आर्कटिक प्रदेश

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आर्कटिक प्रदेश जल और स्थल उस क्षेत्र को कहते हैं जो उत्तरी ध्रुव से चारों ओर लगभग आर्कटिक वृत्त (66° 30¢ उ.अ.) तक फैला हुआ है। इसके अंतर्गत नारवे, स्वीडन और फिनलैंड के उत्तरी भाग, रूस का टुंड्रा प्रदेश, अलास्का का उत्तरी भाग, कनाडा का टुंड्रा प्रदेश और आर्कटिक सागर में स्थित अनेक द्वीप हैं; जैसे ग्रीनलैंड, स्विट्ज़बर्गन, फ्ऱैंज़ जोज़ेफलैंड, नोवा ज़ेम्लिया, सेवार्ना ज़ेम्लिया, न्यू साइबेरियन द्वीप, उत्तरी कनाडा के द्वीप; जैसे एल्समेअर, बैफिर इत्यादि।

इतिहास - जहाँ तक ज्ञात हो सका है, नार्वे के लोगों ने पहले पहल आर्कटिक प्रदेशों के कुछ भागों पर अपना अधिकार जमाया। उनकी पौराणिक कथाओं में वहाँ का वर्णन मिलता है। सन्‌ 867 ई. में नार्वे के नार्समन लोगों ने आइसलैंड द्वीप की खोज की और सन्‌ 874 ई. में अपने उपनिवेश वहाँ स्थापित किए जिनमें आज भी उनकी संतति बसी हुई है। सन्‌ 982 ई. के लगभग एरिक दि रेड नामक एक नार्समैन ने ग्रीनलैंड द्वीप की खोज की और वहाँ भी उपनिवशों की स्थापना हुई, परंतु कुछ समय पश्चात्‌ प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों के फलस्वरूप वे नष्ट हो गए। ग्रीनलैंउ से और पश्चिम चलकर नार्समैन उत्तरी अमरीका तक पहुँच गए। संभवत: एरिक दि रेड के पुत्र लीफ ने सन्‌ 1,000 ई. के लगभग उत्तरी अमरीका के काड अंतरीप और लैब्रडोर के बीच स्थित समुद्रतट के कुछ भाग की यात्रा की थी।

उत्तरी पश्चिमी यूरोप में वाणिज्य की वृद्धि होने पर अंग्रेज और डच लोग सुदूर पूर्व पहुँचने के लिए यूरेशिया या अमरीका महाद्वीप के उत्तर से होकर एक नए मार्ग की खोज में लग गए। इन लोगों ने सुदूर पूर्व पहुँचने के लिए दो विभिन्न मार्गों का अनुसरण किया, अर्थात्‌ उत्तर पूर्वी मार्ग और उत्तर पश्चिमी मार्ग। उत्तर पूर्वी मार्ग द्वारा सुदूर पूर्वी पहुँचने का प्रयास सन्‌ 1553 ई. में सैबिस्टियन कैबट के प्रोत्साहन से आरंभ हुआ। सन्‌ 1597 ई. तक इन अन्वेषणों द्वारा यूरोपीय रूस के आर्कटिक समुद्रतट और समीपस्थ द्वीपों का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त हो गया था। इस उत्तर पूर्वी मार्ग का अनुसरण 17वीं शताब्दी में भी जारी रहा, परंतु इससे भौगोलिक ज्ञान में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। सन्‌ 1760 ई. से रूसी नाविकों ने भी इस मार्ग को अपनाया और संपूर्ण रूस के आर्कटिक प्रदेश और समीपस्थ द्वीपों के ज्ञान की वृद्धि में विशेष योग दिया। अंत में सन्‌ 1932 ई. में साइबेरियाकोव नामक एक रूसी बर्फ तोड़नेवाले जलयान ने उत्तर पूर्वी मार्ग की यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न की। सन्‌ 1935 ई. से इस मार्ग पर व्यापारिक जलयानों का चलना प्रारंभ हुआ।

उत्तर पश्चिमी मार्ग द्वारा ग्रीनलैंड और उत्तरी अमरीका महाद्वीप के मध्य से होकर सुदूर पूर्व पहुँचने का प्रयास सर्वप्रथम 7 जून, 1576 को मार्टिन फ्रौबिशन द्वारा प्रारंभ हुआ और अंत में आर. आमंसन ने पहली बार 1903-1905 में अपने जलयान ग्योआ से उत्तर पश्चिमी मार्ग की यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न की। इन अन्वेषणों द्वारा ग्रीनलैंड द्वीप और कनाडा के आर्कटिक प्रदेशों के ज्ञान में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई।

इधर उत्तरी ध्रुव पहुँचने का प्रयास 19वीं शताब्दी के आरंभ से ही चल रहा था। इस दिशा में फ्रटौफ नैनसन का प्रयास विशेष उल्लेखनीय है। इन्होंने सन्‌ 1893 ई. में अपने जहाज फ्रैम में उत्तरी ध्रुव के लिए प्रस्थान किया और जहाज हिम के बहाव के सहारे उत्तर की ओर बढ़ता गया। ठोस हिम से जहाज की प्रगति रुकने से पहले ही नैनसन जहाज छोड़ अपने साथी जोहानसेन के साथ पैदल बढ़ने लगे। वे 8 अप्रैल, 1893 को उत्तरी ध्रुव से केवल 3° 48¢ की दूरी पर रह गए थे जब प्रतिकूल परिस्थितियों ने उन्हें लौटने पर बाध्य कर दिया। इस प्रकार जलयानों द्वारा उत्तरी ध्रुव पहुँचने के प्रयासों का क्रम चलता रहा और अंत में 6 अप्रैल, 1909 को आर.ई. पैरी ने उत्तरी ध्रुव पर विजय प्राप्त कर ली। वायुयान द्वारा उत्तरी ध्रुव पहुँचने का श्रेय सर्वप्रथम आर.ई. बर्ड को मई, 1926 में प्राप्त हुआ और पनडुब्बी जहाज में बर्फ के नीचे चलकर उत्तरी ध्रुव पहुँचने का श्रेय सर्वप्रथम 'नॉटिलस' जहाज को 3 अगस्त, 1958 को प्राप्त हुआ।

भूतत्व - आर्कटिक प्रदेशों में विभिन्न कल्पों की चटृटानें मिलती हैं, जैसे कनाडा के आर्कटिक प्रदेश और ग्रीनलैंड में प्राचीनतम कल्पीय शिलाओं की अधिकता है, जब कि केवल यूरेशिया के आर्कटिक प्रदेश में ही पुराकल्पीय तथा और नवीन काल की शिलाएँ मिलती हैं। इस समय आर्कटिक प्रदेश में ज्वालामुखी क्रिया अधिक महत्वपूर्ण नहीं है और जाग्रत ज्वालामुखियों में जॉन मेयन द्वीप में स्थित बीरेनबर्ग ज्वालामुखी पर्वत ही विशेष उल्लेखनीय है। बुडबे और स्पिट्ज़बर्गन द्वीपों में गरम सोते स्थित हैं। पूर्वकालीन ज्वालामुखीक्रिया के चिह्न ग्रीनलैंड, स्पिट्जुबर्गन, फ्ऱैंज़ जोज़ेफलैंड और न्यू साइबेरियन द्वीपों की तृतीयक कल्प में आर्कटिक प्रदेश में कहीं अधिक उष्ण जलवायु के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं, परंतु प्रातिनूतन हिम युग में जलवायु अधिक ठंडी हो गई थी और संभवत: कनाडा के आर्कटिक द्वीपों को छोड़कर अधिकांश आर्कटिक प्रदेश हिमाच्छादित थे।

आर्कटिक सागर - यह स्थलखंडो द्वारा घिरा है, परंतु इसके बीच उत्तरी ध्रुव की स्थिति केंद्रवर्ती नहीं है। ग्रीनलैंड और नार्वेजियन समुद्रों सहित इसका क्षेत्रफल लगभग 54,00,000 वर्ग मील है। आर्कटिक सागर की एक महत्वपूर्ण विशेषता इसका विस्तृत महाद्वीपीय निधाय है, जिसपर सैकड़ों द्वीप और द्वीपसमूह, जिसका उल्लेख ऊपर हो चुका है, स्थित हैं। वास्तव में ये द्वीप पूर्वकाल के एक अधिक विशाल स्थलखंड के अवशेष मात्र हैं और सामान्यत: समीपस्थ महाद्वीपीय खंडों से भौमिकीय संबंध प्रदर्शित करते हैं। अणुशिक्त द्वारा संचालित 'नॉटिलस' पनडुब्बी जहाज के अन्वेषणों द्वारा (जुलाई अगस्त, 1958 में) यह ज्ञात हुआ है कि उत्तरी ध्रव पर जल की गहराई 13,410 फुट है और यहाँ जल के ऊपर हिमस्तरों की औसत मोटाई 12 फुट है।

जलवायु - आर्कटिक प्रदेश विश्व के अति शीत प्रदेशों में है और यहाँ समुद्र से दूर स्थित क्षेत्रों में -90° फा. तक के न्यूनतम ताप अंकित होने के प्रमाण मिले हैं। ग्रीष्मकाल में यहाँ 80 फा. से भी ऊँचे ताप अंकित हुए हैं। ये विश्व के अत्योधिक शुष्क प्रदेश है, जिससे इन्हें शीत मरुस्थल भी कहते हैं औसत वर्षिक वृष्टि लगभग 10 इंच है जो मुख्यत: हिम के रूप में होती है। वर्ष के अधिकांश समय ठंढी ध्रुवी हवाएँ आति तीव्र गति से चलती रहती हैं।

प्राकृतिक संपत्ति - यहाँ के खनिज पदार्थो की खोज की ओर अभी तक अधिक ध्यान आकर्षित नहीं हुआ है। मुख्यत: पत्थर का कोयला, मिट्टी का तेल लोहा और तांबा इत्यादि खनिजों का ही कुछ मात्रा में उत्खनन हुआ है और सोना, चांदी, प्लैटिनम और टिन इत्यादि की केवल उपस्थिति ही ज्ञात हुई हैं। आर्कटिक वनस्पति मुख्यत: फर्न, लाइकेन और मॉस हैं। इनके अलावा ग्रीष्मकाल में छोटे छोटे रंग बिरंगे फूलोंवाले पौधे और छोटी छोटी बेर की झड़ियां उग आती हैं। ये प्रदेश लगभग वृक्षहीन हैं, केवल दक्षिणी भागों में नदियों के किनारे छोटे कद के बर्च इत्यादि तथा कोणधारी वृक्ष उगते हैं। कुछ भागों में अनाज और शाक उत्पादन की सभांवनाएं हैं और इस हेतु विशेष रूप सो प्रयत्न किए जा रहे हैं। आर्कटिक प्रदेशों में विविध प्रकार के जीव जंतु पाए जात हैं, जैसे कस्तूरीवृष (मस्क ऑक्स), लोमड़ी, कैरिबू, भोडिया, लेमिंग, खरगोश, ध्रवीय भालू इत्यादि। रोएँदार पशुओं में बीवर, ऑटर, लिंक्स तथा सेबुल मुख्य हैं। पालतु जानवरों में यूरेशिया के आर्कटिक प्रदेश में पाया जानेवाला पशु रेनडिर है। यहाँ के जल क्षेत्रों में मुख्यतं: सील, हेल और वालरस पाए जाते हैं।

मनुष्य तथा व्यवसाय - आर्कटिक प्रदेशों के निवासियों का मुख्य उद्योग शिकार करना तथा मछली पकड़ना है। कृषि के अभाव में इनकी भोजन, वस्त्र, आश्रय, यातायात इत्यादि की आवश्यकतों की पूर्ति पशुओं द्वारा होती है। संपूर्ण यूरेशिया के आर्कटिक प्रदेश के लिए रेनडियर बहुत बड़ी देन है, जिसके द्वारा भोजन के लिए मांस और दूध, वस्त्र और तंबुओं के लिए खाल, अस्त्रशस्त्रों के लिए हड्डी और सींग तथा जलाने और प्रकाश के लिए चरबी मिलती है। यहाँ यातायात का मुख्य साधन बिनापाहिएवाली स्लेज गाड़ी है जिसे रेनडियर खींचते हैं। यूरेशिया के आर्कटिक प्रदेश के निवासियों की लैप्स, फिन्स, आस्टेक्स, यूरियट्स, सैमोयड तथा याकूत कहते हैं। ये सब अस्थिरवासी (खानाबदोश) हैं जो भोजन की खोज में इधर उधर घूमते हैं। ये अधिकतर चमड़े के तंबुओं में निवास करते हैं जिन्हें चूम कहते हैं।

उत्तरी अमरीका के आर्कटिक प्रदेशों और ग्रीनलैंड में एस्किमो जाति के लोग निवास कहते हैं। यहाँ के प्राकृतिक साधन यूरेशिया के आर्कटिक प्रदेश से मिलते जुलते हैं इसलिए रहन सहन की दशाओं में भी समानता पाई जाती है। परंतु यहाँ का मुख्य जानवर पालतू रेनडियर न होकर जंगली कैरिबू है। अब कुछ स्थानों में रेनडियर पाला जाने लगा है जो यूरेशिया से लाया गया है। यहाँ के निवासी मुख्यत: समुद्रतटों पर रहते हैं तथा सील, हेल और वालरस का शिकार करके मांस, तेल, हड्डी, खाल इत्यादि प्राप्त करते हैं। शीतकाल में बर्फ के अंदर छेद करके हारपून (भाले) से मछली पकड़ते हैं। और बर्फ के घरों में, जिन्हें इग्लू कहते हैं, निवास करते हैं। ग्रीष्मकाल में रहने के लिए तंबुओं और लट्ठों की झोपड़ियों का प्रयोग करते हैं। ये यातायात के लिए नावों का उपयोग करते हैं। छोटी नाव कायक और बड़ी नाव उमियक कहलाती है। शक्तिशाली कुत्तों द्वारा जानेवाली स्लेज गाड़ी का भी उपयोग होता है।

इस प्रकर आर्कटिक प्रदेशों के निवासियों का जीवन प्रकृति से निरंतर संघर्ष में व्यतीत होता है। आशा है, भविष्य में यहाँ उपस्थित पत्थर का कोयला, मिट्टी का तेल अन्य खनिज पदार्थो के बढ़ते हुए उत्पादन के साथ साथ ये प्रदेश भी आर्थिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण हो जाएँगे और इसके साथ ही जहाँ के निवासियों का जीवनस्तर भी ऊँचा उठ सकेगा। उत्तरी ध्रव से होकर वायुयानसंचालन का महत्व बढ़ जाने से भी इन प्रदेशों की आर्थिक उन्नति की ओर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 426 |

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