रामस्वरूप चतुर्वेदी
रामस्वरूप चतुर्वेदी
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पूरा नाम | रामस्वरूप चतुर्वेदी |
जन्म | 6 मई, 1931 |
जन्म भूमि | कानपुर, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 24 जुलाई, 2003 |
पति/पत्नी | सुषमा |
संतान | तीन पुत्र |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | 'हिन्दी साहित्य की अधुनातन प्रवृत्तियां', 'मध्यकालीन हिन्दी काव्यभाषा', 'सर्जन और भाषिक संरचना', 'शरत के नारी पात्र', 'नई कविता : एक साक्ष्य' आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | साधना सम्मान, 1996 |
प्रसिद्धि | समीक्षक तथा आलोचक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | रामस्वरूप चतुर्वेदी के अनुसार रचना ही एक मात्र आलोचना का प्रतिमान हो सकती है। बने बनाए प्रतिमानों के आधार पर रचना का समुचित मूल्यांकन संभव नहीं है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
रामस्वरूप चतुर्वेदी (अंग्रेज़ी: Ramswaroop Chaturvedi, जन्म- 6 मई, 1931; मृत्यु- 24 जुलाई, 2003) हिन्दी साहित्य के उन समीक्षकों तथा आलोचकों में से थे, जो मुख्यतः भाषा की सृजनात्मकता को केन्द्र में रखकर समीक्षा कर्म में प्रवृत्त हुए थे। उनके आरंभिक समीक्षापरक निबंध 1950 में प्रकाशित हुए। लेखन के क्षेत्र में उनकी विशेष रुचि आलोचना के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों रूपों में तथा भाषाशास्त्र एवं विचारों के साहित्य में रही है इन विषयों से संबंधित अनेक पुस्तकों की रचना रामस्वरूप चतुर्वेदी ने की थी।
परिचय
रामस्वरूप चतुर्वेदी का जन्म 6 मई, 1931 को हुआ था। उन्होंने आगरा, उत्तर प्रदेश से 1946 में हाईस्कूल किया। कानपुर के क्राइस्ट चर्च कॉलेज से बी.ए. की डिग्री ली और 1950 में इलाहाबाद चले गये। सन 1954 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुए और प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। सन 1955 में सुषमा के साथ उनका विवाह हुआ। उनके तीन बेटे विनीत, विनय और विवेक हैं।
आलोचक
स्वतंत्रता के बाद हिन्दी काव्यालोचन में रामस्वरूप चतुर्वेदी की भूमिका प्रतिनिध आलोचक के रूप में रही है। उनकी आलोचना में विफलता वैविध्य और कर्म कौशल तीनों चरितार्थ हुए हैं। रामस्वरूप चतुर्वेदी के लिए स्वाधीनता एक ऐसा मूल्य रहा है कि जिसे उन्होंने हर कीमत पर चाहे वह मध्यकालीन काव्य संवदेना हो या आधुनिक काव्य संवदेना जिसका परिणाम यह हुआ कि उनकी आलोचना न केवल सार्वजनिक है बल्कि गहरे अर्थ में समाजिक सांस्कृतिक समीक्षा भी है। उनकी यही समीक्षा दृष्टि भक्ति काल के विकास को कुछ यों रेखांकित करती है।[1]
"भक्ति काव्य हिन्दी समाज की उदारतम चेतना का दस्तावेज है। कबीर, जायसी, सूर, तुलसी, मीरा, इस युग के श्रेष्ठ कवि हैं। यह मान्यता सर्वस्वीकृत है। इसका निहितार्थ है कि यहाँ हिन्दू, मुसलमान, ब्राह्मण, दलित, पुरुष, स्त्री समाज के सभी वर्गों का साझा रचना कर्म है। भले वे वर्ग समान्य तौर पर समाज में अपना अलगाव बनाये रखते हैं। यों हिन्दी जीवन की व्यापक समरसता का अन्यतम प्रमाण है। हिन्दी भक्ति काव्य फिलहाल भक्ति के आवरण में सब समान थे। जबकि समाज में जाति, लिंग, धर्म, प्रदेश, देश के आधार पर आज भी भेद किए जा रहे हैं। यानी भक्ति काल की श्रेष्ठता को कालावादी एवं प्रगतिवादी दोनों स्वीकार करते हैं। इस अंतर को भासिक संवेदना के धरातल पर ही समझा जा सकता है।" वास्तव में रामस्वरूप चतुर्वेदी ने अपनी आलोचना में सामाजिक सांस्कृतिक लेखन को महत्ता प्रदान की है। इस तरह के लेखन को वे बड़ा रचना कर्म मानते थे।
रामस्वरूप चतुर्वेदी के अनुसार रचना ही एक मात्र आलोचना का प्रतिमान हो सकती है। बने बनाए प्रतिमानों के आधार पर रचना का समुचित मूल्यांकन संभव नहीं है। वे लिखते हैं, "किसी भी रचना के लिए कोई भी पूर्वनिर्धारित मानदंड नहीं होना चाहिए। हृदय जब मुक्तावस्था में होगा, रचना भी मुक्त होगी, तो आलोचना जो अपेक्षाकृत बहुत बाद में विकसित हुई, वृद्धावस्था में नहीं रह सकती।[2]
प्रकाशित पुस्तकें
रामस्वरूप चतुर्वेदी की छोटी-बड़ी लगभग सत्ताईस आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें ‘हिन्दी नवलेखन’, ‘भाषा और संवेदना’, ‘अज्ञेय और आधुनिक रचना की समस्या’, ‘हिन्दी साहित्य की अधुनातन प्रवृत्तियां’, ‘कामायनी का पुनर्मूल्यांकन’, ‘मध्यकालीन हिन्दी काव्यभाषा’, ‘कविता यात्रा : रत्नाकर से अज्ञेय तक’, ‘सर्जन और भाषिक संरचना’, ‘इतिहास और आलोचक-दृष्टि’, ‘हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास’, ‘काव्यभाषा पर तीन निबंध’, ‘प्रसाद, निराला अज्ञेय’, ‘कविता का पक्ष’, ‘भाषा, संवेदना और सर्जन’, ‘हिन्दी गद्य : विन्यास और विकास’, ‘आधुनिक कविता यात्रा’, ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल : आलोचना का अर्थ और अर्थ की आलोचना’, ‘भक्तिकाव्य यात्रा’, ‘हिन्दी काव्य-संवेदना का विकास’, ‘आलोचकथा’ ‘शरत् के नारी पात्र’, ‘नई कविता : एक साक्ष्य’ आदि प्रमुख हैं।[2]
दूधनाथ सिंह के अनुसार, "वे आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद दूसरे आलोचक हैं जिन्होंने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने की कठिन चुनौती स्वीकार की और ‘हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास’ लिखकर दिखा दिया। इस इतिहास में आधुनिक काल पर अधिक बल है, जिसके वे मास्टर आलोचक हैं। उन्होंने आधुनिक काल को ही अपनी आलोचना के लिए चुना और उसमें भी आश्चर्यजनक रूप से कविता को"।
सम्मान व पुरस्कार
- साधना सम्मान, 1996
- व्यास सम्मान, 1996 ('हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास' हेतु)
मृत्यु
रामस्वरूप चतुर्वेदी जी का निधन 24 जुलाई, 2003 को हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी की हिन्दी आलोचना में मानसिक संवेदना (हिंदी) ignited.in। अभिगमन तिथि: 13 सितम्बर, 2021।
- ↑ 2.0 2.1 रामस्वरूप चतुर्वेदी, भाषिक संरचना के विरल व्याख्याता (हिंदी) desharyana.in। अभिगमन तिथि: 13 सितम्बर, 2021।
बाहरी कड़ियाँ
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