताराचंद थे। जिन्होंने ही उसे हाकी की बारीकियों से अवगत कराया। उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने स्वयं भी जरूरतमंद लड़कियों को हाकी का प्रशिक्षण देना शुरू किया है। [[चित्र:Pritam.jpg|thumb|220px|right|]]
 
 
 
====नए खिलाडियों को प्रशिक्षण====
 
ओलंपिक खेलों के महिला वर्ग की हॉकी में देश को पदक मिले इस सपने को पूरा करने के प्रीतम ने राष्ट्रीय खेल हॉकी की नई पौध तैयार करनी शुरू की है। उनकी वर्षो की इस मेहनत ने रंग लाना भी शुरू कर दिया है। उनसे प्रशिक्षण पाने वाले खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रही है।
 
अपने देश के सपने को पूरा करने के लिए ये सोनीपत के औद्योगिक क्षेत्र में लड़कियों को प्रशिक्षण दे रही है. प्रशिक्षक के तौर पर उन्होंने साल 2004 से काम करना शुरू किया था। नए खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के इस काम में उनके पति पूर्व हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच भी पूरी मदद कर रहे हैं। प्रशिक्षण के काम को चुनौतीपूर्ण रूप में देखने वाली प्रीतम कहती हैं कि एक खिलाड़ी को अपने भीतर खुद जज्बा पैदा करना होता है, लेकिन एक प्रशिक्षक को इस जज्बे के साथ दूसरे खिलाड़ी में खेल भावना को जागृत करनी पड़ती है।
 
 
 
=====अर्जुन अवार्ड व अन्य उपलब्धियां=====
 
उनके पिता भरत सिंह ठाकरान व भाई अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान [[धीरज ठाकरान]] ने पूरा सहयोग दिया। वर्ष 1998 में जब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच के साथ वैवाहिक बंधन में बंधी तो उनके पति ने भी इस खेल में आगे बढ़ने की पूरी मदद की। वर्ष 1998 में उन्हें अर्जुन अवार्ड मिलने के बाद इन्हें काफी पहचान मिली। 15 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद किसी महिला खिलाड़ी को अर्जुन अवार्ड मिला था। अवार्ड मिलने से उन्हें और प्रेरणा मिली। अगर जज्ब हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। शादी के बाद वर्ष 2002 में जब उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में देश के लिए स्वर्ण जीता उस समय वे एक बच्चे की मां बन चुकी थी। इसके बाद वे चोटिल हो गई और इसी बीच उन्होंने एक लड़की को जनम दिया। इसके बाद फिर से स्वयं को तैयार करते हुए उन्होंने वर्ष 2008 में देश को ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कराया, लेकिन उनकी टीम वहां कोई पदक नहीं जीत सकी।
 
 
 
=====देश के लिए स्वर्ण पदक=====
 
वर्ष 2002 में मेनचेस्टर में देश के लिए स्वर्ण जीतना जीवन का अद्भुत क्षण था। राष्ट्रमण्डल खेलों में जब देश का तिरंगा फहराया गया तो उनके साथ ही पूरी टीम की आंखों से अश्रुधारा बह रही थी। देश के लिए पदक जीतने का जज्बा सबसे उत्तम होता है।
 
 
 
उपलब्धियां
 
 
 
- 1992 में पहले अंतरराष्ट्रीय मुकाबले जूनियर एशिया कप में बेस्ट प्लेयर का खिताब।
 
 
 
- 1998 में एशियाड में देश की कप्तानी करते हुए बैंकाक में 15 वर्ष बाद प्रतियोगिता का रजत पदक।
 
 
 
- 2002 में मेनचेस्टर इंग्लैंड में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक।
 
 
 
- 2008 के ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व।
 
 
 
- 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय महिला हाकी टीम की प्रशिक्षक बनी।
 
 
 
- चाइना में एशियन गेम व अर्जेटीना में हुए व‌र्ल्ड कप में टीम को प्रशिक्षण दिया।
 
 
 
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==संबंधित लेख==
 
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13:01, 9 नवम्बर 2012 का अवतरण

प्रीतम रानी सिवाच (अंग्रेज़ी: Pritam Rani Siwach, जन्म: 2 अक्टूबर, 1974) भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान हैं। हरियाणा प्रदेश के झाड़सा गाँव (गुडगाँव) में प्रीतम ठाकरान ने एक किसान परिवार के घर जन्म लेकर हॉकी की स्टिक पकड़ी और ऐसी पकड़ी कि आज सारे विश्व में उन्हें बेहतरीन खिलाडी माना जाता है।

जीवन परिचय

वर्ष 1987 में हॉकी स्टिक को हाथों में थामी उस समय वे सातवीं कक्षा की छात्रा थीं। वर्ष 1990 में उन्होंने पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता खेली, जिसमें उसे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब मिला। प्रीतम ने 1992 में जूनियर एशिया कप में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लिया था। उनके पहले प्रशिक्षक व गुरु स्कूल के पीटीआई ताराचंद थे। जिन्होंने इन्हें हॉकी की बारीकियों से अवगत कराया। उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने स्वयं भी जरूरतमंद लड़कियों को हॉकी का प्रशिक्षण देना शुरू किया। उनके पिता भरत सिंह ठाकरान व भाई अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान धीरज ठाकरान ने पूरा सहयोग दिया। वर्ष 1998 में जब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच के साथ वैवाहिक बंधन में बंधी तो उनके पति ने भी इस खेल में आगे बढ़ने की पूरी मदद की।

Pritam.jpg

नए खिलाड़ियों को प्रशिक्षण

ओलंपिक खेलों के महिला वर्ग की हॉकी में देश को पदक मिले इस सपने को पूरा करने के लिए प्रीतम ने राष्ट्रीय खेल हॉकी की नई पौध तैयार करनी शुरू की। उनकी वर्षो की इस मेहनत ने रंग लाना भी शुरू कर दिया। उनसे प्रशिक्षण पाने वाले खिलाड़ी राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रही है। अपने देश के सपने को पूरा करने के लिए ये सोनीपत के औद्योगिक क्षेत्र में लड़कियों को प्रशिक्षण दे रही है। प्रशिक्षक के तौर पर उन्होंने साल 2004 से काम करना शुरू किया था। नए खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के इस काम में उनके पति पूर्व हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच भी पूरी मदद कर रहे हैं। प्रशिक्षण के काम को चुनौतीपूर्ण रूप में देखने वाली प्रीतम कहती हैं कि एक खिलाड़ी को अपने भीतर खुद जज्बा पैदा करना होता है, लेकिन एक प्रशिक्षक को इस जज्बे के साथ दूसरे खिलाड़ी में खेल भावना को जागृत करनी पड़ती है।

उपलब्धियाँ

  • 1992 में पहले अंतरराष्ट्रीय मुकाबले जूनियर एशिया कप में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब।
  • 1998 में एशियाड में देश की कप्तानी करते हुए बैंकाक में 15 वर्ष बाद प्रतियोगिता का रजत पदक।
  • 2002 में मेनचेस्टर इंग्लैंड में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक।
  • 2008 के ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व।
  • 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय महिला हाकी टीम की प्रशिक्षक बनी।
  • चीन में एशियाई खेल व अर्जेटीना में हुए विश्व कप में टीम को प्रशिक्षण दिया।

सम्मान और पुरस्कार

वर्ष 1998 में इन्हें अर्जुन पुरस्कार मिलने के बाद काफी पहचान मिली। 15 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद किसी महिला खिलाड़ी को अर्जुन पुरस्कार मिला था। पुरस्कार मिलने से उन्हें और प्रेरणा मिली। अगर जज़्बा हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। शादी के बाद वर्ष 2002 में जब उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में देश के लिए स्वर्ण जीता उस समय वे एक बच्चे की मां बन चुकी थी। इसके बाद वे चोटिल हो गई और इसी बीच उन्होंने एक लड़की को जन्म दिया। इसके बाद फिर से स्वयं को तैयार करते हुए उन्होंने वर्ष 2008 में देश को ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कराया, लेकिन उनकी टीम वहां कोई पदक नहीं जीत सकी। वर्ष 2002 में मेनचेस्टर में देश के लिए स्वर्ण जीतना जीवन का अद्भुत क्षण था। राष्ट्रमण्डल खेलों में जब भारत का तिरंगा फहराया गया तो उनके साथ ही पूरी टीम की आंखों से अश्रुधारा बह रही थी।


टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

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