कच्चान

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कच्चान बुद्ध भगवान के एक परम ऋद्धिमान्‌ शिष्य, जिनकी प्रशंसा में कहा गया है : ये आयुष्मान्‌ महाकात्यायन, बुद्ध द्वारा प्रशंसित, सब्रह्मचारियों द्वारा प्रशंसित और शास्ता द्वारा संक्षेप में कहे हुए उपदेश का विस्तार से अर्थविभाग करने में समर्थ हैं।[1]

रचनाएँ

19वीं सदी में ब्रह्मदेश में लिखे गए 'गंधवंसो' के अनुसार महाकच्चान की छह रचनाएँ हैं-

  1. कच्चायन गंधो
  2. महानिरुत्ति गंधो
  3. चुल्लनिरुत्ति गंधो
  4. नेत्ति गंधो
  5. पेटकोपदेस गंधो
  6. वण्णनेत्ति गंधो।

किंतु न तो इन ग्रंथों के कर्ता बुद्ध के समकालीन उक्त महाकात्यायन हैं, और न वे सब किसी एक ही ग्रंथकार की रचनाएँ हैं। नेत्ति गंध या नीति प्रकरण अनुमानत: प्रथम शती के आसपास की रचना है और उसमें बुद्ध के उपदेशों का वर्गीकरण, पाठों के शास्त्रीय नियम, मंतव्यों की नाना दृष्टियों से सूचियाँ तथा शब्दों की व्याख्या एवं तात्पर्य का निर्णय उपस्थित करने का प्रयत्न किया गया है। इस ग्रंथ पर पाँचवीं सदी में धम्मपाल द्वारा 'नेत्तिप्रकरणअत्थसंवण्णा' नामक अट्ठकथा लिखी गई। पेटकोपदेस में नेत्तिप्रकरण के विषय को कुछ भिन्न रीति से बुद्ध शासन के चार आर्यसत्यों के अनुसार व्यवस्थित किया गया है। इसके कर्ता कच्चान या महाकच्चान पृथक् ही प्रतीत होते हैं। वण्णनेत्ति ग्रंथ की कोई विशेष प्रसिद्धि नहीं है। शेष तीन रचनाएँ व्याकरण विषयक हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ

कच्चान व्याकरण पालि भाषा का प्राचीनतम उपलब्ध व्याकरण है, जिसमें कुल 675 सूत्र हैं। इसकी रचना में संस्कृत के कातंत्र व्याकरण तथा अष्टायायी एवं उसकी काशिकावृत्ति का अनुसरण पाया जाता है। अत: इसका रचनाकाल सातवीं सदी से पूर्व नहीं हो सकता। इस पर विमल बुद्धि द्वारा मुखमत्तदीपनी नामक टीका तथा न्यास 11वीं सदी में रचा गया और उसपर छप्पद आचार्य ने 12वीं सदी में न्यासप्रदीप नामक टीका लिखी। छप्पद की कच्चान व्याकरण पर अलग से भी सुत्तनिद्देस नामक एक टीका है। तत्पश्चात्‌ इस व्याकरण पर स्थविर संघरक्षितकृत संबंधचिंता, संद्धमासिरीकृत सद्दत्‌थ-भेद-चिंता, बुद्धिप्रिय दीपंकरकृत रूपसिद्धि, धर्मकीर्तिकृत बालावतार व्याकरण, नागित्तकृत सद्दतथजालिनी, महायासकृत कच्चानयनभेद और कच्चायनसार, क्यच्वाकृत सद्दबिंदु तथा बालप्पबोधन, अभिनव चुल्लनिरुत्ति, कच्चायनवंदना और धातुमंजूषा नामक टीकाएँ भिन्न-भिन्न कर्ताओं द्वारा क्रमश: 17वीं-18वीं सदी तक रची गईं, और उन पर भी अनेक ग्रंथ टीका टिप्पणी के रूप में लिखे गए। इससे कच्चान व्याकरण के महत्व एवं प्रचार का पता चलता है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (म.नि.-मधु पिं. सुत्त)
  2. कच्चान (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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