एथेंस

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एथेंस (अथेनाइ, अंथीना, असीना) प्राचीन काल में ग्रीस देश के अत्तिका नामक भाग की और आजकल समस्त ग्रीस की राजधानी। इसका इतिहास तीन हजार वर्ष से अधिक पुराना है एवं संस्कृति की दृष्टि से समस्त यूरोप ओर अमरीका की संस्कृति का मूल स्रोत यही है। यही कारण है कि इस नगरी के पुरातत्व का अध्ययन करने के लिए स्वयं ग्रीक लोगों के अतिरिक्त फ्रांस, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमरीका, इंग्लैंड, आस्ट्रिया एवं इटली इत्यादि देशों ने अपनी संस्थाएँ आधुनिक एथेंस में ही स्थापित कर रखी हैं। इसके अतिरिक्त अन्य देशों में भी इसकी संस्कृति का अध्ययन बड़े मनोयोगपूर्वक चल रहा है।

अत्तिका प्रदेश यूरोप के दक्षिण-पूर्व में एक त्रिभुज के आकार में अवस्थित है। इसकी अधिकांश भूमि पहाड़ी है और जहाँ समतल मैदान है वहाँ भी मिट्टी की तह अधिक मोटी नहीं है। एथेंस अत्तिका के दक्षिण-पश्चिम में (23रू 44व् पू. तथा 37रू 58व् उ.)स्थित है। समुद्र से इसकी कम से कम दूरी तीन मील है। इसका तापमान अधिकतम 99.01रू, न्यूनतम 31.44रू और मध्यम 63.1रू फार्नहाइट है और जलवायु स्वच्छ, निर्मल, स्वास्थ्यकर तथा बुद्धिवर्धक है। नगरी के समीप ही पेंतेलीकस और हीमेत्तस नामक संगमर्मर के पहाड़ हैं जिनसे नगर के सुंदर भवनों और मंदिरों के लिए पर्याप्त मात्रा में संगमर्मर मिलता रहा है। पश्चिम में कैफीसस नाम की नदी बहती है तथा दक्षिण-पूर्व और दक्षिण की ओर इलीसस, पर यह नदी प्राय: सूखी पड़ी रहती है। एथेंस में पर्याप्त मात्रा में नैसर्गिक जल नहीं मिलता। जल की कमी को जलभांडारों और कुओं के द्वारा पूरा किया जाता है।

यह कहना कठिन है कि एथेंस नगरी का आद्यारंभ कब हुआ और किस जाति के लोगों ने सर्वप्रथम इसे अपना निवास्थान बनाया। अथीना देवी के नाम पर इसका नामकरण हुआ है। अथीना देवी का संबंध मीकीनी सभ्यता से माना जाता है। परंतु जैसा अथीना की कथा से विदित होता है,उसको इस नगर में मान्यता प्राप्त करने के लिए पोसेईदान से स्पर्धा करनी पड़ी थी। इससे इस नगरी का इतिहास अत्यंत प्राचीन प्रागैतिहासिक काल के धुँधले युग में छिपा हुआ प्रतीत होता है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि एथेंस के मैदान में बहुत सी छोटी-छोटी बस्तियाँ बसी हुई थीं। ई.पू. आठवीं शताब्दी में, संभवतया थीसियस के समय, ये बस्तियाँ मिलकर एक नगरी के रूप में परिणात हो गई और नगर के केंद्र में स्थित अक्रौपोलिस्‌ इस नगरी की राजधानी या शासन का केंद्रस्थल बना। तब से लेकर आज तक इस नगरी ने जितने उत्थान पतन देखें संभवत: अन्य किसी नगरी ने नहीं देखे होंगे। आरंभ में यहाँ राजाओं का शासन था। तत्पश्चात्‌ श्रेष्ठ कुलीन लोगों का शासन स्थापित हुआ। पर सोलून के संविधान के पश्चात्‌ सत्ता साधारण जनता के हाथ में आनी आरंभ हो गई। फिर कुछ समय पश्चात्‌ पिसिस्त्रातस ने अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया। इस समय इस नगरी के वैभव में पर्याप्त वृद्धि हुई।

क्लेइस्थेनीस ने पुन: यथार्थ जनतंत्र की स्थापना की। इसके पश्चात्‌ एथेंस को ई.पू. 490 और 479 के मध्य फारस साम्राज्य की महान्‌ शक्ति से दो बार युद्ध करना पड़ा। यद्यपि इन युद्धों में नगरी को महान्‌ क्षति उठानी पड़ी तथापि इससे इसकी शक्ति और प्रतिष्ठा बहुत अधिक बढ़ गई एव एथेंस के इतिहास का स्वर्णयुग आरंभ हुआ। दैलियन नगरराष्ट्रसंघ की स्थापना के पश्चात्‌ एथेंस को एक साम्राज्य के केंद्र का स्वरूप प्राप्त हो गया। पर इससे स्पार्ती के साथ एथेंस को एक साम्राज्य के केंद्र का स्वरूप प्राप्त हो गया। पर इससे स्पार्ता के साथ एथेंस की प्रतिस्पर्धा का सूत्रपात हुआ जिसके परिणामस्वरूप ग्रीक जाति का दीर्घकालीन महाभारत छिड़ा जो पोलोपोनेशीय युद्ध कहलाता है। 30 वर्ष के इस युद्ध ने एथेंस की शक्ति को क्षीण कर दिया। इस युद्ध का आरंभ होने के पूर्व पेरीक्लीस के शासनकाल में एथेंस की समृद्धि उच्चता के शिखर पर थी। पर युद्ध के पश्चात्‌ अधिकांश में इसका गौरव अतीत की गाथा मात्र रह गया। हाँ, दर्शन और इतिहास के क्षेत्र में इसकी ख्याति अवश्य आगे बढ़ी। इस युद्ध के आघात से ज्यों ही एथेंस ने कुछ सँभलना आरंभ किया त्यो ही इसको मकदुनिया के फ़िलिप और सिकंदर की शक्ति का सामना करना पड़ा। यद्यपि इस समय अनुचित नीतियों को बरतने के कारण एथेंस को हानि उठानी पड़ी, फिर भी मकदुनिया की शक्ति उसके प्रति सहानुभूतिपूर्ण रही। इस युग में अरस्तू का दर्शन ओर देमोस्थनीस की वक्तृत्वकला एथेंस की ख्याति का आधार बनी। इसके पश्चात्‌ रोम की शक्ति का उदय हुआ और एथेंस की स्वतंत्र सत्ता का अस्त। पर एथेंस की संस्कृति ने विजेता रोम पर विजय प्राप्त की। अनेक रोमन शासकों और सम्राटों ने एथेंस में नवीन भवनों का निर्माण किया ओर अनेक सुविख्यात रोमन विद्वानों ने एथेंस का शिष्यत्व स्वीकार कर अपने को धन्य माना। ईसाई धर्म के उदय के पश्चात्‌ अनेक प्राचीन भवन गिरजाघरों में परिणत कर दिए गए और कुछ कलाकृतियों को बीजाताना सम्राट् अपनी राजधानी में उठा ले गए। सन्‌ 529 में युस्तिनियन नामक सम्राट् की आज्ञा से एथेंस के विद्यालय बंद कर दिए गए।

पर एथेंस को सबसे बुरे समय का सामना तब करना पड़ा जब तुर्को ने कुस्तुंतनिया को जीतकर ग्रीस पर भी विजय प्राप्त कर ली। ये दुर्दिन 1458 से 1833 ई. तक रहे। इस काल के आरंभ में अनेक ग्रीक मनीषियों ने इटली आदि यूरोपीय देशों में शरण ली और यूरोप के पुनरुज्जीवन का युग आरंभ हुआ। पर एथेंस उजड़ने लगा। सुंदर भवन और मूर्तियाँ तोड़ डाली गई। कुछ को मसजिद और हरम के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। जगत्प्रसिद्ध मूर्तिकार वास्तुकार फ़ीदियस द्वारा प्रस्तुत एथेंस की मंदिरमणि पार्थेनन बारूद का गोदाम बनी और एक दिन स्वामियों की असावधानी से बारूद मंडक जाने से उसकी छत उड़ गई। पर जो कुछ आज भी बच रहा है, उसे देख ब्रिटिश म्यूज़ियम, लदंन और अक्रोपोलिस के पर्यटक प्राचीन ग्रीकों की कला को सराह उठते हैं। जनसंख्या लाखों से घटकर अंत में 5,000 रह गई। तुर्को की पराजय के पश्चात्‌ एथेंस के आधुनिक युग का आरंभ हुआ। नगरी पुन: शीघ्रता से बढ़ने लगी। 1967 में ग्रेटर एथेंस की जनसंख्या 25,30,207 हो गई थी। पिछले द्वितीय महायुद्ध में एथेंस पर कुछ समय के लिए (1941 में) जर्मनों का अधिकार हो गया, पर उन्होंने नगर को कोई क्षति नहीं पहुँचाई। युद्ध के उपरांत कुछ समय तक राजनीतिक दलों के पारस्परिक कलह के कारण कुछ अशांति रही। पर गत अनेक वर्षो से पुन: शांति है।

ई.पू. चौथी शताब्दी के आसपास जब एथेंस अपनी समृद्धि के चरम शिखर पर आरूढ़ था तब उसमें 21,000 स्वतंत्र नागरिक, 10,000 विदेशी और 4,00,000 दास निवास करते थे। अत्तिका में प्राप्त साधनों से इतनी विशाल जनसंख्या का भरण पोषण संभव नहीं था, अतएव एथेंस को भोजन सामग्री एवं अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएँ बहुत बड़ी मात्रा में विदेशों से मँगानी पड़ती थीं और इनका मूल्य वह अपने कलाकौशल तथा अन्य सेवाओं से चुकाता था। पर इन सबके लिए उसको अपने पिराएयस नामक बदंरगाह का विकास करना पड़ा। इसका इतिहास भी एथेंस के इतिहास के साथ अभिन्न रूप से आबद्ध है। यहाँ के जहाज विशालकाय होते थे जो दिन रात महासमुद्रों में यात्रा कर सकते थे। यह बंदरगाह एथेंस के साथ तीन ऊँची ऊँची दीवालों द्वारा संबद्ध था और नगर से दक्षिण-पश्चिम पाँच मील की दूरी पर था।

आज इस बात की कल्पना करना कठिन है कि अपनी समृद्धि के काल में एथेंस कितना भव्य दिखलाई देता होगा। यद्यपि आधुनिक काल में एथेंस के पुराने मंदिरों और भवनों का पुनरुद्धार करने का प्रयत्न किया गया है तथापि बहुत कुछ तो सर्वदा के लिए नष्ट हो गया। इस समय एथेंस में प्राचीन यूनानी काल के, रोमन काल के और आधुनिक काल के स्थापत्य के उदाहरण मिलते हैं। अत्यंत प्राचीन काल की वास्तुकला के निदर्शन नगरी के तीन ऊँचे स्थानों पर पाए जाते हैं जिनके नाम हैं अक्रोपोलिस, अरेयोपागस, और पनीक्स। अक्रोपोलिस एथेंस का प्राचीनतम दुर्ग है। इस पहाड़ी पर एरेक्थियम, पार्थेनान, प्रौपिलैया इत्यादि अनेक महत्वपूर्ण भवन थे। यह नगरी केंद्र में स्थित है। अरेयोपागस अक्रोपोलिस के पश्चिम में है। यहाँ समिति की बैठकें हुआ करती थीं और न्यायालय भी यहीं था। प्‌नीक्स अक्रोपोलिस के उत्तर-पश्चिम में था। यहाँ नगरसभा की बैठक हुआ करती थी। नगर की मंडी का नाम अगोरा था। अक्रोपोलिस की दक्षिणी ढाल पर दियानीसस का रंगस्थल था। नगरी के उत्तर-पश्चिम में विख्यात दिपीलान नामक द्वार था। यहाँ से कालोनस और प्लेटो (अफ़लातून) के अकादेमी नामक महाविद्यालय की ओर सड़कें जाती थीं। अन्य द्वारों से पिराएयस फालेरम और सूनिथम नामक स्थानों को सड़कें जाती थीं। संभवत: ई.पू. छठी शताब्दी में पिसिस त्रातस के शासनकाल में एक विशाल जलागार बनाया गया था। साधारण नगरनिवासियों के मकान और सड़कें अच्छी नहीं थीं।

रोमन काल में समय के आकलन के लिए वायुमंदिर बनाया गया था जिसमें जलघटिका इत्यादि यंत्र थे। अक्रोपोलिस के उत्तर में रोमन हाट 'अगोरा' का संविधान था जो मुख्यतया तेल की मंडी था। रोमन सम्राट् हाद्रियन ने नव एथेंस का निर्माण किया था और एक पुस्तकालय भी बनवाया था। इस सम्राट् ने और भी अनेक भव्य स्थानों से इस पुरातन नगरी की शोभा बढ़ाई थी। अत्तिकुस हेरोदैस नामक एक संपन्न रोमन ने पुराने स्तादियुम और ओदियम्‌ का निर्माण कराया था।[1]

आधुनिक एथेंस में अकादेमी, विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय पुस्तकालय, संग्रहालय, इत्यादि अनेक नए भवन निर्मित हुए हैं। विदेशियों द्वारा भी बहुत से संग्रहलयों और पुस्तकालयों का निर्माण हुआ है। ग्रीक जाति की युग युग की संस्कृति का यह केंद्र आज पुन: नवजीवन से परिस्पंदित हो रहा है।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 238 |
  2. सं.ग्रं.–फ़र्ग्युसन : हैलेनिस्टिक्‌ एथेंस, 1911; वर्डस्वर्थ : एथेंस ऐंड ऐटिका, 1855; भोलानाथ शर्मा : अरिस्तू की राजनीति और अथेंस का संविधान (अरिस्तू के ग्रंथों के हिंदी अनुवाद), 1956।

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