वैरोचन

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वैरोचन को 'महावैरोचन' भी कहा जाता है। पूर्वी एशिया, तिब्बत, नेपाल और जावा के कई महायान बौद्ध मतावलंबियों द्रारा मान्य यह सर्वोच्च बुद्ध है। वैरोचन संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'प्रबोधक'।

विभिन्न नाम

कुछ बौद्ध मतावलंबी वैरोचन या महावैरोचन को पाँच स्वयंभू ध्यानी बुद्धों से अलग मानते हैं, जिनमें से एक को 'वैरोचन' के नाम से भी जाना जाता है। जापान के शिंगन मत में वह पूजा के प्रमुख केंद्र हैं तथा उन्हें समूचे ब्रह्माण्ड का स्रोत माना जाता है। जापानी भाषा में इसे 'दाइनिचि न्योराई' (महान सूर्यबुद्ध) या 'रोशाना'; चीनी भाषा में 'फी लु चना'; तिब्बती भाषा में 'नम्पर नङ ज़द्' या 'नम् नङ' (प्रदीप्त प्रकाश के जनक) कहा जाता है।

आदि बुद्ध का पूर्वरूप

स्वयंभू बुद्धों में से एक के रूप में प्रस्तुत किए जाने पर, जैसे वह नेपाली, तिब्बती और जावा कलाकृतियों में है, वैरोचन मुख्य स्थान ग्रहण करते हैं तथा उन्हें अन्य चार ध्यानी बुद्धों अथवा स्वयं आदि बुद्ध का पूर्वरूप माना जाता है। चित्रों में वैरोचन को सफ़ेद रंग में तथा उनके हाथों को धर्मचक्र मुद्रा में दिखाया जाता है। उनकी सहगामिनी वज्रधात्विश्वरी या तारा, उनका परिवार मोह, उनका वाहन ड्रैगन, उनका प्रतीक चक्र, उनका स्कंद (व्यक्तित्व का अंग) रूप उनके शब्द अ या ओम, उनका तत्व आकाश उनका ज्ञान श्रवण, उनकी इंद्रिय कान तथा उनका स्थान मानव शरीर के मस्तक में है। चीन तथा जापान में वैरोचन को योगाचार विचारधारा (जिसने शिंगन मत की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया) के बौद्धों द्वारा पूजा जाता है। किंवदंती है कि वह एक पराभौतिक व्यक्तित्व वज्रसत्व, योग सिद्धंत में परिवर्तित हो गए, जो उसके बाद चीन में 719 ई. में वज्रबोधि द्रारा और जापान में कुकेई (कोबो दाईशि; 774-835) प्रस्तुत किया गया।

जापान में पूजनीय

जापान में उन्हें प्रमुख तौर पर पूजा जाता है। वहाँ उन्हें भयंकर 'फुदो मियो' (चीनी शब्द, फु युङ फो; संस्कृत शब्द, अचल के रूप में पूजा जाता है, जिनका काम बुराई सें लड़ना और मृत्यु के बाद मृतात्मा का उत्तरदायित्व संभालना है। वैरोचन को जापानी चित्रों तथा मूतियों में अक्सर चित्रित किया जाता है। इनमें तोदाई जी, नारा में स्थित 16 मीटर ऊँची बैठी हुई मुद्रा में निर्मित कांस्य प्रतिमा रोशाना है, जिसे 752 ई. में स्थापित किया गया था। लेकिन बाद की शताब्दियों में इसका पुनरुद्धार हुआ। सर्वोच्च बुद्ध के रूप में उनकी विशेष मुद्रा छ: तत्वों की मुद्रा है, जिसमें वह बाएं हाथ की उगंली को दाएं हाथ की पांच उंगलियों से पकडे हुए हैं, जो भौतिक संसार के पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश) को आध्यात्मिक तत्व (चेतना) के साथ एकीकृत करने का प्रतीक है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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