रेशम मार्ग

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रेशम मार्ग (सड़क रास्ता लाल रंग से समुद्री रास्ता नीले रंग से)

रेशम मार्ग अथवा सिल्क रूट प्राचीन चीनी सभ्यता को पश्चिम तक पहुंचाया जाने का एक अहम रास्ता था, जो पूर्व और पश्चिम के बीच आर्थिक व सांस्कृतिक आदान प्रदान का सेतु के नाम से विश्वविख्यात है। रेशम मार्ग प्राचीन चीन से मध्य एशिया से हो कर दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ़्रीका तक जाने वाला थल व्यापार रास्ता था। बड़ी मात्रा में चीन के रेशम और रेशम वस्त्र इसी मार्ग से पश्चिम तक पहुंचाये जाने के कारण इस मार्ग का नाम रेशम मार्ग रखा गया। पुरातत्वीय खोज से पता चला है कि रेशम मार्ग ईसा पूर्व पहली शताब्दी के चीन के हान राजवंश के समय संपन्न हुआ था, उस समय रेशम मार्ग वर्तमान के अफ़गानिस्तान, उज्जबेकस्तान, ईरान और मिस्र के अल्जेंडर नगर तक पहुंचता था और इस का एक दूसरा रास्ता पाकिस्तान तथा अफ़गानिस्तान के काबुल से हो कर फ़ारसी खाड़ी तक पहुंचता था, जो दक्षिण की दिशा में वर्तमान में कराची तक पहुंच जाता था और फिर समुद्री मार्ग से फ़ारसी खाड़ी और रोम तक पहुंच जाता था।[1]

इतिहास

रेशम मार्ग आम तौर पर वह थलीय रास्ता कहलाता है, जिसे चीन के हान राजवंश के महान् यात्री चांगछयान ने खोला था, जो पश्चिम हान राजवंश की राजधानी छांग आन से पश्चिम में रोम तक पहुंचता था। इस मार्ग के उत्तर और दक्षिण में दो शाखा रास्ता थे, दक्षिणी रास्ता तुन हुंग नगर से शुरू हुए, यांग क्वान दर्रे से हो कर पश्चिम की दिशा में खुनलुन पर्वत तलहटी में आगे चलते हुए छुड़ लिन पर्वत को पार करता था और आगे ताय्येजी (आज के सिन्चांग और अफ़ग़ानिस्तान के उत्तर पूर्व क्षेत्र में) पहुंचता था, फिर आगे आनशी यानी फ़ारसी (आज का ईरान) और थ्यो जी (आज के अरब प्रायद्वीप में) से हो कर प्राचीन रोम तक पुहंचता था। उत्तरी रास्ता तुनहुंग से आरंभ हुए युमन दर्रे से हो कर थ्येन शान पर्वत की दक्षिणी तलहटी में छुड़लिन पर्वत को पार कर ताय्वान व खानच्यु (आज के मध्य एशिया में) से गुजर कर पश्चिम दक्षिण की दिशा में आगे बढ़ते हुए दक्षिणी रास्ते से जा मिलता था। यही दो रास्ते प्राचीन रेशम मार्ग कहलाता था।[2]

व्यापार में महत्ता

रेशम मार्ग

व्यापार के साथ रेशम मार्ग से सांस्कृतिक आदान प्रदान भी बहुत क्रियाशील रहा था। बौद्ध धर्म चीन के पश्चिमी हान राजवंश के काल (ईसापूर्व 206 - ईस्वी 25) में चीन में आया। ईस्वी तीसरी शताब्दी में चीन के सिंचांग में गिजर गुफ़ा खोदी गई, जिसमें अब भी दस हज़ार वर्ग मीटर के भित्ति चित्र सुरक्षित है, जिससे बौद्ध धर्म के चीन में आने के प्रारंभिक इतिहास की झलक मिलती है। अनुमान है कि बौद्ध धर्म भारत से रेशम मार्ग से सिन्चांग के गिजर पहुंचा, फिर वहां से कांसू प्रांत के तड़हुंग तक आया, इसके बाद चीन के भीतरी इलाकों में फैल गया। रेशम मार्ग से चलते चलते अनेक बौद्ध गुफाएं सुरक्षित हुई देखी जाती हैं, जिनमें तड़हुंग की मकाओं गुफ़ा तथा लोयांग की लुंगमन गुफ़ा विश्वविख्यात है। इन गुफ़ाओं की कलाकृतियों में पूर्व और पश्चिम की कला शैलियों का विलय हुआ है, जो रेशम मार्ग से सांस्कृतिक आदान प्रदान का साक्षी है, वे अब विश्व सांस्कृतिक धरोहर नामसूची में शामिल किए गए हैं।

ईस्वी नौवीं शताब्दी के बाद यूरोपाशिया महाद्वीप के राजनीतिक व आर्थिक ढांचे में भारी बदलाव के कारण, ख़ास कर समुद्री जहाजरानी के विकास के कारण जहाजरानी व्यापार का अच्छा और प्रमुख साधन बन गया। इस तरह प्राचीन रेशम मार्ग का महत्व लगातार घटता गया और अंत में वह नष्ट भी हुआ। दसवीं शताब्दी में चीन के सुंग राजकाल में ही रेशम मार्ग व्यापार के लिए बहुत कम प्रयोग किया गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 प्राचीन रेशम मार्ग (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) china aba। अभिगमन तिथि: 9 अप्रॅल, 2012।
  2. रेशम मार्ग का रहस्य (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) china aba। अभिगमन तिथि: 9 अप्रॅल, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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