मंजुश्री
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
मंजुश्री महायान बौद्ध धर्म में सर्वोच्च बुद्धिमता के प्रतीक बोधिसत्व[1] का मानवीकरण। संस्कृत में इनके नाम का अर्थ है- 'सौम्य' या 'मधुर महिमा'। वह मंजुघोष[2] और वागीश्वर[3] के रूप में भी जाने जाते हैं। चीन में वह 'वेन-शु-शिह-ली', जापान में 'मोंजु' और तिब्बत में 'जाम-द्पाल' कहलाते हैं।
- मंजुश्री के सम्मान में 250 ई. तक सूत्र[4] रचे जा चुके थे, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्ध कला में 400 ई. तक उनका चित्रण नहीं हुआ। उन्हें आमतौर पर राजकुमारों जैसे आभूषण पहने, अज्ञान के बादलों को चीरने के लिए दाएं हाथ में बुद्धिमता की तलवार उठाए और बाएं हाथ में प्रज्ञापारमिता की ताड़पत्र की पांडुलिपि लिए दिखाया गया है।
- कहीं-कहीं मंजुश्री को शेर या नील कमल पर बैठे भी दर्शाया गया है। चित्रों में उनकी त्वचा सामान्यत: पीले रंग की है।
- उनका संप्रदाय चीन में आठवीं सदी में व्यापक रूप से फैला और शांसी प्रांत में उनको समर्पित 'वू-ताइ पर्वत' उनके मंदिरों से भरा हुआ है।
- सामान्यत: मंजुश्री को दिव्य बोधिसत्व माना जाता है, लेकिन कुछ किंवदंतियों में उनका मानवीय इतिहास भी है।
- कहा जाता है कि वह अपने को कई तरह से अभिव्यक्त करते हैं- स्वप्नों में, अपने पवित्र पर्वत पर तीर्थयात्री के रूप में, भिक्षु वैरोचन के अवतार के रूप में, जिन्होंने खोतान में बौद्ध धर्म की शुरुआत की थी, तिब्बती सुधारक अतिशा के रूप में, और चीन के सम्राट के रूप में।[5]
|
|
|
|
|