ईंट का भट्टा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

ईटं का भट्ठा ईटोंं को भट्ठे में पकाया जाता है। भट्ठे तीन प्रकार के होते हैं।

(1) खुले भट्ठे, जैसे पजावे,

(2) अर्ध अनवरत,

(3) अनवरत (लगातार)1

इनमें से अंतिम के कई विभाग किए जा सकते हैं, जैसे घेरेदार, आयताकार, ऊपर हवा खींचनेवाला, नीचे हवा खींचनेवाला, इत्यादि।

Itn-kiln.jpg

खुला भट्ठा-गीली मिट्टी से बनाई, सुखाई, फिर ताप का पूर्ण असर आने के लिए एक दूसरे से थोड़ी-थोड़ी दूरी पर इकट्ठी की गई कच्ची ईटोंं के समूह को ढेर (अंग्रेजी में क्लैंप) कहते हैं। अच्छी रीति से बने ढेर में एक आयताकार या समलंब चतुर्भुजाकार फर्श होता है जो लंबाई के अनुदिश ढालू होता है। निचला सिरा भूमि को एक फुट गहरा खोदकर बनाया जाता है और ऊपरी सिरा जमीन को पाटकर ऊँचा कर दिया जाता है। ढाल 6 में 1 की होती है। फर्श पर दो फुट, मोटी तह किसी तुरंत आग पकड़ लेनेवाले पदार्थ की, यथा सूखी घास, फूस, लीद, गोबर, महुए की सीठी आदि की, रख दी जाती है। इसके ऊपरी सिरे पर कच्ची सुखाई ईटोंं की पाँच छह कतारें रख दी जाती हैं। फिर ईटोंं और जलावन को एक के बाद एक करके रखा जाता है। ज्यों-ज्यों ढेर उँचा होता जाता है, जलावन के स्तर की मोटाई घीरे-धीरे कम कर दी जाती है। सब कुछ भर जाने के बाद ढेर पर गीली मिट्टी छोप दी जाती है जिससे भीतर की उष्मा यथासंभव भीतर ही रहे। ढेर को पूर्णतया जलने में छह से लेकर आठ सप्ताह तक लग जाते हैं और इसके ठंडा होने में भी इतना ही समय लगता है। इस रीति में जलावन पर्याप्त कम लगता है; परंतु ईटेंं बढ़िया मेल की नहीं बन पाती; अत: यह ढंग अंत में लाभप्रद नहीं सिद्ध होता।

अर्ध अनवरत भट्ठे-अर्ध अनवरत भट्ठे चक्राकार अथवा आयताकार बनाए जाते हैं और वे अंशत: या पूर्णत: भूमि के ऊपर रह सकते हैं। जलावन के लिए लकड़ी (चाहे सूखी चाहे गीली), बड़े इंजनों की भट्ठियों से झरा अधजला पत्थर का कोयला या लकड़ी का कोयला प्रयुक्त हो सकता है। दोनों ओर मुँह बना रहता है जो निकालने और भरने के काम आता है। आग प्रज्वलित करने के बाद इन मुँहों को पहले रोड़ों और ढोकों से और बाद में गीली मिट्टी से भली भाँति ढक दिया जाता है जिसमें भीतर की गरमी भीतर ही रहे।

2Itn-kiln.jpg


अनवरत भट्ठे-अनवरत भट्ठे कई प्रकार के हाते हैं। कुछ भूमि के नीचे बनाए जाते हैं और वे खाई भट्ठे (ट्रेंच किल्न) कहलाते हैं। कुछ अंशत: भूमि के ऊपर और अंशत: नीचे बनाए जाते हैं। खाई भट्ठों में अगल बगल दीवार बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। 'बुल' का भट्ठा इसी प्रकार का भट्ठा है।

3Itn-kiln.jpg

बुल का भट्ठा बड़ें परिमाण में लगातार ईटं उत्पादन के लिए उपयुक्त है। इसमें आग का घेरा बराबर बढ़ता रहता है। जैसे-जैसे आग आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे भट्ठे के विभिन्न कक्ष तप्त होते हैं। प्रत्येक कक्ष में निकालने और भरने के लिए एक-एक द्वार रहता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक कक्ष में एक धुआँकस (फ़्लू) होता है जिससे हवा घुसती है। एक अन्य धुआँकस वायु की निकासी के लिए होता है जो भीतर ही भीतर चलकर एक केंद्रीय चिमनी से जा मिलता है।


वायु ग्रहण करनेवाले धुआँकस में एक मंदक (डैंपर) होता है जिससे वायुप्रवाह मनोनुकूल नियंत्रित हो सकता है। निकासीवाले धुआँकस में भी मंदक लगा रहता है जिसे इच्छानुसार खोला या बंद किया जा सकता है। कक्षों का क्रम ऐसा रहता है कि ठंडे हो रहे अथवा गरम कक्षों से तप्त हवाएँ दूसरे कक्षों में भेजी जा सकें। इस प्रकार चिमनी द्वारा निकल जाने के पहले गरम हवा की आँच का उपयोग ईटोंं को सुखाने, गरम करने अथवा आंशिक रूप में पकाने के लिए किया जा सकता है। हर समय प्रत्येक कक्ष में एक न एक क्रिया होती रहती है, जिससे कच्ची ईटोंं के बौझे जाने से लेकर पकी ईटोंं के निकालने तक के कार्य का क्रम विधिवत्‌ बराबर चालू रहता है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 21 |

संबंधित लेख