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'''तोमर''' [[राजपूत|राजपूतों]] की एक प्रमुख शाखा है, जिसका [[भारतीय इतिहास]] में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। तोमर राजाओं में राजा [[अनंगपाल]] ने [[इतिहास]] में काफ़ी प्रसिद्धि प्राप्त की है। कुछ विद्वानों का यह भी कथन है कि [[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहारों]] और [[चौहान वंश|चौहानों]] की भाँति ही तोमर भी विदेशी थे, जिन्होंने बाद में [[भारत]] के कुछ इलाकों को जीतकर अपना राज्य स्थापित किया था।
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*तोमर लोग 11वीं शताब्दी में वर्तमान [[दिल्ली]] क्षेत्र के शासक थे।
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*तोमर लोग 11वीं शताब्दी में वर्तमान [[दिल्ली]] क्षेत्र के शासक हुआ करते थे।
*तोमरों में अग्रणी [[अनंगपाल]] ने 11वीं शताब्दी के मध्य में दिल्ली नगर की नींव डाली थी।
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*तोमरों में अग्रणी राजा अनंगपाल ने 11वीं शताब्दी के मध्य में [[दिल्ली]] नगर की नींव डाली थी।
*प्रसिद्ध 'लौहस्तम्भ', जिस पर चन्द्र नामक अपरिचित राजा की प्रशस्ति अंकित है, 1052 ई. में अनंगपाल द्वारा हटाकर वर्तमान स्थान पर लाया गया था।
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*प्रसिद्ध 'लौहस्तम्भ', जिस पर 'चन्द्र' नामक अपरिचित राजा की प्रशस्ति अंकित है, 1052 ई. में अनंगपाल द्वारा हटाकर वर्तमान स्थान पर लाया गया था।
*अनंगपाल द्वारा यह लोहस्तम्भ बाद में मन्दिरों के बीच में खड़ा कर दिया गया।
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*राजा अनंगपाल द्वारा यह लोहस्तम्भ बाद में मन्दिरों के बीच में खड़ा कर दिया गया था। [[मुस्लिम]] विजेताओं ने इन मन्दिरों को बाद में नष्ट-भ्रष्ट कर डाला।
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==संबंधित लेख==
 
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13:22, 5 जून 2012 के समय का अवतरण

तोमर राजपूतों की एक प्रमुख शाखा है, जिसका भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। तोमर राजाओं में राजा अनंगपाल ने इतिहास में काफ़ी प्रसिद्धि प्राप्त की है। कुछ विद्वानों का यह भी कथन है कि प्रतिहारों और चौहानों की भाँति ही तोमर भी विदेशी थे, जिन्होंने बाद में भारत के कुछ इलाकों को जीतकर अपना राज्य स्थापित किया था।

  • तोमर लोग 11वीं शताब्दी में वर्तमान दिल्ली क्षेत्र के शासक हुआ करते थे।
  • तोमरों में अग्रणी राजा अनंगपाल ने 11वीं शताब्दी के मध्य में दिल्ली नगर की नींव डाली थी।
  • प्रसिद्ध 'लौहस्तम्भ', जिस पर 'चन्द्र' नामक अपरिचित राजा की प्रशस्ति अंकित है, 1052 ई. में अनंगपाल द्वारा हटाकर वर्तमान स्थान पर लाया गया था।
  • राजा अनंगपाल द्वारा यह लोहस्तम्भ बाद में मन्दिरों के बीच में खड़ा कर दिया गया था। मुस्लिम विजेताओं ने इन मन्दिरों को बाद में नष्ट-भ्रष्ट कर डाला।
  • मन्दिरों से प्राप्त इन सामग्री का उपयोग एक मस्जिद और कुतुबमीनार के निर्माण में किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 192 |


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