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कठों का नाम [[पाणिनी]] के '[[अष्टाध्यायी]]' में मिलता है। एक [[मुनि]] विशेष का भी नाम '''कठ''' था। यह [[वेद]] की 'कठ' शाखा के प्रवर्तक थे। [[पतंजलि]] के '[[महाभाष्य]]' के मत से कठ वैशंपायन के शिष्य थे। इनकी प्रवर्तित शाखा 'काठक' नाम से भी प्रसिद्ध है। आजकल इस शाखा की 'वेदसंहिता' प्राप्त नहीं होती। काठक शाखाध्यायी भी 'कठ' कहलाते हैं। इनसे '[[सामवेद]]' के 'कालाप' और 'कौथुम' शाखीय लोगों का मिश्रण हुआ।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%A0|title=कठ|accessmonthday=12 फ़रवरी|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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कठों का नाम [[पाणिनी]] के '[[अष्टाध्यायी]]' में मिलता है। एक [[मुनि]] विशेष का भी नाम '''कठ''' था। यह [[वेद]] की 'कठ' शाखा के प्रवर्तक थे। [[पतंजलि]] के '[[महाभाष्य]]' के मत से कठ [[वैशंपायन]] के शिष्य थे। इनकी प्रवर्तित शाखा 'काठक' नाम से भी प्रसिद्ध है। आजकल इस शाखा की 'वेदसंहिता' प्राप्त नहीं होती। काठक शाखाध्यायी भी 'कठ' कहलाते हैं। इनसे '[[सामवेद]]' के 'कालाप' और 'कौथुम' शाखीय लोगों का मिश्रण हुआ।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%A0|title=कठ|accessmonthday=12 फ़रवरी|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
  
*'[[वाल्मीकि रामायण]]' में एक स्थान पर 'कठकालाप' शब्द प्रयुक्त है।<ref>(ये चेम कठकालापा बहवो दण्डमानवा:, अयो. 32।18)</ref> [[कठोपनिषद]] से भी इनका संबध है। यह कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अंतर्गत आता है।
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*'[[वाल्मीकि रामायण]]' में एक स्थान पर 'कठकालाप' शब्द प्रयुक्त है।<ref>(ये चेम कठकालापा बहवो दण्डमानवा:, अयो. 32।18)</ref> [[कठोपनिषद]] से भी इनका संबध है। यह [[यजुर्वेद|कृष्ण यजुर्वेद]] की कठ शाखा के अंतर्गत आता है।
 
*[[सिकंदर]] के विजय अभियान के इतिहासकारों ने भी कठों का 'कथोई' नाम से उल्लेख किया है।
 
*[[सिकंदर]] के विजय अभियान के इतिहासकारों ने भी कठों का 'कथोई' नाम से उल्लेख किया है।
 
*कठ जाति के लोग [[इरावती नदी]] (रावी) के पूर्वी भाग में बसे हुए थे, जिसे आजकल [[पंजाब]] में 'माझा' कहा जाता है।
 
*कठ जाति के लोग [[इरावती नदी]] (रावी) के पूर्वी भाग में बसे हुए थे, जिसे आजकल [[पंजाब]] में 'माझा' कहा जाता है।
*सिकंदर के आने पर कठों ने अपनी राजधानी 'संगल' (अथवा साँकल) के चारों ओर रथों के तीन चक्कर लगाकर शकटव्यूह का निर्माण किया और [[यूनानी]] आक्रमणकारी से डटकर लोहा लिया। पीछे से [[पुरु]] की कुमक प्राप्त होने पर ही विदेशी साँकल पर अधिकार कर सके। इस युद्ध में कठों का विनाश हुआ, किंतु इस अवसर पर सिंकंदर इतना खीझ उठा कि साँकल को जीतने के बाद उसने उसे [[मिट्टी]] में मिला दिया।
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*[[सिकंदर]] के आने पर कठों ने अपनी राजधानी 'संगल' (अथवा साँकल) के चारों ओर रथों के तीन चक्कर लगाकर शकटव्यूह का निर्माण किया और [[यूनानी]] आक्रमणकारी से डटकर लोहा लिया। पीछे से [[पुरु]] की कुमक प्राप्त होने पर ही विदेशी साँकल पर अधिकार कर सके। इस युद्ध में कठों का विनाश हुआ, किंतु इस अवसर पर सिंकंदर इतना खीझ उठा कि साँकल को जीतने के बाद उसने उसे [[मिट्टी]] में मिला दिया।
 
*कठों के संघ का प्रत्येक बच्चा संघ माना जाता था। संघ की ओर से वहाँ गृहस्थों की संतान के निरीक्षक नियत हाते थे।
 
*कठों के संघ का प्रत्येक बच्चा संघ माना जाता था। संघ की ओर से वहाँ गृहस्थों की संतान के निरीक्षक नियत हाते थे।
*कठ सुंदरता के विकट रूप से पोषक थे। इनकी चर्चा करते हुए ग्रीक इतिहासकारों ने लिखा है कि इस दृष्टि से कट स्पार्त नगर के निवासियों से बहुत मिलते थे। एक महीने की अवस्था के भीतर वे जिस बच्चे को दुर्बल अथवा कुरूप पाते उसे मरवा डालते थे। युद्ध कौशल में उनकी ख्याति सभी जातियों में अधिक थी। ओनेसिक्रितोज़ के अनुसार जाति में सर्वांगसुंदर व्यक्ति को ही राजा बनाया जाता था।
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*कठ सुंदरता के विकट रूप से पोषक थे। इनकी चर्चा करते हुए ग्रीक इतिहासकारों ने लिखा है कि इस दृष्टि से कट स्पार्त नगर के निवासियों से बहुत मिलते थे। एक [[महीने]] की अवस्था के भीतर वे जिस बच्चे को दुर्बल अथवा कुरूप पाते उसे मरवा डालते थे। युद्ध कौशल में उनकी ख्याति सभी जातियों में अधिक थी। ओनेसिक्रितोज़ के अनुसार जाति में सर्वांगसुंदर व्यक्ति को ही राजा बनाया जाता था।
  
 
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14:34, 27 मार्च 2015 का अवतरण

कठों का नाम पाणिनी के 'अष्टाध्यायी' में मिलता है। एक मुनि विशेष का भी नाम कठ था। यह वेद की 'कठ' शाखा के प्रवर्तक थे। पतंजलि के 'महाभाष्य' के मत से कठ वैशंपायन के शिष्य थे। इनकी प्रवर्तित शाखा 'काठक' नाम से भी प्रसिद्ध है। आजकल इस शाखा की 'वेदसंहिता' प्राप्त नहीं होती। काठक शाखाध्यायी भी 'कठ' कहलाते हैं। इनसे 'सामवेद' के 'कालाप' और 'कौथुम' शाखीय लोगों का मिश्रण हुआ।[1]

  • 'वाल्मीकि रामायण' में एक स्थान पर 'कठकालाप' शब्द प्रयुक्त है।[2] कठोपनिषद से भी इनका संबध है। यह कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अंतर्गत आता है।
  • सिकंदर के विजय अभियान के इतिहासकारों ने भी कठों का 'कथोई' नाम से उल्लेख किया है।
  • कठ जाति के लोग इरावती नदी (रावी) के पूर्वी भाग में बसे हुए थे, जिसे आजकल पंजाब में 'माझा' कहा जाता है।
  • सिकंदर के आने पर कठों ने अपनी राजधानी 'संगल' (अथवा साँकल) के चारों ओर रथों के तीन चक्कर लगाकर शकटव्यूह का निर्माण किया और यूनानी आक्रमणकारी से डटकर लोहा लिया। पीछे से पुरु की कुमक प्राप्त होने पर ही विदेशी साँकल पर अधिकार कर सके। इस युद्ध में कठों का विनाश हुआ, किंतु इस अवसर पर सिंकंदर इतना खीझ उठा कि साँकल को जीतने के बाद उसने उसे मिट्टी में मिला दिया।
  • कठों के संघ का प्रत्येक बच्चा संघ माना जाता था। संघ की ओर से वहाँ गृहस्थों की संतान के निरीक्षक नियत हाते थे।
  • कठ सुंदरता के विकट रूप से पोषक थे। इनकी चर्चा करते हुए ग्रीक इतिहासकारों ने लिखा है कि इस दृष्टि से कट स्पार्त नगर के निवासियों से बहुत मिलते थे। एक महीने की अवस्था के भीतर वे जिस बच्चे को दुर्बल अथवा कुरूप पाते उसे मरवा डालते थे। युद्ध कौशल में उनकी ख्याति सभी जातियों में अधिक थी। ओनेसिक्रितोज़ के अनुसार जाति में सर्वांगसुंदर व्यक्ति को ही राजा बनाया जाता था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कठ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 फ़रवरी, 2014।
  2. (ये चेम कठकालापा बहवो दण्डमानवा:, अयो. 32।18)

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