अर्हत
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अर्हत बौद्ध धर्म में ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है, जिसने अस्तित्व की यथार्थ प्रकृति का अंतर्ज्ञान प्राप्त कर लिया हो और जिसे निर्वाण[1] की प्राप्त हो चुकी हो।
- पालि में अर्हत को 'अरहंत' कहा जाता है, जिसका अर्थ है- "जो योग्य या पूजनीय है"।
- स्वयं को इच्छाओं के बंधन से मुक्त कर चुके अर्हत का पुनर्जन्म नहीं होता है।
- थेरवाद परंपरा में अर्हत की स्थिति को किसी बौद्ध मतावलंबी के लिए अंतिम लक्ष्य माना गया है।
- एक पुरुष या महिला असाधारण परिस्थितयों को छोड़कर सिर्फ़ मठ में रहकर ही अर्हत बन सकता या सकती है।
- महायान बौद्ध मत में अर्हत के आदर्श की आलोचना की गई है, क्योंकि उनके अनुसार बोधिसत्व संपूर्णता का कहीं अधिक ऊंचा लक्ष्य है और ज्ञान प्राप्ति की क्षमता रखने के बावजूद बोधिसत्व पुनर्जन्म के चक्र में बने रहने की प्रतिज्ञा करता है, ताकि वह अन्य लोगों पर उपकार कर सके। यह मतभिन्नता 'थेरवाद' और 'महायान' परंपरा के आधारभूत मतांतरों में से एक है।[2]
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