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मयूर भट्ट मंगल काव्य के सबसे प्रथम लेखक हैं। मयूर भट्ट का समय ईसा की सप्तम शताब्दी के मध्य के आसपास माना जाता है। मयूर भट्ट [[काशी]] के पूर्ववर्ती प्रदेश के रहनेवाले थे। गोरखपुर ज़िले के कुछ प्रतिष्ठित [[ब्राह्मण]] अपने को मयूर भट्ट का वंशज बताते हैं। तान्त्रिक [[बौद्ध धर्म]] के अवसान ने [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] तथा [[उड़ीसा]] के [[हिन्दू धर्म]] पर पर्याप्त प्रभाव डाला। बौद्ध त्रिरत्न [[बुद्ध]], [[धर्म]] एवं संध से एक नये हिन्दू [[देवता]] की कल्पना हुई, जिसका नाम धर्म पड़ा। धर्म ठाकुर की भक्ति दूर-दूर तक फैली। इस नये देवता सम्बन्धी एक महत्त्वपूर्ण साहित्य की उत्पत्ति प्रारम्भिक [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] में हुई। इस सम्प्रदाय से सम्बन्धित 'शून्य पुराण'<ref>रामाई पंडित कृत-11वीं शताब्दी</ref> एवं लाउसेन नामक मैन (बंगाल) के राजा के नाम आता है, जिसने धर्म की पूजा की और जिसके वीरतापूर्ण कार्यों की प्रसिद्धि-गाथा प्रारम्भ हुई। इन कथाओं के आधार पर 'धर्ममंगल' आदि नामों से बंगला की मंगल काव्य माला का प्रारम्भ हुआ, जो 12वीं शताब्दी से लिखी जाने लगी। मंगल काव्य के सबसे प्रथम लेखक मयूर भट्ट माने जाते हैं।<ref>{{cite book | last =पाण्डेय | first =डॉ. राजबली | title =हिन्दू धर्मकोश | edition = | publisher =उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय | language =[[हिन्दी]] | pages =497 | chapter = }}</ref> | |||
मयूर भट्ट् दक्षिण पंचवटी वासी थे। वे [[उत्तर प्रदेश]] आये और तपोभूमि गोरखपुर में ककरियाकीट में बसे। यह स्थान सरयूतट पर है और आज भी विख्यात है। मयूर भट्ट की संतानें क्षत्रियों तथा ब्राह्यणों में विद्यमान हैं। प्यासी के मिश्र और मझोली के मिश्र तथा विशेन वंश इन तीनों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई। पयासी के मिश्र ही ब्रह्य वर्ग में मझोली के मिश्र कहलाते हैं।<ref>{{cite web |url=http://pbbsup.org/history.html |title=मयूर भट्ट |accessmonthday=[[23 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=पी बी बी एस |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | |||
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12:56, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
मयूर भट्ट मंगल काव्य के सबसे प्रथम लेखक हैं। मयूर भट्ट का समय ईसा की सप्तम शताब्दी के मध्य के आसपास माना जाता है। मयूर भट्ट काशी के पूर्ववर्ती प्रदेश के रहनेवाले थे। गोरखपुर ज़िले के कुछ प्रतिष्ठित ब्राह्मण अपने को मयूर भट्ट का वंशज बताते हैं। तान्त्रिक बौद्ध धर्म के अवसान ने बंगाल तथा उड़ीसा के हिन्दू धर्म पर पर्याप्त प्रभाव डाला। बौद्ध त्रिरत्न बुद्ध, धर्म एवं संध से एक नये हिन्दू देवता की कल्पना हुई, जिसका नाम धर्म पड़ा। धर्म ठाकुर की भक्ति दूर-दूर तक फैली। इस नये देवता सम्बन्धी एक महत्त्वपूर्ण साहित्य की उत्पत्ति प्रारम्भिक बांग्ला में हुई। इस सम्प्रदाय से सम्बन्धित 'शून्य पुराण'[1] एवं लाउसेन नामक मैन (बंगाल) के राजा के नाम आता है, जिसने धर्म की पूजा की और जिसके वीरतापूर्ण कार्यों की प्रसिद्धि-गाथा प्रारम्भ हुई। इन कथाओं के आधार पर 'धर्ममंगल' आदि नामों से बंगला की मंगल काव्य माला का प्रारम्भ हुआ, जो 12वीं शताब्दी से लिखी जाने लगी। मंगल काव्य के सबसे प्रथम लेखक मयूर भट्ट माने जाते हैं।[2]
मयूर भट्ट् दक्षिण पंचवटी वासी थे। वे उत्तर प्रदेश आये और तपोभूमि गोरखपुर में ककरियाकीट में बसे। यह स्थान सरयूतट पर है और आज भी विख्यात है। मयूर भट्ट की संतानें क्षत्रियों तथा ब्राह्यणों में विद्यमान हैं। प्यासी के मिश्र और मझोली के मिश्र तथा विशेन वंश इन तीनों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई। पयासी के मिश्र ही ब्रह्य वर्ग में मझोली के मिश्र कहलाते हैं।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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