"लेप्चा": अवतरणों में अंतर
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लेप्चा एक प्रजाति है और इस प्रजाति के लोगों को रोंग भी कहा जाता हैं। पूर्वी [[नेपाल]], पश्चिमी [[भूटान]], [[सिक्किम]] राज्य और [[भारत]] के [[पश्चिम बंगाल]] राज्य के | लेप्चा एक प्रजाति है और इस प्रजाति के लोगों को रोंग भी कहा जाता हैं। पूर्वी [[नेपाल]], पश्चिमी [[भूटान]], [[सिक्किम]] राज्य और [[भारत]] के [[पश्चिम बंगाल]] राज्य के दार्जिलिंग ज़िला के निवासियों को लेप्चा कहा जाता है। लेप्चा लोगों की कुल जनसंख्या 46 हज़ार है जिसमें सिक्किम में 25 हज़ार, भूटान में 10 हज़ार और शेष भारत में 11 हज़ार है। | ||
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11:09, 3 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

लेप्चा एक प्रजाति है और इस प्रजाति के लोगों को रोंग भी कहा जाता हैं। पूर्वी नेपाल, पश्चिमी भूटान, सिक्किम राज्य और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दार्जिलिंग ज़िला के निवासियों को लेप्चा कहा जाता है। लेप्चा लोगों की कुल जनसंख्या 46 हज़ार है जिसमें सिक्किम में 25 हज़ार, भूटान में 10 हज़ार और शेष भारत में 11 हज़ार है।
इतिहास
लेप्चा प्रजाति के लोग सिक्किम के सबसे पुराने निवासी माने जाते हैं, लेप्चा प्रजाति के लोग ने 14वीं शताब्दी के तिब्बत से सिक्किम आए भूटिया लोगों की संस्कृति के कई तत्त्वों को अपना लिया है। भूटिया लोग मुख्यत: ऊँचे पहाड़ों के पशुपालक होते थे, लेप्चा लोग सामान्यत: दूरस्थ घाटियों में रहते थे। जहाँ इन दोनों समूहों के बीच कुछ अंतर्विवाह हुए हैं, वहीं वे अलग रहने व अपनी भाषाएँ बोलेने का प्रयास करते थे, जो तिब्बती भाषा की बोलियाँ हैं।
लेप्चा समूह का नेपाली हिन्दू अधिवासियों से कोई संबंध नहीं था, लेप्चा 18वीं शताब्दी में सिक्किम आए और 20वीं शताब्दी के अंत में जनसंख्या का दो-तिहाई भाग हो गए थे। लेप्चा लोग मुख्यत: एक ही विवाह करते थे, हालांकि एक विवाहित पुरुष अपने छोटे अविवाहित भाई को अपने साथ रहने और अपने खेत और पत्नी की साझीदारी हेतु निमंत्रित कर सकता था। कभी-कभी लेप्चा पुरुष की एक या अधिक पत्नियाँ भी हो सकती थी। लेप्चा अपना मूल पितृवंश के आधार पर मानते थे और उनके बड़े पितृसत्तात्मक वंश होते थे।
मान्यता
लेप्चा लोग भूटिया द्वारा तिब्बती बौद्ध धर्म में परिवर्वित किए गए थे, लेकिन अब भी लेप्चा लोग आत्माओं के कुलों व उनके ओझाओं की अपनी पुरानी मान्यता को मानते थे, जो लोगों के रोगों का उपचार करती थी। देवताओं से मध्यस्थता करती हैं और जन्म, विवाह तथा मृत्यु के समय की जाने वाली रस्मों में प्रधान होती है। परंपरागत रूप से शिकारी और भोजन संग्राहक लेप्चा अब कृषि व पशुपालन में भी संलग्न हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख