"युद्ध सन्धियाँ": अवतरणों में अंतर

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*[[पूना की सन्धि]] - 1817 ई.  
*[[पूना की सन्धि]] - 1817 ई.  
*[[बड़गाँव की सन्धि]] - 1779 ई.
*[[बड़गाँव की सन्धि]] - 1779 ई.
*[[बनारस की सन्धि]] - भारतीय इतिहास में [[बनारस]] की दो सन्धियाँ हुई हैं-
*[[बनारस की सन्धि प्रथम]] - 1773 ई.
#प्रथम सन्धि - 1773 ई.
*[[बनारस की सन्धि द्वितीय]] - 1776 ई.  
#द्वितीय सन्धि - 1776 ई.  
*[[बसई की सन्धि]] - 31 दिसम्बर, 1802 ई.
*[[बसई की सन्धि]] - 31 दिसम्बर, 1802 ई.
*[[सालबाई की सन्धि]] - 1782 ई.
*[[सालबाई की सन्धि]] - 1782 ई.
*[[सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि]] - 1803 ई.
*[[सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि]] - 1803 ई.


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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07:38, 8 जुलाई 2011 का अवतरण

भारतीय इतिहाक में समय-समय पर कई युद्ध सन्धियाँ हुई हैं। इन सन्धियों के द्वारा भारत की राजनीति ने न जाने कितनी ही बार एक अलग ही दिशा प्राप्त की। भारतीय रियासतों में आपस में कई युद्ध लड़े गए। देशी रियासतों की आपसी फूट भी इस हद तक बढ़ चुकी थी, कि अंग्रेज़ों ने उसका पूरा लाभ उठाया। राजपूतों, मराठों और मुसलमानों में भी कई सन्धियाँ हुईं। भारत के इतिहास में अधिकांश सन्धियों का लक्ष्य सिर्फ़ एक ही था, दिल्ली सल्तनत पर हुकूमत। अंग्रेज़ों ने ही अपनी सूझबूझ और चालाकी व कूटनीति से दिल्ली की हुकूमत प्राप्त की थी। हालाँकि उन्हें भारत में अपने पाँव जमाने के लिए काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा था, फिर भी उन्होंने भारतियों की आपसी फूट का लाभ उठाते हुए इसे एक लम्बे समय तक ग़ुलाम बनाये रखा था। भारतीय इतिहास में हुई कुछ प्रमुख सन्धियों का विवरण इस प्रकार से है-

प्रमुख ऐतिहासिक सन्धियाँ


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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